प्रबन्ध में नियोजन के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
नियोजन का महत्व (Importance of Planning)
कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के शब्दों में, “नियोजन के बिना प्रबन्ध अटकलबाजी बन जाता है तथा निर्णय सारहीन तात्कालिक इच्छाएँ मात्र रह जाते हैं। नियोजन बगैर प्रबन्ध करना, बिना नक्शे के मकान बनाने तथा बिना लक्ष्य के यात्रा करने के सामान है।” व्यवसाय प्रबन्ध में तो नियोजन का महत्व सर्वोपरि है।
नियोजन के महत्व का वर्णन निम्नानुसार संक्षेप में किया जा रहा है-
(1) उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की ओर ध्यान का केन्द्रण- नियोजन के कारणों, प्रबन्धकों, अधिकारियों तथा पर्यवेक्षकों का ध्यान उपक्रम के उद्देश्यों और लक्ष्यों की ओर केन्द्रित रहता है। इनकी कार्यक्षमता की जाँच भी लक्ष्यों की पूर्ति के मूल्यांकन द्वारा होती हे। नियोजन द्वारा निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के माध्यम से कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना भी सरल हो जाता है।
(2) साधनों का सदुपयोग- योजनाओं के माध्यम से संस्था के भौतिक तथा मानवीय साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग किया जा सकता है।
(3) लागत में कमी- नियोजन के द्वारा समय, शक्ति, साधनों की बर्बादी तथा अनावश्यक दोहराव को खत्म किया जाता है, जिससे लागतें न्यूनतम होती हैं। नियोजन प्रक्रिया अनुत्पादक एवं व्यर्थ की गतिविधियों पर रोक लगाने में सहायता करती है।
(4) एकता एवं समन्वय की स्थापना- संस्था के विभिन्न विभागों, अधिकारियों तथा कर्मचारियों के मध्य एकता तथा समन्वय की स्थापना के लिए नियोजन अनिवार्य है। वस्तुतः नियोजन के निर्माण में इन सभी की सलाह भी ली जाती है।
नियोजन द्वारा टकराव के बिन्दुओं का पता लग जाता है और उनका निवारण पहले से ही हो जाता है।
(5) भावी अनिश्चिताओं तथा परिवर्तनों का सामना करना- भविष्य के गर्भ में असंख्य संकट, अनिश्चितताएँ, परिवर्तन और सम्भावनाएँ छिपी रहती हैं। योजनाओं के माध्यम से संकटों, अनिश्चिताओं तथा परिवर्तनों का सोच-समझकर सामना किया जाता है तथा भावी सम्भावनाओं का पूरा-पूरा फायदा उठाया जाता है।
(6) समस्त प्रबन्ध कार्यों में सहायता- किसी भी प्रकार का नियोजन हो, वह संगठन को प्रभावपूर्ण बनाता है और नियन्त्रण का आधार होता है। केवल इतना ही नहीं वह सभी प्रबन्ध सम्बन्धी कार्यों के निष्पादन का अनिवार्य अंग है।
(7) प्रतिस्पर्द्धा शक्ति में सुधार – सुयोग्य नियोजन अपनाकर कोई भी उपक्रम लागतों में कमी, किस्म ‘नियन्त्रण एवं नवीनीकरण के माध्यम से उपक्रम की प्रतिस्पर्द्धा शक्ति में सुधार एवं वृद्धि करता है।
(8) नवीन एवं सृजनशील विचारों का समावेश- विज्ञान एवं तकनीकी कारण से प्रबन्ध कला में नये तत्व जुड़ते जा रहे हैं। सुविचारित योजनाओं के माध्यम से उपक्रम के प्रबन्ध में नये एवं सृजनशील विचारों से लाभ उठाया जा सकता है।
(9) प्रभावपूर्ण संगठन- नियोजन के कारण संगठन ढाँचा अधिक प्रभावपूर्ण बनता है तथा अनावश्यक देरी, लालफीताशाही एवं दोहराव की स्थितियाँ खत्म होती हैं। समस्त उपक्रम के कार्य सुचारु एवं सुव्यवस्थित रूप से सम्पन्न किये जा सकते हैं।
(10) दीर्घकालीन प्रगति सम्भव- यदि उपक्रम के संयोजन में नियोजन का सहारा न लिया जाये, तो तात्कालिक लाभ तो कमा सकते हैं, लेकिन भविष्य की रणनीति न बनाकर दीर्घकालीन प्रगति केवल नियोजन के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
(11) मितव्ययिता उत्पन्न करना- नियोजन के द्वारा प्रबन्ध तथा संचालन क्रियाओं में आर्थिक मितव्ययिताः उत्पन्न की जा सकती है। नियोजन से प्रबन्ध कार्यों में स्पष्टता आती है, जिससे विभिन्न प्रकार की मितव्ययिताएँ उत्पन्न होती हैं।
(12) कुशलता में वृद्धि – नियोजन का एक मूलभूत उद्देश्य संस्था की कुशलता में वृद्धि करना होता है। नियोजन प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है। साथ ही पूरे संगठन में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का वातावरण बनाया जाता है।
(13) नियन्त्रण का आधार – नियोजन के बिना नियन्त्रण अत्यन्त जटिल हो जाता है, क्योंकि जब तक कार्यों के प्रारूपों और प्रमापों का निर्धारण नहीं होता तब तक इस बात की जाँच ही कैसे की जाएगी कि किस सीमा तक उनकी पूर्ति हो सकी है।
(14) जानकारी प्रदान करना — नियोजन एक सुविचारित कार्यक्रम होता है। इससे संस्था के आन्तरिक एवं व्यक्तियों को संस्था के सम्बन्ध में समुचित सूचना एवं जानकारी प्राप्त होती है।
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