कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

ग्रामीण शिक्षा के साधन (Means of Rural Education)

ग्रामीण शिक्षा के साधन (Means of Rural Education)
ग्रामीण शिक्षा के साधन (Means of Rural Education)

ग्रामीण शिक्षा के साधन (Means of Rural Education)

आजकल स्कूलों के अलावा शिक्षा के प्रचार के और भी अनेक साधन प्रचलित हैं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित है-

(1) पुस्तकालय — गाँवों में पुस्तकालयों का होना आवश्यक है। अपनी पसन्द की पुस्तकों को पढ़ने से लोगों का मनोरंजन तो होता ही है साथ ही साथ उनका ज्ञान भी स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। चूंकि हर एक गाँव में पुस्तकालय की स्थापना नहीं की जा सकती इसलिए चलते-फिरते पुस्तकालय होने चाहिए जो सप्ताह में या 15 दिन में गाँवों में अवश्य पहुँचे ऐते पुस्तकालयों के लिए पुस्तकों का बड़ी समझदारी से चुनाव किया जाना चाहिए। मनोरंजन-साहित्य और बाल साहित्य के अलावा सुगम ढंग से प्रस्तुत किया हुआ सामाजिक, राजनीतिक, औद्योगिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ज्ञान सम्बन्धी साहित्य भी होना चाहिए। पिछले दिनों सरकार की ओर से कुछ गाँवों में चलते-फिरते पुस्तकालयों की व्यवस्था की गई थी, परन्तु अनेक कारणों से ग्रामीण इनका समुचित लाभ नहीं उठा सके। इस दिशा में एक कठिनाई ग्रामीण जनता के लिए उपयुक्त साहित्य के चुनाव की भी है।

(2) वाचनालय- ग्रामीण शिक्षा के विस्तार के लिए पुस्तकालय से भी अधिक वाचनालय की आवश्यकता है। आज के युग में देश की जनता को देश विदेश के समाचारों के विषय में ज्ञान होना बड़ा जरूरी है। अतः गाँव के लोगों के लिए तरह-तरह के पत्र-पत्रिकाओं की व्यवस्था होनी चाहिए। इन पत्र-पत्रिकाओं में स्थानीय के साथ-साथ राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की बातों का भी वर्णन होना चाहिए। इससे गाँव वालों को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करने में बड़ी सहायता मिलेगी।

(3) टेलीविजन- टी० बी० भी शिक्षा के प्रचार का एक मुख्य साधन है। गाँव में सार्वजनिक टी० बी० की व्यवस्था होनी चाहिए। टी० बी० से शिक्षा भी मिलती है और मनोरंजन भी होता है। उससे प्रतिदिन के समाचार भी ज्ञात होते हैं। देश के लगभग सभी टी० बी० स्टेशनों से ग्रामीण जनता के लिए विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। अनेक गाँवों में सार्वजनिक टी०वी० हैं। परन्तु सभी गांवों में सार्वजनिक टी० बी० का होना अभी दूर की बात है।

(4) चलचित्र- चलचित्र (movie film) का देखने वालों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। सुनी हुई बात से देखी हुई घटना सदैव अधिक प्रभावशाली होती है। देश में होने वाले विकास का ज्ञान कराने, देश के भिन्न-भिन्न भागों की संस्कृति का परिचय कराने, स्वास्थ्य, सफाई और रोगों की रोकथाम के सम्बन्ध में जानकारी देने और साथ-साथ मनोरंजन करने के लिए चलचित्र ही लाभदायक सिद्ध हुए हैं। भारत में ग्रामीण शिक्षा के लिए चलचित्रों की व्यवस्था की गई है, परन्तु यह व्यवस्था अभी नितान्त अपर्याप्त है।

(5) चलती-फिरती गाड़ियों- चलती-फिरती गाड़िया भी ग्रामीण शिक्षा का एक मुख्य साधन हैं। इनमें पुस्तकें सांस्कृतिक वस्तुएं, फिल्म और लाउडस्पीकर होते हैं। गाँव-गाँव में जाकर ये लोगों का मनोरंजन कर सकती है और इस प्रकार हर तरह की शिक्षा का विस्तार कर सकती हैं। देश में ऐसी गाड़ियाँ अभी बहुत कम हैं।

(6) प्रदर्शनियाँ— औद्योगिक शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा तथा नए-नए यन्त्रों, वस्तुओं, आविष्कारों और प्रणालियों के विषय में जानकारी देने के लिए प्रदर्शनियाँ बड़ी लाभदायक सिद्ध होती हैं। इन प्रदर्शनियों को देखने के लिए दूर-दूर के गांवों के स्त्री-पुरुष तथा बच्चे सभी एकत्रित होते हैं। खेती के नए-नए जीजायें और नई प्रणालियों का ज्ञान कराने के लिए तो ये प्रदर्शनियाँ बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है। देश में सामुदायिक विकास प्रायोजनाएँ प्रारम्भ होने के बाद से तो स्थान-स्थान पर इस तरह की प्रदर्शनियों होती रहती है, परन्तु बहुत से क्षेत्र अब भी इनके लाभ से वंचित हैं।

