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पल्लवन की विधि एंव पल्लवन निर्माण में सावधानी

पल्लवन की विधि एंव पल्लवन निर्माण में सावधानी
पल्लवन की विधि एंव पल्लवन निर्माण में सावधानी

पल्लवन की रचना प्रक्रिया का वर्णन करते हुए उसके नियमों का वर्णन कीजिए।

पल्लवन की विधि – किसी भाव का पल्लवन करते समय अधोलिखित तथ्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर देखें।

(1) दिए गये सूत्र वाक्य सुभाषित अथवा कथन को ध्यान से पढ़िए और उस पर भली-भांति चिन्तन, मनन कर, उसका आशय समझने की चेष्टा कीजिए।

(2) मूल कथन को अच्छी तरह समझ लेने के बाद, इसको लेकर आपके मन में जो भाव या विचार उठ रहे हो, उन्हें और इससे सम्बन्धित यदि कोई दृष्टान्त समझ में आ रहा है, तो उसे कहीं नोट कर लें।

(3) भाव पल्लवन हेतु दिये गये वाक्य या सूक्ति का विस्तार उसके मूल भाव से ही सम्बद्ध होना चाहिए, यदि कुछ जोड़ा गया तो वह भी मूल भाव से सम्बद्ध हो।

(4) उक्ति के विचार क्रम और संदर्भ को जानने की चेष्टा कीजिए, उक्तियाँ निश्चित ही किसी विस्तृत बात का निष्कर्ष होती है।

(5) पल्लवन का स्वरूप क्या होगा यह दिये गये विषय पर निर्धारित करेगा। परीक्षाओं में तो निर्देशित कर दिया जाता है कि पचास शब्दों या सौ शब्दों में भावपल्लवन कीजिए।

(6) पल्लवन के बीच यदि कोई उद्धरण आवश्यक हो तभी दें; अप्रासंगिक बातें न उठायें, किसी विरोधात्मक तथ्य का उल्लेख भी न करें।

(7) पल्लवन की भाषा के सम्बन्ध में अधोलिखित तथ्यों पर ध्यान दें-

(i) मैं और हम का प्रयोग न कर अन्य पुरुष का प्रयोग करें।

(ii) भाषा शुद्ध, सरल तथा अलंकारों के बोध से न लदी हो, इसमें स्पष्टता और स्वाभाविकता रहें।

(iii) अपने लेख को दोहरा कर देख लें, और व्याकरणगत भूल हो तो सुधार लें, वाक्यों में विरामचिन्हों का प्रयोग सही करें। एक ही वाक्य या वाक्यांश को दोहरायें नहीं। इस तरह पल्लवन को अच्छी तरह सोच-समझकर लिखें। इसे ऐसा बनाये कि पढ़ने वाले को इसमें आपकी अपनी मौलिकता दिखाई पड़े, वह इसे उधार लिया हुआ लेख न समझे।

पल्लवन निर्माण में सावधानी

‘पल्लवन’ करते समय कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए, जैसे-

(1) पल्लवन में सूक्तियाँ में निहित भाव का ही विस्तार किया जाना चाहिए।

(2) पल्लवन में इसकी शैली व्यास ही होनी चाहिए, समास नहीं।

(3) पल्लवन करते समय अपनी ओर से भी कुछ उदाहरण और तथ्य दिये जा सकते हैं।

(4) पल्लवन की शब्द सीमा तय नहीं है, इसलिए निर्दिष्ट विषय को केन्द्र में रखकर अपने पक्ष को सारगर्भित रूप में ही पेश करना चाहिए।

(5) पल्लवन एक सर्जनात्मक विधा है, जिसके लिए प्रतिभा और अभ्यास की ज़रूरत होती है, इसलिए इसको पढ़ने से यह नहीं लगना चाहिए कि इसमें ऊपर से कुछ जोड़ा गया है।

(6) पल्लवन का एक गुण उसकी मौलिकता है जिससे लेखक का निजी अनुभव, दृष्टिकोण और उसकी विश्लेषणात्मक क्षमता का पता चलता है, अतः उसमें लेखक का निजी वैशिष्ट्य दिखाई पड़ना चाहिए।

(7) पल्लवन करते समय यदि यह पता हो कि उक्ति विशेष का लेखक कौन है, उसने यह बात क्यों कही है, तो पल्लवन करने वाला सही दिशा में आगे बढ़ेगा।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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