उपभोक्ता की बचत की आलोचना (कठिनाइयाँ)
मार्शल द्वारा विकसित उपभोक्ता की बचत की अवधारणा की निकलसन, हिक्स, ऐलन, डेवनपोर्ट, कैनन, टॉजिंग आदि अर्थशास्त्रियों ने निम्न आधारों पर कड़ी आलोचना की है-
(1) अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित- अनेक अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित होने के कारण उपभोक्ता की बचत’ का सिद्धान्त वैज्ञानिक नहीं है। वास्तविकता तो यह है—(i) तुष्टिगुण एक मनोवैज्ञानिक तथा व्यक्तिनिष्ठ (subjective) धारणा है जिसका निरपेक्ष माप संभव नहीं है। (ii) वस्तु की स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं। (iii) उपभोक्ता की आय, रुचि तथा फैशन में परिवर्तन होता रहता है। (iv) वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण स्थिर नहीं रहता।
(2) वस्तुएँ स्वतन्त्र नहीं होती- मार्शल की यह मान्यता गलत है कि प्रत्येक वस्तु की उपयोगिता (तुष्टिगुण) अन्य वस्तुओं से स्वतन्त्र होती है। वास्तविकता तो यह है कि एक वस्तु की उपयोगिता उपभोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं की उपयोगिता से प्रभावित होती है।
(3) मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण स्थिर नहीं रहता- मार्शल ने मुद्रा के सीमान्त तुष्टिगुण को स्थिर माना है। वास्तविक जीवन में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर इसका सीमान्त तुष्टिगुण घटने लगता है जबकि मुद्रा की मात्रा में कमी होने पर इसके सीमान्त तुष्टिगुण में वृद्धि होने लगती है।
(4) आय प्रभाव की अवहेलना- उपभोक्ता की आय में होने वाले परिवर्तन का ‘उपभोक्ता की बचत’ पर काफी प्रभाव पड़ता है। आय में वृद्धि होने पर उपभोक्ता वस्तु के लिए पहले से अधिक कीमत देने को तैयार हो जाता है जिससे उपभोक्ता की बचत’ बढ़ जायेगी। इस तथ्य की इस सिद्धान्त में पूर्ण उपेक्षा की गई है।
(5) उपभोक्ताओं की आर्थिक स्थिति में भिन्नता- धनी, मध्यम तथा निर्धन उपभोक्ताओं की आर्थिक स्थिति में भिन्नता के कारण उनकी उपभोक्ता की बचत को एक साथ मापना कठिन है धनी व्यक्ति को सर्वाधिक उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है, मध्यम श्रेणी वाले व्यक्ति को उससे कम और निर्धन व्यक्ति को तो बहुत कम या बिल्कुल भी नहीं।
(6) सम्पूर्ण मांग तालिका के ज्ञान का अभाव- सभी उपभोक्ता गाँग तालिका की पूर्ण जानकारी नहीं रखते। विभिन्न कीमतों पर विभिन्न वस्तुओं की मांगी गई मात्रा से सम्बन्धित जो माँग तालिकाएं (अनुसूचियाँ) बनाई जाती हैं ये काल्पनिक होती हैं न कि वास्तविक ऐसी किसी मांग तालिका के आधार पर निकाली गई उपभोक्ता का बचत’ भी काल्पनिक ही होती है।
(7) पूर्व निश्चित कीमत की मान्यता गलत- आलोचकों के विचार में यह मान लेना गलत है कि उपभोक्ता प्रत्येक वस्तु को क्रय करने से पहले उसकी एक निश्चित कीमत चुकाने को तैयार होता है। अनेक उपभोक्ता तो अनेक वस्तुओं की कीमतों के बारे में कोई पूर्व अनुमान ही नहीं लगा पाते।
(8) जीवन-रक्षक वस्तुओं से प्राप्त उपभोक्ता की बचत का अनन्त होना- जीवन रक्षक वस्तुओं (life saving goods) से प्राप्त उपभोक्ता की बचत का माप कठिन होता है क्योंकि ऐसी वस्तुओं के लिए उपभोक्ता कुछ भी कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, रेगिस्तान में प्यास से तड़प रहा व्यक्ति अपने जीवन को बचाने हेतु पानी के लिए अपना सब कुछ देने को तैयार हो जायेगा। ऐसी स्थिति में उसे असंख्य (incalculable) या अनन्त (infinite) उपभोक्ता की बचत प्राप्त होगी।
(9) प्रतिष्ठारक्षक वस्तुएँ- प्रतिष्ठारक्षक वस्तुओं (prestigious goods) से प्राप्त उपभोक्ता की बचत का ठीक-ठीक माप संभव नहीं है। धनी व्यक्ति ऐसी वस्तुओं को किसी भी कीमत पर खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार प्रतिष्ठारक्षक वस्तुओं (हीरे, जवाहरात, आभूषण आदि) से प्राप्त तुष्टिगुण तथा उनकी कीमतों में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता। अतः ऐसी वस्तुओं से प्राप्त उपभोक्ता की बचता भी अगणनीय (indeterminable) होती है।
(10) उपभोक्ता की बचत का परिवर्तनशील होना- उपभोक्ता की बचत की माप किसी वस्तु की कीमत पर निर्भर करती है। वास्तविक जीवन में वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होते रहते हैं जिस कारण उपभोक्ता की बचत की माप कठिन होती है।
(11) उपभोक्ताओं के स्वभाव तथा प्राथमिकता क्रम में अन्तर- उपभोक्ताओं की रुचियों तथा प्राथमिकताओं में अन्तर होता है जिस कारण उन्हें विभिन्न वस्तुओं के उपभोग से भिन्न-भिन्न उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है। ऐसी स्थिति में असंख्य उपभोक्ताओं की अलग-अलग ‘उपभोक्ता की बचत’ निकालकर समस्त बाजार की उपभोक्ता की बचत ज्ञात करना अत्यन्त कठिन कार्य है।
(12) काल्पनिक एवं भ्रमात्मक सिद्धान्त- प्रो० निकलसन ने ‘उपभोक्ता की बचत के सिद्धान्त को काल्पनिक, भ्रमात्मक एवं असत्य कहकर इसकी कटु आलोचना की है। निकलसन के शब्दों में, “मार्शल के इस कचन का क्या लाभ है कि लन्दन के 100 पौण्ड वार्षिक आय का तुष्टिगुण मध्य अफ्रीका के 1,000 पौण्ड की आय के तुष्टिगुण के बराबर है।
मार्शल ने इस आलोचना का उत्तर देते हुए बताया है कि इससे इस बात का ज्ञान होता है कि मनुष्य को अपने वातावरण तथा अवसरों से कितना लाभ प्राप्त होता है। मध्य अफ्रीका में 1,000 पौण्ड से भी इतनी सन्तुष्टि प्राप्त नहीं की जा सकती जितनी कि इंग्लैण्ड में 100 पौण्ड से प्राप्त की जा सकती है। फिर कुछ वस्तुएँ ऐसी हैं जो मध्य अफ्रीका में मिलती ही नहीं जिस कारण इंग्लैण्ड में उन वस्तुओं के उपलब्ध होने से 100 पौण्ड आय से वहाँ जितना उच्च जीवन-स्तर व्यतीत किया जा सकता है उतना मध्य अफ्रीका में 1,000 पौण्ड आय से भी नहीं किया जा सकता।
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