हिन्दी साहित्य

पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? पत्रकारिता के स्वरूप

पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? पत्रकारिता के स्वरूप
पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? पत्रकारिता के स्वरूप
पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? पत्रकारिता के स्वरूप पर प्रकाश अथवा डालिए। 

पत्रकारिता अंग्रेजी भाषा के शब्द जर्नलिज्भ का हिन्दी पर्याय है। जर्नलिज्म शब्द जर्नल से बना है। ‘जर्नल’ शब्द फ्रैन्च भाषा का है, जो ‘जर्नी’ शब्द से निकला है जिसका अर्थ है-दिन भर के कार्यों का ब्यौरा देना और ‘जर्नल’ का शाब्दिक अर्थ है दैनिक विवरण। यह शब्द समाचार-पत्रों से जुड़े लोगों के व्यवसाय से सम्बद्ध हो गया तथा ‘न्यूज पेपर’ का एक पर्यायवाची शब्द ‘जर्नल’ भी प्रयोग में आ गया। अर्थात् ‘दैनिक समाचार पत्र’ शब्द ने ‘दैनिक विवरण’ को ग्रहण कर लिया, परन्तु ‘जर्नल’ शब्द की तरह कोई शब्द हिन्दी में नहीं था, अतः समाचार पत्रों से सम्बन्धित व्यवसाय का नाम ‘पत्र’ मात्र से सम्बन्धित रहकर ‘पत्रकारिता’ हो गया तथा जो इस व्यवसाय से सम्बद्ध हुए वह पत्रकार कहलाये।

सुप्रसिद्ध सम्पादक श्री प्रभास जोशी के अनुसार– “न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और प्रेस में यदि मैं चौथा खम्भा हूँ तो पत्रकार होने के नाते मेरा अधिकार और कर्तव्य है कि इन तीन खम्भा को मैं जज करूं।”

जेम्स मैक्डोनाल के अनुसार- “पत्रकारिता को मैं रणभूमि से भी अधिक बड़ी चीज समझता हूँ। यह कोई पेशा नहीं, बल्कि पेशे से कोई ऊँची चीज है। “

प्रो. एडविन एमरी ने इसके आधुनिक विस्तृत क्षेत्र की ओर इंगित करते हुए कहा है, “परम्परागत रूप में पत्रकारिता का कार्य समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं के समाचारों को एकत्र ‘करके लिखना, सम्पादन करके प्रकाशित करना या समाचारों पर टिप्पणियाँ देना समझा गया है, किन्तु पत्रकारिता का क्षेत्र उपर्युक्त कथन से बढ़ गया है। उसमें सामुदायिक या आकर्षक लोक-सामग्री का विविध संचार माध्यमों द्वारा प्रसारण भी सम्मिलित है, जिसमें मुख्य रूप से रेडियो और दूरदर्शन आते हैं।’

पत्रकारिता की परिभाषा

पत्रकारिता की परिभाषा के लिये हमें इस क्षेत्र के विद्वानों का आश्रय लेना ही उपयुक्त होगा।

रघुनाथ खाडिलकर के शब्दों में “ज्ञान और विचार, शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुँचाना पत्र कला है। “

हरबर्ट बूकर ने पत्रकारिता की व्याख्या इस प्रकार की है “यह वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क में उस विश्व के बारे में समस्त सूचनाएँ संकलित करते हैं, जिन्हें हम स्वतः कभी नहीं जान सकते।’

डा. मीरा रानी बल के शब्दों में, “पत्रकारिता की आत्मा समाचार और विचारों में व्याप्त मानवीय सहानुभूति एवं अमूर्त संवेदनशीलता है जिसकी उष्णता का अनुभव किसी घटना के समाचारों और विचारों को पढ़-सुनकर सहज ही होने लगता है। “

अर्जुन तिवारी के शब्दों में, “राष्ट्रीय एवं मानवीय मूल्यों से सन्दर्भित सत्कार्य ही पत्रकारिता है, जिससे देशवासियों की नस-नस में स्वतन्त्रता, समानता और विश्व बन्धुत्व की भावना का संचार होता है। “

