फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की कहानी कला का परिचय दीजिए।
फणीश्वर नाथ रेणु कहानी-कला लिखने में निपुण है। रेणु ने भी ग्रामीण अंचल के सम्पूर्ण परिवेश की, वहाँ की समस्याओं को, वहाँ के जीवन-वैविध्य को, संस्कृति, तौर तरीके आदि को अपनी कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है, वहाँ के उत्सव, रूढ़ियों, अन्धविश्वास, लोकगीत आदि का चित्रण किया है। “इनकी कहानियों की आंचलिकता विशेष रूप से जीवन्त है। उनमें रोमांटिक यथार्थ के साथ-साथ लोकभाषा और लोक संस्कृति की निकटता है, ग्रामीण वाद्ययन्त्रों से लेकर महिलाओं की चूड़ियों की खनखनाहट है। “
‘रेणु’ ने नयी कहानी के दौरान लिखा। डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ के अनुसार, “उनके लेखन में सामाजिक जबावदेही के साथ-साथ जनसाधारण की आकांक्षाओं, हताकांक्षाओं और संघर्ष की पूरी ईमानदारी से कथात्मक रचाव देने की प्रवृत्ति मुखर है। नयी कहानी के दौरान रेणु की ठुमरी धर्मा कहानियाँ अलग से ध्यान आकर्षित करती हैं। उनमें ग्रामांचल के कई परिचित विश्वसनीय सन्दर्भ दृष्टव्य हैं। “
रेणु का कथा-साहित्य
रेणु के कई कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं-(1) ठुमरी, (2) अग्निखोर, (3) आदिम रात्रि की महक, (4) श्रावणी दोपहरी की धूप, (5) अच्छे आदमी प्रमुख है।
कथ्य- उनके विषय और कथ्य को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-
(1) अनुभव संसार में आये पात्रों की मानसिक दशाओं, अभाव, संघर्षों का सजीव चित्रण तो हैं ही, उनमें परिवेश की विसंगतियाँ और ग्रामीण जीवन के कई विशिष्ट सन्दर्भ सहज रूप में उभरकर सामने आये हैं। ‘रसिक प्रिया’, ‘सिर पंचमी का सगुन’ आदि।
(2) अभावग्रस्तता, रनिग्रस्तं और मृत्यु (सन्तान की), सामाजिक बदलाव, शोषण, औरतों की बात को लेकर मन-मुटाव का भी चित्रण हुआ है।
(3) गाँव के सहज भोलेपन का संघर्ष शहरी चालाकी और बेइमानी से सिर पंचमी का सगुन में फूटा है।
(4) राजनीतिक, छल, हिंसा, बेईमानी, अवसरवादिता, साम्प्रदायिकता, गलत नेतृत्व उनकी ‘जलवा’, ‘आत्मलाक्षी’ जैसी कहानियों में फूटा है।
(5) प्रेम कहानियों में भी जीवन को ही उभारा गया है।
(6) समाज में मूल्य-विघटन की त्रासदी को भी उभारा गया है।
(7) ‘समान्तर’ कहानी के दौर में आम आदमी से प्रतिबद्धता का नारा बुलन्द हुआ।
डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ के अनुसार- रेणु की कहानियों में यह शोभित और पीड़ित ‘जनसामान्य’ बहुत पहले ही प्रतिष्ठित हो चुका था। ‘रसप्रिया’ का मिरदंगी छोटी जाति का है, कोई मेहनतकश और शोषित किसान। उनके कथ्य को दो मुख्य धाराओं में बाँटते रामदरश मिश्र ने कहा है- “रेणु की अलग-अलग कहानियों को पढ़ने से लगता है कि उन्होंने ग्राम परिवेश और उसकी चेतना को बहुत गहरी अभिव्यक्ति दी है। हुए डॉ. ……. नयी कहानी’ की अधिकांश कहानियों की तरह रेणु की अधिकांश कहानियों का भी धुरा प्रेम या सैक्स है।”
पात्र एवं चरित्रांकन- उनके अधिकांश पात्र उस तबके से होते हैं, जो छोटा किसान श्रमजीवी है जो भरपूर मेहनत करके भी खाली पेट रहता है, अभावों से जूझता है और छला जाता है, शोषण की चक्की में पीसा जाता है। उनके चरित्रों के जीवन में सौहार्द, प्रेम, ईमानदारी, श्रम, परोपकार, श्रद्धा आदि विद्यमान हैं, क्योंकि रेणु मूल्य-विघटन को रोकना चाहते हैं। अमानवीय व्यवहार का चित्रण-‘संकट’ में हुआ है, जहाँ स्वयंसेवक नामधारी व्यक्ति दुःखी और मजबूर औरत को भी नहीं छोड़ते। नारी की कुण्ठा का भाव भी चित्रित हुआ है।
उनके चरित्रांकन की सबसे बड़ी विशेषता है, सूक्ष्म, बेबाक और सीधा-सपाट यथार्थ चित्रण। इसी से उनके पात्रों का चरित्र जीवन जीवन्त दिखता है, आरोपित नहीं। चरित्रांकन में रेणुजी को श्रम नहीं करना पड़ा है, वह कथा के सन्दर्भ में स्वयं उभरकर सामने आ गया है।
देशकाल- ग्रामीण क्षेत्रों का विभिन्न अंचलों का सजीव वातावरण उनकी कहानियों में उभरकर सामने आया है। वहाँ का वातावरण बड़ी बारीकी से अपनी सम्पूर्ण यथार्थता और जीवन्तता के साथ चित्रित हुआ है। “लाल पान की बेगम” का एक चित्र देखिए- “गाड़ी गाँव के बाहर होकर धान के खेतों के बगल से जाने लगी।…. खेत से धान के झरते फूलों की गन्ध आती है। बाँस की झाड़ी में कहीं हल्दी की लता फूली है। जंगी की पतोहू ने एक बीड़ी सुलगाकर बिरजू की माँ की ओर बढ़ाई।”
ग्रामीण अंचलों से हास-परिहास, रहन-सहन, प्रवाद, सामाजिक प्रतिबन्ध, उनके अभाव, अमोद-प्रमोद के साथ समूची यथार्थता के साथ ग्रामीण जीवन की जीती-जागती तस्वीर खींचने में रेणु माहिर हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कथाकार ने उस वातावरण को अति निकट से देखा है।
भाषा-शैली– प्रेमचन्द जी के समान ही रेणु की भाषा सामान्यजन से सम्बद्ध सरस, सुबोध, व्यावहारिक, पात्रानुकूल एवं भाषाभिव्यंजक है।
शब्दावली –
( अ ) तत्सम् शब्द- इन शब्दों का प्रयोग अत्यल्प है। फिर भी कुछ शब्द प्रयुक्त हुए है- सशब्द, चेष्टा, विकृत, संवाद इत्यादि।
(आ) देशज शब्दावली – इन शब्दों और वाक्यों की भरमार है, जो वातावरण और पात्रों की मानसिकता का सजीव चित्र उपस्थित कर देते हैं –
किरिन मटकती, अचरण, मुंहचोर, सिर गनेस पर न ‘गाँव की चलन-डाही औरतों ने एक कहानी गढ़के फैलाई थी, चम्पिया की माँ के आँगन में रातभर बिजली बची झुकझुकाती थीं।
(इ) उर्दू-फारसी के शब्द – यत्र-तत्र इन शब्दों का भी प्रयोग हुआ है नुकीली जवान, कोशिश, इज्जत, आबरू, आवाज शहद
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