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मापन के स्तर (Scale of Measurement) मापन के स्तर कितने प्रकार के होते हैं?
मापन की प्रविधि और शुद्धता के आधार पर इसे निम्न स्तरों में विभाजित किया गया है-
- शाब्दिक या नामित मापन स्तर
- क्रमित मापन स्तर
- आन्तरिक मापन स्तर
- आनुपातिक मापन स्तर
(1) नामित मापन स्तर (Nomial Scale) –
मापन का यह प्रकार सबसे कम परिमार्जित स्तर का मापन है। इस प्रकार का मापन वस्तुतः किसी गुण अथवा विशेषता के माप पर आधारित होता है। इसमें व्यक्तियों को उनके किसी गुण अथवा विशेषता के प्रकार के आधार पर कुछ वर्गों या समूहों में विभक्त कर दिया जाता है। इन वर्गों के बीच परस्पर किसी भी प्रकार का कोई अन्तर्निहित क्रम अथवा सम्बन्ध नहीं होता है। प्रत्येक वर्ग व्यक्ति या वस्तु के किसी गुण अथवा विशेषता के किसी एक प्रकार को व्यक्त करता है। विशेषता के प्रकार की दृष्टि से सभी वर्ग एक समान महत्व रखते हैं। गुण के विभिन्न प्रकारों को एक-एक नाम, शब्द, अक्षर, अंक या कोई अन्य संकेत प्रदान कर दिया जाता है। जैसे निवास के आधार पर नागरिकों को ग्रामीण व शहरी में बाँटना, विषयों के आधार पर स्नातक छात्रों को कला, विज्ञान, वाणिज्य, विधि, इंजीनियरिंग, चिकित्सा आदि वर्गों में बाँटना, लिंग भेद के आधार पर बच्चों को लड़के व लड़कियों में बाँटना. फलोंको आम, केला, अंगूर, संतरा, पपीता आदि में वर्गीकृत करना, फर्नीचर को मेज, कुर्सी, स्टूल आदि में बाँटना आदि नामित मापन के कुछ सरल उदाहरण है। स्पष्ट है कि नामित मापन वास्तव में गुणात्मक मापन का एक प्रकार है जिसमें गुण के विभिन्न प्रकारों अथवा पहलुओं के आधार पर कुछ सुपरिभाषित वर्गों के रचना की जाती है एवं गुणों के आधार पर विभिन्न अथवा व्यक्तियों को इन विभिन्न वर्गों में सम्मिलित व्यक्तियों या सदस्यों की केवल गणना ही सम्भव होती है। वर्गों या समूहों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले नामों, शब्दों, अक्षरों, अंकों या प्रतीकों के साथ कोई भी गणितीय सक्रिया जैसे जोड़ना, घटाना, गुणा या भाग आदि सम्भव नहीं होता है। केवल प्रत्येक समूह के व्यक्तियों की गिनती की जा सकती है। स्पष्ट है कि नामित स्तर पर किये जाने वाले मापन में गुण या विशेषता के विभिन्न पहलुओं के आधार पर वर्गों या समूहों में की रचना की जाती है।
(2) क्रमित मापन स्तर (Ordinal Scale) –
क्रमित स्तर का मापन नामित स्तर के मापन से कुछ अधिक परिमार्जित होता है। यह मापन वास्तव में गुण की मात्रा के आकार पर आध रित होता है। इस प्रकार के मापन में व्यक्तियों अथवा वस्तुओं को उनके किसी गुण की मात्रा के आधार पर कुछ ऐसे वर्गों में विभक्त कर दिया जाता है, जिनमें एक स्पष्ट अन्तर्निहित क्रम निहित होता है। यह क्रम अपने आप से सुस्पष्ट होता है। इन वर्गों में से प्रत्येक को कोई नाम, शब्द, अक्षर, प्रतीक या अंक प्रदान कर दिये जाते हैं। जैसे छात्रों को उनकी योग्यता के आधार पर श्रेष्ठ (Good), औसत (Average) व कमजोर (Inferior) नामक तीन वर्गों में बाँटना क्रमित मापन का एक सरल उदाहरण है। छात्रों के इन तीनों वर्गों में एक अंतनिर्हित क्रम या सम्बन्ध स्वाभाविक रूप से दृष्टिगोचर होता है। श्रेष्ठ वर्ग के छात्र, औसत वर्ग के छात्रों से श्रेष्ठ हैं तथा औसत वर्ग के छात्र निम्न वर्ग के छात्रों से स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ हैं। क्रमित मापन में यह आवश्यक नहीं है कि विभिन्न वर्ग के मध्य गुण की मात्रा का अन्तर सदैव ही समान हो। जैसे यदि राजू, काजू तथा पोलू क्रमश: श्रेष्ठ वर्ग, औसत वर्ग तथा कमजोर वर्ग में हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि राजू व काजू के बीच योग्यता में वही अन्तर है जो काजू तथा पोलू के बीच है। छात्रों को परीक्षा प्राप्तांकों के आध र पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रेणियाँ आवंटित करना, लम्बाई के आधार पर छात्रों को लम्बा औसत या नाटा कहना, कक्षा स्तर के आधार पर छात्रों को प्राथमिक स्तर, माध्यमिक स्तर, ..स्नातक स्तर आदि में बाँटना, विश्वविद्यालय अध्यापकों को प्रवक्ता, उपचार्य या आचार्य नामक , वर्गों में बाँटना, अभिभावकों को उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर के आधार पर उच्च, मध्यम व निम्न स्तर में बाँटना इत्यादि क्रमित मापन के कुछ सरल उदाहरण है। स्पष्ट है कि क्रमित मापन के विभिन्न वर्गों में विद्यमान गुण या विशेषता की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है तथा इन वर्गों को इस आधार पर घटते अथवा बढ़ने क्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है।
