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पूँजीगत एवं आयगत व्यय का अर्थ, विशेषताएँ एंव उदाहरण

पूँजीगत एवं आयगत व्यय का अर्थ, विशेषताएँ एंव उदाहरण
पूँजीगत एवं आयगत व्यय का अर्थ, विशेषताएँ एंव उदाहरण

पूँजीगत एवं आयगत व्यय का अर्थ, विशेषताएँ व प्रमुख उदाहरण देते इनमें अन्तर को स्पष्ट कीजिये? किन परिस्थितियों में आयगत व्यय को पूँजीगत माना जाता है?

1. पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure) का अर्थ ऐसे व्यय जिनका लाभ व्यवसाय को केवल चालू वर्षों में ही प्राप्त न होकर आने वाली भावी वर्षों में भी प्राप्त हो, पूँजीगत व्यय कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में स्थायी सम्पत्ति प्राप्त करने, स्थायी सम्पत्ति के विस्तार, विकास एवं सम्वर्द्धन के लिए लाभार्जन क्षमता एवं उत्पादन क्षमता बढ़ाने, पूँजी एकत्रित करने पर किया गया व्यय पूँजी व्यय कहलाता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन सम्पत्तियों की प्राप्ति के उद्देश्य के लिए किये जाते हैं जो एक वित्तीय वर्ष की अपेक्षा आगामी वित्तीय वर्षों तक लाभों की व्यवस्था करेंगे। निम्नलिखित कार्यों के लिए किये गये व्ययों को पूँजी व्यय कहा जा सकता है-

  1. स्थायी सम्पत्ति के क्रय करने, प्राप्त करने अथवा स्थायी निर्माण पर किया गया व्यय।
  2. स्थायी सम्पत्ति को उपयोग योग्य बनाने में किया गया व्यय ।
  3. स्थायी सम्पत्ति के विस्तार, विकास एवं गुणों में वृद्धि के लिए किया गया व्यय ।
  4. व्यवसाय की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में किया गया व्यय ।
  5. व्यवसाय की लाभार्जन क्षमता बढ़ाने में किया गया व्यय |
  6. पूँजी एकत्रित करने के उद्देश्य से किया गया व्यय ।
  7. व्यापार को स्थापित करने में किया गया प्रारम्भिक व्यय ।
  8. व्यापार चिह्न, प्रतिलिपि अधिकार, पेटेण्ट अधिकार आदि प्राप्त करने में किया गया व्यय ।
  9. विकास एवं अनुसन्धान पर किया गया व्यय बशर्ते अनुसंधान सफल हो ।

पूँजीगत व्यय की विशेषताएँ-

पूँजीगत व्यय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. पूँजीगत व्यय स्थायी प्रकृति के होते हैं।
  2. इन व्ययों की उपयोगिता दीर्घकालीन होती है।
  3. पूँजीगत व्ययों का स्वरूप भौतिक रूप से दिखाई पड़ता है।
  4. ये व्यय कभी-कभी किये जाते हैं, हमेशा प्रतिदिन या बार-बार नहीं किये जाते।
  5. ये अनावर्त्तक (Non-recurring) स्वभाव के होते हैं।
  6. इन व्ययों से व्यवसाय की लाभ अर्जन क्षमता में वृद्धि होती है।
  7. इनका उल्लेख चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष की ओर किया जाता है।

पूँजीगत व्यय के उदाहरण

  1. भूमि, भवन, प्लाण्ट एवं मशीनरी, फर्नीचर, जीवित स्कन्ध (Live Stock) आदि के क्रय अथवा निर्माण पर किया गया व्यय ।
  2. प्लाण्ट, मशीनरी आदि को व्यापारिक स्थल तक लाने, उसकी स्थापना एवं उसे पहली बार चालू करने पर किया गया व्यय ।
  3. पट्टे पर ली गयी सम्पत्ति में लगायी गयी लागत।
  4. पेटेण्ट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट आदि प्राप्त करने की लागत।
  5. स्थायी सम्पत्ति के विस्तार, वृद्धि, विकास आदि से सम्बन्धित व्यय जैसे, सिनेमा हाल में बैठने के स्थान में वृद्धि के लिए किया गया व्यय ।
  6. कम्पनी की स्थापना पर किया गया प्रारम्भिक व्यय ।
  7. शोध एवं अनुसन्धान पर किया गया व्यय बशर्ते / अनुसन्धान सफल हो।
  8. ख्याति की लागत।
  9. ऋणपत्रों के निर्गमन पर दिया गया कमीशन एवं बट्टा।
  10. उत्पादन क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया अन्य कोई व्यय ।

2. आगम व्यय (Revenue Expenditure)-

ऐसे व्यय जिनका सम्पूर्ण लाभ संस्था को केवल चालू वर्ष में ही प्राप्त हो, आगम व्यय कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, व्यापार के लिए माल क्रय करने, व्यापार के सामान्य संचालन, नियन्त्रण एवं व्यवस्था के लिए स्थायी सम्पत्तियों के संरक्षण, उसकी कार्यक्षमता बनाये रखने तथा लाभ अर्जन की गतिविधि संचालित करने में किया गया व्यय आगम व्यय कहलाता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आय कमाने के लिए व्यवसाय के साधारण परिचालन में किये गये व्यय आगम अथवा आगत व्यय कहलाते हैं।

