कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

बेरोजगारी के प्रभाव (Effects of Unemployment )

बेरोजगारी के प्रभाव (Effects of Unemployment )
बेरोजगारी के प्रभाव (Effects of Unemployment )

बेरोजगारी के प्रभाव (Effects of Unemployment )

भारत में बेरोजगारी की समस्या एक अत्यन्त गम्भीर तथा जटिल समस्या है। देश में बेरोजगारी व्यापक रूप में विद्यमान है तथा प्रत्येक पंचवर्षीय योजना के साथ-साथ बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़ती ही गई है। बेरोजगारी के किसी देश के आर्थिक तथा सामाजिक जीवन पर निम्नलिखित कुप्रभाव पड़ते हैं-

(1) मानव-शक्ति का व्यर्थ जाना— रोजगार के अभाव में देश की श्रम शक्ति का समय नष्ट जाता है। देश ऐसी श्रमशक्ति का कोई रचनात्मक लाभ नहीं उठा पाता। व्यर्थ जाने वाले मानवीय संसाधनों का उचित प्रयोग करके देश की आर्थिक विकास की दर में वृद्धि की जा सकती है।

(2) निर्धनता तथा ऋणग्रस्तता में वृद्धि- बेरोजगार लोगों को अपने भरण-पोषण के लिए काम में लगे लोगों पर आश्रित होना पड़ता है। फिर ऐसे लोग बार-बार कर्जे भी लेते हैं। परिणामस्वरूप देश की प्रति व्यक्ति आय में कमी आती है तथा निर्धनता एवं ऋणग्रस्तता में वृद्धि हो जाती है। साथ ही देश में जीवन स्तर गिरता है।

(3) श्रमिकों का शोषण—– जिन श्रमिकों को रोजगार मिला होता है उन्हें भी कम मजूदरी पर तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। इसका श्रमिकों की कार्यकुशलता तथा स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(4) औद्योगिक झगड़े– मालिकों द्वारा शोषण किए जाने पर श्रमिकों में असन्तोष तथा विरोध की भावना बढ़ जाती है। श्रमिकों तथा मालिकों के सम्बन्ध बिगड़ जाने पर हड़ताल, तालाबन्दी, घेराव आदि की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। फलस्वरूप देश में वस्तुओं का उत्पादन घट जाता है तथा कीमतों में वृद्धि हो जाती है।

(5) अपराधों में वृद्धि– बेरोजगारी के कारण चोरी, डकैती, हत्या, अपहरण, रिश्वत आदि अपराधों में वृद्धि हो जाती है। इससे देश में सामाजिक शान्ति व सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाता है। सरकार को शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने पर पर्याप्त धनराशि व्यय करनी पड़ती है।

(6) आर्थिक विकास में बाधक- बेरोजगार व्यक्ति तोड़फोड़ तथा आतंकवादी गतिविधियों में लग जाते हैं। उनका लोकतान्त्रिक मूल्यों तथा शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व में विश्वास समाप्त हो जाता है। जीवन के असुरक्षित होने पर जनता में भी सरकार के प्रति न्तोष एवं रोष उत्पन्न हो जाता है। इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसका देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय

बेरोजगारी को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-

(1) निवेश के ढाँचे में परिवर्तन (Change in the Structure of Investment)-निवेश की प्रवृत्ति में परिवर्तन लाया जाना चाहिए तथा आधारभूत उद्योगों में निवेश करने के साथ-साथ उपभोग्य पदार्थ उद्योगों (consumer goods industries) में भी निवेश में वृद्धि की जानी चाहिए। इससे पर्याप्त बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार मिल पाएगा तथा वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि हो सकेगी। इससे आर्थिक तथा सामाजिक स्थिरता के लक्ष्यों को भी प्राप्त किया जा सकेगा। संगठित क्षेत्र में तकनीक तथा उत्पादन की ऐसी समन्वित व्यवस्था चुनी जाए जो उत्पादन तथा निवेश की प्रति इकाई के अनुसार अधिक श्रम का प्रयोग करती हो।

