भूमि विकास बैंक की सफलता के लिए सुझाव
देश में भूमि विकास बैंकों की और अधिक प्रगति के लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए-
(1) ऋण देने की व्यवस्था में सुधार- भूमि विकास बैंकों की ऋण देने की प्रणाली में सुधार किया जाए ताकि किसानों को पर्याप्त व समय पर ऋण मिलने लगे।
(2) किस्तों की समय पर वसूली- किस्तों की वसूली समय पर की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, किस्तों का निर्धारण ऋण लेने वाले की सामर्थ्य तथा उसके शुद्ध वार्षिक उत्पादन के आधार पर किया जाना चाहिए। किन्तु बुरी फसल की स्थिति में ऋण की किस्त राशि कम कर दी जानी चाहिए या उसका भुगतान स्थगित कर दिया जाना चाहिए।
(3) बैंकों का व्यापक जाल बिछाना- किसानों को दीर्घकालीन साख सुलभ कराने के लिए देश के विभिन्न भागों में समुचित मात्रा में भूमि विकास बैंकों की स्थापना की जानी चाहिए।
(4) कृषि सम्बन्धी आँकड़ों का एकत्रित किया जाना- किसानों के आय-व्यय सम्बन्धी आँकड़े उपलब्ध होने पर भूमि विकास बैंकों को किसानों की व्यक्तिगत सामर्थ्य जानने में आसानी रहेगी। इससे सही व्यक्तियों को ऋण मिल सकेंगे तथा बैंक भी समय पर किस्तें वसूल करने में सफल हो जाएंगे।
(5) पूंजी में वृद्धि- इन बैंकों को कम लाभांश वितरित करके अपने संचित कोषों का विस्तार करना चाहिए ताकि इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके। इसके अतिरिक्त, रिजर्व बैंक तथा स्टेट बैंक को इनके द्वारा जारी किए गए ऋणपत्रों की बिक्री में सहयोग देना चाहिए।
(6) ऋण-अवधि में वृद्धि- ये बैंक 20 वर्ष तक के लिए ही ऋण देते हैं, जबकि विश्व के कई राष्ट्रों में ऐसे बैंकों द्वारा 30 से 40 वर्ष तक की अवधि के लिए ऋण दिए जाते हैं। अतः इन बैंकों को भी इतनी लम्बी अवधि के लिए ऋण देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
(7) व्याज दर में कमी- इन बैंकों को अपने प्रबन्ध-व्यय को घटाकर ब्याज दर में कमी करनी चाहिए।
(8) भूमि सुधार हेतु अधिकाधिक ऋण- अब तक भूमि विकास बैंकों ने अधिकांश ऋण पुराने ऋणों के परिशोधन के लिए दिए हैं। इससे न तो कृषि का विकास होता है तथा न ही किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार हो पाता है। कृषि व्यवसाय के समुचित विकास तथा कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि के लिए इन बैंकों को स्थायी भूमि सुधार के लिए अधिकाधिक ऋण प्रदान करने चाहिए।
(9) वन्धक भूमि को बेचने का अधिकार- भूमि हस्तान्तरण अधिनियम के अन्तर्गत बैंकों के लिए ऋणी की भूमि को बेचना जासान नहीं होता। इस अधिनियम में आवश्यक संशोधन करके समय पर ऋण की वसूली न होने पर बैंकों को ऋणी की भूमि को बेचने का अधिकार मिलना चाहिए।
(10) प्राथमिक भूमि विकास बैंकों का निरीक्षण- प्राथमिक भूमि विकास बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु केन्द्रीय भूमि विकास बैंकों द्वारा इनका समय-समय पर निरीक्षण किया जाना चाहिए।
(11) अन्य सहकारी संगठनों के साथ समन्वय- भूमि विकास बैंक तथा अन्य सहकारी संस्थाओं में समन्वय का अभाव है। यदि भूमि विकास बैंकों तथा अन्य सहकारी संस्थाओं विशेषकर ऋण समझौता समितियों के मध्य समुचित समन्वय स्थापित कर दिया जाए तो ये बैंक अधिक कुशलता से कार्य कर सकेंगे।
(12) कर्मचारियों को प्रशिक्षण- इन बैंकों के कर्मचारियों तथा अधिकारियों के प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए जगह-जगह पर प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाने चाहिए।
(13) राज्य सरकारों द्वारा अधिकाधिक सहयोग- राज्य सरकारों को चाहिए कि वे भूमि विकास बैंकों को समुचित सहयोग प्रदान करें। राज्य सरकारें इन बैंकों के व्यय की कम करने के लिए कुछ छूट या रिवायत प्रदान कर सकती हैं, जैसे स्टाम्प शुल्क रजिस्ट्रेशन शुल्क आदि में छूट राष्ट्रानाडु की राज्य सरकारे यहाँ के भूमि विकास बैंकों द्वारा निर्गमित ऋणपत्रों पर गासाठी प्रदान करती है। अन्य राज्यों को सरकारें भी ऐना करके अपने राज्यों में भूमि विकास बैंकों को प्रोत्साहित कर सकती है।
(14) अन्य सुझाव- (i) इनको दीर्घकालीन जनाएँ स्वीकार करनी चाहिए।
(ii) प्रत्येक राज्य में एक केन्द्रीय बैंक की स्थापना की जाए।
(iii) केन्द्रीय भूमि विकास द्वारा प्राथमिक भूमि विकास बैंकों की कार्यप्रणाली का समय-समय पर निरीक्षण किया जाना चाहिए।
(iv) रिजर्व बैंक को भूमि विकास बैंकों के अंशों तथा ऋणपत्रों को प्रतिभूति के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
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