व्यय की विशेषताएँ-

आगम व्यय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. आगम व्यय आवर्तक (Recurring) स्वभाव के होते हैं।
  2. ये व्यय वर्ष में अनेक बार किये जाते हैं।
  3. सामान्यतः आगम व्यय व्यवसाय के संचालन एवं नियन्त्रण के लिये किये जाते हैं।
  4. ये व्यय स्थायी सम्पत्ति की कार्यक्षमता को बनाये रखने हेतु किये जाते हैं।
  5. ये व्यय न तो उत्पादन क्षमता बढ़ाते हैं और न ही सम्पत्ति का विकास एवं विस्तार करते हैं।
  6. इनका प्रभाव अल्पकालीन होता है।
  7. इन व्ययों को व्यापार एवं लाभ-हानि खाता के डेबिट पक्ष में लिखा जाता है।
  8. इन घ्ययों से व्यवसाय के शुद्ध लाभ की राशि कम होती है।

आगम व्यय के उदाहरण-

  1. व्यापार के संचालन एवं नियन्त्रण के लिए किये गये व्यय, जैसे, वेतन एवं मजदूरी, किराया, कर, बीमारी, प्रकाश, टेलीफोन, ब्याज, आदि ।
  2. निर्माणी संस्था की दशा में निर्माण प्रक्रिया से सम्बन्धित व्यय, जैसे, कच्चे माल का क्रय, आगत वाहन व्यय, आयात कर, उत्पादन कर, उत्पादक मजदूरी एवं अन्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष व्यय ।
  3. व्यापारिक संस्था की दशा में माल का क्रय, आगत वाहन व्यय, चुंगी कर आदि पर व्यय ।
  4. विक्रय बढ़ाने के व्यय, जैसे, विज्ञापन कमीशन आदि।
  5. स्थायी सम्पत्तियों पर मूल्य हास या अवक्षयण ।
  6. स्थायी सम्पत्तियों के रख-रखाव, मरम्मत, संचालन आदि के लिए किया गया व्यय, जैसे, मशीन पर किया गया साधारण मरम्मत व्यय, मशीन के संचालन हेतु कोयला, गैस, विद्युत आदि पर किया गया व्यय ।
  7. पूँजी एवं व्यापारिक कार्य हेतु लिये गये ऋणों पर ब्याज ।
  8. पट्ट पर गयी सम्पत्ति के लिए चुकाया गया अधिकार शुल्क।
  9. व्यावसायिक संस्था की सुरक्षा, देखभाल, संरक्षण में किया गया व्यय, जैसे, बीमा श्रीमियम, चौकीदार का वेतन, आदि ।
  10. अन्य व्यापारिक व्यय आदि।

आयगत व्यय को पूँजी व्यय माना जाना

कुछ परिस्थितियों में सामान्य रूप से आयगत माने जाने वाले व्यय पूँजी-व्यय माने जाते हैं। इस प्रकार के व्ययों के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं-

(i) कानूनी व्यय (Legal Expenses) – सामान्य रूप से कानूनी व्यय, आयगत व्यय करते हैं। माने जाते हैं, परन्तु यदि कानूनी व्यय (दलाली, स्टाम्प व्यय आदि) स्थायी सम्पत्तियों के क्रय से सम्बन्धित हैं तो ऐस व्यय पूँजीगत माने जाते हैं और सम्पत्ति की लागत में जोड़ दिये जाते हैं।

(ii) मजदूरी (Wages)- यदि मजदूरी का भुगतान नई मशीनरी को प्रतिस्थापित करने के लिये अथवा भवन निर्माण के लिये अथवा किसी पुरानी क्रय की गयी स्थायी सम्पत्ति को चालू हालत में लाने के लिये किया गया हो, तो यह व्यय पूँजी व्यय माना जायेगा।

(iii) मरम्मत व्यय (Repairs)- यदि कोई पुरानी मशीन, फर्नीचर अथवा भवन क्रय किया गया है, तो इन सम्पत्तियों को कार्य योग्य बनाने का मरम्मत व्यय पूँजी व्यय होता है और सम्पत्ति की लागत में जोड़ दिया जाता है। परन्तु पहले से प्रयोग में आ रही सम्पत्ति को कार्य-योग्य बनाये रखने के लिये किये गये मरम्मत व्यय आयगत व्यय माने जाते हैं।

(iv) ऋण पर ब्याज (Interest on Loan)- संस्था की स्थापना या प्रारम्भ से पूर्व की अवधि में ऋण अथवा ऋण-पत्रों पर दिया गया ब्याज पूँजी व्यय माना जाता है। व्यापारिक उत्पादन (Commercial Production) प्रारम्भ होने के पहले भुगतान किया गया समस्त ब्याज विभिन्न सम्पत्तियों की लागत में उनकी लागत के अनुपात में जोड़ दिया जाता है। इसके बाद की अवधि का ब्याज आयगत होता है।

