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करुण रस – Karun Ras in Hindi
जिस भाव में स्थायी भाव शोक की अभिव्यक्ति करता हो वहाँ ‘करुण रस’ होता है।
करुण रस का स्थायी भाव शोक है। यह शोक भी उदात्त रूप में ही स्थायी भाव बनता है। करुण रस में मानवीय सहानुभूति का प्रसार सर्वाधिक होता है। इसमें भाव-तादात्म्य की पराकाष्ठा रहती है। करुण रस जीवन निर्माण की अद्भुत क्षमता रखत है। इसकी व्यापकता-एको रसः करुण एवं निमित्त भेदात में निहित है। न केवल मानव अपितु चराचर विश्व के प्रति करुण रस की भावना उत्पन्न हो सकती है।
करुण रस की परिभाषा (Definition of Karun Ras)
जहाँ पर पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है।
or
किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह या मरण से जो शोक उत्पन्न होता है उसे करुण रस कहते है।
धनंजय, विश्वनाथ आदि संस्कृत आचार्यों ने करुण रस के उत्पादक विविध कारणों को संक्षिप्त करके ‘दृष्ट-नाश’ और ‘अनिष्ट-आप्ति’ इन दो संज्ञाओं में निबद्ध कर दिया है, जिनका आधार उक्त ‘नाट्यशास्त्र’ में ही मिल जाता है।
- धनंजय के अनुसार करुण रस:- ‘इष्टनाशादनिष्टाप्तौ शोकात्मा करुणोऽनुतम्’।
- विश्वनाथ के अनुसार करुण रस:- ‘इष्टनाशादनिष्टाप्ते: करुणाख्यो रसो भवेत’।
हिन्दी के अधिकांश काव्याचार्यों ने इन्हीं को स्वीकार करते हुए करुण रस का लक्षण रूढ़िगत रूप में प्रस्तुत किया है।
- चिन्तामणि के अनुसार –
‘इष्टनाश कि अनिष्ट की, आगम ते जो होइ।
दु:ख सोक थाई जहाँ, भाव करुन सोइ’ ।
- देव के अनुसार –
‘विनठे ईठ अनीठ सुनि, मन में उपजत सोग।
आसा छूटे चार विधि, करुण बखानत लोग’।
- कुलपति मिश्र ने ‘रसरहस्य’ में भरतमुनि के नाट्य के अनुरूप विभावों का उल्लेख किया है ।
- केशवदास ने ‘रसिकप्रिया’ में ‘प्रिय के बिप्रिय करन’ को ही करुण की उत्पत्ति का कारण माना है।
करुण रस के आलंबन दुखी प्राणी, दुखपूर्ण परिस्थितियाँ, संकट-शोक, दैव-विनिपात, दीनता- दरिद्रता, विभव-नाश, वध बंधन, उपघात आदि होते हैं। अधिकाधिक संकटपूर्ण परिस्थितियाँ, अनन्य क्लेशादि उद्दीपन बनते हैं। रोना, आँसू बहाना, चीत्कार, विलाप करना, निःश्वास, रंग उड़ना, दैव-निन्दा, कंठ-अवरोध, स्तब्ध रह जाना, कौंपना, वैवर्ण्य, छटपटाना, छाती पोटना, दुखी की सहायता करना आदि अनेक अनुभव प्रकट होते हैं। उन्माद, चिंता, त्रास, उत्सुकता, आशा-निराशा, आवेग, मोह, विषाद, दैन्य, जड़ता, ग्लानि, निर्वेद, मरण, स्नेह, स्मृति, घृणा आदि अनेक संचारी भाव करुण रस में संचरण करते हैं।
करुण रस के उदाहरण
1. प्रिय मृत्यु का अप्रिय महा संवाद पाकर विष भरा।
चित्रस्थ-सी निर्जीव मानो, रह गई हत उत्तरा
संज्ञा-रहित तत्काल ही फिर, वह धरा पर गिर पड़ी।
उस काल मूर्च्छा भी अहो! हिलकर हुई उसको बड़ी। – मैथिलीशरण गुप्त
स्थायी भाव – शोक
विभाव- आश्रय उत्तरा, आलंबन मृतक (अभिमन्यु), उद्दीपन शोकजन्य वातावरण
अनुभाव- निर्जीव हो जाना, धरा पर गिरना, मूच्छित होना।
