हिन्दी साहित्य

 कबीर के रहस्यवाद | Kabir’s Mysticism in Hindi

 कबीर के रहस्यवाद | Kabir's Mysticism in Hindi
 कबीर के रहस्यवाद | Kabir’s Mysticism in Hindi

 कबीर के रहस्यवाद का सोदाहरण वर्णन कीजिए ।

कबीर हिन्दी के आदिकाल के रहस्यवादी कवि हैं। कबीर के पूर्व हिन्दी साहित्य में नाथपंथियों, हठयोगियों एवं सफियों का प्रभाव था। कबीर ने इन सभी विचारधाराओं से सामग्री संचय कर अपनी एक समन्वित रहस्य दृष्टि का सृजन किया और आत्मा परमात्मा के चिरन्तन सम्बन्धों की एक अभिनव व्याख्या प्रस्तुत की।

रहस्यवाद के स्वरूप के विषय में डॉ. राम कुमार वर्मा का कथन है- “रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तर्निहित वृत्ति का प्रकाशन है जिसमें वह अलौकिक शक्ति से अपना निश्छल सम्बन्ध जोड़ना चाहती है, और वह सम्बन्ध यहां तक बढ़ जाता है कि दोनों में कुछ भी अन्तर नहीं रह जाता है।”

कबीर का रहस्यवाद

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत है- “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है।” चिन्तामणि भाग-2

आचार्य राम चन्द्र शुक्ल ने रहस्यवाद के दो रूप माने हैं- (1) साधनात्मक रहस्यवाद (2) भावनात्मक रहस्यवाद।

कबीर में यह दोनों प्रकार का रहस्यवाद पाया जाता है। साधनात्मक रहस्यवाद में साधक अज्ञात प्रियतम को जानने का प्रयास करता है। कबीर ने इस रहस्य की अनुभूति भी है एवं उसकी अभिव्यक्ति भी की है। यद्यपि यह अनुभति भी अपेक्षाकृत कठिन होती है और इसकी अभिव्यक्ति भी अपेक्षाकृत अधिक जटिल होती है। इस सन्दर्भ में कबीर ने जीव, जगत, मन, बुद्धि, अहंकार, चित्तवृत्ति आदि के विषय में आत्मालोचन किया है और उसे वाणी दी है। यथा-

जीवन- झीनी झीनी बीनी चदरिया,

अष्टकवल दल चरखा डोलै सुषमन तार से बीनी चदरिया

वृहथ- अवद्या गगन मंडल घर कीजै

जगत- साधौ यह मुरदों का गाँव

मन- अवधू मेरा मन मतवारा

उन्यन चढ्या गगन रस पीवै त्रिभुवन भया उज्यारा ।।

परन्तु कबीर का प्रिय विषय भावनात्मक रहस्यवाद है जिसमें कबीर ने भारतीय औपनिषदिक अद्वैतवाद एवं ईरानी सूफी मत का समन्वय किया है। इस दृष्टि से कबीर की अनुभति कहीं अधिक मर्मस्पर्शी हो गयी है।

इस अनुभति के कई चरण हैं जिन्हें कबीर ने क्रमशः अनुभव किया है जिसमें भारतीय एवं सूफी विचारधारायें एकमेक हुई है।

“कबीर में भी रहस्यवाद- भारतीय साधना पद्धति के तीन चरण हैं-

(1) दीक्षा

(2) विरह

(3) परिचय |

गुरुदीक्षा- कबीर की रहस्यानुभति का प्रारम्भ गुरूदीक्षा से होता है अतः कबीर रहस्य-साधना गुरू के महत्व के प्रति समर्पित हैं- क्योंकि गुरू का एक ही शब्दवाण सम्पूर्ण तमस को दूर कर सकता है। कबीर के गुरू का एक ही शब्द वाण कबीर को लगा था। उनकी सारी बहिर्मुखता समाप्त हो गई थी और एक अभिनव कबीर का जन्म हुआ था ।

कबीर गूंगा हुआ बाउरा, बहरा हुआ कान
पाऊँ थे पंगुल भया सतगुरू मारया वाँण
हंसै न बोलै उन्मनी चंचल मेल्ह्या मार।
कहै कबीर भीतरि भिद्या सतगुरू का हथियार ।।

विरह- दीक्षा प्राप्त कबीर की आत्मा राम की विरहिणी हो जाती है और वह रात-रात अपने प्रिय को पुकारती रहती है। उसके रूदन से सरोवर भर जाते हैं क्योंकि कबीर जानते हैं कि रात दिन पुकारने से कोई न कोई पुकार तो उसके कान में पड़ी न हो-

रात्यूँ रूनीं विरहिनी ज्यों बॅचू को कुंज,

अंतर आणि प्रजल्या प्रगट्या विरहा पुंज।

X             X                 X

रात्यूं रूनी विरहिनी गरजि भरे सब ताल ।

केशव कहि कहि कूकिये मत सोइये असरार,

राति दिवस के कूकणे कबहुँ त लगिह पुकार

X             X                X

कै विरहिनि को मीचु दे, कै आपा दिखराई,

रीति दिवस का दाझणाँ मोंसे सह्या न जाइ।

परिचय- रात दिवस अपने हृदय को जलाकर जब विरहिणी कबीर की आत्मा अपने प्रिय को पुकारती है तो प्रिय फिर अंततः उसके घर पाहुन बनकर आता और उससे भांवर डालता है। कबीर की यौवन मदोन्मत्त आत्मा उससे खोल मिली तनगाती शैली में मिलती है और उसमें एकमेक हो जाती है-

