निर्णयन की तकनीकों या विधियों को संक्षेप में समझाइये ?
निर्णयन की तकनीकें एंव विधियाँ (Techniques of Decision-Making)
वर्तमान व्यवसाय में प्रबन्ध की बढ़ती हुई जटिलताओं के कारण सर्वोत्तम विकल्प का चयन कर निर्णय लेना दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। इन्हीं कठिनाइयों ने निर्णय की विभिन्न तकनीकों अथवा विधियों के जन्म एवं विकास को सम्भव बनाया है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के जॉन जी० हाचिन्सन (John G Hutehinson) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Management Strategy and Tactics’ में निर्णयन की निम्न तकनीकों का उल्लेख किया है-
(1) अनुमान विधि (Extimate Technique) – यह विधि गत अनुभवों पर आधारित सबसे सरल एवं मितव्ययी निर्णयन की विधि है। जिस निर्णय का प्रभाव क्षेत्र सीमित हो और निर्णय नैत्यिक स्वभाव के हों, वहाँ इस विधि को अपनाया जाता है। इस विधि को विशेषतः ऐसी परिस्थितियों में जहाँ पूँजी का बड़ी मात्रा में विनियोजन किया गया हो, बड़ीसन्देहास्पद दृष्टि से देखा जाता है।
(2) प्रबन्ध सिद्धान्त विधियाँ (Principle of Management Techniques) – यद्यपि विभिन्न प्रबन्धशास्त्रियों द्वारा दिये गये प्रबन्ध के सिद्धान्त निर्णयन की कोई विधि नहीं है, किन्तु फिर भी ये सिद्धान्त निर्णयन प्रक्रिया में मार्गदर्शन का कार्य करते हैं। हाचिन्सन के अनुसार, “प्रबन्धकीय सिद्धान्त कोई विधि नहीं है, यह तो कुशल प्रबन्धक के कार्यों के दर्शक मात्र हैं।” उन्होंने आगे कहा है “प्रबन्ध के सिद्धान्त निर्णयन विधि के रूप में कोई महत्व नहीं रखते है, लेकिन फिर भी यह निर्णयन के वातावरण के निर्धारण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
(3) मॉडल निर्माण विधि (System of Model Building) – इस विधि के अन्तर्गत निर्णयन के लिए पहले एक मॉडल तैयार किया जाता है तत्पश्चात् निर्णय लिया जाता है। उदाहरण के लिए उपक्रम एक नवीन वस्तु का उत्पादन करना चाहती है तो पहले वह उसका मॉडल तैयार करती है और यह ज्ञात किया जाता है कि यह वस्तु ग्राहक की आवश्यक आवश्यकता के अनुरूप है या नहीं, वस्तु ग्राहक को पसन्द आयेगी या नहीं, यह वस्तु तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है या नहीं। इसके साथ-साथ विभिन्न मॉडलों का निर्माण करके सम्भावनाओं का पता लगाया जाता है।
(4) व्यावहारिक विधि (Behavioural Technique) – निर्णयन प्रक्रिया में आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करने में व्यावहारिक विधियों का महत्वपूर्ण योगदान है। समूह निर्णय की विचारधारा का प्रादुर्भाव व्यावहारिक विज्ञान विधि की देन है। कर्मचारियों के चयन के समय की जाने वाली मनोवैज्ञानिक जाँच इसी तकनीक द्वारा विकसित की गयी विधि है। हाचिन्सन के मतानुसार “निर्णयन की व्यावहारिक विधियाँ भावी निर्णयन प्रक्रिया को निर्देशित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(5) अन्तबोध विधि ( Institutional Technique) – निर्णयन की यह विधि अन्तर्बोध का परिणाम है। यह विधि मॉडल विधि तथा व्यावहारिक विधि का मिला-जुला रूप है। कुछ विद्वानों का यह मत है कि अर्न्तज्ञान का आरम्भ अन्तर्बोध में ही निहित है इसमें अन्य बातों के अतिरिक्त भावनाओं एवं प्रतिक्रियाओं का भी स्थान है।
(6) आर्थिक एवं वित्तीय विधियाँ (Economic and Financial Techniques) – सामान्य आर्थिक सिद्धान्त तथा सीमान्त विश्लेषण द्वारा यह सिद्ध कर दिया गया है कि वे निर्णयन तकनीको में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं वित्तीय तकनीकें निर्णयन प्रक्रिया में पूर्व लाभों, नियोजित पूँजी पर प्रत्याय की दर, नियोजित वसूली आदि के सम्बन्ध में प्रबन्ध को निर्णय का आधार प्रदान करती है। हाचिन्सन के अनुसार, “आर्थिक एवं वित्तीय विधियों का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि यह विश्लेषण एवं मूल्यांकन का तरीका एवं विकल्पों में सर्वोत्तम काचयन करने का साधन भी है।”
(7) सांख्यिकीय विधियाँ (Statistical Techniques) – आधुनिक सांख्यिकीय विधियों को निर्णयन प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण संयन्त्र के रूप में उपयोग किया जा रहा है। सांख्यिकीय विधियों से तात्पर्य उन विधियों से है जिनमें संख्यात्मक तथ्यों या आँकड़ों का विश्लेषण करके कोई निर्णय लिया जाता है।
(8) विशिष्ट नियन्त्रण विधियाँ (Specialised Decision Model) – निर्णयन में अन्य विधियों को उपयोग में लाया जा रहा है, उनमें रेखीय सिद्धान्त, क्रियात्मक अनुसंधान, खेल सिद्धान्त, कम्प्यूटर प्रोग्राम आदि महत्वपूर्ण हैं ।
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