नन्हकूसिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।
नन्हकूसिंह का चरित्र चित्रण
नन्हकूसिंह ‘गुण्डा’ उपन्यास का नायक है। वह वीर, साहसी, देश प्रेम और प्रेम पुजारी है। इस उपन्यास की कथावस्तु उसी के इर्द-गिर्द घूमती है। नन्हकूसिंह की चारित्रिक विशेषतायें निम्नवत् हैं-
(1) शारीरिक रूप से शक्तिशाली- नन्हकूसिंह शारीरिक रुप में बहुत शक्तिशाली व्यक्ति है। प्रसाद जी ने उसका चित्रण इस प्रकार किया है- “वह पचास वर्ष से ऊपर था। तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ और दृढ़ था। चमड़े पर झुर्रियाँ नहीं पड़ी थीं। वर्षा की झड़ी में पूस की रातों की छाया में, कड़कड़ाती हुई जेठ की धूप में नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था। उसकी चढ़ी हुयी मूँछें बिच्छु के डंक की तरह, देखने वालों की आँखों में चुभती थी। उसका साँवला रंग, साँप की तरह चिकना और चमकीला था। उसकी नागपुरी धोती का लाल रेशमी किनारा दूर से ही ध्यान आकर्षित करता था। कमर में बनारसी सेल्हें का फेंटा, जिसमें सीप की मूठ का बिछुआ खुसा रहता था। उसके घुंघराले बालों पर सुनहले पल्ले की साफे की छोर उसकी पीठ पर फैला रहता था। ऊँचे कंधे पर टिका हुआ चौड़ी धार का गड़ासा- यह थी उसकी सजधज । पंजों के बल जब वह चलता था, तो उसकी नसें चट-चट बोलती थीं। वह गुण्डा था।”
(2) रसिक प्रकृति- बाबू नन्हकूसिंह रसिक प्रकृति के थे। वे पन्ना से बहुत प्रेम करते थे। प्रेम में मात खाने के बाद वे दुलारी नामक वेश्या के गाने के शोकीन हो गये और तबोली की दुकान पर बैठकर दुलारी का गाना सुना करते थे।
(3) जुआ खेलने के शौकीन- नन्हकूसिंह जुआ खेलने के भी शौकीन थे। और प्रायः जुआ खाने जाकर जुआ खेला करते थे। लेकिन वे जुआखाने में जाने पर भी जुआ खेलने के अभ्यस्त नहीं थे। वे मन्नू तमोली से कहते हैं “नन्हकूसिंह जिस दिन किसी से पैसा लेकर जुआ खेलने लगे उसी दिन समझना वह मर गये। तुम जानते नहीं हो कि मैं जुआ खेलने कब जाता हूँ। जब मेरे पास पैसा नहीं रहता उस दिन नाल पर पहुँचते ही जिधर बड़ी ढेरी रहती है उसी को बदता हूँ और फिर वही दाँव आता भी है। बाबा कीनाराम का यह वरदान है। “
( 4 ) गाना सुनने के शौकीन- नन्हकूसिंह दुलारी का गाना सुनने के शौकीन थे। परन्तु वे मन्नू तमोली की दुकान पर बैठकर नीचे से ही गाना सुनते थे। उसके कमरे के ऊपर कभी भी नहीं गये। जब कभी लोग कोठे के ऊपर चलने के लिये कहते तो वह उदासी की साँस खींचकर चुप हो जाते। दुलारी रानी पन्ना से उनके सम्बन्ध में कहती है- “नहीं सरकार! शपथ खाकर कह सकती हूँ कि बाबू नन्हकूसिंह ने आज तक मेरे कोठे पर पैर नहीं रखा।’
(5) साहसी और निडर- नन्हकूसिंह बहुत साहसी और निडर थे। वे रेजीमेण्ट के आदमी अलाउद्दीन कुबरा मौलवी को एक ही झापड़ में ठीक कर देते हैं। परन्तु वे धर्मात्मा, विधवाओं के रक्षक, गरीब लड़कियों की ब्याह शादी करने वाले और सताये हुये लोगों की रक्षा करने वाले थे। दुलारी उनके इन गुणों का बखान करते हुए राजमाता पत्रा से कहती है ” बाबू साहब के ऐसा धर्मात्मा तो कोई है नहीं। कितनी विधवायें उनकी दी धोती से अपना तन ढकती हैं। कितनी लड़कियों की ब्याह शादी होती है। कितने सताये हुए लोगों की रक्षा होती है।”
(6) आत्म सम्मान के रक्षक- नन्हकूसिंह आन पर मिटने वाले थे। बोधीसिंह से कुछ वर्षों से इनकी नाराजगी चली आ रही थी। एक दिन वे मन्नू तमोली की दुकान पर बैठे थे। उनको पता चलता है कि वे बोधीसिंह इधर से लड़के की बारात लिये जा रहे हैं। वे मलूकी से उसको चुनौती भिजवा देते हैं कि वह इधर से बारात लेकर नहीं जा सकता। बोधीसिंह चतुराई से उत्तर भिजवा देता है कि जब नन्हकूसिंह हैं तो मेरे जाने की जहरत ही क्या है? दो-दो समाधियों को जाकर क्या होगा? वे ही जाकर लड़के को ब्याह लावें और नन्हकूसिंह बारात ले जाते हैं। सारा रुपया खर्च करते हैं और लड़के को ब्याह कर बारात को उसी चौराहे पर छोड़ देते हैं।
(7) बलिदानी- नन्हूकसिंह देश और अपने प्यार पर अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं। राजमाता पन्ना और उसके पुत्र चेतसिंह को अंग्रेज शिवालय घाट के महल में घेर लेते हैं। इस संकट का समाचार सुनते ही वे उनकी रक्षा के लिये तत्पर हो जाते हैं। वे अपना बलिदान करके उनको सुरक्षित निकाल देते हैं। उनकी शरीर का एक-एक अंग कट-कट कर गिरने लगता है। परन्तु वे प्रेमिका की रक्षा के लिये बलिदान करने से मुँह नहीं मोड़ते। निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि लेखक ने गुण्डा का चरित्र बड़ा आकर्षणमयी स्वर्ण रेखाओं से चित्रित किया है। उसका आश्चर्यपूर्ण चरित्र पाठकों का हृदय आकर्षित करता है। इस प्रकार जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘गुण्डा’ का नायक अर्थात् गुण्डा नन्हकूसिंह एक चरित्रवान प्रेमी, शक्तिशाली व्यक्तित्व का धनी अत्यधिक वीर और साहसी व्यक्ति है। समय आने पर अपने प्राणों का भी बलिदान अपने देश और प्रेम के लिए देने में जरा भी नहीं हिचकता।
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