(v) ढुलाई तथा भाड़ा (Cartage and Freight)- सम्पत्ति को क्रय करने के सम्बन्ध में भुगतान किया गया ठेला-भाड़ा अथवा गाड़ी भाड़ा पूँजी व्यय माना जाता है और सम्पत्ति की लागत में जोड़ दिया जाता है।

(vi) कच्चा माल तथा स्टोर्स (Raw Material and Stores )- यदि स्थायी सम्पत्ति के निर्माण के लिये कच्चे माल अथवा स्टोर्स का प्रयोग किया गया है तो ऐसे कच्चे माल अथवा स्टोर्स की लागत पूँजी व्यय होगी और उस सम्पत्ति की लागत में जोड़ दी जायेगी।

(vii) विज्ञापन (Advertisement) – सामान्यतः विज्ञापन व्यय आयगत व्यय होता है. परन्तु विशेष विज्ञापन जिसका लाभ भविष्य में कई वर्षों तक प्राप्त होगा, पूँजी व्यय माना जाता है, जैसे किसी नये उत्पादन को बाजार में प्रचलित करने के लिये किया गया विशेष विज्ञापन व्यय ।

(viii) विकास व्यय (Development Expenditure) – कुछ व्यवसाय, जैसे चाय अथवा रबड़ बागान आदि, में व्यवसाय प्रारम्भ करने तथा बागान में पौधे लगाने तथा रख-रखाव करने में अत्यधिक व्यय करना पड़ता है तथा कई वर्षों के पश्चात् उत्पादन प्रारम्भ होता है। अतः उत्पादन प्रारम्भ होने के पूर्व किया गया समस्त व्यय विकास व्यय माना जाता है और पूँजी व्यय की श्रेणी में आता है। उत्पादन प्रारम्भ होने के पश्चात् यह व्यय अगले वर्षों के लाभ-हानि खाते में किश्तों में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

(ix) प्रारम्भिक व्यय (Preliminary Expenses) – एक कम्पनी के निर्माण के सम्बन्ध में किये गये व्यय प्रारम्भिक व्यय कहलाते हैं। इनको पूँजी व्यय माना जाता है।

पूँजी व्यय एवं आगम व्यय में अन्तर

पूँजी व्यय एवं आगम व्ययों में अन्तर का कोई स्पष्ट एवं सुनिश्चित आधार नहीं है। एक ही व्यय व्यापार की स्थिति एवं व्यवहार से कभी पूँजीगत हो सकते हैं तो कभी आयगत उदाहरण के से लिए, कपड़े के व्यवसायी के लिए फर्नीचर पर व्यय पूँजीगत होगा जबकि फर्नीचर विक्रेता के लिए यह आगम व्यय होगा। इस प्रकार पूँजी व्यय एवं आगम व्यय में अन्तर के नियम केवल मार्गदर्शक के रूप में ही कार्य करते हैं। इन्हें निम्नानुसार और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है-

अन्तर पूँजी व्यय (Capital Expenditure) आगम व्यय (Revenue Expenditure)
प्रकृति पूँजी व्यय स्थायी प्रकृति के होते हैं तथा दीर्घकाल तक उपयोगिता प्रदान करते हैं। आगम व्यय अस्थायी प्रकृति के होते हैं तथा अल्पकाल के लिए उपयोगिता प्रदान करते है।
मूल्य वृद्धि पूंजी व्यय स्वायी सम्पत्ति के मूल्यों में वृद्धि करते हैं। आगम व्यय स्थायी सम्पत्ति के मूल्यों में वृद्धि नहीं करते।
कार्यक्षमता में वृद्धि पूँजी व्यय वर्तमान सम्पत्ति की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं। आगम व्यय वर्तमान सम्पत्ति की कार्यक्षमता को बनाये रखते हैं।
लाभ अर्जन क्षमता पूँजी व्यय लाभ अर्जन क्षमता में वृद्धि करते हैं। आगम व्यय लाभ अर्जन क्षमता को बनाये रखते हैं।
अवधि पूँजी व्यय का लाभ कई वर्षों तक प्राप्त होता है। आगम व्यय का लाभ केवल चालू वित्तीय वर्ष तक ही सीमित होता है।
मान्यता पूँजीगत व्यय को आगम व्यय के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है। कुछ परिस्थितियों में आगम व्यय को पूँजी व्यय के रूप में मान्यता दी जा सकती है।
बारम्बारता पूँजीगत व्यय अनावर्तक प्रकृति के होते हैं अतः ये बार-बार नहीं किये जाते। आगम व्यय आवर्तक प्रकृति के होते हैं अतः ये व्यय बार-बार किये जाते हैं।
अपलेखन पूँजीगत व्ययों को एक लेखा अवधि की अपेक्षा अनेक लेखा अवधियों के मध्य उत्पन्न लाभों के आधार पर अथवा उपयुक्त सिद्धान्त के आधार पर अपलिखित किया जाता है। आयगत व्ययों को चालू लेखांकन अवधि के दौरान आगम अथवा आय से अपलिखित किया जाता है।

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Anjali Yadav

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