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दैनिक पाठ योजना का अर्थ एंव परिभाषा | दैनिक पाठ योजना का महत्त्व | दैनिक पाठ योजना निर्माण के पद

दैनिक पाठ योजना का अर्थ एंव परिभाषा | दैनिक पाठ योजना का महत्त्व | दैनिक पाठ योजना निर्माण के पद
दैनिक पाठ योजना का अर्थ एंव परिभाषा | दैनिक पाठ योजना का महत्त्व | दैनिक पाठ योजना निर्माण के पद

दैनिक पाठ योजना की परिभाषा देते हुए इसके महत्व एवं निर्माण के पदों का वर्णन कीजिये।

दैनिक पाठ योजना का अर्थ (Meaning of Lesson Daily Plan)

दैनिक पाठ योजना का अर्थ :- पाठ योजना शिक्षण प्रक्रिया के व्यवस्थापक पक्ष के व्यावहारिक रूप का वर्णन करती है। कक्षा में प्रवेश करने से पूर्व शिक्षक को अपने पाठ की पूरी योजना तैयार कर लेनी चाहिए। पूर्व योजना से शिक्षक को शिक्षण के लिए एक निश्चित दिशा मिलती है और वह आत्म-विश्वास से अपना पाठ कक्षा में पढ़ा सकता है। शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया के दौरान तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है-

  1. शिक्षण से पूर्व की अवस्था।
  2. शिक्षण अवस्था ।
  3. शिक्षण के बाद की अवस्था।

पाठ योजना का संबंध शिक्षण से पूर्व की अवस्था से होता है। इस अवस्था में शिक्षक को शिक्षण से संबंधित विभिन्न क्रियाओं का नियोजन करना पड़ता है। अतः साधारण भाषा में शिक्षक अनुदेशनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जो-जो क्रियाएँ कक्षा-कक्ष में करेगा, उसे नियोजित ढंग से लिख लेना ही “पाठ योजना” (Lesson Plan) कहलाता है।

दैनिक पाठ योजना की परिभाषाएँ (Definitions of Lesson Daily Plan)

विद्वानों द्वारा दी गई पाठ योजना की परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

1. एम.पी. मोफात के शब्दों में, “सफल शिक्षण में प्रकरण, समस्या, सीखने की क्रियाएँ तथा अन्य श्रोत सामग्री सम्मिलित हैं। इनके द्वारा छात्रों की प्रतिक्रिया, अभ्यास तथा अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन की प्राप्ति सम्भव है।”

2. डेवीस के अनुसार, “कक्षा में जाने से पहले शिक्षक को पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए, क्योंकि शिक्षक की प्रगति के लिए कोई बात इतनी बाधक नहीं है जितनी कि शिक्षण की अपूर्ण तैयारी।”

3. बासिंग महोदय के अनुसार, “पाठ योजना उन उद्देश्यों के कथनों और विशिष्ट तरीके को प्रदान किया गया शीर्षक हैं, जिनके द्वारा क्रियाओं के परिणामस्वरूप उन्हें प्राप्त किया जाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि पाठ योजना शिक्षण का ऐसा लेखा-जोखा है, जिसमें अध्यापक उद्देश्यों, पाठ्य सामग्री के बिन्दुओं, शिक्षण विधि, शिक्षण सहायक सामग्री, छात्र क्रियाएँ, पुनरावृत्ति, मूल्यांकन आदि का निर्धारण करता है, इसे ही “दैनिक पाठ योजना” कहते हैं।

दैनिक पाठ योजना का महत्त्व

दैनिक पाठ योजना के महत्त्व के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं-

(1) कक्षा में शिक्षक क्रियाओं, सहायक सामग्री एवं उनका कैसे प्रयोग करना है? इसका निर्णय शिक्षक पाठ योजना में करता है। जिससे वह पूर्व आत्मविश्वास के साथ शिक्षण कार्य करता है।

(2) शिक्षक पाठ योजना की सहायता से पाठ संबंधी उद्देश्यों का निर्धारण करता है जिससे शिक्षक बेकार की बातों में समय नष्ट नहीं करेगा, क्योंकि उसके सम्मुख शिक्षण उद्देश्य स्पष्ट होते हैं।

(3) पाठ योजना में नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे पाठ रोचक एवं सरल बन जाता है।

(4) पाठ योजना के द्वारा छात्रों को क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(5) पाठ योजना से संभवत: उभरने वाली समस्याओं का समाधान शिक्षक पूर्व में ही सोचकर शिक्षण करता है। जिससे शिक्षण के दौरान किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।

(6) कक्षा-शिक्षण के समय अध्यापक किसी भी चीज को नहीं भूलता है, क्योंकि वह पूर्व तैयारी करके आता है।

(7) पाठ योजना द्वारा छात्रों की तर्क, विस्तार एवं निर्णय तथा कल्पना शक्ति के विकास के आधार मिल जाता है।

दैनिक पाठ योजना हेतु आवश्यक बातें

कोई भी सफल शिक्षण निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-

  1. अध्यापक जिस प्रकरण से संबंधित पाठ योजना तैयार कर रहा हो, उसे उसकी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
  2. पाठ योजना में उद्देश्यों का परिभाषीकरण अवश्य ही करना चाहिए, क्योंकि उद्देश्यों की प्राप्ति ही पाठ योजना का मुख्य ध्येय होता है।
  3. अध्यापक जिस प्रकरण से संबंधित पाठ योजना तैयार कर रहा हो, उसे उसकी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
  4. अध्यापक को अपने शिक्षण में नवीन तकनीकियों एवं पद्धातयों का ज्ञान होना आवश्यक है।
  5. पाठ योजना वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए।
  6. पाठ योजना में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
  7. पाठ योजना से संबंधित पाठ के महत्त्वपूर्ण तथ्य और उदाहरण निहित होने चाहिए।
  8. प्रस्तावना के प्रश्न पूर्व ज्ञान से संबंधित, स्पष्ट, सरल, संक्षिप्त एवं क्रमबद्ध होने चाहिए।
  9. पाठ को दो या तीन शिक्षण-बिन्दुओं में विभक्त कर लेना चाहिए।
  10. वैस्टवे कहते हैं कि “शिक्षक को पाठ योजना का दास नहीं होना चाहिए।”

दैनिक पाठ योजना निर्माण के पद/चरण (Steps of Framing a Lesson Plan)

दैनिक पाठ योजना के निर्माण में निम्नलिखित पदों का समावेश किया जाता है-

(1) पाठ योजना की क्रम संख्या, (2) दिनांक, (3) कक्षा व वर्ग, (4) कालांश, (5) अवधि, (6) विषय, (7) उपविषय या प्रकरण, (8) विद्यालय का नाम, (9) छात्राध्यापक का नाम, (10) सामान्य उद्देश्य, (11) विशिष्ट उद्देश्य, (12) अधिगम सामग्री, (13) पूर्व-ज्ञान, (14) प्रस्तावना, (15) उद्देश्य कथन, (16) प्रस्तुतीकरण, (17) विकासात्मक प्रश्न, (18) बोध प्रश्न, (19) श्यामपट्ट सारांश, (20) पुनरावृत्ति प्रश्न एवं मूल्यांकन प्रश्न तथा (21) गृह-कार्य।

(1) परिचयात्मक विवरण:- इसमें पाठ योजना की क्रम संख्या, दिनांक, कक्षा व वर्ग, कालांश, अवधि, विषय, प्रकरण, विद्यालय का नाम, छात्राध्यापक का नाम आदि सूचनाओं का उल्लेख सर्वप्रथम करना होता है।

( 2 ) प्रकरण :- छात्राध्यापक को पाठ का प्रकरण अवश्य लिखना चाहिए। प्रकरण में पाठ का केन्द्रीय भाव छुपा रहता है। यह हो सके इतना संक्षिप्त होना चाहिए।

( 3 ) सामान्य उद्देश्य :- प्रत्येक विद्यालय विषय के अलग-अलग उद्देश्य होते हैं। ये सभी पाठों में एक समान रहते हैं। पाठ योजना में शिक्षण के सामान्य उद्देश्यों का उल्लेख किया जाता है।

( 4 ) विशिष्ट उद्देश्य :- ये सामान्य उद्देश्यों पर आधारित होते हैं लेकिन विशिष्ट उद्देश्य प्रकरण से संबंधित होते हैं। विशिष्ट उद्देश्य (प्राप्य उद्देश्य) ज्ञानात्मक, भावात्मक या क्रियात्मक किसी भी क्षेत्र के हो सकते हैं। विशिष्ट उद्देश्यों (प्राप्य उद्देश्य) को व्यावहारिक शब्दावली में लिखना चाहिए।

(5) अधिगम सामग्री :- अधिगम सामग्री वह साधन है, जिसके द्वारा पाठ को प्रभावी बनाया जाता है। शिक्षण में आवश्यक अधिगम सहायक सामग्री का प्रयोग अपेक्षित है। इसको ठीक प्रकार पर ही प्रयोग किया जाएं।

( 6 ) पूर्व ज्ञान :- छात्रों के पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ना आवश्यक है। प्रत्येक पाठ योजना में जो कुछ बालक का पूर्व ज्ञान है, उसे लिख लेना चाहिए। पूर्व ज्ञान के आधार पर पाठ का प्रारंभ होता है।

(7) प्रस्तावना :- पाठ का आरंभ प्रस्तावना से होता है। इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  1. प्रश्नों की सहायता से पूर्व ज्ञान की जाँच करना।
  2. छात्रों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रभावोत्पादक वातावरण उत्पन्न करना। अर्थात् पाठ या प्रकरण की ओर ध्यान केन्द्रित करना।
  3. छात्रों को नवीन ज्ञान ग्रहण करने को तैयार करना।
  4. अन्तिम प्रश्न का समस्यात्मक होना।

यह आवश्यक नहीं कि पाठ प्रश्नों से ही शुरू किया जाएं। शिक्षक शिक्षण सहायक सामग्री, कहानी, कविता, उदाहरण आदि से पाठ को प्रारंभ कर सकता है। प्रश्न से प्रस्तावना निकलाते समय ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रश्न क्रमबद्ध व तारतम्य हो तथा प्रश्न पूर्व ज्ञान पर आधारित हो।

( 8 ) उद्देश्य कथन :- प्रस्तावना के समस्यात्मक प्रश्न के तुरन्त बाद उद्देश्य कथन को स्पष्ट कर देना चाहिए।

( 9 ) प्रस्तुतीकरण :- पाठ के प्रस्तुतीकरण के लिए छात्राध्यापक को पाठ एवं उपविषय के अनुसार शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए एवं शिक्षक सहायक सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(10) विकासात्मक प्रश्न :- पाठ के विकास में प्रश्न महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये प्रश्न भी पूर्व ज्ञान से संबंधित होते हैं और पाठ के विकास में सहयोग प्रदान करते हैं।

(11) बोध प्रश्न :- शिक्षण बिन्दु के प्रस्तुतीकरण के बाद उसकी प्रभावशीलता का पता करने के लिए इस तरह के प्रश्नों का प्रयोग किया जाता है।

(12) श्यामपट्ट सारांश :- शिक्षक प्रत्येक शिक्षण बिन्दु की व्याख्या के पश्चात् बोध प्रश्न करें तथा छात्रों द्वारा दिए गए उत्तरों की सहायता से श्यामपट्ट सारांश लिखना चाहिए।

( 13 ) पुनरावृत्ति एवं मूल्यांकन प्रश्न :- पाठ पढ़ने के बाद उस पर प्रश्न करना भी आवश्यक है। पुनरावृत्ति पद का मुख्य ध्येय-छात्रों द्वारा अर्जित किए ज्ञान की जाँच करना है। अध्यापक को यह पता चल जाता है कि शिक्षण में उसे कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है? कक्षा शिक्षण में मौखिक प्रश्न पूछे जाते है। अध्याय जिस दिन समाप्त होता है उस दिन की पाठ योजना में पुनरावृत्ति प्रश्नों के बाद पूरे अध्याय से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर वस्तुनिष्ठ या निबंधात्मक या दोनों प्रकार के लिखित एवं मौखिक प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। इस तरह ‘मूल्यांकन’ किया जाता है।

( 14 ) गृह कार्य :- यह अन्तिम पद है। इसका मुख्य ध्यये पाठ की समाप्ति के बाद छात्रों को घर (गृह) के लिए कार्य प्रदान करता है।

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Anjali Yadav

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