प्रबन्ध का प्रणाली दृष्टिकोण क्या है ? What is system approach of management?
Contents
प्रणाली दृष्टिकोण (System Approach)
प्रबन्ध में प्रणाली दृष्टिकोण का उदय सन 1950 के बाद हुआ। इस विचारधारा के जनक चेस्टर आई० बनार्ड थे बाद में इस विचारधारा को विकसित करने का श्रेय बोल्डिंग फोरेस्टर, नोरबर्ट बीनर आदि को है। इस विचारधारा की यह मान्यता है कि जिस प्रकार हमारी शारीरिक क्रियाएँ एक वृहतर प्रणाली एवं अनेक उप-प्रणालियों का परिमाण है, उसी प्रकार व्यावसायिक क्रियाएँ भी वृहत्तर प्रणाली एवं अनेक उपप्रणालियों का परिणाम है। यह उपप्रणालियाँ स्वयं में स्वतन्त्र होती हैं लेकिन सम्बन्धित वृहत्तर अथवा प्रमुख प्रणाली अन्य सभी उप प्रणालियों से किसी न किसी रूप में सम्बद्ध होती है। उदारहणार्थ आप एक साइकिल को लिजिए । मान लो साइकिल एक वृहत्तर अथवा प्रमुख प्रणाली है जिसका हैण्डिल, पैण्डल, बैक, पहिये आदि उपालं है। यह सभी उप प्रणालियां एक दूसरी से सम्बन्धित हैं किसी एक उपप्रणाली के असफल होने पर वृहत्तर अथवा प्रमुख प्रणाली कार्य करना बन्द कर देती है। इससे स्पष्ट है कि मुख्य प्रणाली की सफलता उप्रप्रणालियों के सामूहिक सहयोग एवं कुशलता पर निर्भर है।
इस विचारधारा के अनुसार सम्पूर्ण संगठन एक वृहत्तर अथवा प्रमुख प्रणाली है और इसके विभिन्न विभाग इसकी उपप्रणालियां हैं। जब तक सभी उपप्रणालियां मिलकर कार्य नहीं करेंगी, तब तक संगठन के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना सम्भव नहीं होगा। यही कारण है कि संगठन का प्रबन्धक संगठन के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इन उपप्रणालियों में कुशल समन्वय स्थापित कर उपक्रम के उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होता है। इसलिए प्रबन्ध सभी उपप्रणालियों की क्रियाविधि को ध्यान में रखकर ही निर्णय होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यह दृष्टिकोण सहकारिता के सिद्धान्त पर आधारित है।
प्रणाली दृष्टिकोण की विशेषताएँ (Characteristics of System Approach)
प्रणाली दृष्टिकोण में प्रबन्ध को एक प्रणाली माना या है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) प्रबन्ध एक सामाजिक तकनीकी प्रणाली के रूप में- प्रबन्ध विशुद्ध रूप से एक सामाजिक प्रणाली नहीं वरन् सामाजिक तकनीकी प्रणाली है। इसमें न केवल सामाजिक पहलू से सम्बन्धित तत्वों का ही अध्ययन नहीं किया जाता अपितु जैविक तथा भौतिक पहलुओं से सम्बन्धित तत्वों का भी अध्ययन किया जाता है। इस दृष्टि से प्रबन्ध प्रणाली को सामाजिक तकनीकी प्रणाली कहा जाता है।
(2) प्रबन्ध एक खुली प्रणाली के रूप में- प्रबन्ध एक खुली प्रणाली है जो स्वयं वातावरण से प्रभावित होता है और वातावरण को प्रभावित भी करती है। वातावरण के संघटक जैसे उपभोक्ता, टेक्नोलॉजी, सरकार जहाँ एक ओर व्यावसायिक संगठन को अपनी आवश्यकता के अनुरूप बदलने के लिए बाध्य करते हैं। वहीं संगठन भी अपनी वस्तुओं व सेवाओं द्वारा वातावरण के संघटकों में आवश्यक परिवर्तन सम्भव बनाता है।
(3) अनुकूलता – प्रबन्ध प्रणाली में अनुकूलता का तत्व विद्यमान है। उपक्रम में जैसी परिस्थितियों एवं वातावरण होता है उसी के अनुकूल इसमें परिवर्तन होता रहता है। वास्तव में प्रबन्ध का मूलभूत कार्य ही अपने आपको परिस्थितियों एवं वातावरण के अनुरूप ढालना है।
(4) बहु विषयक – प्रबन्ध मूलतः एक बहु-विषयक प्रणाली है जो विभिन्न विषयों जैसे अर्थशास्त्र, मानवविज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, सांख्यिकी कार्य, अनुसंधान गणितशास्त्र आदि से सहायता प्राप्त करता है ।