(7) अजायबघर- अजायबघर (museum) ज्ञान का प्रसार करने का एक मुख्य साधन हैं। उनसे पशु, वनस्पति, भूमि, सभ्यता, संस्कृति आदि अनेक महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। भारत में गाँवों की तो बात ही क्या अधिकतर शहरों में भी अजायबघर नहीं हैं। देश में कुछ थोड़े से शहरों में अजायबघर है, जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस दिशा में अभी काफी प्रगति की आवश्यकता है।

(8) क्रीड़ा-केन्द्र- आजकल सभी विचारशील व्यक्ति यह मानते हैं कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो सके समुचित शिक्षा की दृष्टि से शारीरिक शिक्षा का बड़ा महत्व है। इसके लिए क्रीड़ा केन्द्र और व्यायामशालाएं होनी चाहिए। गांव के अखाड़े व्यायामशालाओं के रूप में सैकड़ों वर्षों से गाँवों में शारीरिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते रहे हैं, परन्तु वैज्ञानिक ढंग के क्रीड़ा-केन्द्रों का गाँवों में नितान्त अभाव है।

(9) राष्ट्रीय शिक्षा नीति– सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा सन् 1992 के कार्यक्रम (Programme of Action) के अन्तर्गत इस शताब्दी के अन्त तक 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। प्रथम पंचवर्षीय योजना में शिक्षा पर 153 करोड़ रु० व्यय किए गए जबकि आठवीं योजना में इस मद पर व्य बढ़कर 19,600 करोड़ रु० हो गया। दसवीं योजना में प्राथमिक शिक्षा के लिए 28,750 करोड़ रु० का प्रावधान किया गया था।

(10) प्रौढ़ शिक्षा – सन् 1978 में 2 अक्टूबर से प्रौढ़ शिक्षा का विशेष कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया जिसका उद्देश्य 35 वर्ष तक के युवक-युवतियों को शिक्षित करना था।

सन् 1988 में राष्ट्रीय साक्षरता अभियान प्रारम्भ किया गया जिसका उद्देश्य 15-35 वर्ष की आयु के सभी व्यक्तियों को साक्षर करना था।

ग्रामीण शिक्षा सर्वांगीण होनी चाहिए

गाँवों में शिक्षा के प्रसार हेतु उपर्युक्त साधनों का प्रयोग करते समय यह बात ध्यान में रखनी आवश्यक है कि इनमें यथासम्भव ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित बातों के आधार पर ज्ञान का प्रसार किया जाना चाहिए। ग्रामीण शिक्षा में स्थानीय परिस्थितियों का ध्यान रखा जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र में केवल स्कूल मात्र से शिक्षा का काम पूरा नहीं हो सकता और केवल पुस्तकालय और वाचनालय ही पर्याप्त नहीं है। रेडियो, चलचित्र, अजायबघर, क्रीड़ा-केन्द्र आदि के माध्यम से गाँवों के लोगों को व्यापक स्तर की शिक्षा दी जा सकती है।

अन्त में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत में ग्रामीण शिक्षा की कमी अत्यन्त गम्भीर तथा जटिल समस्या है किन्तु इसका समाधान भी परमावश्यक है। देश के करोड़ों लोगों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध करने पर अरबों रुपए व्यय होंगे। परन्तु शिक्षा पर किया गया खर्च एक तरह से उत्पादक निवेश (investment) है, क्योंकि देश की चहुंमुखी प्रगति इसी पर आधारित है। भारत सरकार ने इस ओर काफी ध्यान दिया है। मौलिक रूप से ग्रामीण शिक्षा के लिए उपयुक्त लक्ष्य भी स्वीकार किए गए हैं परन्तु फिर भी शिक्षा पद्धति में विशेष सुधार नहीं हो सका है। शिक्षकों की दशा बड़ी दयनीय है। ग्रामीण स्कूलों में समुचित कमरों का एकदम अभाव है। प्राथमिक स्कूलों के सम्मुख जमीन सम्बन्धी कठिनाइयाँ हैं। पुस्तकालय और वाचनालय एक तो हैं के ही कम और जहाँ हैं भी वहाँ उनका समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। गाँवों में शिक्षा के प्रसार पर तो ध्यान दिया गया है परन्तु है: शिक्षा स्तर में सुधार की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है।

सर्वशिक्षा अभियान- देश के 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2010 तक आठवीं कक्षा तक को निःशुल्क और गुणवत्तापरक प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 2000-01 में सर्वशिक्षा अभियान की घोषणा की गई। इस योजना के अन्तर्गत 6 से 11 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2007 तक पाँच वर्ष की तथा 11 से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से गम्भीर प्रयास किए गए।

शिक्षा सहयोग योजना- केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2001-02 के बजट के अन्तर्गत शिक्षा सहयोग योजना’ की घोषणा की गई इस योजना का प्रमुख उद्देश्य गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे परिवारों के बच्चों को आठवीं कक्षा के बाद अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना है जिससे धन की कमी के कारण ऐसे बच्चों की शिक्षा बाधित न हो।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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