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प्रतिफल या उत्पत्ति समता नियम (Law of Constant Returns)
व्याख्या (Explanation)–जब उत्पादन के कुछ उपादानों को स्थिर रखकर अन्य उपादानों की मात्रा में वृद्धि करने पर प्रतिफल (returns) तथा लागत में उसी अनुपात में वृद्धि होती है तो ऐसी स्थिति को प्रतिफल समता नियम या लागत समता नियम Law of Constant Cost) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, यदि उत्पादन के उपादानों में वृद्धि करने से कुल उत्पादन में भी उसी अनुपात में वृद्धि होती है, तो इस प्रवृत्ति को ‘प्रतिफल समता नियम’ कहते हैं।
समान लागत का नियम (Law of Constant Cost)
प्रतिफल समता नियम के क्रियाशील होने की स्थिति में कुल उत्पादन में कमी या वृद्धि उसी अनुपात में होती है जिस अनुपात में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ घटाई या बढ़ाई जाती हैं इस कारण उत्पादन की औसत लागत तथा सीमान्त लागत भी समान रहती है। इसलिए इस नियम को समान लागत का नियम अथवा समान सीमान्त व्यय नियम भी कहते हैं।
स्टिगलर (Stigler) के अनुसार, “समान प्रतिफल के नियम के अनुसार जब उत्पादन के सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाता है तो उत्पादन भी उसी अनुपात में बढ़ता है|
देखने में तो यह नियम अत्यन्त सरल है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से यह उपयोगी नहीं है। प्रायः यह नियम प्रतिफत वृद्धि नियम’ तथा ‘प्रतिफल हास नियम के बीच की स्थिति में लागू होता है। यह नियम उस स्थिति में क्रियाशील होता है जबकि प्रतिफ-वृद्धि की प्रवृत्ति समाप्त हो चुकी होती है तथा प्रतिफल हास की प्रवृत्ति लागू नहीं हुई होती है। इस प्रकार यह नियम कुछ समय के लिए ही लागू होता है। इस सम्बन्ध में मार्शल ने लिखा है, “यदि घटने तथा बढ़ने की प्रवृत्तियों में सन्तुलन स्थापित हो जाए तो प्रतिफल समता नियम लागू होता है।
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