(3) अन्तराल मापन स्तर (Internal Scale) –
यह नामित व क्रमित मापन से अधि क परिमार्जित होता है। आंतरिक मापन गुण की मात्रा अथवा परिणाम पर आधारित होता है। इस प्रकार के मापन में व्यक्तियों अथवा वस्तुओं में विद्यमान गुण की मात्रा को इस प्रकार की इकाइयों के द्वारा व्यक्त किया जाता है कि किन्हीं भी दो लगातार इकाइयों में अन्तर समान रहता है। जैसे पाँच छात्रों को उनकी गणित योग्यता के आधार पर अध्यापक द्वारा 48, 50, 56, 58 व 60 अंक प्रदान करना आन्तरिक मापन का एक सरल उदाहरण है। यहाँ यह स्पष्ट है कि 48 एवं 50 अंकों के बीच ठीक वही अन्तर होता है जो अन्तर 56 व 59 अंकों के बीच होता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले अधिकांश चरों का मापन प्रायः अन्तरित स्तर पर ही किया जाता है। समान दूरी पर स्थित अंक ही इस स्तर के मापक की ईकाइयाँ होती हैं। इन ईकाइयों के साथ जोड़ व घटाने की गणितीय संक्रियायें की जा सकती हैं। परन्तु इस स्तर के मापन में गुणविहीनता को व्यक्त करने वाला परम शून्य या वास्तविक शून्य जैसा कोई बिन्दु नहीं होता है जिसके कारण इस स्तर के मापन से प्राप्त परिणाम सापेक्षिक तो होते हैं परन्तु निरपेक्ष नहीं होते हैं। इस स्तर के मापन का परिणाम शून्य बिन्दु तो हो सकता है परन्तु यह आभासी होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई छात्र भाषा परीक्षण पर शून्य अंक प्राप्त करता है तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह छात्र भाषा के विषय में कुछ नहीं जानता है। इस शून्य का अभिप्राय केवल इतना है कि वह छात्र प्रयुक्त किये गये भाषा परीक्षण के प्रश्नों को सही हल करने में पूर्णतया असफल रहा है परन्तु अवसर मिलने पर वह भाषा सम्बन्धी कुछ अन्य सरल प्रश्नों की सही हल भी कर सकता है। यही कारण है कि अन्तरित मापन से प्राप्त अंकों के साथ जोड़ या घटाव की गणनायें की जा सकती है परन्तु प्राप्तांकों के लिए गुणा तथा भाग की संक्रियायें करना संभव नहीं होता है।
(4) आनुपातिक मापन स्तर (Ratio Scale) –
इस प्रकार का मापन सर्वाधिक परिमार्जित स्तर का मापन होता है। मापन में अंतरित मापन की सभी विशेषताओं के साथ-साथ परम शून्य या वास्तविक शून्य की संकल्पना भी निहित रहती हैं। परम शून्य वह स्थिति है जिस पर कोई विशेषता या गुण पूर्णरूपेण अस्तित्वविहीन हो जाती है। जैसे लम्बाई, भार या दूरी का मापन आनुपातिक स्तर का मापन होता है क्योंकि लम्बाई, भार व दूरी के पूर्णरूपेण अस्तित्वहीन होने की संकल्पना की जा सकती है। अनुपातिक मापक की दूसरी विशेषता इस पर प्राप्त मापों की आनुपातिक तुलनीयता है। आनुपातिक मापन के द्वारा प्राप्त मापन परिणामों को अनुपात के रूप में व्यक्त कर सकते हैं जबकि अन्तरित मापन से प्राप्त परिणाम गुण के परिणाम को अनुपातों के रूप में व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं। जैसे 80 किलोग्राम भार वाले व्यक्ति को 40 किलोग्राम भार वाले व्यक्ति से दो गुना भार वाला व्यक्ति कहा जा सकता है। परन्तु 120 बुद्धि लब्धि (I.Q.) वाले व्यक्ति को 60 बुद्धि लब्धि (I.Q.) वाले व्यक्ति से दो गुना बुद्धिमान कहना तर्कसंगत नहीं होगा। दरअसल चालीस-चालीस किलोग्राम वाले दो व्यक्ति एक साथ मिलकर भार की दृष्टि से 80 किलोग्राम वाले व्यक्ति के समान हो जायेंगे परन्तु साठ-साठ बुद्धि लब्धि (IQ.) वाले दो व्यक्ति मिलकर भी 120 बुद्धि लब्धि वाले व्यक्ति के समान बुद्धिमान कदापि नहीं हो सकते हैं। भौतिक चरों का मापन प्रायः आनुपातिक स्तर पर किया जाता है। आनुपातिक मापन से प्राप्त परिणामों के साथ जोड़, घटाना, गुणा व भाग की चारों मूल गणितीय संक्रियायें की जा सकती हैं।
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