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प्रतिफल हास नियम प्रायः कृषि पर ही क्यों लागू होता है ?
यह नियम जितनी जल्दी कृषि पर लागू होता है उतनी जल्दी यह उद्योगों में लागू नहीं हो पाता। ऐसा मुख्यतया निम्न कारणों से होता है-
(1) प्राकृतिक कारण-कृषि में प्रकृति का अधिक महत्त्व होता है। कृषि उपज वर्षा, जलवायु आदि प्राकृतिक तत्त्वों पर निर्भर करती है। जलवायु, वर्षा आदि अनिश्चित होते हैं जिस कारण कृषि में सीमान्त उपज एक सीमा के बाद शीघ्र घटने लगती है। फिर बाढ़, सूखा, अधिक वर्षा आदि प्राकृतिक आपदाओं ( natural calamities) के आने पर कृषि उत्पादन बहुत घट जाता है। इस सम्बन्ध में मार्शल ने बताया है, “उत्पादन में जहाँ प्रकृति का प्रभाव अधिक होता है, वहाँ प्रतिफल हास नियम लागू होता है तथा जहाँ मनुष्य का प्रभाव अधिक होता है वहाँ प्रतिफल वृद्धि नियम लागू होता है।
(2) भूमि की उर्वरता में तीव्रता से कमी-भूमि पर निरन्तर खेती करने से उसकी उपजाऊ शक्ति (fertility) में तीव्रता से कमी होती है। अतः जैसे-जैसे भूमि पर श्रम व पूंजी की अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है, वैसे-वैसे उपज घटती जाती है।
(3) श्रम विभाजन के कम अवसर- कृषि व्यवसाय में श्रम विभाजन के कम अवसर होते हैं, क्योंकि कृषि कार्य प्रायः छोटे-छोटे खेतों पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त, कृषि कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँटना भी सम्भव नहीं होता।
(4) मशीनों का कम प्रयोग-उद्योगों की अपेक्षा कृषि में मशीनों का कम प्रयोग किया जाता है जिस कारण मशीनों के प्रयोग से प्राप्त होने वाली आन्तरिक किफायतें (economies) कृषि व्यवसाय में प्राप्त नहीं हो पाती अथवा अपेक्षाकृत कम प्राप्त हो पाती हैं।
(5) पशु-पक्षियों द्वारा हानि-पशु-पक्षी, कीड़े-मकौड़े आदि सभी फसलों को दिन-रात हानि पहुंचाते रहते हैं। इनसे फसलों का बचाव करना लगभग असम्भव होता है।
(6) मौसमी व्यवसाय- कृषि कार्य वर्ष में कुछ महीनों के लिए ही किया जाता है। शेष महीनों में कृषि मजदूर तथा पशु बेकार रहते हैं जिससे कृषि उत्पादन की लागत बढ़ जाती है।
(7) भूमि की मात्रा का सीमित होना- भूमि की मात्रा के सीमित होने के कारण कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए श्रम तथा पूँजी का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है, अर्थात् गहन खेती करनी पड़ती है। इससे उपादानों का अनुकूलतम संयोग शीघ्र भंग हो जाता है तथा प्रतिफल हास नियम लागू हो जाता है।
(8) कम उपजाऊ भूमि पर भी खेती- खाद्यान्न की मांग बढ़ने पर कम उपजाऊ भूमि पर भी खेती की जाती है। ऐसी भूमि पर लागत अपेक्षाकृत अधिक आती है जिससे उत्पादन कम मिल पाता है। अतः सीमान्त लागत के बढ़ने से यह नियम लागू हो जाता है।
(9) समुचित देख-रेख सम्भव नहीं- कृषि कार्य लम्बे-लम्बे खेतों में फैला होता है जिस कारण समुचित देख-रेख नहीं की जा सकती। इससे कृषि उत्पादन अपेक्षाकृत कम प्राप्त होता है।
प्रतिफल हास नियम का महत्त्व (Importance)
इस नियम के महत्व को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) सैद्धान्तिक महत्त्व (2) व्यावहारिक महत्त्व
(1) सैद्धान्तिक महत्त्व (Theoretical Importance)-इस नियम के आधार पर कई आर्थिक सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं-(i) माल्वस का जनसंख्या सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है। माल्थस ने बताया कि खाद्य सामग्री की अपेक्षा जनसंख्या तेजी से बढ़ती है। खाद्य सामग्री में वृद्धि मन्द गति से इसलिए होती है, क्योंकि कृषि पर प्रतिफल हास नियम लागू होता है।
(ii) रिकार्डो का लगान सिद्धान्त भी इसी नियम पर आधारित है। गहन खेती के अन्तर्गत जय भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर श्रम तथा पूंजी की अधिकाधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो प्रतिफल हास नियम लागू होने के कारण प्रति इकाई उपज घटती जाती है।
(iii) वितरण का सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त (Marginal Productivity Theory) भी उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता पर आधारित है।
(2) व्यावहारिक महत्त्व (Practical Importance)-प्रतिफल हास नियम के व्यावहारिक महत्त्व सम्बन्धी प्रमुख बाते निम्नांकित हैं-
(i) उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों पर लागू होना-प्रतिफल हास नियम अर्थशास्त्र का एक आधारभूत सिद्धान्त है। यह कृषि, खान- खुदाई, मछली पकड़ना, गृह-निर्माण, उद्योग-धन्ध आदि उत्पादन के समस्त क्षेत्रों पर लागू होता है।
(ii) विभिन्न आविष्कारों के लिए उत्तरदायी-इस नियम की क्रियाशीलता को स्थगित करने के लिए अनेक आविष्कार किए गए हैं तथा उत्पादन की नई-नई विधियों की खोज की गई है। आज भी वैज्ञानिक इस नियम की क्रियाशीलता को लम्बे समय तक स्थगित करने के लिए नई-नई खोज करने के लिए प्रयत्नशील है।
(iii) जनसंख्या के प्रवास के लिए उत्तरदाबी-जब भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ जाता है तथा प्रतिफल हास नियम क्रियाशील होता है तो खायान्न का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में न होने के कारण एक देश से दूसरे देश को जनसंख्या का प्रवास (migration) होने लगता है।
(iv) नियम पर रहन-सहन का निर्भर होना–यदि किसी देश में अन्य उपादानों की अपेक्षा श्रम (जनसंख्या) में तीव्र गति से वृद्धि होती है तो उत्पत्ति हास नियम के लागू होने के कारण लोगों का रहन-सहन का स्तर निम्न हो जाता है। इसके विपरीत, यदि जनसंख्या की अपेक्षा पूँजी तथा तकनीकी ज्ञान में अधिक वृद्धि होती है तो प्रतिफल वृद्धि नियम के लागू होने के कारण लोगों का जीवन स्तर ऊँचा हो जाता है।
(v) सार्वभौमिक सिद्धान्त- प्रतिफल हास नियम एक विश्वव्याण सिद्धान्त (universal law) है। यह सभी राष्ट्रों में लागू होता है।
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