संचारी भाव- उन्माद, व्याधि, मूर्च्छा, स्मृति, जड़ता, दैन्य, विषाद आदि ।
रस- करुण रस
2. उसे देखने मरघट को ही,
गया दौड़ता हुआ वहाँ,
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही,
फूँक चुके थे उसे जहाँ
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर,
छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची,
हुई राख की थी ढेरी। – सियारामशरण गुप्त
स्थायी भाव – शोक
विभाव – आश्रय- पिता, आलंबन- मृत पुत्री, उद्दीपन- मरघट का वातावरण
अनुभाव– देखना, दौड़ना, छाती धधकना।
संचारी भाव- उन्माद, त्रास, ग्लानि, निर्वेद, मरण, स्मृति, मोह, आवेग आदि।
रस- करुण रस
3. बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह,
उजरी उसके सिवा किसे कब
कुर्क हुई बछड़ों की जोड़ी।
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती । – सुमित्रानंदन पंत
स्थायी भाव- शोक
विभाव- आश्रय- पिता, आलंबन मृत पुत्र उद्दीपन- सामाजिक परिवेश
अनुभाव- आँखों में चुभना, आँखों में नाचना, खेतों का उजड़ना।
संचारी भाव- उन्माद, त्रास, ग्लानि, स्मृति मोह आवेग, निराशा आदि।
रस- करुण रस
4. अभी तो मुकुट बँधा था माथ।
हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी न थे लाज के बोल
खिले भी चुंबन शून्य कपोल।।
हाय रुक गया यहीं संसार।
बना सिंदूर-अंगार।। – सुमित्रानंदन पंत
स्थायी भाव – शोक
विभाव- आश्रय- स्त्री (नायिका) आलंबन- मृत पुरुष (नायक) उद्दीपन- विवाह का वातावरण
अनुभाव- माथे पर मुकुट बाँधना, हल्दी के हाथ, सिंदूर लगाना।
संचारी भाव- उन्माद, दैन्य, विषाद, व्याधि, जड़ता, त्रास, आवेग आदि।
रस- करुण रस
5. धिक जीवन जो पाता ही आया है विरोध।
धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध।। – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
स्थायी भाव – शोक
विभाव- आश्रय- श्री राम, आलंबन रावण, उद्दीपन युद्ध के दौरान सफलता न पाना।
अनुभाव- स्वयं को धिक्कारना।
संचारी भाव- उन्माद, ग्लानि, त्रास, विषाद आदि।
रस – करुण रस
6. जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जियावै मोही।। – तुलसीदास
स्थायी भाव – शोक
विभाव- आश्रय – श्री राम, आलंबन मूर्च्छित लक्ष्मण, उद्दीपन लक्ष्मण को शक्ति लगने के पश्चात का परिदृश्य
अनुभाव- श्री राम का करुण विलाप
संचारी भाव – आवेग, उन्माद, ग्लानि, मरण, त्रास आदि।
रस- करुण रस
7. पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षणभर एक चमक है लाती,
तुरंत शून्य में गड़ वह चितवन;
तीखी नोक सदृश बन जाती। – सुमित्रानंदन पंत
स्थायी भाव- शोक
विभाव- आश्रय- पिता, आलंबन मृतक पुत्र उद्दीपन- पुत्र के मृत्यु के पश्चात उत्पन्न हुई परिस्थितियाँ
अनुभाव- आँखों में चमक आना, स्मृति, नजरों का शून्य में गड़ना, नोक की भाँति चुभना
संचारी भाव- उन्माद, आवेग, त्रास, विषाद आदि।
रस- करुण रस
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