मार्शल की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Marshall’s Definition)
पर्याप्त समय तक मार्शल की परिभाषा का बोलबाला रहा तथा यह समझा जाने लगा कि मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा सम्बन्धी वाद-विवाद का अन्त कर दिया है। किन्तु सन् 1932 में रॉबिन्स (Robbins) ने अर्थशास्त्र की एक नए दृष्टिकोण से परिभाषा देते हुए मार्शल की परिभाषा की कटु आलोचना की। मार्शल को परिभाषा में मुख्यतः निम्न दोष निकाले गए हैं
(1) जीवन के साधारण व्यवसाय’ का अर्थ स्पष्ट नहीं मार्शल ने यह नहीं बताया कि जीवन के ‘साधारण व्यवसाय’ तथा असाधारण व्यवसाय में क्या अन्तर है यदि इन शब्दों के सामान्य अर्थ को भी लिया जाए तो युद्ध एकाधिकार, अपूर्ण प्रतियोगिता आादि असाधारण परिस्थितियों के अन्तर्गत सम्पन्न की गई आर्थिक क्रियाएँ अर्थशास्त्र के क्षेत्र से बाहर हो जायेंगी। इस दृष्टि से मार्शल ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित कर दिया है। फिर वास्तविकता तो यह है कि हम उक्त सभी असाधारण परिस्थितियों के अन्तर्गत सम्पन्न की गई आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन अर्थशास्त्र के अन्तर्गत करते हैं।
(2) केवल भौतिक साधनों का ही अध्ययन नहीं मार्शल के विचार में अर्थशास्त्र में केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उनके उपयोग का अध्ययन किया जाता है किन्तु रॉबिन्स के विचार में अर्थशास्त्र में ऐसी सभी भौतिक तथा अभौतिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। उदाहरणार्थ, डॉक्टर, अध्यापक, वकील आदि की सेवाओं से हमारी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है। इसलिए अर्थशास्त्र में ‘सेवाओं’ (services) का भी अध्ययन किया जाता है। मार्शल ने भौतिक साधनों को महत्त्व देकर अर्थशास्त्र के क्षेत्र को सीमित कर दिया है।
(3) भौतिक कल्याण से सम्बन्धित नहीं रॉबिन्स के विचार में अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किसी से भी क्यों न हो किन्तु इसका सम्बन्ध भौतिक कल्याण से बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि (1) कल्याण की अवधारणा अस्पष्ट, अस्थाई तथा अनिश्चित होती है, (ii) कल्याण एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है; अतः इसका सही-सही माप सम्भव नहीं है तथा (III) ऐसी अनेक क्रियाएँ हैं जो मानव कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है किन्तु फिर भी उनका अध्ययन अर्थशास्त्र में किया जाता है, जैसे शराब व तम्बाकू का उत्पादन व उपभोग |
(4) कल्याण को मापा नहीं जा सकता–यदि हम कल्याण के उद्देश्य को स्वीकार भी कर लें तो हमारे सम्मुख कल्याण को मापने की कठिनाई उपस्थित होगी। हमारे पास कल्याण को मापने का कोई सर्वमान्य मापदण्ड नहीं होता। फिर, कल्याण की धारणा अस्पष्ट, अनिश्चित तथा अस्थायी है, क्योंकि समय, स्थान तथा परिस्थितियों के अनुसार कल्याण का अर्थ बदलता रहता है।
(5) केवल सामाजिक विज्ञान नहीं मार्शल ने अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान माना था किन्तु रॉविन्स के विचार में अर्थशास्त्र एक मानव विज्ञान (Human Science) है। इसमें सभी मनुष्यों के सीमित साधनों से सम्बन्धित कार्यों का अध्ययन किया जाता है, चाहे व्यक्ति समाज में रहते हो या समाज से बाहर फिर कुछ आर्थिक नियम ऐसे हैं जो समाज के अन्दर तथा समाज के बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं, जैसे सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम, सम-सीमान्त तुष्टिगुण नियम आदि।
(6) परिभाषा का श्रेणीविभाजक (classificatory) होना न कि विश्लेषणात्मक (analytical) होना-मार्शल की परिभाषत श्रेणीविभाजक है, क्योंकि उन्होंने मानवीय क्रियाओं को आर्थिक व अनार्थिक, भौतिक व अमौतिक, कल्याणकारी व कल्याणकारी आदि श्रेणियों में बाँट दिया है। किन्तु रॉबिन्स के विचार में यह वर्गीकरण अवैज्ञानिक तथा अस्पष्ट है क्योंकि मानवीय क्रिया जो एक समय में जार्थिक होती है वहीं दूसरे समय में अनार्थिक बन जाती है। उदाहरणार्थ, यदि गायक को माने से मुझ मिलती है तब तो उसका कार्य आर्थिक है, किन्तु यदि वह केवल मनोरंजन के लिए ही गाता है तो उसके गाने का कार्य अनार्थिक हो जाता है।
(7) अर्थशास्त्र आदर्शत्मक विज्ञान नहीं मार्शल ने अर्थशास्त्र की वास्तविक (Positive) तथा आदर्शात्मक (Normative) दोनों प्रकार का विज्ञान माना है। उनके विचार में अर्थशास्त्र ‘क्या है’ के साथ-साथ क्या होना चाहिए का भी अध्ययन करता है। इसके विपरीत, रॉगिन्स ने अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान माना है। उनके विचार में, “अर्थशास्त्र उद्देश्यों के बीच तटस्य है।
(8) अव्यावहारिक दृष्टिकोण यह कहना गलत है कि अर्थशास्त्र में केवल उन्हीं मानवीय क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जो मनुष्य के कल्याण में वृद्धि करती है। वास्तव में अर्थशास्त्र में मनुष्य के आय तथा व्यय सम्बन्धी सभी कार्यों का अध्ययन किया जाता है।
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