कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

ब्याज का अर्थ (Meaning of Interest)

ब्याज का अर्थ (Meaning of Interest)
ब्याज का अर्थ (Meaning of Interest)

ब्याज का अर्थ (Meaning of Interest)

ब्याज यह आय है जी पूंजी के स्वामी को प्राप्त होती है।

-कारवर

ब्याज का अर्थ (Meaning of Interest)

‘ब्याज’ राष्ट्रीय आय का वह भाग है जो पूंजीपति को पूंजी के सम्मरण (पूर्ति) के बदले दिया जाता है ।

साधारणतया पूंजी की सेवाओं के लिए किए जाने वाले भुगतान को ‘व्याज’ (Interest) कहा जाता है। किन्तु अर्थशास्त्र में पूंजी’ की अवधारणा का प्रयोग कई अर्थों में किया जाता है। पूंजी के अन्तर्गत कच्चे माल, मशीनों, इमारतों, कारखानों, नकद मुद्रा आदि को शामिल किया जाता है। अर्थशास्त्र में पूंजी के इन विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए किया जाने वाला भुगतान ‘ब्याज’ नहीं कहलाता। ‘व्याज’ शब्द का प्रयोग केवल मुद्रा रूपी पूंजी के एक निश्चित समयावधि के लिए प्रयोग करने के बदले किए जाने वाले भुगतान के लिए किया है। संक्षेप में, ब्याज यह कीमत है जो मुद्रा का एक निश्चित समयावधि में प्रयोग करने के लिए ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है। इसलिए ब्याज सदैव प्रतिशत के रूप में प्रकट किया जाता है।

परिभाषाएँ (Definitions)-(1) विक्सेल (Wicksell) के शब्दों में, “ब्याज पूंजी के उपयोग के बदले ऋणी द्वारा पूँजीपतियों को उनके त्याग के लिए किया जाने वाला भुगतान है।

(2) मेयर्स (Meyers) के अनुसार, “ब्याज ऋणयोग्य कोषों के प्रयोग के लिए चुकाई गई कीमत है।

(3) केन्ज़ (Keynes) के विचार में, “ब्याज एक निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का पुरस्कार है। उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ब्याज वह कीमत है जो मुद्रा का एक निश्चित समयावधि में प्रयोग करने के लिए ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है।

शुद्ध ब्याज तथा कुल ब्याज (Net Interest and Gross Interest)

शुद्ध ब्याज (Net Interest)- ‘शुद्ध या वास्तविक ब्याज’ वह धनराशि है जो केवल पूंजी के प्रयोग के बदले ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है। चैपमैन के शब्दों में, “शुद्ध व्याज वह कीमत है जिसे ऋण लेने वाला ऋणदाता को उसकी पूँजी की सेवाओं के लिए देता है, जबकि ऋणदाता को न तो कोई जोखिम उठानी पड़ती है, न ही उसे कोई असुविधा होती है तथा न ही ऋण की वसूली में किसी प्रकार की कोई कठिनाई होती है। शुद्ध ब्याज को आर्थिक व्याज’ (Economic Interest) तथा ‘निवल व्याज’ भी कहते हैं।

कुल या सकल व्याज (Gross Interest)- ऋणी द्वारा पूजी के प्रयोग के लिए जो कुल भुगतान किया जाता है उसे ‘कुल ब्याज’ कहते हैं। कुल ब्याज में शुद्ध ब्याज के अतिरिक्त जोखिम, असुविधा तथा व्यवस्था का पुरस्कार भी शामिल रहता है। चैपमेन के शब्दों में, “कुल ब्याज में पूंजी को उधार देने का पुरस्कार, हानि की जोखिम या व्यावसायिक जोखिम, निवेश की असुविधाओं का पुरस्कार तथा देखभाल सम्बन्धी कार्य व चिन्ता के पुरस्कार शामिल होते हैं।”

