B.Ed Notes

विचार-विमर्श विधि का अर्थ, विशेषताएं, तत्व, प्रकार एंव इसके गुण व दोष

विचार-विमर्श विधि का अर्थ, विशेषताएं, तत्व, प्रकार एंव इसके गुण व दोष
विचार-विमर्श विधि का अर्थ, विशेषताएं, तत्व, प्रकार एंव इसके गुण व दोष

विचार-विमर्श विधि का अर्थ बताते हुए इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिये। अथवा भूगोल शिक्षण में विचार-विमर्श (Discussion) विधि की उपयोगिता का वर्णन करते हुए इसके गुण व दोष स्पष्ट कीजिये।

विचार-विमर्श विधि का अर्थ- सामाजिक शिक्षण की बहु विधियाँ हैं। जिनमें से एक विचार-विमर्श विधि भी है। यह एक शैक्षणिक सामूहिक क्रिया है। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने इस शिक्षण विधि की परिभाषा तथा अर्थ इस प्रकार वर्णित किया है।

टी.एम. रिस्क के अनुसार, “वाद-विवाद का अर्थ अध्ययन के अन्तर्गत विषय में सम्मिलित सम्बन्धों का विचारशील तथ्य है।”

जेम्स एम.ली. के अनुसार, “यह एक शैक्षणिक सामूहिक क्रिया है जिसमें अध्यापक और विद्यार्थी कुछ समस्या या विषय के बारे में गम्भीर चिन्तन करते हैं।”

जॉनसन के अनुसार, “विचार-विमर्श शुद्ध रूप में एक सामाजिक क्रिया है।”

भुवनेश्वर प्रसाद के अनुसार, “विचार-विमर्श विधि शिक्षण की वह विधि है, जिसमें शिक्षक और शिक्षार्थी पारस्परिक सहयोग से किसी विषय, प्रश्न अथवा समस्या के सम्बन्ध में सहयोगपूर्ण, सामूहिक वातावरण में अपने-अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। विचार-विमर्श की मूल धारणा यह है कि छात्रों को अपनी बातों को कहने-सुनने और विचारों को प्रकट करने की प्राकृतिक रूप से स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए।”

हरबर्ट गुली के अनुसार, “विचार-विमर्श उस समय होता है, जब व्यक्तियों का एक समूह आमने-सामने एकत्रित होकर मौखिक अन्तर्क्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान प्रदान करता है या किसी सामूहिक समस्या पर कोई निर्णय लेते हैं।”

विचार-विमर्श विधि की विशेषताएं

इस सामाजिक शिक्षण विधि की निम्न विशेषताएं हैं-

(i) प्रबन्धों का विचारशील तथ्य – इस अध्ययन के अन्तर्गत एक विषय   या समस्या में सम्मिलित सम्बन्धों का विचारशील तथ्य के रूप में वर्णन किया जाता है। यह इन सम्बन्धों के विश्लेषण, मूल्यांकन, तुलना और निष्कर्ष से सम्बन्धित है।

(ii) तथ्यों का प्रबन्ध और वर्णन- विचार-विमर्श में किये गये तथ्यों का प्रबन्ध, वर्णन तथा रूपरेखा बनाकर तैयार किये जाते हैं।

(iii) विचारों का आदान-प्रदान – खोज के द्वारा विचारों का आदान-प्रदान इसके तथ्यपूर्ण आधार के लिए विचार-विमर्श में रखे जाते हैं, जिसमें अध्ययन और तैयारी, विषय सामग्री का चयन और प्रबन्ध, आदान-प्रदान वाले विचार तथा अध्ययन प्रक्रियाएं सम्मिलित होती हैं। विचारों का आदान-प्रदान विद्यार्थियों को विचारशील सोच में मूल्यवान शिक्षण देता है।

(iv) सहयोगात्मक प्रतियोगिता – इस विधि में प्रतियोगी सहयोगात्मक प्रतियोगिता की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