(2) लघु उद्योगों का विकास (Development of Small Scale Industries) छोटे उद्योगों के विकास की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। छोटे उपक्रम (enterprises) अधिक श्रमिकों को रोजगार दे सकते हैं। लघु उद्योगों में उतनी ही पूंजी लगाने से लघु उद्योग, बड़े उद्योग की तुलना में पांच गुना अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करता है।

(3) लए विकास केन्द्र (New Development Centres)-गाँवों तथा शहरों में विकास केन्द्रों में वृद्धि की जाये। देखने में आया है कि अब तक निवेश का प्रवाह बड़े-बड़े शहरों तक ही सीमित रहा है। यदि छोटे कस्बों में नए विकास केन्द्र खोले जाएंगे तो इससे औद्योगिक ढाँचे का विकेन्द्रीकरण होगा और अर्थव्यवस्था अधिक आत्मनिर्भर बन सकेगी।

(4) अनुदान तथा प्रोत्साहन (Subsidies and Incentives)-अब तक अनुदान तथा प्रोत्साहन केवल उत्पादन के आधार पर दिए जाते रहे हैं। अब इस आधार को बदलने की आवश्यकता है। अब अनुदान तथा प्रोत्साहन अधिक रोजगार के अवसर प्रदान करने के आधार पर दिए जाने चाहिए। इससे काफी मात्रा में रोजगार सम्बन्धी लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकेगा।

(5) शैक्षणिक प्रणाली में परिवर्तन (Change in Educational Pattern) इन परिस्थितियों में शिक्षा को पूर्ण रूप से बदलने की आवश्यकता है। कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों को चाहिए कि ये केवल उन्हीं छात्रों को प्रवेश दें जो वास्तव में कोई भावी लक्ष्य सामने रख कर अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहते हों। शुरू से ही व्यावसायिक शिक्षा (vocational education) पर बल दिया जाना चाहिए। गाँवों में शिक्षित व्यक्तियों को अध्यापक, डॉक्टर आदि के रूप में काम करने की भावना अपने अन्दर जागृत करनी होगी। इन्जीनियरों के लिए सरकारी सहायता से लघु उद्योग स्थापित करने की व्यवस्था होनी चाहिए। रोजगार सूचना एवम् निर्देशन संस्थाओं को सुदृढ़ करके उन्हें विद्यालयों तथा रोजगार एजेन्सियों के सम्पर्क में लाना चाहिए।

(6) कृषि का विकास (Development of Agriculture) रोजगार बढ़ाने के लिए कृषि का समुचित विकास किया जाए। बेकार पड़ी भूमि को कृषि के अन्तर्गत लाया जाए। इससे निश्चित ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की मात्रा में वृद्धि होगी। हरित क्रान्ति के कारण देश में अच्छे बीजों, खाद तथा यन्त्रों की मांग बढ़ गई है। इनकी पूर्ति तथा विक्री के काम में काफी लोगों को रोजगार प्राप्त हो सकता है।

(7) परिवहन का विकास (Development of Means of Transport) परिवहन के साधनों का विशेष रूप से ग्रामीण सड़कों का विकास किया जाना चाहिए। इससे व्यवसाय तथा रोजगार दोनों में वृद्धि होगी।

(8) जनसंख्या पर नियन्त्रण (Control over Population) देश में बढ़ती हुई जनसंख्या को अवश्य रोकना होगा क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि निरन्तर बेरोजगारी को बढ़ाती है। इसलिए परिवार नियोजन की गति को देश में और अधिक तीव्र करना होगा।

(9) ग्रामीण बेरोजगारों को प्रशिक्षण (Training to Rural Unemployed) ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के बेरोजगारों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इनके मुख्य रूप से तीन वर्ग हो सकते हैं- (1) किसान इन्हें खेती, बागवानी, पशु पालन, पेड़ लगाने, कृषि यन्त्रों की मरम्मत आदि के सम्बन्ध में आधुनिक तकनीकी का सामान्य प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। (2) दस्तकार इन्हें बुनाई, मैकेनिक, आपरेटरी, हस्तशिल्प आदि का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। (3) ग्रामीण उद्यमी-इस श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो छोटे पैमाने पर निजी उद्योग-धन्धों की स्थापना कर सकते हैं। इस वर्ग के लिए कौशल आधारित प्रशिक्षण मुख्य रूप से आद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए।

(10) रोजगार कार्यालयों में वृद्धि (Increase in Number of Employment Exchanges)—देश में रोजगार कार्यालयों की कमी के कारण कई लोगों को रोजगार प्राप्त करने के उचित अवसर नहीं मिल पाते। इसलिए देश में अधिक में रोजगार दफ्तर खोले जाने चाहिए और सब काम देने वाली संस्थाओं की इन रोजगार दफ्तरों की सेवा का अधिक उपयोग करना चाहिए। रोजगार दफ्तर अधिकारियों को चाहिए कि बेरोजगार व्यक्तियों के साथ अच्छा व्यवहार करें और उन्हें रोजगार सम्बन्धी सही सूचना देकर देश की सेवा में अपना योगदान दें।

(11) ग्रामीण निर्माण कार्यक्रमों का विस्तार (Increase in Rural Works Programme)— गाँवों में सड़क निर्माण, सिंचाई, मकान, डाकखाने आदि निर्माण कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे मौसमी बेरोजगारी दूर करने में सहायता मिलेगी। यह कार्य ऐसे समय में किए जाने चाहिए जब किसान खेती-बाड़ी के काम से खाली हो।

(12) सामाजिक सेवाओं का विस्तार (Extension of Social Services)– सामाजिक सेवाओं का विस्तार किया जाना चाहिए इन सेवाओं में शिक्षा, चिकित्सा आदि सम्मिलित है। इनमें वृद्धि तथा विस्तार होने से जन-कल्याण में वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारी का भी उन्मूलन हो सकेगा।

(13) उपयुक्त तकनीक (Appropriate Technology)-अल्पविकसित देशों की बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने के लिए उपयुक्त तकनीक मध्यवर्ती तकनीक (intermediate technology) होती है। प्रो० ई० एफ० शुभाशर (E. F Schumcher) ने अपनी पुस्तक ‘Small is Beautiful’ में अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए मध्यवर्ती तकनीक को अपनाने का सुझाव दिया है। उनके अनुसार अल्पविकसित देशों के विकास के लिए न तो श्रम की बचत करने वाली पूंजी प्रधान तकनीक उपयुक्त है और न ही इन देशों के परम्परागत उद्योग आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त । “मध्यवर्ती तकनीक वह तकनीक है जिसके अन्तर्गत एक उत्पादन स्थान पर औसतन 70 पौंड (3000 ₹) से 100 पौंड (4,400 ₹) तक लागत की मशीनों तथा आजारों का प्रयोग किया जाता है। “

बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास

बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकार ने मुख्यतया निम्न कदम उठाए है-

(1) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम – भारत सरकार द्वारा सान् 1980 में प्रारम्भ किए गए इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य हैं–(1) ग्रामीण क्षेत्रों में अल्प-रोजगार वाले स्त्रियों तथा पुरुषों को अधिक काम दिलाना, (II) ग्रामीण क्षेत्रों में कुएँ, सड़कें, सिंचाई आदि निर्माण कार्यों में अधिक रोजगार अवसर प्रदान करना।

(2) समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम- ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रोजगार दिलाने के लिए [1978 से यह कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया था। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत निर्धारित वर्ग के लोगों को उत्पादक परिसम्पत्तियाँ तथा निवेश की सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं। ये परिसम्पत्तियाँ (assets) वित्तीय सहायता के रूप में दी जाती है। अप्रैल 1988 में सामूहिक बीमा योजना प्रारम्भ की गई। सन् 2000 से इस कार्यक्रम को स्वर्ण जयन्ती स्वरोजगार योजना में मिला दिया गया है।

(3) जवाहर रोजगार योजना- यह योजना सन् 1989 में प्रारम्भ की गई। इस योजना का लक्ष्य प्रत्येक निर्धन ग्रामीण परिवार के कम से कम एक सदस्य को उसके घर के समीप प्रति वर्ष 50 से 100 दिनों तक रोजगार देना है।

