कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

जे० के० मेहता की परिभाषा (J. K. Mehta’s Definition)

जे० के० मेहता की परिभाषा (J. K. Mehta's Definition)
जे० के० मेहता की परिभाषा (J. K. Mehta’s Definition)

जे० के० मेहता की परिभाषा (J. K. Mehta’s Definition)

भारत के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे० के० मेहता (I. K. Mehta) ने एक बिल्कुल नए दृष्टिकोण से अर्थशास्त्र की परिभाषा दी है जो भारतीय संस्कृति तथा परम्परा के अनुकूल है। मेहता के शब्दों में, अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो मानव व्यवहार का अध्ययन आवश्यकताविहीनता के लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन के रूप में करता है|

जे० के० मेहता की परिभाषा की व्याख्या (विशेषताएँ)-

मेहता की परिभाषा को निम्न बातों (लक्षणों) को ध्यान में रखकर आसानी से समझा जा सकता है-

(1) मानव व्यवहार मानसिक असन्तुलन का परिणाम- मेहता के विचार में मानव व्यवहार, जो कि अर्थशास्त्र के अध्ययन का विषय है, मानसिक असन्तुलन का परिणाम होता है। मनुष्य की आवश्यकताओं तथा उन्हें सन्तुष्ट करने वाले उपलब्ध सीमित साधनों के मध्य बड़ा अन्तर (खाई) होता है। यह अन्तर ही मानसिक असन्तुलन का परिणाम होता है।

(2) सन्तुलन स्थापित करने का मार्ग मस्तिष्क को शिक्षित करना-प्रो० मेहता ने सन्तुलन (सुख) की अवस्था को प्राप्त करने के दो उपाय बताए हैं- (i) प्रथम उपाय-मानसिक असन्तुलन उत्पन्न करने वाली बाह्य शक्तियों (external stimuli) में परस्पर सामंजस्य स्थापित कर दिया जाए कई कारणों से ऐसा सामंजस्य अपूर्ण रह जाता है। (ii) द्वितीय उपाय-मस्तिष्क को ऐसी अवस्था में रखा जाए कि वह बाहरी शक्तियों द्वारा प्रभावित न हो इसके लिए इच्छाओं का दमन (repression) करने के मस्तिष्क को शिक्षित करना आवश्यक है।

(3) अन्तिम तव्य सुख प्राप्त करना है (दुःख, आनन्द व सुख में अन्तर)- मेहता के अनुसार, मानव व्यवहार का अन्तिम लक्ष्य सुख प्राप्त करना है। मेहता ने दुःख या कष्ट (pain), आनन्द (pleasure) तथा सुख (happiness) शब्दों में अन्तर किया है। अपनी किसी इच्छा या आवश्यकता के सन्तुष्ट न होने पर मनुष्य की कष्ट या पीड़ा का अनुभव होता है। आवश्यकता के तृप्त होने पर मनुष्य को सन्तुष्टि का अनुभव होता है; मेहता ने सन्तुष्टि को आनन्द की संज्ञा प्रदान की है। सन्तुष्टि या जानन्द की अवस्था अस्थायी होती है क्योंकि सीमित साधनों से असीमित आवश्यकताएँ सन्तुष्ट नहीं की जा सकती। असन्तुष्ट आवश्यकताएँ मानव-मस्तिष्क को सदैव असन्तुलन में रखती हैं।

मेहता के विचार में मनुष्य को सुख उस समय प्राप्त होता है जबकि उसे किसी भी आवश्यकता का अनुभव नहीं होता। सुख की अवस्था में ही मानव-मस्तिष्क पूर्ण सन्तुलन में होता है।

(4) अधिकतम सुख आवश्यकतारहित अवस्था में- मेहता के विचार में अर्थशास्त्र का उद्देश्य आवश्यकतारहित अवस्था को प्राप्त करना है। मेहता ने इच्छाओं या आवश्यकताओं से मुक्ति पाने की समस्या को ही आर्थिक समस्या बताया है। संक्षेप में, वास्तविक सुख आवश्यकताओं को दबाने में नहीं वरन् मानव मस्तिष्क को शिक्षित (educate) करके उन्हें समाप्त करने में है।

मेहता के विचार में अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मानवीय आवश्यकताओं को क्रमशः कम करते-करते उन्हें पूर्णतया समाप्त करने से है। आवश्यकताओं को कम करके ही वास्तविक सुख तथा शान्ति प्राप्त हो सकती है। चूंकि आवश्यकताओं को एकदम समाप्त नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्हें क्रमशः समाप्त करना चाहिए।

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Anjali Yadav

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