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भारत में निम्न जीवन स्तर के कारण (Causes of Low Standard of Living in India)
भारत में निम्न जीवन स्तर के कारणों को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- (1) आर्थिक कारण, (2) सामाजिक कारण, तथा (3) राजनीतिक कारण।
1. आर्थिक कारण (Economic Causes)-प्रमुख आर्थिक कारण निम्नांकित हैं-
(1) कृषि पर अत्यधिक निर्भरता- भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर अत्यधिक निर्भर है जबकि कृषि आज भी पिछड़ी हुई अवस्था में है। मानसून के असफल होने पर भारतीय कृषि भी विफल हो जाती है। कृषि के पिछड़ेपन के कारण देश की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय भी कम रहती है।
(2) औद्योगीकरण का अभाव- भारत की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय के कम होने का एक कारण औद्योगीकरण (industrialisation) का अभाव है। जो राष्ट्र औद्योगिक दृष्टि से विकसित है उनका रहन-सहन का स्तर भी उन्नत है, जैसे अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, जापान आदि।
(3) पूंजी की कमी–देश की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय के कम होने के कारण पूंजी का निर्माण पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता। पूंजी की कमी के कारण हम देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन नहीं कर पा रहे हैं।
(4) आधारभूत निर्माण-संरचना का अभाव-किसी देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए वहाँ रेल, सड़क, पुल, बिजली, सिंचाई के साधन आदि आधारभूत सुविधाओं का होना अनिवार्य होता है। किन्तु भारत में इन सुविधाओं की कमी है।
(5) जनसंख्या का आधिक्य- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। इस समय देश की जनसंख्या 100 करोड़ से भी अधिक है जो विश्व की जनसंख्या का 15 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं के फलस्वरूप देश की राष्ट्रीय आय में जी थोड़ी-बहुत वृद्धि होती है वह जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने के कारण निरर्थक हो जाती है। परिणामतः प्रति व्यक्ति आय में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो पाती।
(6) धन का असमान वितरण- देश का अधिकांश घन गिने-चुने व्यक्तियों तथा परिवारों के हाथों में केन्द्रित है जिस कारण अधिकांश जनता को निम्न जीवन स्तर व्यतीत करना पड़ता है।
(7) अन्य कारण- बैंकिंग सुविधाओं की कमी, अव्यवस्थित बाजार, बीमा संस्थाओं की कमी आदि वालों का भी देश के जीवन स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
2. सामाजिक कारण (Social Causes) — अनेक निम्न वर्णित सामाजिक कारणों ने देश के जीवन स्तर को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया है-
(1) अशिक्षा- देश की अधिकांश जनता आज भी अनपढ़ है जिस कारण वह अपनी आय को सोच-समझकर खर्च नहीं कर पाती।
(2) धार्मिक तथा सामाजिक विचारधारा- अनेक देशवासी ‘सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श का पालन करते हैं जिस कारण उनमें अधिकाधिक आय प्राप्त करके अपने जीवन को उन्नत करने की कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं होती। इसके अतिरिक्त, आज भी अधिकांश भारतवासी रूढ़िवादी तथा अन्धविश्वासी है जिस कारण वे अपनी आय का एक बड़ा भाग विवाह, मृत्यु आदि अवसरों पर खर्च कर डालते हैं। फिर लोग भाग्यवादी भी है। इससे देश की आर्थिक प्रगति अवरुद्ध होती है। ‘अहिंसा की धारणा के प्रबल होने के कारण कीड़े-मकोड़े, चूहे, बन्दर आदि से होने वाली हानियों से बचने के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं की जाती ।
(3) फैशन तथा विलासिता पर अपव्यय- औरों की देखा देखी मनुष्य फैशन तथा विलासिता की वस्तुओं पर अपनी आय की अनाप-शनाप खर्च कर डालते हैं जिस कारण वे अनेक अनिवार्य-वस्तुओं से यचित रह जाते हैं।
3. राजनीतिक कारण (Political Causes)- भारत में शताब्दियों तक विदेशी शासन रहा जिस कारण देश का समुचित आर्थिक विकास नहीं हो सका। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भी कुछ प्रशासकीय कमजोरियों के कारण देश में पंचवर्षीय योजनाओं की ठीक प्रकार से लागू नहीं किया जा सका है जिस कारण हम अपने आर्थिक तथा सामाजिक लक्ष्यों को समय से प्राप्त नहीं कर सके हैं।
