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घीसू और माधव की चारित्रिक विशेषताएँ | Characteristics of Ghisu and Madhav in Hindi

घीसू और माधव की चारित्रिक विशेषताएँ | Characteristics of Ghisu and Madhav in Hindi
घीसू और माधव की चारित्रिक विशेषताएँ | Characteristics of Ghisu and Madhav in Hindi
घीसू और माधव की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।

घीसू और माधव की चारित्रिक विशेषताएँ

कुफन कहानी में मुख्य पात्र घीसू और माधव है। इनके चरित्र की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं।

(1) निक्कमें और आलसी:- घीसू और माधव दोनों महा निकम्में हैं। वे दलित जाति के हैं और अपने निकम्मेपन के कारण सारे गाँव में बदनाम है। कहानीकार के अनुसार घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम माधव इतना कामचोर था कि आधा घण्टे काम करता तो घण्टे भर चिलम पीता- घर में मुट्ठी भर भी अनाज मौजूद हो तो उनके लिए काम करने की कसम थी।” वे महा आलसी थे। कोई काम नहीं करना चाहते थे। खेतों से आलू आदि उखाड़ लातें और भूनकर खा लेतें थे। माधव का विवाह पिछलें वर्ष हुआ था। उस स्त्री ने व्यवस्था की नीवं डाली थी। ‘पिसाई करके या घास छीलकर वह सेर भर आटे का इन्तजाम कर लेती थी और इन दोनो बेंगैरतों का दोजख भरती रहती थी। जब से वह आयी, वह दोनों और भी आलसी और आराम- तलब हो गये थे। . कोई काम करने बुलाता तो निर्व्याज भाव से दुगनी मजदूरी माँगते थे।” अतः उन्हें कोई मजदूरी भी नहीं देता था।

( 2 ) झूठ :- घीसू और माधव झूठ बोलने में बड़े कुशल हैं। बहाना बनाने में माहिर हैं। जब बुधिया मर जाती है, तो उनका असली रूप (झूठ-कपट) सामने आ जाता है वे कफन के पैसों से छककर शराब पीतें हैं और डटकर खातें है। जब माधव ने प्रश्न किया- “लोग पूछेंगे नहीं, कफन कहाँ है? घीसू हँसा-“तब कह देंगें कि रुपये कमर से खिसक गयें, बहुत ढूँढा, मिलें नहीं? लोगों को विश्वास तो न आयेगा, लेकिन फिर वही रुपयें देंगें।

(3) शराबी और पेटुः – घीसू और माधव दोनों ही पेटू भी थें। दोनों आलू निकाल ‘निकालकर जलते-जलते खाने लगे-इतना सब्र न था कि ठंडा हो जाने देतें। कई बार दोनों की जबानें भी जल गयी। घीसू को उस समय ठाकुर की बारात याद आयी क्योंकि उसी दावत में उसे तृप्ति मिली थी वे दोनों ही चंदे के पैसे से कफन खरीदने जाते हैं, पर वहाँ शराब पीकर छक कर चिखौना तली मछलियाँ दो सेर पूड़ियाँ कलेजियाँ उड़ातें हैं।

(4) बेशर्म – दोनों ही इतने बेशर्म हैं कि उन्हें किसी की परवाह भी नहीं है। इसी से वे संसार की समस्त चिन्ताओं से मुक्त थें। कर्ज से लदें हुए। गालियाँ भी खातें, मार भी खातें मगर कोई भी गम नहीं। उनकी समूची निर्लज्जता इस पंक्ति में हीं उभर आती है। भीख माँग कर वह कफन खरीदने गये थें और वहाँ छककर बढ़िया माल खाया, शराब पी और मौज मस्ती ‘उड़ायी, तब माधव कहता है- “बड़ी अच्छी थी बेचारी मरी तो खूब खिला-पिलाकर।”

(5) निर्दयी और कठोर- सहृदयता नाम की चीज तो उनकों छू भी नहीं गयी थी। फलतः कठोरता और निर्दयता उनके ऊपर हावी थी। जब माधव की पत्नी बुधिया प्रसव वेदना से तड़प रही थी, तब दोनों को कोई चिन्ता नहीं थी। जबकि बुधिया उनको पाल रही थी। वह खुद-मेहनत मजदूरी करती और उन्हें रोटी खिलाती। घीसू ने कहा- “मालूम, होता है बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख-तो आ ।”

तू बड़ा ही बेदर्द है रे! सालभर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई।”

“तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता।”

घीसू ने आलू निकालकर छीलते हुए कहा-“जाकर देख तो क्या दशा है उसकी? चुड़ैल का फिसाद होगा। यहाँ तो ओझा भी एक रुपया माँगता है।”

माधव बोला- “मुझे वहाँ जाने से डर लगता है “

“डर किस बात का है ? मै तो यहाँ हूँ ही “

“तो तुम्हीं जाकर देखों न ?”

( 6 ) अत्यन्त निर्धनः घीसू और माधव अत्यन्त निर्धन है उसने यहाँ खाने के लिए अनाज़ का एक दाना भी नहीं है। उन्हें कई-कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता है। उन्होंने बी साल पहलें ठाकुर की बरात में ही भर पेट और मन चाहा भोजन किया था। उसके बाद उन मनचाहा भोजन नसीब नहीं हुआ था।

उपसंहार- अन्त हम यह कह सकते हैं कि इस कहानी का चरित्रांकन यथार्थ आधारित प्रभावी, व्यंजनापूर्ण और विशिष्ट है। कुछ स्तर पर तो सीमा ही पार कर गया निर्लज्जता, आत्म-केन्द्रितता, उदासीनता, निर्दयता और घोर निकम्मापन के साथ ही साथ गरी और भुखमरी का भी यथार्थ चित्रण किया गया है।

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Anjali Yadav

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