माताओं के भावलोक का पोषण करने में सूर की बाल लीला कितनी सक्षम है? विश्लेषण कीजिए।
महाकवि सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। वात्सलय का जैसा सुन्दर प्रवाह सूर के काव्य में मिलता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। यही कारण है कि सूरदास बाल सौन्दर्य और बाल स्वभाव के वर्णन के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। उन्होंने केवल बाहरी रूपों और चेष्टाओं का ही विस्तृत और सूक्ष्म वर्णन नहीं किया है, बल्कि बालकों की अन्तः प्रकृति में भी पूरा प्रवेश किया है और बाल भावों की सुन्दर और स्वाभाविक व्यंजना की है। वात्सल्य रस के संयोग तथा वियोग दो पक्ष होते हैं।
संयोग वात्सल्य सूर ने संयोग वात्सल्य के समास अंगों का मनोहारी चित्रण किया है। कृष्ण की मनमोहनी मर्ति को देखकर यशोदा तथा अन्य व्रज बालाएँ प्रेम में मग्न हो रही हैं। सूर ने कृष्ण के शैशव से लेकर कौमार्य अवस्था तक के अनेक बाल लीला के चित्रण प्रस्तुत किये हैं। कृष्ण के घुघराले केशों का इधर उधर छिटकना, नूपूर तथा करधनी का बजना, गाना, और नाचना तथा बाल सौन्दर्य के चित्र कितने मन को लुभाने वाले प्रतीत होते हैं।
(क) “आँगन स्याम नचावहिं जसुमति नंदरानी।
तारी दै-दै गावाहिं मधुरी मृदुबानी ॥
(ख) ” किलकत कान्ह घुटुरूवन आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन, मुख प्रतिविम्ब पकरिबे धावत ।
बालक कृष्ण का किलकारी मारकर घुटनों के बल चलना, अपने मुख के प्रतिबिम्ब को पकड़ना, हँसते समय आगे के दो दाँतों का चमकना, कलम के समान सुन्दर हाथों पैरों और मुख की शोभा आदि का बड़ा स्वाभाविक वर्णन सूरदास ने किया है।
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