(4) लघु तथा कुटीर उद्योग- रोजगार अवसरों में वृद्धि करने हेतु सरकार ने लघु तथा कुटीर उद्योगों विशेष प्रयत्न किए हैं।

(5) रोजगार कार्यालय- बेरोजगारों का मार्गदर्शन करने तथा उन्हें रोजगार प्राप्त करने में सहायता करने के लिए देश में के विकास के लिए लगभग 854 रोजगार कार्यालय स्थापित किए गए हैं।

(6) स्वयं रोजगार योजना- यह योजना सन् 1983 में शिक्षित बेरोजगारों को स्वयं रोजगार दिलाने के लिए प्रारम्भ की गई। इस योजना के अन्तर्गत 10 लाख से कम जनसंख्या वाले शहरों में रह रहे शिक्षित बेरोजगारों को ऋण दिए जाते हैं ताकि वे स्वयं कोई धन्धा प्रारम्भ कर सकें।

(7) 1993-94 की नई रोजगार योजनाएँ- 15 अगस्त, 1993 को प्रधानमंत्री ने ग्रामीण अशिक्षित व्यक्तियों, शिक्षित युवाओं तथा महिलाओं के लिए तीन योजनाएँ प्रारम्भ की- (i) प्रधानमंत्री रोजगार योजना, (ii) रोजगार बीमा योजना, (iii) महिला समृद्धि योजना।

(8) रोजगार आश्वासन योजना- यह 2 अक्टूबर, 1993 से लागू की गयी। इसके अन्तर्गत जिन दिनों खेतीबारी का काम हल्का रहता है उन दिनों में 18 से 60 वर्ष आयु वर्ग के हर इच्छुक ग्रामीण को कम से कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है। 1 अप्रैल, 1999 से इस योजना का पुनर्गठन किया गया है। अब यह समस्त देश में जिला विकास खण्ड स्तर पर चलाए जाने वाला मजदूरी रोजगार कार्यक्रम’ है जिसमें मजदूरों के पलायन से ग्रस्त इलाकों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

(9) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना- यह योजना 1 अप्रैल, 1999 को प्रारम्भ की गयी तथा यह गाँवों में रहने वाले गरीबों के लिए स्व-रोजगार की एकमात्र योजना है। इस योजना में पहले से चल रहीं छः योजनाओं का विलय किया गया है-(i) समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, (ii) स्व-रोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम, (iii) ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम, (iv) ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत जीजारों की किट की आपूर्ति का कार्यक्रम, (v) गंगा कल्याण योजना, (vi) दस लाख कुआँ योजना इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में लघु उद्योगों की स्थापना करना है। इस योजना के अन्तर्गत सहायता प्राप्त व्यक्ति स्वरोजगारी कहलायेंगे।

(10) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना यह योजना- 1 अप्रैल, 1999 को प्रारम्भ की गई तथा यह पूर्व में चल रही जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित तथा व्यापक स्वरूप है। इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार एवं अल्प-बेरोजगार व्यक्तियों के लिए लाभकारी रोजगार अवसरों का सृजन करना है। इस योजना को दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़, समूचे देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू किया गया है।

(11) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना- इस योजना की प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा 15 अगस्त, 2001 को लाल किले की प्राचीर से की गई। किन्तु इस योजना का शुभारम्भ प्रधानमंत्री द्वारा 25 सितम्बर, 2001 को फरह (जिला-मथुरा) से किया गया। इस योजना के अन्तर्गत रोजगार आश्वासन योजना तथा जवाहर ग्राम समृद्धि योजना को मिला दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अतिरिक्त एवं सुनिश्चित अवसर उपलब्ध कराने के साथ-साथ खाद्यान्न उपलब्ध कराना भी है। रोजगार के अवसर तीन स्तर पर पंचायतों के माध्यम से सृजित किए जायेंगे। योजना में 100 करोड़ मानव-दिवस-रोजगार के सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

(12) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना- विस्तृत वर्णन आगे अध्याय 68 (ग्राम विकास की प्रमुख योजनाएँ) में उपलब्ध है।

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Anjali Yadav

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