भारतवासियों के रहन-सहन के स्तर को ऊँचा करने के उपाय
(1) देश के प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रयोग- भारत के प्राकृतिक संसाधनों का अभी तक समुचित प्रयोग नहीं हो पाया है। देश की वन सम्पदा, खनिज सम्पदा, जत-शक्ति तथा कृषि योग्य भूमि का अधिकारिक प्रयोग करके प्रति व्यक्ति आय का जा सकता है। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से देशवासियों के जीवन स्तर को उन्नत किया जा सकेगा।
(2) जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावी नियन्त्रण- परिवार नियोजन, विवाह की आयु में वृद्धि, शिक्षा का प्रसार आदि उपायो द्वारा देश की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर प्रभावशाली नियन्त्रण लगाना चाहिए। इससे देशवासियों को उपभोग के लिए। अधिक वस्तुएँ उपलब्ध हो सकेगी।
(3) धन के वितरण की असमानता दूर करना- धनी व्यक्तियों पर प्रगतिशील कर लगाकर सरकार उनकी फालतू आय को लेकर तथा उसे निर्धन व्यक्तियों के कल्याण पर खर्च करके जीवन स्तर को उन्नत कर सकती है।
(4) अर्थव्यवस्था का सन्तुलित विकास- देश में कृषि तथा उद्योग-धन्धों का सन्तुलित विकास किया जाना चाहिए। लघु तथा कुटीर उद्योग-धन्धों के प्रोत्साहन द्वारा भूमि पर जनसंख्या के अत्यधिक दबाव को कम करके लोगों की आय में वृद्धि की जा सकती है।
(5) श्रमिकों की कुशलत्ता में वृद्धि–श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि होने पर-(i) देश में अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा, तथा (ii) श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि होगी। परिणामतः देशवासी पहले की अपेक्षा अधिक वस्तुओं का उपभोग कर सकेंगे।
(6) धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों पर रोकथाम- अशिक्षित होने के कारण अधिकांश भारतवासी रूढ़िवादी हैं जिस कारण वे अपनी आय का एक बड़ा भाग विवाह, जन्म, मृत्यु आदि अवसरों पर खर्च कर डालते हैं। फिर भारतीय समाज में दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों हैं जो फिजूलखर्ची को बढ़ावा देती हैं। सरकार कानून दहेज प्रथा, अनावश्यक दावतों आदि पर रोक लगाकर लोगों में मितव्ययिता की भावना को प्रोत्साहित कर सकती है।
(7) शिक्षा का प्रसार- अधिकाधिक लोगों को शिक्षित करके उनकी रूढ़िवादिता तथा अन्य विश्वास को समाप्त करके उनकी कुशलता तथा उत्पादकता में वृद्धि तथा अपव्यय में कमी की जा सकती है। इससे अन्ततः उनकी आय बढ़ेगी जिससे ये अपने रहन-सहन के स्तर को उन्नत कर सकेंगे।
(8) बिलासिता तथा हानिप्रद वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबन्ध- सरकार आवश्यक कानून बनाकर हानिप्रद मादक वस्तुओं के उपभोग पर प्रतिबन्ध लगा सकती है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार द्वारा विलासिता वस्तुओं के उपभोग को हतोत्साहित किया जा सकता है।
(9) बैंकिंग, परिवहन, संचार आदि सुविधाओं का विकास- बैंकिंग सुविधाओं के विकास तथा विस्तार से उत्पादकों को कम ब्याज दर पर पूँजी मिल सकेगी जिससे उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि होगी। परिवहन तथा संचार के साधनों के समुचित विकास द्वारा कृषि तथा औद्योगिक उत्पादन को दूर-दूर तक पहुँचाया जा सकेगा जिससे लोगों को उचित कीमतों पर विभिन्न वस्तुएँ उपलब्ध हो सकेंगी।
(10) कीमतों में वृद्धि पर नियन्त्रण- आजकल लोगों के जीवन स्तर के निम्न होने का एक प्रमुख कारण कीमतों में निरन्तर होने वाली वृद्धि है। कीमतों में निरन्तर वृद्धि से रुपए की क्रय-शक्ति घटती जाती है जिस कारण लोग पहले की अपेक्षा कम वस्तुएँ खरीद पाते हैं। इसलिए सरकार को प्रभावशाली उपायों द्वारा कीमत-वृद्धि को नियन्त्रित करना चाहिए।
(11) जनोपयोगी कार्य- गाँवों तथा शहरों में स्कूल, अस्पताल, पार्क, विश्रामालय, व्यायामशालाएँ आदि की स्थापना की जानी चाहिए। इससे लोगों का रहन-सहन का स्तर उन्नत होगा।
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