प्रो० मोरलैण्ड के शब्दों में, “कुल व्याज से अभिप्राय उस समस्त राशि से है जो ऋणी, ऋणदाता को देता है जबकि शुद्ध ब्याज कुल व्याज का वह अंग होता है जो केवल पूँजी के प्रयोग के लिए दिया जाता है।”

कुल ब्याज के अंग (Constituents of Gross Interest)

कुल व्याज में निम्न चार प्रकार के पुरस्कार शामिल होते हैं-

(1) शुद्ध व्याज (Net Interest) केवल पूंजी के प्रयोग के बदले में ऋणी जो धनराशि ऋणदाता को देता है उसे ‘शुद्ध व्याज’ कहते हैं। शुद्ध ब्याज वस्तुतः कुल ब्याज का एक अंग होता है।

(2) जोखिम का पुरस्कार (Reward for Risk) ऋणदाता को इस बात की जाशंका रहती है कि पता नहीं उसकी पूँजी वापस मिलेगी या नहीं। इस प्रकार जब पूँजीपति अपनी पूँजी उधार देता है तो उसे जोखिम उठानी पड़ती है। इस जोखिम के लिए उसे कुछ पुरस्कार मिलता है। जोखिम निम्न दो प्रकार की होती है-

(i) व्यक्तिगत जोखिम (Personal Risk)- व्यक्तिगत जीखिम किसी ऋणी की आर्थिक स्थिति, चरित्र, ईमानदारी आदि पर निर्भर करती है। हो सकता है ऋणी ऋणराशि को वापिस करने से इन्कार कर दे, या वह भाग जाये, या दिवालिया हो जाये। ऐसी स्थिति में ऋणदाता को हानि उठानी पड़ सकती है। इसे ही ‘व्यक्तिगत जोखिम’ कहते हैं। इस जोखिम के लिए ऋणदाता व्याज में कुछ पुरस्कार सम्मिलित कर लेता है।

(ii) व्यावसायिक जोखिम ( Business Risk)- ऋणदाता को इस बात की भी जोखिम उठानी पड़ती है कि जिस काम के लिए ऋणी ने पूंजी उधार ली है कहीं उसका व्यवसाय ठप्प न हो जाए। ऐसी स्थिति में ऋणदाता को ब्याज के साथ-साथ मूलधन के मारे जाने की भी आशंका रहती है। ऐसी जोखिम को वहन करने के लिए भी ऋणदाता ब्याज में कुछ पुरस्कार शामिल कर लेता है।

(3) असुविधाओं का पुरस्कार (Reward for Inconveniences)- कभी-कभी पूंजी उधार देने में ऋणदाताओं को कुछ असुविधाएँ भी उठानी पड़ती हैं। हो सकता है ऋणराशि वापिस मिलने से पहले ही ऋणदाता को रुपए की आवश्यकता पड़ जाये, या ऋणी समय पर ऋणराशि वापिस न करे, या ऋणदाता को ऋणी से अपनी रकम वापिस लेने के लिए बार-बार तकादे करने पड़े, या ऋणराशि किस्तों में वापिस मिल पाए. इत्यादि। कभी-कभी तो ऋणदाता को ऋणी पर मुकदमा भी चलाना पड़ जाता है। इन सब असुविधाओं के लिए भी पूँजीपति (ऋणदाता) ब्याज में कुछ पुरस्कार सम्मिलित कर लेते हैं।

(4) प्रबन्ध का पुरस्कार (Reward for Management)- ऋणदाता को हिसाब-किताब रखना पड़ता है, ऋणी से पत्र-व्यवहार करना पड़ता है, कभी-कभी कानूनी कार्यवाही पर धन खर्च करना पड़ता है, इत्यादि। ऋणों की व्यवस्था के लिए, मुनीम भी रखे जाते हैं। ऋण-व्यवस्था पर किए गए व्यय की भी व्याज़ में शामिल कर लिया जाता है।

सूत्र के रूप में कुल व्याज की निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

कुल ब्याज = शुद्ध व्याज + जोखिम का पुरस्कार + असुविधओ का प्रतिफल + प्रबन्ध का पुरस्कार

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Anjali Yadav

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