दुलहिनी गावहु मंगलचार।
हमरे घर आये हो राजा राम भरतार ॥
तनरति करि मैं मन रति करिहूं पंचतत आये बराती।
राम देव मेरे पाहुने आये, मैं जोबन मदमाती ॥
शरीर सरोवर वेदी करिहूँ ब्रह्मा वेद उचार ।
रामदेवसंग भांवारि लेहू धनि धनि भाग हमार॥

कबीर में सूफी रहस्यवाद- कबीर के काव्य में सूफी रहस्यवाद भी यत्र तत्र प्राप्त होता है। कबीर के युग तक आते आते सूफी संतों ने भारतीय परिवेश में उत्तर भारत में अपनी परम्परा स्थापित कर ली थी। इस्लाम आक्रमणकारियों के साथ सूफीमत के विदेशी मुसलमान भी भारत में आये और उन्होंने पृथक्-पृथक् अपने मठ स्थापित किए थे-

(1) चिश्ती,

(2) कादरी,

(3) नक्शबन्दी,

(4) सोहरावर्दी

सूफी रहस्य साधना के भी 4 चरण हैं:-

(1) शरीयत, (2) तरीकत, (3) हकीकत, (4) मारिफत,

कबीर में शरीयत, तरीकृत, हकीकत, मारिफत का विधिवत् निर्वाह तो नहीं प्राप्त होता परन्तु प्राण की साधना माध्यमों में जो व्याकुलता की अनुभूति है वह कभी कभी सफियों से मिलती-जुलती मालूम होती है। वैसे भारतीय मतवाद से विशेष अन्तर भी सूफीवाद में नहीं पाया जाता है जैसे कि-

शरीयत- सांसारिक भोगासक्त जीवों से भिन्न आचरण की अपेक्षा एक सूफी से की जाती है। कबीर स्वतः सदाचरण के प्रतीक थे।

तरीकत इस कसौटी पर साधक ईश्वर को पाने के लिए प्रयास करता है। कबीर की आत्मा सफियों की तरह ही व्याकुल हुई। कहीं-कहीं तो इनकी अभिव्यक्ति इतनी सफियाना हो गई है कि जायसी को भी मात करती लगती है यथा-

कबीर- यह तन जारौ छार के लिखों राम को नाउँ,

लेखनि करौं करंक की लिख लिख नाम पठाउं ।

जायसी- यह तन जारौं छार के कहौं कि पवन उड़ाव।

मकु वहि मारग पड़ि रहै कंत धरै जंह पांव।

सूफी साहित्य विरह वर्णन में विरहिणी के विरह का वर्णन करते-करते कवि शृंगार से वीभत्स तक उतर आते हैं और कभी-कभी भयानक रस पर भी लेखनी चलाते हैं-

हाड़ भये सब किंगरी नसें भई सब तांति।
रोम रोम ते धुनि उठै कहौं विथा केहि भांति ॥

सिन्धी के सूफी कवि बुल्ले शाह की एक बहुत प्रचलित सफियाना रचना है:

लाल मेरी पति रखियो रे, झूले लालण सिंगपरदाँ
राखी दा वाह कलंदर
दमादम मस्त कलंदर, अली का पहला नंबर।

कबीर ने इस लाल शब्द का प्रियतम के अर्थ में बहुत पहले प्रयोग किया था। कालान्तर में कबीर का लाल शब्द रीतिकाल तक प्रियतम के लिए रूढ़ि हो गया। यथाः

बिहारी लाली मेरे लाल की जित देखौं तित लाल । लाली देखन मैं गई मैं भी हो गयी लाल ॥ जीत मुकुट कुटि काछनी कर मुरली अरू माल या बानक मों मन बसौ सदा बिहारी लाल तुम कौन ध पाती पढ़े हौ लला मन लेहु पै देहु छटांक नहीं।

घनानन्द

यही अनुमति जो कबीर की आत्मा की प्रभु प्रेम की तड़प की अभिवृत्त है बिहारी घनानन्द, रसखान से होती हुई रवीन्द्र नाथ टैगोर, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, जयशंकर प्रसाद, पन्त, निराला तक चली आयी। परन्तु इसमें सूफी प्रभाव काव्यों के बाद समाप्त हो गया।

अतः कबीर में जो सूफीवाद है उस पर सूफी प्रकाश पड़ा परन्तु उसकी मूल चेतना भारतीय है फिर भी जायसी ने सूफी रहस्य साधना की वर्णन शैली को अपनाकर जो साहित्य दिया उसमें भारतीय एवं सूफी साधना का समन्वय स्पष्ट दृष्टिगोचर है और हिन्दी की अनुपम निधि है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment