मृतक साझेदार के उत्तराधिकारियों को देय राशि के सम्बन्ध में क्या वैधानिक व्यवस्था है? मृतक साझेदार के हिस्से के लाभ की गणना किस प्रकार की जाती है? मृतक साझेदारों के उत्तराधिकारियों को देय राशि उनके खाते में किस प्रकार क्रेडिट व डेबिट की जाती है?
मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को देय राशि के भुगतान से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्था – मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को देय राशि का भुगतान निम्नानुसार होगा-
(1) यदि साझेदार संलेख में भुगतान की विधि निश्चित कर ली गयी होतो भुगतान उक्त निश्चित विधि के अनुसार ही किया जाएगा ।
(2) संलेख में व्यवस्था न होने पर देय राशिका भुगतान तत्काल नकद में किया जाएगा।
(3) तत्काल नगद भुगतान संभव न होने पर, भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 37 के अनुसार भुगतान निम्नलिखित दो विकल्पों में से किसी भी एक विकल्प द्वारा किया जा सकता है-
(क) मृत्यु की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय राशि पर 6% वार्षिक ब्याज सहित अथवा
(ख) देय राशि से र्फम द्वारा कमाए गये लाभ में भाग ।
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मृतक साझेदार के हिस्से के लाभ की गणना-
प्राय: साझेदार का अवकाश ग्रहण फर्म के अन्तिम खाते तैयार करने की तिथि पर होता है जबकि मृत्यु की कोई निश्चित तिथि नहीं होती वह किसी भी दिन हो सकती है।
यदि साझेदार की मृत्यु वर्ष के मध्य हो जाती है तो उसके उत्तराधिकारी को गत वर्ष के चिट्ठे से मृत्यु होने की तिथि तक की अवधि में लाभ में हिस्सा पाने का अधिकारी होता है। इसकी गणना निम्नलिखित दो विधियों में से किसी भी एक विधि द्वारा की जा सकती है-
(क) समय के आधार पर अथवा (ख) बिक्री के आधार पर
(क) समय के आधार पर- इस विधि में गत वर्षों के लाभ के आधार पर चालू वर्ष में मृतक साझेदार जितनी अवधि तक फर्म में साझेदार रहा हो उस अवधि का फर्म का आनुपातिक अनुमानित लाभ ज्ञात कर मृतक साझेदार के हिस्से के लाभ की गणना की जाती है। इसमें चालू वर्ष के लाभ के भाग की गणना, गत वर्ष के लाभ के आधार पर अथवा गत वर्षों के औसत लाभ के आधार पर की जाती है।
(ख) बिक्री के आधार पर- इस विधि में गत वर्षों की बिक्री से फर्म को हुए लाभ के आधार पर चालू वर्ष में साझेदार की मृत्यु की तिथि तक हुई बिक्री पर चालू वर्ष का लाभज्ञात कर उसमें मृतक साझेदार के लाभ की गणना की जाती है।
मृतक साझेदार के उत्तराधिकारियों को देय राशि को उनके खाते में क्रेडित या डेबिट करना-
मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को मृतक साझेदार की पूँजी के अतिरिक्त फर्म से निम्नलिखित राशियाँ प्राप्त करने का अधिकार होता है। अतः ये राशिय मृतक साझेदारों के उत्तराधिकारी खाते में जमा (क्रेडिट) की जाती है
- पूँजी व चालू खाते का जमा (क्रेडिट) शेष।
- साझेदारी संलेख में व्यवस्था होने पर मूल्य की तिथि तक कर्म से वेतन, कमीशन, ब्याज आदि।
- मूल्य की तिथि तक कर्म के लाभ में हिस्सा।
- फर्म की ख्याति में आनुपातिक भाग।
- फर्म के चिट्टे में प्रदर्शित लाभ, संचय आदि में आनुपातिक भाग।
- मूल्य की तिथि पर सम्पत्तियों एवं दायित्वों के पूनर्मूल्यांकन से होने वाले लाभ का हिस्सा।
- संयुक्त जीवन बीमा पालिसी में मृतक साझेदार का भाग।
निम्न पर्दों को प्रश्नानुसार ‘डेबिट’ पक्ष में उल्लेख किया जाता है-
- प्रत्येक साझेदार के पूँजी एवं चालू खाते का डेबिट
- मृतक की आहता एवं आहता पर ब्याज
- ख्याति के मूल्य में कार्य का भाग।
- सम्पत्तियों एवं दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन से होने वाली हानि का भाग।
- अवितरित हानि का भाग।
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