(v) समस्याओं का समाधान – यह विद्यार्थियों को एक समस्या के समाधान के प्रति उनकी विचार प्रक्रिया को सही करके प्रोत्साहित करता है।

(vi) अनुभवों का प्रयोग करना – वाद-विवाद की आगे व्याख्या करने के लिए उनके अनुभवों का प्रयोग करने में विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना है।

(vii) सक्रियता – विद्यार्थी हमेशा सक्रिय है इस प्रक्रिया के अन्तर्गत यह अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह उनकी क्रियाओं में निर्देशन प्रदान करें और साथ ही निरीक्षण भी करें।

(vili) सुसज्जित वार्तालाप – एक अच्छा विचार-विमर्श सुसज्जित वार्तालाप होता है, जिसमें प्रत्येक प्रतियोगी सहनशील, सचेत, वीर और अच्छे स्वभाव का है। क्रियाओं का अन्तर बहुत बड़ा हो गया है। जिनको विद्यार्थियों और अध्यापकों के द्वारा वर्णित किया जाता है।

(ix) उद्देश्य लक्ष्य प्राप्त करना – एक प्रभावशाली विचार-विमर्श का लक्ष्य – ज्ञान सम्बन्धी उद्देश्यों को प्राप्त करना है।

(x) रणनीति – एक विचार-विमर्श विधि निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित होती है- (अ) सक्रिय प्रतियोगी का सिद्धान्त (ब) कार्य के लिए स्वतन्त्रता का सिद्धान्त (स) प्रतियोगी का प्रश्न पूछने के द्वारा समान अवसर देने का सिद्धान्त।

विचार-विमर्श पद्धति के तत्व

विचार-विमर्श पद्धति के पाँच तत्व होते हैं –

(अ) लीडर (नेतृत्व) – अध्यापक विचार-विमर्श विधि का लीडर होता है। उसे एक लीडर की भूमिका को अच्छी तरह से निभाने के लिए अत्यधिक चीजों को जानना होगा और अत्यधिक विचार करना होगा। उदाहरण के लिए विचार-विमर्श पद्धति के लिए काफी अध्ययन की आवश्यकता रहेगी। इस विधि में अध्यापक के तानाशाह बनने का खतरा होता है। इसलिए अध्यापक को इस प्रवृत्ति से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए और प्रजातांत्रिक बनना चाहिए। उसे विद्यार्थियों को विचार व्यक्त करने के अवसर प्रदान करने चाहिए।

(ब) समूह – इस वर्गीकरण में विद्यार्थी आते हैं। समूह बौद्धिकता रूचियों और योग्यताओं के विभिन्न स्तरों वाले विद्यार्थियों से बना है। कुछ बहुत शर्मीलें होते हैं जबकि उत्साह व नेतृत्व से भरे होते हैं। अध्यापक का कर्त्तव्य प्रत्येक विद्यार्थी को विचार-विमर्श के लिए प्रेरित करना हैं।

(स) समस्या- विचार-विमर्श के लिए विद्यार्थियों की आयु, स्तर, योग्यताओं और कुशलताओं के अनुसार होनी चाहिए। विचार-विमर्श की समस्या ऐसी होनी चाहिए, जिसे विद्यार्थी अपनी समस्या जैसा महसूस करते । समस्या अस्पष्ट नहीं होनी चाहिए। यह वास्तविक और क्रियात्मक होनी चाहिए। अध्यापक को विद्यार्थियों से सलाह करके समस्या चुननी चाहिए और उनके विचार जानने चाहिए।

(द) विषय- वाद-विवाद की विषय सामग्री प्रकरण है। यह अध्ययन की आवश्यक सामग्री और ज्ञान का आकार होता है। सामाजिक शिक्षा के वाद-विवाद में, प्रकरण पाठ्य पुस्तकों में संदर्भ पुस्तकों और ए.वी. साधनों से सम्बन्धित होता है।

(घ) मूल्यांकन – विचार-विमर्श करने के पश्चात् इस बात का मूल्यांकन करना चाहिए कि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में विचार-विमर्श कहाँ तक सफल हुआ है। उसमें भाग लेने वाले विद्यार्थियों में वांछित ज्ञान में वृद्धि हुई या नहीं। उनके विचारों, पूर्वाग्रहों तथा अभिवृत्तियों में परिवर्तन हुआ या नहीं। मूल्यांकन से जहां विद्यार्थियों की उपलब्धि का पता चलता है, वहीं वाद-विवाद में रह गई कमियों के बारे में भी पता चलता है। विचार-विमर्श में उन कमियों को दूर करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। अतः प्रत्येक वाद-विवाद के पश्चात् उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

विचार-विमर्श के प्रकार

समूह के सदस्यों के आधार पर विचार-विमर्श निम्न प्रकार से हो सकता है-

(1) छात्र समूह द्वारा विचार-विमर्श – इस प्रकार के विचार-विमर्श में केवल छात्र ही भाग लेते हैं, इसका आयोजन, संचालन आदि समस्त कार्य उनके द्वारा ही सम्पन्न होता है।

(2) शिक्षक-छात्र समूह द्वारा विचार-विमर्श – इस समूह में शिक्षक व छात्र दोनों समान रूप से विचार-विमर्श में भाग लेते हैं। शिक्षक की उपस्थिति से छात्र संकोच का अनुभव करते हैं।

(3) शिक्षक समूह द्वारा विचार-विमर्श – इसमें एक विषय के शिक्षक या अन्य विषयों के शिक्षक भी सम्मिलित होते हैं तथा किसी विवादास्पद प्रसंग पर विचार विमर्श करते हैं।

संरचना की दृष्टि से विचार-विमर्श के प्रकार

संरचना आधारित दो प्रकार के विचार-विमर्श होते हैं- (i) औपचारिक (ii) अनौपचारिक

(i) औपचारिक :- इसमें किसी पूर्व निर्धारित विषय, कार्यक्रम, मानक एवं नियमावली का अनुसरण किया जाता है। नियमों का पालन अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होता है।

(ii) अनौपचारिक – इसमें किसी पूर्व निर्धारित योजना, विषय तथा कार्यक्रम का अभाव रहता है। आवश्यकता अनुभव होने पर तत्काल विचार-विमर्श किया जा सकता है। विचार-विमर्श सोद्देश्य होता है। अतः इसके रूप भी विभिन्न हो सकते हैं। व्यवस्था के आधार पर इसके मुख्य प्रकार निम्नांकित हो सकते हैं।

(A) सार्वजनिक विचार-विमर्श – इसमें जनसाधारण से सम्बन्धित सूचनाओं एवं समस्याओं पर विचार-विमर्श के निम्नांकित रूप हो सकते हैं।

  • (क) सूचनाओं तथा तथ्यों को प्रदान करना।
  • (ख) सामाजिक मूल्यों का निर्धारण करना।
  • (ग) जनसाधारण का मनोरंजन करना।

(B) शैक्षिक विचार-विमर्श – इसका आयोजन विद्यार्थियों को सूचनाओं तथा तथ्यों को बोधगम्य करने के लिए सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों का स्पष्टीकरण करने के लिए तथा समस्याओं के समाधान हेतु किया जाता है। व्यावहारिक रूप से इस प्रकार के विचार-विमर्श का आयोजन हमारी शिक्षण संस्थाओं में नहीं होता है।

विचार-विमर्श विधि का स्वरूप- विचार-विमर्श विधि में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निम्नलिखित प्रकार से निभायी जाती है।

(i) अध्यक्ष – इस पद का विचार-विमर्श के समय अत्यधिक महत्व है। अध्यक्ष द्वारा ही विचार-विमर्श का संचालन किया जाता है तथा विचार-विमर्श के महत्व उनकी अन्तः क्रिया व तर्कों का संक्षिप्तीकरण एवं सुधार किया जाता है। सदस्यों की उत्तेजना के मध्य शान्ति स्थापित करना भी अध्यक्ष का ही कार्य होता है।

