दोहरा लेखा प्रणाली में खातों से आप क्या समझते हैं? इनको कितने भागों में विभाजित किया गया है? प्रत्येक को स्पष्ट कीजिये।
द्वि-प्रविष्टि प्रणाणी में खाते (Accounts in Double Entry System)- द्वि-प्रविष्टि प्रणाली के अन्तर्गत जर्नल अथवा सहायक पुस्तकों की सहायता से खतौनी का कार्य खाता बही में किया जाता है, ताकि किसी खाता-विशेष से सम्बन्धित समस्त व्यवहारों की जानकारी एक निश्चित स्थान पर हो सके।
खाते का आशय-किसी वस्तु, सम्पत्ति, व्यक्ति या आय-व्यय से सम्बन्धित एक निश्चित अवधि में हुए समस्त व्यवहारों का एक निश्चित स्थान पर नियमानुसार एक तिथिवार संक्षिप्त विवरण खाता या लेखा कहलाता है, जैसे क्रय खाता, मशीन खाता, राम का खाता. किराया खाता, आदि।
जॉन आर. बैंग्स एवं जॉर्ज आर हेन्सलमैन के अनुसार, “खाता लेखांकन पद्धति का एक गणितीय उपाय या रिकॉर्ड है जो उपयुक्त शीर्षक के अन्तर्गत रखा जाता है, जो व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित तथ्यों का है तथा जो व्यावसायिक व्यवहारों को अभिव्यक्ति करने वाले पक्षों की प्रविष्टि करने के लिए उपाय प्रदान करता है।”
इस प्रकार द्वि-प्रविष्टि प्रणाली में खातों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-
Contents
(I) व्यक्तिगत खाते (Personal Accounts)-
ऐसे खाते जो किसी संस्था, फर्म, कम्पनी अथवा व्यक्ति-विशेष से सम्बन्धित व्यवहारों के लिए खोले जाते हैं जो अस्तित्व में हों व्यक्तिगत खाते कहलाते हैं, जैसे-
(i) प्राकृतिक अथवा स्वाभाविक व्यक्तियों के खाते (Natural Persons’ Accounts)- जैसे- राम का खाता, रहीम का खाता, अनीता का खाता, सुनीता का खाता, आदि।
(ii) कृत्रिम अथवा वैज्ञानिक व्यक्तियों के खाते (Artificial or Legal Persons Accounts) जैसे- श्याम एण्ड कम्पनी का खाता, दुर्गा महाविद्यालय का खाता, भोपाल नगर निगम का खाता, देना बैंक का खाता, शिशु संस्कार केन्द्र का खाता, आदि।
(iii) समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तिगत खाते (Group Representative Personal Accounts) जैसे-देनदार खाता, लेनदार खाता, अदत्त व्यय खाता, पूर्ववत्त व्यय खाता, उपार्जित आय खाता, अनुपार्जित आय खाता, आदि।
(iv) व्यापार के स्वामी के खाते (Proprietor’s Accounts) जैसे- पूँजी, आहरण खाता, आदि। वर्ष के अन्त में व्यक्तिगत खातों के शेष चिट्ठे में दर्शाये जाते हैं।
(II) अव्यक्तिगत खाते (Impersonal Accounts)-
वे खाते जो किसी संस्था, फर्म, कम्पनी या व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित न हो, अव्यक्तिगत खाते कहलाते हैं। इन्हें सुविधानुसार निम्न दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- (क) वास्तविक खाते, तथा (ख) नाममात्र खाते।
(क) वास्तविक खाते (Real Accounts)- वस्तु एवं सम्पत्तियों से सम्बन्धित खाते वास्तविक खाते कहलाते हैं। इन्हें मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-(i) वस्तुगत खाते, तथा (ii) सम्पत्तिगत खाते।
(i) वस्तुगत खाते (Goods Accounts) – इसके अन्तर्गत लाभ कमाने के उद्देश्य से खरीदी गयी वस्तुओं से सम्बन्धित खाते खोले जाते हैं जैसे, क्रय खाता, विक्रय खाता, क्रय वापसी खाता, विक्रय वापसी खाता, स्कन्ध खाता, आदि। वर्ष के अन्त में वस्तुगत खातों के शेष व्यापारिक खाते में अन्तरित किये जाते हैं।
(ii) सम्पत्तिगत खाते (Assets Accounts)- इसके अन्तर्गत उन वस्तुओं से सम्बन्धित खाते खोले जाते हैं जिनके क्रय का उद्देश्य लाभ कमाना न होकर व्यवसाय को सुचारु रूप से संचालित करना तथा विभिन्न सुविधाएँ जुटाना होता है जैसे, भूमि खाता, भवन खाता, मशीन खाता, रोकड़ खाता, ख्याति खाता, आदि। सम्पत्तिगत खाते दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं-
(1) मूर्त सम्पत्तियों से सम्बन्धित खाते जैसे, भूमि खाता, भवन खाता, मशीन खाता, रोकड़ खाता आदि तथा
(2) अमूर्त सम्पत्तियों से सम्बन्धित खाते जैसे, ख्याति खाता आदि। वर्ष के अन्त में सम्पत्तिगत खातों के शेष चिट्ठे में दर्शाये जाते हैं।
(ख) नाममात्र खाते (Nominal Accounts)- आय या व्यय अथवा लाभ या हानि से सम्बन्धित खाते नाममात्र खाते कहलाते हैं जैसे, किराया खाता, ब्याज खाता, वेतन खाता, बट्टा या अपहार खाता आदि। नाममात्र खाते दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं-
(1) आय या लाभ सम्बन्धी खाते जैसे प्राप्त किराया, प्राप्त ब्याज, प्राप्त कमीशन, प्राप्त बट्टा या अपहार आदि से सम्बन्धित खाते।
(2) व्यय या हानि सम्बन्धी खाते जैसे, चुकाया गया किराया, ब्याज, कमीशन, वतन बट्टा या अपहार, आदि से सम्बन्दित खाते।
वर्ष के अन्त में नाममात्र खातों के शेष व्यापार एवं लाभ-हानि खाता में अन्तर्गत किये जाते हैं।
नोट- आय/लाभ, व्यय/ हानि से सम्बन्धित खातों के साथ अनुपार्जित, उपार्जित, अदत्त, पूर्वदत्त, शब्द जुड़ने पर वे व्यक्तिगत खाते माने जायेंगे।
द्वि-प्रविष्टि प्रणाली के स्वर्णिम नियम (Golden Rules)- द्वि-प्रविष्टि प्रणाली के डेबिट (नामे), क्रेडिट (जमा) करने सम्बन्धी नियम निम्नानुसार-
(1) व्यक्तिगत खाते सम्बन्धी नियम-
वस्तु, सेवा या राशि पाने वाला डेबिट (नामे/ऋणी) वस्तु, सेवा या राशि देने वाला क्रेडिट (जमा/धनी) “Debit to Receiver. Credit to giver.”
(2) वास्तविक खाते सम्बन्धी नियम-
वस्तु या सम्पत्ति व्यापार में आने पर डेबिट (नामे/ऋणी) वस्तु या सम्पत्ति व्यापार से जाने पर क्रेडिट (जमा/धनी) “Debit what comes in, Credit what goes out.”
(3) नाममात्र खाते सम्बन्धी नियम-
व्यय और हानि सम्बन्धी खाते डेबिट आय व लाभ सम्बन्धी खाते क्रेडिट “Debit all Expenses and Losses & Credit all Gains and Incomes.”
(4) मूल प्रविष्टि की पुस्तकें जर्नल या रोजनामचा
“Books of Original Entry Journai.”
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