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क्या नियोजन की कुछ सीमाएँ भी हैं? Are there are limitations of planning?
नियोजन की सीमाएँ (कठिनाइयाँ, दोष, आलोचनाएँ आदि) (Limitations of Planning)
व्यावहारिक रूप में नियोजन के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। अव्यवस्थित नियोजन प्रबन्ध के सभी कार्यों को दोषपूर्ण बना देता है। नियोजन सभी समस्याओं की अचूक औषधि नहीं है। स्वयं नियोजन कार्य बहुत जटिल, खर्चीला और जोखिमपूर्ण है।
नियोजन की प्रमुख सीमाएँ निम्नानुसार हैं-
(1) सही पूर्वानुमान सम्भव नहीं— नियोजन की आधारशिला पूर्वानुमान है और बिल्कुल सही पूर्वानुमान लगाना सम्भव ही नहीं है। पूर्वानुमान अधूरी मान्यताओं पर आधारित होते हैं। अनिश्चितता की आँधी नियोजन की रूपरेखा को अक्सर तहस नहस कर देती है।
(2) लोच विहीनता- एक-एक बात को तय करने वाली विस्तृत योजना प्रबन्धकों को कल्पनाशील नहीं रहने देती। विलियम न्यूमैन के शब्दों में, “नियोजन जितना ज्यादा विस्तृत होगा, प्रबन्ध उतना ही अधिक लोचद्दीन होता जाएगा।” सुनिश्चित नियोजन आकस्मिक अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता प्रदान नहीं करता है। वह पहल को समाप्त करता है।
(3) खर्चीली प्रक्रिया — नियोजन प्रक्रिया समय, साधन और शक्ति की दृष्टि से बड़ी खर्चीली प्रक्रिया है। नियोजन के आधारभूत तथ्यों, आँकड़ों आदि का संग्रह व्ययसाध्य कार्य है। उसमें काफी समय भी लगता है।
(4) आकस्मिक घटनाएँ- प्रायः अनेक आकस्मिक घटनाएँ होती रहती है, जो अधिकतर नियोजन को निष्फल कर देती हैं।
(5) जटिल एवं अरुचिकर- योजनाओं के निर्माण में असाधारण और विश्लेषणात्मक बुद्धि की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि लोग नियोजन प्रक्रिया में शामिल होने से कतराते हैं। नियोजन को है अरुचिकर भी माना जाता है ।
(6) मतभेद— नियोजन करते समय उत्पन मतभेद दीर्घकालीन विवादों को जन्म देते हैं। जिसके सुझाव की उपेक्षा की जाती है, वही हताश और विरोधी बन जाता है ।
(7) परिवर्तन विरोधी — नियोजन की मूल प्रवृत्ति परिवर्तनविरोधी होती है। यह नियोजन की प्रमुख सीमा है। व्यावहारिक जीवन में कदम-कदम पर परिवर्तन की आवश्यकता होती है। परन्तु नियोजन समर्थक बने-बनाये नियमों, कार्य-विधियों, बजटों पर जोर देकर जड़ता का परिचय देते हैं।
(8) दोषपूर्ण नियोजन की हानियाँ – नियोजन करते समय यदि अविवेकपूर्ण और दोषपूर्ण निर्णय ले लिए गये तो उनसे व्यापक और दूरगामी हानियाँ होने की सम्भावना बनी रहती हैं।
अतः नियोजन की कठिनाइयाँ बहुत है और सफल नियोजन के सभी आवश्यक तत्वों का ध्यान रखकर एक दुष्कर कार्य है। योजना के तकनीकी और जटिल कार्य में बड़ी मात्रा में समय और धन का विशाल खर्च भी स्वयंसिद्ध है। इन सभी के बावजूद नियोजन के लाभ इतने अधिक हैं कि नियोजनहीनता की स्थिति को कोई भी स्वीकार नहीं करना चाहेगा।
नियोजन की सीमाओं को दूर करने के सुझाव या नियोजन को अधिक प्रभावी बनाने के उपाय
(1) सरलता— नियोजन ऐसा होना चाहिए जो आसानी से सभी के द्वारा समझा जा सके। सरल एवं आसान योजनाएँ उद्देश्यों की प्राप्ति मं प्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध होती हैं।
(2) सर्वश्रेष्ठ योजना का चुनाव- नियोजन के अन्तर्गत विभिन्न विकल्पों के विस्तृत विश्लेषण, परीक्षण एवं मूल्यांकन द्वारा सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव किया जाना चाहिये अर्थात् योजना में चयन या तत्व निहित रहना चाहिये।
(3) आवश्यकता के अनुरूप- योजनाएँ उपक्रम की आवश्यकता के अनुरूप बननी चाहिए और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि मूलभूत लक्ष्यों से हटकर उनमें किसी बात का समावेश न किया जाए।
(4) अलग-अलग क्रियाओं की अलग-अलग योजनाएँ- जहाँ तक भी सम्भव हो सके प्रत्येक क्रिया के लिये योजना का निर्माण किया जाना चाहिये ताकि उनका क्रियान्वयन आसानी से किया जा सके।
(5) योजनाओं में लोचपूर्णता — जो भी योजना बनाई जाये उसमें आवश्यक लोच विद्यमान रहना चाहिए ताकि बदलती हुइ परिस्थिति के अनुसार आवश्यक संशोधन किये जा सकें।
(6) नियोजन से प्राप्त होने वाले लाभों की स्पष्टता— योजना से प्राप्त होने वाले लाभ स्पष्ट होने चाहिये ताकि उसमें भाग लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करे कि यह उसकी अपनी योजना है और उसे ही इसको कार्यान्वित करना है।
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