(ii) अनुदेशक – अनुदेशक का कार्य विचार-विमर्श के मध्य विचार-विमर्श प्रकरण, समय, स्थान तथा सदस्यों का चयन करना होता है। वह सम्पूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा भी निश्चित करता है।

(iii) समूह के सदस्य – समूह के अन्य सदस्यों की संख्या चार से दस तक हो सकती है। ये विचार-विमर्श के मध्य अपने विचार प्रकट करते हैं। ये अपने विषय के अधिकारी विद्वान होते हैं।

(iv ) श्रोतागण – श्रोतागण विचार-विमर्श के मध्य शांत रहते हैं। विचार विमर्श समाप्ति के पश्चात् प्रश्न पूछते हैं। वे अपने दृष्टिकोण तथा अनुभवों को भी प्रस्तुत करते हैं। समूह के सदस्य इनकी शंकाओं का समाधान एवं प्रश्नों का उत्तर देते हैं। सदस्यों की उत्तर देने में असमर्थता प्रकट करने पर अध्यक्ष अपनी प्रतिक्रिया एवं समाधान प्रस्तुत करता है।

विचार-विमर्श विधि के लाभ अथवा गुण- विचार-विमर्श पद्धति के प्रयोग से निम्नांकित लाभ प्राप्त होते हैं।

  1. विचार-विमर्श पद्धति में छात्र सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
  2. इस विधि के अन्तर्गत छात्र पारस्परिक सहयोग के रूप में कार्य करता है।
  3. यह विधि छात्रों के स्वतन्त्र अध्ययन पर बल देती है।
  4. यह विधि छात्रों की मानसिक शक्तियों, तर्क, निर्णय एवं क्षमता का विकास करती है।
  5. यह विधि स्वनिर्देशन पर बल देती है।

विचार-विमर्श विधि के दोष अथवा हानि – विचार-विमर्श पद्धति के निम्नांकित दोष हैं।

  1. इस विधि द्वारा शिक्षण कार्य में अत्यधिक समय लगता है।
  2. छात्र निरर्थक विचार-विमर्श में लग जाते हैं, फलत: समय व्यर्थ ही नष्ट होता है।
  3. कुशल, योग्य एवं अनुभवी शिक्षक ही इस विधि को संचालित कर  सकते  है।
  4. यह विधि छोटी कक्षाओं के बालकों के लिए अनुपयोगी है।
  5. विचार-विमर्श में प्रत्येक सदस्य भाग नहीं लेता। वे केवल निष्क्रिय श्रोता मात्र ही रह जाते है।
  6. प्राय: समूह दो दलों में विभक्त हो जाता है तथा प्रत्येक दल एक-दूसरे की कटु आलोचना करता है।
  7. विचार-विमर्श करते समय प्राय: सदस्य मूल विषय से भटक जाते हैं और असम्बन्धित विषयों पर चर्चा करते हैं।
  8. प्राय: सुझाव निरर्थक और अप्रसांगिक प्राप्त होते हैं।

विचार-विमर्श पद्धति के प्रयोग के लिए सुझाव- इस विधि में शामिल दोषों/ हानि से बचने के लिए निम्नांकित सुझावों का सहारा लेना चाहिए।

  1. विचार-विमर्श में महत्वपूर्ण पहलुओं को सीमित करना चाहिए। विचार विमर्श के लक्ष्यों का भी ध्यान रखना चाहिए।
  2. विद्यार्थियों को बिना दबाव के उनके विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।
  3. विद्यार्थियों को तर्कों की व्याख्या करने और अवहेलना करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  4. विद्यार्थियों की रूचि को बनाए रखना चाहिए।
  5. विचार-विमर्श का हमेशा एक नेता होना चाहिए।
  6. महत्वपूर्ण तथ्यों और विचारों का आलोचनात्मक रूप से मूल्यांकन करना चाहिए कि सभी पहलू इसमें सम्मिलित हो।
  7. निष्कर्ष ऐसा बनाना चाहिए कि सभी पहलू इसमें सम्मिलित हो ।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment