हिंदी व्याकरण

Adbhut Ras (अद्भुत रस: परिभाषा भेद और उदाहरण)

Adbhut Ras
Adbhut Ras

Adbhut Ras (अद्भुत रस)

जिस भाव में विस्मय नामक स्थायी भाव जाग्रत होता है वहाँ ‘अद्भुत रस’ माना जाता है।

विस्मय में कई प्रकार की स्थितियाँ होती हैं, जैसे-किसी अलौकिक या असाधारण वस्तु या दृश्य को देखना, सुनना या उनसे मिलना। इस प्रकार जब आश्चर्यजनक स्थितियाँ सम्मुख आती है तो उसे ‘विस्मय’ कहा जाता है।

अद्भुत रस के अवयव:

  • स्थाई भाव : आश्चर्य।
  • आलंबन (विभाव) : आश्चर्य उत्पन्न करने वाला पदार्थ या व्यक्ति।
  • उद्दीपन (विभाव) : अलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन आदि ।
  • अनुभाव : दाँतो तले उंगली दवाना, आंखे फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना आदि।
  • संचारी भाव : उत्सुकता, आवेग,  भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि ।

Adbhut Ras Ka Sthayi Bhav – स्थाई भाव

अद्भुत रस का स्थायी भाव ‘आश्चर्य‘ होता है जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।

Adbhut Ras ke Bhed

  1. दृष्ट,
  2. श्रुत,
  3. अनुमति एवं
  4. संकीर्तित

अद्भुत रस के उदाहरण

1. आयु सिता-सित रूप चितैचित, स्याँम शरीर रगे रँग रातें।

‘केसव’ कॉनन ही न सुनें, सु कै रस की रसना बिन बातें।             जयशंकर प्रसाद

स्थायी भाव – विस्मय

विभाव – आश्रय- नायक आलंबन- लोकोत्तर कार्य-कलाप, उद्दीपन- बिना कान, वाणी, नेत्र, पैर के सुनना, बोलना, देखना और दौड़ना

अनुभाव- रोमांच, संभ्रम आदि।

संचारी भाव– तर्कहीनता, हर्ष आदि।

रस- अद्भुत रस

2. अस जिय जानि जानकी देखी।

प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेखी ॥

गुरुहिं प्रनाम मनहिं मन कीन्हा।

अत लाघवं उठाइ धनु लीन्हा ।।

दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ।

पुनि नभ धनुमंडल सम भयऊ ।।

लेत चढ़ावत सैंचत गाढ़े।

काह न लखा देख सबु ठाड़ें।।

तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।

भरे भुवन धुनि घोर कठोरा ।।                       – तुलसीदास

स्थायी भाव- विस्मय

विभाव- आश्रय- राजसभा में उपस्थित सभी सभासद आलंबन- श्री राम उद्दीपन स्वयंवर सभा का वातावरण।

अनुभाव- श्री राम का सीता को निहारना, धनुष उठाना प्रत्यंचा चढ़ाना, धनुष तोड़ना।

संचारी भाव – धृति, चपलता, श्रम, हर्ष, मति, आवेग, औत्सुक्य आदि।

रस- अद्भुत रस

3. उज्जवत् उज्ज्वल मनोहर थी वहाँ की भूमि सारी स्वर्ण की,

थी जड़ रही जिसमें विपुल मणियाँ अनेकों वर्ण की।                 – मैथिलीशरण गुप्त

स्थायी भाव – विस्मय

विभाव- आश्रय- कवि, आलंबन- बैकुंठ लोक उद्दीपन- बैकुंठ लोक की भव्यता।

अनुभाव- बैकुंठ का आश्चर्यजनक और विचित्र वर्णन

संचारी भाव- श्रम, हर्ष, मति, औत्सुक्य आदि ।

रस- अद्भुत रस

4. सुत की शोभा को देख मोद में फूली,

कुन्ती क्षण भर को व्यथा-वेदना भूली।

भरकर ममता-पय से निष्पलक नयन को,

वह खड़ी सींचती रही पुत्र के तन को।                    – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

स्थायी भाव – अनुभाव विस्मय

विभाव – आश्रय- कुंती आलंबन कर्ण, उद्दीपन- कर्ण की शारीरिक भव्यता। व्यथा-वेदना को भूलना, अपलक निहारना, खड़ा रहना सींचना

संचारी भाव – आश्चर्य, हर्ष, आवेग, धृति, मति, जड़ता आदि।

रस- अद्भुत रस

5. भए प्रकट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप विचारी।               – तुलसीदास

स्थायी भाव – विस्मय

विभाव- आश्रय- कौसल्या, आलंबन- श्री राम उद्दीपन- श्री राम का अद्भुत रूप

अनुभाव- कौशल्या का प्रसन्न होना विचार करना।

संचारी भाव – हर्ष, चपलता, मति आदि।

रस – अद्भुत रस।

6. मैं फिर भूल गया इस छोटी सी घटना को

और बात भी क्या थी, याद जिसे रखता मन!

किंतु, एक दिन जब मैं संध्या को आँगन में

टहल रहा था, तब सहसा मैंने जो देखा

उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!

देखा, आँगन के कोने में कई नवागत

छोटी-छोटी छाता ताने खड़े हुए हैं।                     – सुमित्रानंदन पंत

स्थायी भाव – विस्मय

विभाव- आश्रय- कवि, आलंबन- बीज बोने की घटना, उद्दीपन- संध्या के समय आँगन में टहलना। अनुभाव भूलना, टहलना, देखना, हर्ष विभोर होना, विस्मित होना।

संचारी भाव- हर्ष, आवेग, मति, आश्चर्य, स्मृति आदि।

रस- अद्भुत रस

7. यह अंतिम जप, ध्यान में देखते चरण-युगल,

राम ने बढ़ाया कर लेने को नीलकमल।

कुछ लगा न हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल,

ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल                      – निराला

स्थायी भाव- विस्मय

विभाव- आश्रय- श्री राम, आलंबन- देवी माँ उद्दीपन- नीलकमल का गायब हो जाना।

अनुभाव- जाप करना, ध्यान लगाना हाथ आगे बढ़ाना, मन में विस्मय होना, चंचलता होना, आँखें खोलना, ध्यान भंग होना।

संचारी भाव- विमूढ़ मति, औत्सुक्य, विषाद, आवेग, चपलता आदि।

रस- अद्भुत रस

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Anjali Yadav

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