कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषा | Scarcity Definition in Hindi

दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषा (Scarcity Definition)

सन् 1932 में रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र की एक सर्वथा भिन्न दृष्टिकोण से परिभाषा देकर आर्थिक जगत में खलबली मचा दी। रॉबिन्स ने न तो धन पर बल दिया तथा न ही मनुष्य के भौतिक कल्याण पर, वरन् उन्होंने बताया है कि अर्थशास्त्र में हम मानव व्यवहार के चुनाव पहलू का अध्ययन करते हैं। मनुष्य को आवश्यकताओं के असीमित होने किन्तु साधनों के सीमित तथा वैकल्पिक प्रयोग वाले होने के कारण आवश्यकताओं में चुनाव करना पड़ता है। प्रो० रॉबिन्स (Robbins) के शब्दों में “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें साथ्यों तथा सीमित व अनेक उपयोग वाले सीमित साधनों से सम्बन्धित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है|

रॉबिन्स की परिभाषा के मूल तत्त्व (Basic Elements in Robbins’ Definition)-रॉबिन्स की परिभाषा में निम्न पाँच आधारभूत बातें निहित है

(1) असीमित ध्येय या आवश्यकताएँ (Unlimited Ends)-मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त होती है। एक आवश्यकता (ध्येय) की पूर्ति होने पर दूसरी आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है।

(2) सीमित साधन (Scarce Means)-मनुष्य की आवश्यकताएँ तो अनन्त है किन्तु उनकी पूर्ति करने वाले साधन (समय, धन आदि) सीमित है। मनुष्य के पास समय तथा धन दोनों की कमी होती है।

(3) साधनों के वैकल्पिक उपयोग (Alternative Uses of Means)-समय तथा धन जैसे सीमित साधनों का अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि में प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, मुद्रा द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ तथा सेवाएं खरीदी जा सकती है। इसी प्रकार पूंजी को कृषि, उद्योग, व्यापार, वाणिज्य आदि विभिन्न कार्यों में लगाया जा सकता है।

(4) आवश्यकताओं की तीव्रता में अन्तर (Difference in the Intensity of Wants)-मनुष्य की आवश्यकताएँ न केवल असीमित होती है बल्कि उनकी तीव्रता भी भिन्न-भिन्न होती है। किसी समय में कोई एक आवश्यकता दूसरी आवश्यकता की अपेक्षा तीव्रता से अनुभव की जाती है।

(5) चुनाव की समस्या (Problem of Choice) – असीमित आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक उपयोग वाले सीमित साधनों के सन्दर्भ में मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं को महत्त्व के क्रम में रखना पड़ता है। दूसरे शब्दों में, आवश्यकताओं की तीव्रता में अन्तर होने के कारण मनुष्य को उनके मध्य चुनाव करना पड़ता है, अर्थात् उसे यह तय करना होता है कि अपने सीमित सापनी से पहले यह कौन-कौन सी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करे तथा किनका परित्याग करे। अर्थशास्त्र में हम मानव व्यवहार के उस पहलू का ही अध्ययन करते हैं जिसका सम्बन्ध चुनाव की समस्या से है।

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Anjali Yadav

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