कबीर ने धार्मिक रूढ़ियों को तोड़ने का जी तोड़ प्रयत्न किया है, स्पष्ट कीजिए ।
कबीर का समय अनेक प्रकार की विषमताओं, कुरूपताओं, और संघर्षों का समय था। सम्पूर्ण समाज क्षोभपूर्ण वातावरण में जी रहा था, उसके सामने किसी प्रकार का कोई विकल्प नहीं था। ऐसी स्थिति में कबीर का जन्म हुआ और उन्होंने धार्मिक सामाजिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में व्याप्त विषमताओं तथा वाह्य अत्याचारों का विरोध किया और समाज को एक नई और सही दिशा दी।
कबीर के पूर्व वेदों में कर्मकाण्ड का विरोध करने वालों में सर्वप्रथम व्रात्य लोग आते हैं। जिन्होंने वेद मार्ग की अवहेलना की और अपना स्वतंत्र मार्ग ग्रहण किया। प्रागैतिहासिक काल से ही भारतीय धर्म और संस्कृति के दो अलग-अलग मार्ग थे।
(1) शास्त्र सम्मत मार्ग (2) शास्त्र विरोधी मार्ग।
सच्ची मानवता की राह में आने वाली कोई भी बाधा कवीर सहन नहीं कर सकते थे। उच्चता और निम्नता के वर्गीकरण का स्वस्थ आधार कबीर के अनुसार मनुष्य के कर्म हैं न कि जन्म। जन्म के आधार पर सामाजिक व्यवस्था में जो दोष कबीर के युग में आ गये थे कबीर ने उन्हें दूर करने का जैसे कसम सीखा भी और उन्होंने उसे दूर भी किया। अतः उनकी प्रशंसा करे सामाजिक सदाचरण को समाज की पहली आवश्यकता माना छुआछूत, जाति-व्यवस्था आदि की लोक मान्यताओं का उन्होंने जमकर विरोध किया-
“ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होई ।
सुरबरन कलस सुराभरा साधू निन्दै सोई॥
कबीर प्रतिमा पूजन का घोर विरोध करते थे क्योंकि उनकी दृष्टि में जितने भी प्राणी थे उनमें सबमें शालिग्राम का वास है। सदाचरण सम्पन्न साधु ही प्रत्यक्ष देवता हैं फिर पाषाण पूजा व्यर्थ है-
“पाथर पूर्ज हरि मिलै तो कबीर पूजै पहाड़
X X X
दुनिया ऐसी बावरी जो पत्थर पूजन जाहि
घर की चकिया कोई न पूजै, जेहि का पीसा खाय॥
कबीर के अनुसार मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दुओं में भी न कोई ब्राह्मण न शूद्र-
“एकै बूँद एकै मल मूतर
एक चाम एक गूदा
एक जोत थै सब उतपन
को ब्राह्मन? को सूदा?
कबीर के युग में स्त्री एवं पुरूष में भी भेदभाव बहुत तीव्र हो चला था। कबीर ने इस भेद दृष्टि के स्थान पर सर्वभूतमय दृष्टि को स्थापित करने का प्रयास किया।
‘आप कटोरा आफै थारी
आप पुरिखा आफै नारी
आप सदाफल आफै नींबू
आप मुसलमान आफै हिन्दू ॥
कबीर ने वर्ण-भेद को सर्वथा अस्वीकार कर दिया। यही नहीं वे वर्ग-भेद को भी नहीं मानते-
“व्यापक ब्रह्मा, सवनि में एकै
को पण्डित को जोगी
राजा रख कवन सो कहिए
कवन वैद को रोगी ॥
सामाजिक विषमताओं का मूल अहंकार है। कबीर के अनुसार संसार में यदि अहंकार मिटा दिया जाय तो सामाजिक विषमतायें दूर हो जायेंगी, अहंकार ने न जाने कितने घर नष्ट कर दिये हैं-
“मैं बड़ मैं बड़, मैं बहु भारी
मठा दस नाज टका दस गांठी
मैं बाबा का जोग कहाऊँ
अपनी भारी गेंद चलाऊँ
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