(5) घटकों में अन्तर्सम्बन्ध – प्रबन्ध प्रणाली के विभिन्न घटकों के मध्य अन्तर्सम्बन्ध विद्यमान रहता है। यदि किसी भी घटक में थोड़ा सा परिवर्तन हो जाये तो इसका बाकी सभी घटकों पर प्रभाव पड़ता है। जिसके परिणामस्वरूप प्रमुख प्रणाली में भी परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार प्रबन्ध प्रणाली के विभिन्न घटकों का प्रत्यक्ष एवं जटिल सम्बन्ध होता है।
(6) मनुष्य द्वारा निर्मित प्रणाली – प्रबन्ध प्रणाली मनुष्य द्वारा निर्मित प्रणाली है जिसमें आवश्यकतानुसार एवं वातावरण के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं। इसीलिए प्रबन्ध को अस्थायी प्रणाली माना जाता है इसका दृष्टिपात विभिन्न उपक्रमों में विद्यमान प्रबन्ध प्रणाली का अध्ययन करके किया जा सकता है।
(7) बहुउद्देश्यमुखी — प्रबन्ध प्रणाली बहु-उद्देश्यमुखी प्रणाली है। किसी भी उपक्रम में प्रबन्ध के अनेक उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक संस्था में प्रबन्ध प्रणाली की स्थापना की जाती है।
(8) स्वतन्त्र क्रियाओं का संकलन- प्रबन्ध प्रणाली के वृहत्तर प्रणाली की उपप्रणलियाँ यद्यपि पूर्ण स्वतन्त्र होती है किन्तु उनके सम्मिलित सामूहिक प्रयासों से वृहत्तर प्रणाली या मुख्य प्रणाली अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होता है। अतः प्रमुख प्रणाली स्वतन्त्र उपप्रणालियों का संकलन है।
(9) प्रतिपुष्टि – प्रबन्ध प्रणाली की सफलता प्रतिपुष्टि के माध्यम से जाँची जा सकती है। अन्य शब्दों में प्रबन्ध प्रणाली के एक घटक की सफलता की जाँच उस घटक के अगले घटक की प्राप्ति से की जा सकती है। यदि आवश्यकता हो तो बदलती हुई मांग के अनुसार हमारे आदान में परिवर्तन किया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान में प्रबन्ध प्रणाली के रूप में विकसित हो रहा है।
क्या प्रबन्ध प्रणाली है? (Is Management a System)
प्रबन्ध एक प्रणाली है क्योंकि प्रणाली विभिन्न तत्वों की एक ऐसी क्रम विन्यास है जो निश्चित योजना के अनुसार विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता करती है। ठीक इसी प्रकार किसी उपक्रम का प्रबन्धक उपक्रम में विभिन्न स्वतन्त्र विभाग जैसे लेखा विभाग, आर्थिक विभाग, क्रय विभाग, विक्रय विभाग आदि में पूर्ण सांमजस्य स्थापित कर उपक्रम के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करता है। अतः प्रबन्ध एक प्रणाली है। गत दशकों में गणितीय विधियों (कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी) के विकास ने प्रबन्ध में प्रणाली दृष्टि को तत्काल उपलब्ध होने के कारण प्रबन्ध में विभिन्न उपप्रणालियों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना संभव हो गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबन्ध एक प्रणाली है और अब इसका विकास प्रणाली के रूप में हो रहा है।
IMPORTANT LINK…
- आजादी के बाद भारत में स्त्रियों के परम्परागत एवं वैधानिक अधिकार | Traditional and Constitutional Rights of Women after Independence of India in Hindi
- लड़कियों की शिक्षा के महत्त्व | Importance of Girls Education in Hindi
- लिंग की समानता की शिक्षा में संस्कृति की भूमिका | Role of culture in education of Gender Equality in Hindi
- छिपे हुए पाठ्यक्रम / Hidden Curriculum in Hindi
- शिक्षक परिवर्तन का एक एजेन्ट होता है। / Teacher is an Agent of Change in Hindi
- हमारी पाठ्य-पुस्तक में जेण्डर को कैसे स्थापित किया गया है ? How is Gender placed in your text book? in Hindi
Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com