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भारतीय श्रमिकों की कुशलता बढ़ाने के लिए सुझाव
निम्नलिखित उपायों द्वारा भारतीय श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि की जा सकती है-
(1) शिक्षा की व्यवस्था- श्रमिकों के लिए सामान्य व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा की सुविधाओं की समुचित व्यवस्था की जाए।
(2) न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण-सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जाए। साथ ही मजदूरी की दरें बढ़ाई जाएँ। इस सम्बन्ध में अब तक पारित किए गए अधिनियमों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
(3) उपयुक्त मशीनें, उपकरण व कच्ची सामग्री उपलब्ध कराना- भारतीय श्रमिकों को पुरानी तथा घिसी-पिटी मशीनों के स्थान पर उत्तम मशीनें, उपकरण तथा कच्ची सामग्री उपलब्ध कराई जाए।
(4) कार्य के घण्टों का नियमन तथा विश्राम की व्यवस्था- श्रमिकों के कार्य के घण्टे नियमित किए जाएं तथा कार्य अवधि के बीच में विश्राम तथा विश्राम स्थल की उचित व्यवस्था की जाए।
(5) सुरक्षा व चिकित्सा का प्रवन्ध- उद्योगों में श्रमिकों की सुरक्षा तथा चिकित्सा का समुचित प्रबन्ध किया जाए।
(6) कार्य-दशाओं में सुधार- श्रमिकों के कार्य करने की दशाओं में सुधार किया जाए। कार्य-स्थान स्वच्छ, हवादार तथा प्रकाशयुक्त हो ।
(7) प्रवासी प्रवृत्ति की रोकथाम- श्रमिकों की प्रवासी प्रवृत्ति की हतोत्साहित करने के लिए(1) औद्योगिक केन्द्रों को अधिक आकर्षक बनाया जाए, (ii) गन्दी बस्तियों के स्थान पर साफ-सुथरे, हवादार तथा प्रकाशयुक्त मकानों का निर्माण कराया जाए. (iii) श्रमिकों के जीवन को आकर्षक बनाने के लिए श्रम कल्याण कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जाए। उन्हें मनोरंजन, खेलकूद, पुस्तकालय, विश्राम गृह आदि की सुविधाएँ प्रदान की जाए।
(8) शक्तिशाली श्रम संघ- श्रम संघों को अधिक शक्तिशाली बनाया जाए। इनके नेता श्रमिक ही होने चाहिए न कि राजनीतिज्ञ ।
(9) सेवायोजकों व सरकार द्वारा प्रोत्साहन- श्रमिकों को अधिक तथा अच्छा काम करने के लिए सेवायोजकों तथा सरकार द्वारा प्रोत्साहन राशि एवं सुविधाएँ (incentives) प्रदान की जाएँ। बोनस व्यवस्था तथा लाभभागिता (profit sharing) को प्रभावी बनाया जाए।
(10) विशेष पदोनति-श्रमिकों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए उन्हें विशेष पदोन्नति (promotion) दी जाए।
(11) मालिकों द्वारा अच्छा व्यवहार-सेवायोजकों द्वारा श्रमिकों से अच्छा व्यवहार किया जाए ताकि श्रमिक मना लगाकर कार्य कर सकें।
(12) सामाजिक कुरीतियों का अन्त- श्रमिकों में व्याप्त भाग्यवादिता तथा महिवादिता को दूर किया जाए।
(13) श्रम कानूनों में उपयुक्त संशोधन-श्रम कानूनों में संशोधन करके श्रम हितकारी प्रावधानों तथा अन्य वालों का समावेश में करके उनका कड़ाई से पालन कराया जाए।
(14) उचित साख व्यवस्था— श्रमिकों की ऋणग्रस्तता को कम करने के लिए उन्हें कम व्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही श्रमिकों के अनावश्यक व्ययों की रोकथाम के लिए उन्हें मितव्ययिता (thrift) का पाठ पढ़ाया जाए।
(15) उपयुक्त भर्ती प्रणाली अपनाना- श्रमिकों की भर्ती की मध्यस्थ या ठेकेदारी प्रणाली को समाप्त करके नयी सुरक्षात्मक भर्ती प्रणाली लागू की जानी चाहिए।
भारतीय कृषि श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि के उपाय
भारतीय कृषि श्रमिकों की कुशलता को बढ़ाने के लिए निम्नांकित उपाय किए जाने चाहिए-
(1) पर्याप्त न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करना- यद्यपि लगभग सभी राज्यों में न्यूनतम मजदूरी तय कर दी गई है, किन्तु जीवन निर्वाह की दृष्टि से उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। अतः राज्य सरकारों को चाहिए कि ये न्यूनतम मजदूरी की ऐसी दरें निश्चित करें जो कृषि श्रमिकों के जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त हो ।
(2) कार्य के घण्टों का नियमन-औद्योगिक श्रमिकों की भाँति कृषि श्रमिकों के भी कार्य के घण्टों जाना चाहिए। अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त मजदूरी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(3) ऋणग्रस्तता कम करना- भारत के कृषि श्रमिक बुरी तरह से ऋणों के बोझ से दबे हुए हैं। अतः उनकी आर्थिक स्थिति को नियमित किया सुधारने के लिए विधान द्वारा पुराने ऋणों को समाप्त किया जाना चाहिए।
(4) आवास समस्या का समाधान-इसके लिए सहकारी समितियों के माध्यम से कृषि श्रमिकों को मकान बनाने के लिए कम व्याज पर ऋण दिलाने की व्यवस्था की जाए।
(5) शिक्षा का प्रसार-इससे श्रमिकों में अपनी उन्नति हेतु गाँव छोड़कर अन्य स्थानों पर जाने की प्रवृत्ति का विकास हो सकता है।
(6) कुटीर उद्योग-धन्धों का विकास इससे कृषि श्रमिकों की मौसमी बेरोजगारी को दूर किया जा सकेगा क्योंकि गाँवों में श्रमिक वर्ष में 4-5 महीने बेकार रहते हैं।
(7) कृषि व्यवसाय में दासता का उन्मूलन-भारतीय संविधान में किसी भी प्रकार की दासता को एक अपराध माना गया है। अतः भारत सरकार को इस बुराई का जड़ से उन्मूलन करना चाहिए।
(8) भूमिहीन कृषि-मजदूरों को भूमि दिलाना-भूमिहीन कृषि श्रमिकों को भूमि दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस दिशा में भूदान आन्दोलन ने उल्लेखनीय कार्य किया है।
(9) कृषि श्रमिकों का संगठन- भारतीय कृषि श्रमिक अशिक्षित है तथा उनमें संगठन का नितान्त अभाव है। अपने को संगठित करके वे अपनी मजदूरी तथा कार्य करने की दशाओं में सुधार करवा सकते हैं।
(10) कृषि-श्रम सहकारिताओं का गठन- देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के लाभार्थ श्रम सहकारिताएँ (Labour Co-operations) गदित की जानी चाहिए। ऐसी सहकारी संस्थाएँ कृषि श्रमिकों को उचित मजदूरी पर काम दिलाने में सहायक हो सकती है।
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