प्रो. एडविन एमरी के अनुसार, “पत्रकारिता अल्प या निश्चित कालावधि में समाचारों, भावों एवं विचारों को अभिधारक कथन और सर्जनात्मक विधाओं के माध्यम से व्यापक स्तर पर वृहत्तम सम्प्रेषण की कला है। इसके द्वारा विश्व के समग्र वाङ्गमय, सामयिक लोक-जीवन के परिवर्तन चक्र, सभ्यता संस्कृति के विविध आयामों तथा ज्ञान-विज्ञान युक्त विचार श्रृंखला को समझने और महसूस करने की गहरी निर्लिप्त दृष्टि एवं वैज्ञानिक तर्क प्रज्ञा प्राप्त होती हैं। “

अतः पत्रकारिता की आत्मा को हम उसकी सहजानुभूतिक और संवेदनात्मकता के रूप में पहचान सकते हैं। यह बड़े ही स्पष्ट भाव से वर्तमान काल में पत्रकारिता के दृश्य और श्रव्य माध्यमों में संश्लिष्ट रहकर संप्रेषित विचारों और प्रस्तुतियों में निहित रहती है। दंगों, ‘पावर दुर्घटनाओं, राजकीय, जातीय या वैयक्तिक अत्याचारों के दृश्य तथा समाचार विचार सहज ही सामाजिक प्रतिक्रियाओं को जन्म देते हैं। इसी कारण लोकतन्त्र में इसे ‘फोर्थस्टेट’, बिहाण्ड द थ्रोन’ या ‘चतुर्थ स्तम्भ’ की संज्ञा दी जाती है। सैद्धान्तिक रूप से पत्रकारिता * एक ‘मिशन’ है सामाजिक हितों और जन कल्याण का ‘माडर्न जर्नलिज्म’ के लेखक जे. बी. मेको का कहना है कि, “पत्रकार की सबसे बड़ी चिन्ता यह होती है कि अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम हित कैसे हो। यह गरीब और पददलित का चित्र होता है। “

पत्रकारिता के मानदण्ड

सन् 1923 ई. में ‘अमेरिकी समाचार-पत्र सम्पादक सोसाइटी’ द्वारा पत्रकारिता के मानदण्ड इस प्रकार निर्धारित किये गये थे-

(1) उत्तरदायित्व – समाचार संवाहन प्रक्रिया जन-कल्याण की भावना से होनी चाहिये, किसी स्वार्थ सिद्धि या असामाजिक कार्यों को मूर्त करने के लिये नहीं।

(2) प्रेस की स्वतन्त्रता – मानवीय हित में ‘प्रेस’ अर्थात् समाचार प्रवाह के कार्य में कोई अवरोध, परतन्त्रता, बन्धन या दवाव नहीं होना चाहिये। प्रेस को स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहने देना चाहिये तथा प्रेस का भी यह दायित्व है कि वह राष्ट्र की वैधानिक प्राचीर के भीतर रहकर इस स्वतन्त्रता का उपयोग करे।

(3 ) निर्भीकता – पत्रकारिता को किसी दबाव, चेतावनी, धमकी आदि के डर से सत्य को उजागर करने के दायित्व का त्याग नहीं करना चाहिये। प्रायः कोई सत्य सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत रूप से इतना कड़वा हो सकता है कि उसे प्रकट न करने के लिये पत्रकारों को दवाया, डराया जाकर उन्हें हानि भी पहुँचाई जा सकती है, परन्तु इसकी परवाह पत्रकारों को सामाजिक हित के लिये नहीं करनी चाहिये।

(4) ईमानदारी, सत्यता और सटीकता- ईमानदारी प्रत्येक कार्य को प्रतिष्ठा, सजीवता और विश्वसनीयता प्रदान करती है, परन्तु देखा जाता है कि लोभ-लालच के चक्कर में प्रायः लोग इसे कलंकित करने में जरा भी संकोच नहीं करते। पत्रकारिता के क्षेत्र में तो ईमानदारी का सर्वाधिक महत्व होता है। ईमानदारी से सत्यता का सम्बन्ध आलिंगनात्मक है। सत्यता, ईमानदारी से लिपटी रहती है। सत्यता को धारण करने वाला व्यक्ति ही ईमानदार हो सकता है’ पत्रकारिता का तो यह मूल स्तम्भ है। यदि पत्रकारिता में ईमानदारी नहीं है तो वह कितने घातक राष्ट्रीय, सामाजिक यो व्यक्तिगत अहित कर सकती है, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment