पत्र- मुद्रा के भेद (Kinds of Paper Money)
पत्र- मुद्रा चार प्रकार की होती है- (1) प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा, (II) परिवर्तनीय पत्र- मुद्रा, (III) अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा, तथा (IV) प्रादिष्ट पत्र- मुद्रा ।
(I) प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा (Representative Paper Money) जब पत्र- मुद्रा के पीछे इसके मूल्य के बराबर शत-प्रतिशत स्वर्ण व चाँदी का सुरक्षित कोष रखा जाता है तो इसे प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा’ कहते हैं। निर्गमित किए गए नोट स्वर्ण तथा चाँदी के प्रतिनिधि होते हैं। उदाहरणार्थ, यदि 60 करोड़ रुपये के नए नोट निर्गमित किए जाने हैं तो 60 करोड़ रु० के मूल्य का ही स्वर्ण अथवा चाँदी का सुरक्षित कोष रखना होगा। जनता को यह अधिकार होता है कि यह कभी भी नोट जारी करने वाली संस्था या अधिकारी से प्रतिनिधि कागजी नोटों के बदले स्वर्ण व रजत (चादी) प्राप्त कर ले।
विशेषताएँ (Characteristics)- ऐसी पत्र- मुद्रा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है-
(1) शत-प्रतिशत कोष- प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा के पीछे शत-प्रतिशत स्वर्ण या बाँदी सुरक्षित कोप में रखा जाता है।
(2) परिवर्तनीयता- मौद्रिक अधिकारी द्वारा जनता को कागजी नोटों के बदले स्वर्ण या चाँदी प्रदान करने की गारन्टीदी जाती है।
लाभ (Advantages)—प्रतिनिधि पत्र मुद्रा के लाभ निम्नलिखित है-
(1) जनता का विश्वास- चूंकि कागजी नोट स्वर्ण तथा रजत में परिवर्तनीय होते हैं इसलिए जनता को ऐसी पत्र- मुद्रा में पूर्ण विश्वास रहता है।
(2) बहुमूल्य पातुओं की बचत- व्यवहार में सोने-चाँदी के सिक्के प्रचलन में नहीं होते जिससे इन बहुमूल्य धातुओं की बचत हो जाती है।
(3) मुद्रा-प्रसार का भय नहीं- चूँकि पत्र मुद्रा के पीछे शत-प्रतिशत बहुमूल्य धातुओं का सुरक्षित कोष रखना पड़ता है, इसलिए कागजी नोटों की मात्रा को आसानी से बढ़ाया नहीं जा सकता।
(4) कीमतों का स्थिर रहना- इस व्यवस्था के अन्तर्गत वस्तुओं की कीमतें प्रायः स्थिर रहती हैं क्योंकि पत्र मुद्रा का आवश्यकता से अधिक निर्गमन नहीं हो पाता।
(5) वहनीयता – धातु-मुद्रा की अपेक्षा पत्र मुद्रा को आसानी से तथा कम व्यय पर एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाया जा सकता है।
दोष (Demerits)– प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा के दोष निम्न प्रकार हैं
(1) अत्यधिक महँगी व्यवस्था- ऐसी पत्र मुद्रा के पीछे शत-प्रतिशत स्वर्ण या चाँदी का कोष रखना पड़ता है जिस कारण यह महंगी व्यवस्था है।
(2) बहुमूल्य धातुओं का वेकार पड़े रहना- देश की पर्याप्त बहुमूल्य धातुएं सुरक्षित कोष में बेकार पड़ी रहती हैं। उनका दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यों में उपयोग नहीं हो पाता।
(3) सोच का अभाव-जितने मूल्य के नए नोट जारी करने होते हैं उतने ही मूल्य का स्वर्ण-चाँदी का कोष रखना पड़ता है। फलतः युद्ध जैसे संकट की घड़ी में मुद्रा का आवश्यकतानुसार निर्गमन नहीं हो पाता।
(4) निर्धन राष्ट्रों द्वारा अपनाना कठिन-अल्पविकसित राष्ट्रों के पास स्वर्ण व चाँदी के पर्याप्त भण्डार नहीं होते जिस कारण ऐसे राष्ट्रों के लिए ऐसी मौद्रिक व्यवस्था को अपनाना अत्यन्त कठिन होता है।
(II) परिवर्तनीय पत्र- मुद्रा (Convertible Paper Money) — यह प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा का संशोधित रूप है। प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा में लोच का अभाव था। इस दोष को दूर करने के लिए परिवर्तनीय पत्र-मुद्रा की प्रणाली को अपनाया गया।
विशेषताएँ (Characteristics)-परिवर्तनीय पत्र मुद्रा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है-
(1) कम मूल्य का सुरक्षित कोष—इस व्यवस्था के अन्तर्गत जितने मूल्य के कागजी नोट जारी किए जाते हैं उससे कुछ कम मूल्य की बहुमूल्य धातुएँ (स्वर्ण व चाँदी) सुरक्षित कोष में रखी जाती हैं।
(2) सरकारी प्रतिभूतियाँ रखना-पत्र- मुद्रा के शेष भाग के लिए सरकारी प्रतिभूतियाँ रखी जाती हैं।
(3) रक्षित मुद्रा व विश्वासाबित पत्र- मुद्रा – जितनी पत्र- मुद्रा के पीछे धातुएँ रखी जाती है उसे ‘रक्षित-मुद्रा’ कहते हैं। पत्र- मुद्रा के जिस भाग की जाड़ में धातुएँ नहीं रखी जाती उसे ‘विश्वासाश्रित पत्र- मुद्रा कहते हैं।
(4) धातुओं में परिवर्तनीयता–पत्र मुद्रा जारी करने वाली संस्था कागजी नोटों की निश्चित दर पर स्वर्ण-चाँदी में परिवर्तित करने की गारन्टी देती है।
(5) बहुमूल्य धातुओं का क्रय-विक्रय-सरकार स्वर्ण व चाँदी का क्रय-विक्रय एक पूर्व निर्धारित दर पर करती है।
(6) विदेशी भुगतानों के लिए पृथक् कोप–विदेशी भुगतानों के लिए स्वर्ण व चाँदी का एक पृथक् कोप रखा जाता है।
लाभ (Advantages)—परिवर्तनीय मुद्रा के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) जनता का विश्वास — इस प्रकार की पत्र- मुद्रा में जनता का विश्वास बना रहता है क्योंकि नोट बहुमूल्य धातुओं में परिवर्तनीय होते हैं।
(2) मुद्रा-प्रणाली में लोच- सुरक्षित कीप में थोड़ी-सी धातुएँ रखकर उनसे कहीं अधिक मात्रा में नोटों का निर्गणन किया जा सकता है।
(3) बहुमूल्य धातुओं की बचत- पत्र मुद्रा के निर्गमन के लिए शत-प्रतिशत बहुमूल्य धातुएँ कोष जिससे इन धातुओं की बचत हो जाती है।
(4) मुद्रास्फीति पर रोक-चूँकि अतिरिक्त पत्र-मुद्रा निकालने के लिए धातुएँ सुरक्षित कोप में रखनी में नहीं रखनी पड़ती पड़ती हैं इसलिए मुद्रा के अधिक प्रसार का भय नहीं रहता।
(5) विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन- ऐसी मुद्रा प्रणाली में विदेशी भुगतानों में बड़ी सुविधा रहती है क्योंकि सरकार सदैव पत्र- मुद्रा को स्वर्ण व चाँदी में बदलने के लिए तैयार रहती है।
दोष (Demerits)-परिवर्तनीय पत्र- मुद्रा के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
(1) जनता का कम विश्वास- प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा की अपेक्षा जनता का परिवर्तनीय पत्र- मुद्रा में कम विश्वास होता है।
(2) मुद्रा-प्रसार का भय- थोड़ी सी धातुओं को ही कोष में रखकर उनसे कहीं अधिक मात्रा में नोट जारी किए जा सकते हैं जिससे देश में मुद्रा-प्रसार का भय बना रहता है।
(3) असाधारण दशाओं में अनुपयुक्त- राष्ट्रीय संकट के समय यह प्रणाली सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर पाती।
(III) अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा (Inconvertible Paper Money)-जब सरकार कागजी नोटों को मूल्यवान धातुओं में बदलने की कोई गारन्टी नहीं देती तब इसे अपरिवर्तनीय पत्र मुद्रा कहते हैं। इस प्रकार के नोटों के पीछे प्रायः धातुओं का कोष नहीं रखा जाता।
विशेषताएँ (Characteristics) – अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं
(1) सुरक्षित कोष की प्रकृति-ऐसी पत्र- मुद्रा के पीछे धातुओं का सुरक्षित कोष नहीं रखा जाता अथवा पत्र मुद्रा के मूल्य के बहुत कम अनुपात में धातुएँ रक्षित कोष में रखी जाती हैं। कागजी नोटों के पीछे सरकारी प्रतिभूतियाँ, बॉण्ड, कोषागार विपत्र आदि सुरक्षित कोष में रखे जाते हैं।
(2) परिवर्तनीयता का अभाव-सरकार पत्र मुद्रा को स्वर्ण या चाँदी में बदलने की कोई गारन्टी नहीं देती।
(3) सरकार की साख पर निर्भरता- वे पत्र मुद्रा सरकार की साख पर चलती है। सरकार जितनी अधिक स्थिर तथा लोकप्रिय होती है जनता का कागजी नोटों में उतना ही अधिक विश्वास होता है।
(4) असीमित विधियाय तथा प्रामाणिक मुद्रा- ऐसी पत्र-मुद्रा असीमित विधिग्राह्य होती है तथा प्रामाणिक मुद्रा का कार्य करती है।
(5) विनिमय दरों का निर्धारण- विदेशी व्यापार की सुविधा के लिए देश की मुद्रा की अन्य राष्ट्रों की मुद्राओं के साथ विनिमय दरें निर्धारित कर दी जाती है।
(6) शान्तिकाल में भी निर्गमन-पहले तो ऐसी मुद्रा को युद्ध काल में जारी किया जाता था, किन्तु जब शान्तिकालीन दशाओं में भी इसे जारी किया जाता है।
लाभ (Advantages)–ऐसी पत्र- मुद्रा के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) बहुमूल्य धातुओं की बचत-नोटों के पीछे किसी भी प्रकार की धातु को कोष में रखना अनिवार्य नहीं होता।
(2) लोचदार प्रणाली- पत्र मुद्रा में सुगमता से आवश्यकतानुसार कमी या वृद्धि की जा सकती है।
(3) संकटकाल में उपयोगी-युद्ध आदि संकटकाल में अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा जारी करके आसानी से संकट को दूर किया जा सकता है।
(4) विकास में सहायक-भारत जैसे विकासशील देशों को अपनी विकास योजनाओं को पूर्ण करने के लिए अधिकाधिक मात्रा में धन की आवश्यकता पड़ती है। आवश्यकतानुसार अपरिवर्तनीय पत्र-मुद्रा जारी करके वित्तीय साधनों की कमी को पर्याप्त सीमा तक दूर किया जा सकता है।
(5) सभी राष्ट्रों द्वारा अपनाना सम्भव-इस मौद्रिक व्यवस्था को सभी राष्ट्रों विशेषकर निर्धन तथा विकासशील राष्ट्रों के लिए अपनाना हितकर है।
दोष (Demerits) — अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
(1) जनता का विश्वास न होना-चूँकि कागजी नीट बहुमूल्य धातुओं में परिवर्तनीय नहीं होते इसलिए जनता का ऐसी पत्र-मुद्रा में बहुत कम विश्वास होता है।
(2) मुद्रा-प्रसार का भय- सरकार अपनी इच्छा से कितनी ही मात्रा में कागजी नोट छाप सकती है। इस कारण देश में मुद्रा प्रसार स्थिति के उत्पन्न हो जाने की आशंका बनी रहती है।
(3) स्वचालकता का अभाव- ऐसी मुद्रा प्रणाली के सफल संचालन के लिए सरकार को जागरूक रहना पड़ता है तथा उसे बार-बार मौद्रिक प्रणाली को नियन्त्रित करना पड़ता है।
(IV) प्रादिष्ट मुद्रा (Flat Money) यह अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा का दूसरा स्वरूप है। इसे संकटकाल में जारी किया जाता है जिस कारण इसे संकटकालीन मुद्रा (Emergency Money) भी कहा जाता है जब किसी देश में युद्ध अथवा कोई र संकट उत्पन्न हो जाने पर, सरकार के सामने वित्तीय कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है तो सरकार प्रायः प्रादिष्ट मुद्रा जारी करके और अपने खर्च को पूरा करती है। ऐसी पत्र- मुद्रा के पीछे बहुमूल्य धातुओं तथा सरकारी प्रतिभूतियों में से किसी का भी कोप नहीं रखा जाता। चूंकि यह सरकारी आदेश पर निर्गमित की जाती है इसलिए इसे ‘आज्ञा-प्राप्त मुद्रा’ भी कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह युद्ध के दिनों में निर्गमित ‘ग्रीन-चैक्स’ (Green Backs) तथा क्रान्ति काल में निर्गमित ‘कॉन्टीनेन्टल्स’ (Continentals) नामक मुद्राएँ प्रादिष्ट मुद्रा थीं। इसी प्रकार फ्रांस में क्रान्ति के समय जारी किए गए ऐसाइनेट्स’ (Assignats) प्रादिष्ट मुद्रा थे।
विशेषताएँ (Characteristics)-प्रादिष्ट मुद्रा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(1) संकटकाल में निर्गमन – ऐसी पत्र मुद्रा संकटकाल में जारी की जाती है।
(2) सुरक्षित कोष न रखना-इसके पीछे सुरक्षित कोप में न तो धातुएँ ही रखी जाती है और न ही सरकारी प्रतिभूतियाँ।
(3) सीमित मात्रा में निर्गमन-इसका निर्गमन सीमित मात्रा में किया जाता है।
(4) सरकारी आदेश- यह सरकारी आदेश के आधार पर निर्गमित की जाती है।
(5) असीमित विधिग्राह्य मुद्रा- कागजी नोट असीमित विधिग्राह्य मुद्रा होते हैं।
(6) वापिस लेना या अपरिवर्तनीय मुद्रा बनाना-संकट की घड़ी के समाप्त होने पर ऐसी मुद्रा को या तो वापिस ले लिया जाता है, अथवा इसे अपरिवर्तनीय पत्र- मुद्रा बना दिया जाता है।
गुण (Merits)-प्रादिष्ट मुद्रा में ये गुण पाये जाते हैं–(1) मितव्ययी-यह मितव्ययी होती है, क्योंकि बहुमूल्य धातुओं को कोप में नहीं रखना पड़ता।
(2) लोचदार-इसमें लोच का गुण पाया जाता है।
(3) संकट में सहायक-संकट के समय यह अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है।
(4) विकास में सहायक- विकासशील देश इसे जारी करके तीव्रता से अपना विकास कर सकते हैं।
दोष (Demerits)-(1) इसमें जनता का विश्वास नहीं होता। यह तो केवल सरकारी आदेश पर चलती है।
(2) मुद्रास्फीति की आशंका-इसमें अत्यधिक मुद्रा-प्रसार का भय बना रहता है।
(3) सट्टेबाजी- अनुचित सट्टेबाजी को बढ़ावा मिलता है।
(4) विदेशी व्यापार में असुविधा- इसके प्रचलन से विदेशी भुगतानों में कठिनाइयों उत्पन्न हो सकती हैं।
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