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नियोजन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
नियोजन के सिद्धान्त (Principles of Planning)
कुण्ट्ज तथा ओ० डोनेल ने अपनी पुस्तक ‘प्रबन्ध के सिद्धान्त’ में नियोजन के चौदह सिद्धान्त बताए हैं जो निम्नलिखित हैं-
(1) उद्देश्य के योगदान का सिद्धान्त (Principle of Contribution of Objectives)- उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति में प्रत्येक योजना तथा उपयोजना को निश्चयात्मक रूप से अपना योगदान देना चाहिये। यह सिद्धान्त यह बताता है कि कोई भी योजना उस समय तक निश्चयात्मक रूप में कार्यान्वित नहीं की जा सकती, जब तक कि उसके अपेक्षित लक्ष्यों का ज्ञान सभी को नहीं होता है।
(2) नियोजन के आधारों का सिद्धान्त (Principle of Planning Premises) समन्वित नियोजन के लिये यह आवश्यक है कि उपक्रम के सभी व्यक्तियों को नियोजन के आधारों की पूर्ण जानकारी हो तथा वे उनको उपयोग करने के लिये सदैव सहमत हों।
(3) व्यापकता का सिद्धान्त (Principle of Pervasiveness)- नियोजन प्रत्येक प्रबन्ध का कार्य है और यह प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर आवश्यक होता है। नीचे के स्तर पर नियोजन विस्तृत एवं अल्प अवधि का होता है, जबकि उच्च स्तर पर यह प्रायः सामान्य तथा लम्बी अवधि का होता है।
(4) कुशलता का सिद्धान्त (Principle of Efficiency)- किसी भी योजना की कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसको कार्यान्वित करने में कम-से-कम लागत पर किस प्रकार उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।
(5) लोचशीलता का सिद्धान्त (Principle of Flexibility)- यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि योजनाएँ इतनी लोचशील होनी चाहिएं कि अप्रत्याशित घटनाओं के परिणामस्वरूप होने वाली हानियों को न्यूनतम किया जा सके ।
(6) मार्गदर्शन में परिवर्तन का सिद्धान्त (Principle of Navigational Change)- यह सिद्धान्त इस बात को स्पष्ट करता है कि प्रबन्ध को एक मार्ग निर्देशक के सदृश निरन्तर अपने मार्ग की जाँच करनी चाहिये तथा अपेक्षित लक्ष्य की प्राप्ति के लिये योजनाओं का पुनर्निर्माण करना चाहिये ।
(7) वचनबद्धता का सिद्धान्त (Principle of Commitment) – इस सिद्धान्त के अनुसार नियोजन की अवधि कम-से-कम इतनी होनी चाहिये जिसमें संगठन में कार्यरत व्यक्ति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अपने वचनों को पूरा कर सकें।
(8) समय का सिद्धान्त (Principle of Timing) – नियोजन में समय का महत्वपूर्ण स्थान | समय निर्धारण से उपक्रम के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को निर्धारित समय में प्राप्त करने में सहायता मिलती है। अतः समय निर्धारण बड़ी सतर्कता व समझबूझ के साथ करना चाहिये ।
(9) वैकल्पिक मार्ग का सिद्धान्त (Principle of Alternative ) – प्रत्येक कार्य को करने के अनेक विकल्प हो सकते हैं। नियोजन करते समय कार्य के सभी वैकल्पिक मार्गों पर विचार करना चाहिये और संस्था के लिये उसी वैकल्पिक मार्ग को अपनाना चाहिये जो उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सबसे अधिक सहायक हो ।
(10) नीति निर्धारण का सिद्धान्त (Principle of Policy Making) – नीतियाँ ऐसे सिद्धान्त हैं जो एक संगठन के कार्यों को उद्देश्यों की उपलब्धि के लिये शासित करते हैं। नियोजन को प्रभावशाली बनाने के लिए सुदृढ़ नीतियाँ, कार्यक्रम एवं अच्छा नियोजन के घटकों का निर्धारण करना चाहिये ।
(11) मोर्चाबन्दी का सिद्धान्त (Principle of Strategy) – वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में नियोजन करते समय प्रतिस्पर्धा संस्थाओं की नियोजन तकनीक एवं क्रियाओं को भी ध्यान में रखना चाहिये। ऐसा करने में प्रतिस्पर्धा में व्यवसाय को सफलता मिल जाती है।
(12) न्यायोचितता का सिद्धान्त (Principle of Reasonableness) – योजनायें इस प्रकार की बनानी चाहियें जो तर्कसंगत और न्यायोचित हों तभी उन्हें क्रियान्वित करने में आसानी होगी।
(13) मूल्यांकन का सिद्धान्त (Principle of Appraisal ) — योजनाओं को क्रियान्वित करने के बाद प्रबन्धकों को उनका मूल्यांकन भी करना चाहिये और आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन भी करना चाहिये। सही दिशा में किये गये सभी परिवर्तन लाभदायक सिद्ध होते हैं।
(14) सीमित करने वाले घटकों का सिद्धान्त (Principle of Limitation) – नियोजन करते समय उन घटकों को ध्यान में रखना चाहिये जिनके कारण नियोजन के कार्य में रूकावट आ सकती है। ऐसे घटकों पर विजय पाना नियोजन के लिये अत्यन्त आवश्यक होता है।
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