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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 की विशेषताएँ तथा सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 की विशेषताएँ तथा सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 की विशेषताएँ तथा सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 की विशिष्ट विशेषताओं का वर्णन कीजिये तथा सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव लिखिये।

स्वतंत्रता के बाद देश की शिक्षा को देश के संविधान में वर्णित देश के राजनीतिक ढाँचे तथा सामाजिक परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए शिक्षा आयोग एवं शिक्षा समितियों का गठन किया गया । इसी प्रकार राजीव गाँधी के प्रधान मंत्रित्व काल में नई शिक्षा नीति लागू की गई। इन सभी के सुझावों को लागू करने पर भी भारत में प्रचलित शिक्षा आलोचना की शिकार होती रही। कारण स्पष्ट है कि भारतीय समाज जिस प्रकार के उत्पाद की अपेक्षा विद्यालयों से करता रहा उसकी अपेक्षा के अनुकूल शिक्षित व्यक्ति समाज को उपलब्ध नहीं हुए। शिक्षा में व्याप्त और विशेषतः पाठ्यक्रम में व्याप्त कमियों को दूर करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) का प्रपत्र तैयार कर प्रस्तुत किया। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यालयों में प्रचलित पाठ्यक्रम में करना और पूरे देश में समान पाठ्यक्रम लागू करना था।

सुधार राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा 2005 की प्रमुख विशेषताएँ:-

(1) शिक्षा के उद्देश्य (Aims of education) :- राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा में सर्व प्रथम शिक्षा के उद्देश्यों पर विचार किया। इसमें अधिगम बिना भार के’ से संकेत लेते हुए तथा भारतीय संविधान में वर्णित धर्म निरपेक्षिता, समानता और समान अधिकार तथा अनेकत्व समाज से परामर्श लेते हुए उद्देश्यों का निर्धारण किया। इन उद्देश्यों में विचार और कार्य की स्वतन्त्रता, दूसरों की शिक्षा के कुछ निश्चित भलाई और भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता, नवीन परिस्थिति में लोच और क्रियात्मक रूप से प्रतिक्रिया करना सीखना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने तथा आर्थिक प्रक्रिया और सामाजिक परिवर्तन में योगदान करने की प्रवृत्ति का विकास आदि को सम्मिलित किया।

यह सत्य है कि अधिगम एक प्रकार से भार का स्त्रोत होने तथा दबाव का कारण होने से शिक्षा के उद्देश्यों में विकृति पैदा हो गई। इस विकृति को दूर करने के उद्देश्य से इस प्रपत्र में पाठ्यक्रम विकास के लिए पाँच निर्देशन देने वाले सिद्धान्तों का प्रस्ताव रखा-

(1) विद्यालय से बाहर के जीवन के साथ ज्ञान को जोड़ना।

(2) कण्ठस्थ करने वाली विधियों को अधिगम को पृथक रखना

(3) पाठ्यपुस्तक तक सीमित रखने की अपेक्षा बालक के सर्वांगीण विकास के लिए पाठ्यक्रम को समृद्ध बनाना।

(4) परीक्षा को लचीला तथा समन्वित बनाना

(5) देश के प्रजातंत्रीय ढाँचे की सीमाओं में बालकों द्वारा अपनी महत्वपूर्ण पहिचान बनाने में सहायता करना।

(6) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा अधिगमकर्त्ता को ज्ञान का रचनाकार मानती है इसीलिए इस बात पर बल देती है कि पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें शिक्षक को इस योग्य बनाएँ कि वह बालक के स्वभाव तथा पर्यावरण के अनुकूल कक्षा अनुभवों का आयोजन कर सकें और सभी बालकों की उसमें सहभागिता सुनिश्चित कर सकें। इसी कारण शिक्षा को वर्तमान के समकालीन और भावी आवश्यकताओं की पूर्ति के अनुकूल बनाने के उद्देश्य से सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में परिवर्तन के सुझाव प्रस्तुत किए हैं। एन.सी.एफ. ने विषयों की सोमाओं में ढील देने की अनुशंसा की है ताकि छात्रों को समन्वित ज्ञान और अवबोध के आनंन्द का अनुभव हो सकें।

एन.सी.एफ. के सामाजिक विज्ञानों के पाठ्यक्रम निर्माण सम्बन्धी सुझाव

एन.सी.एफ द्वारा दिए गए पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव सम्पूर्ण देश में लागू करने के उद्देश्य से दिए गए। लेकिन शिक्षा राज्य का विषय है। अत: इन सुझावों के आधार पर प्रत्येक राज्य को उनके यहाँ प्रचलित पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक तथा शिक्षक डायरी का पुनः अवलोकन के लिए निम्नलिखित पथप्रदर्शक बिन्दु निश्चित किए-

  1. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बालक के विकास की अवस्थाओं के अनुकूल प्रकरणों की उपयुक्तता निर्धारित करना ।
  2. सभी विषयों में ज्ञान के संगठन में भारत के संविधान के मूल्यों की व्यापक प्रतिध्वनि परलक्षित होना।
  3. एक स्तर से आगे के स्तर के ज्ञान में निरंतरता।
  4. बालक के दैनिक जीवन के अनुभव और विद्यालय के ज्ञान से सहसम्बन्धिता का होना।
  5. लिंग समानता, शान्ति, स्वास्थ्य तथा अक्षम बालकों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदन शीलता।
  6. विद्यालय और महाविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्बद्धता।
  7. शैक्षिक तकनीकी की क्षमताओं का उपयोग।

मानवीय ज्ञान की दो शाखाएँ प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान होती है। प्राकृतिक विज्ञान का सम्बन्ध सृष्टि से सम्बन्धित विषयों से है जबकि सामाजिक विज्ञान का सम्बन्ध, मानव के उद्गम, संगठन और विकास से है। सामाजिक विज्ञान को भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र व अर्थशास्त्र का योग माना जाता है। परन्तु यह एक भ्रमात्मक तथ्य है क्योंकि इसमें मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन भी किया जाता है। यह न केवल एक नया विषय है बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में एक नया दृष्टिकोण भी है। यह सत्य है कि सामाजिक विज्ञान इन विषयों से पर्याप्त सामग्री प्राप्त करता है बल्कि उसी सामग्री को ग्रहण करता है जो मानव के वर्तमान तथा दैनिक सम्बन्धों को स्पष्ट करती है। यह न केवल एक नवीन विषय है बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में यह एक नया दृष्टिकोण भी है। सामाजिक विज्ञान में इनका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता है बल्कि वे सभी मिलकर एक नया एकीकृत स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं।

(NCF) ने सामाजिक विज्ञान में समाज के उन समूहों जो कि समाज में उचित स्थान पर नहीं है के सन्दर्भ में सामाजिक विज्ञानों में एकीकरण की बात करते समय कुछ अनुशासनात्मक सीमाओं का प्रावधान रखने की अनुशंसा की है। इससे NCF का आशय है कि अभी भी देश में सामाजिक परिवर्तन होने पर भी कुछ ऐसे सामाजिक वर्ग हैं जिन को हेय दृष्टि से देखा जाता है। अर्थात् समाज अभी भी वर्गभेद की धारणा का प्रचलन है। सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में ऐसे प्रकरण सम्मिलित किए जायं जो छात्रों में सामाजिक वर्ग के भेदभाव को समाप्त कर सकें।

लैंगिक न्याय (Gender Justice) :- भारत में आज भी लैंगिक विषमता पाई जाती है। यह हमारे समाज की सोच का परिणाम है। पुरुष कभी भी स्त्री को अपने समान बुद्धिमान शक्तिशाली तथा योग्य मानने को तैयार नहीं है। स्त्री एवं पुरूष में भेदभाव करना उसमें असमानता करना ही लैंगिक विषमता है। लेकिन हमारे देश में आज भी स्त्रियों के साथ भेदभाव किया जाता है। NCF ने सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में लैंगिक न्याय से सम्बन्धित ऐसे प्रकरण रखने का सुझाव दिया जो बालकों के रूढ़िवादी विचार को समाप्त कर स्त्रियों को समान अधिकार देने के पक्षपाती बने।

दलित और जनजाति के लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदन शीलता (Sensitivity towards tribal and dalit)

भारत में दलित वर्ग के लोगों का प्राचीन काल से शोषण होता रहा है। वर्तमान में यह वर्ग अनेक समस्याओं से पीड़ित है। इन समस्याओं में छुआ-छूत या अस्पर्शयता, निर्धनता, तथा अशिक्षा की समस्याएँ प्रमुख हैं। पाठ्यक्रम में ऐसे बिन्दु सम्मिलित किए जाएं कि विद्यालय जीवन से बालक में उनकी समस्याओं के प्रति रूचि पैदा हो तथा वे उन समस्याओं के समाधान के लिए चिन्तन करने के लिए प्रेरित हो सकें।

इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के लोग हैं जो सभ्य समाज से दर वनों में एकांकी जीवन व्यतीत करते हैं। ये रूढ़िवादी लोग हैं। वनों पर आधारित अर्थव्यवस्था के कारण ये निर्धन हैं और अशिक्षा के शिकार हैं। सामाजिक विज्ञान की सहायता द्वारा छात्रों में इनकी समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता पैदा करने के प्रयास करने चाहिये।

अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति संवेदनशीलता (Meriority sensitivities)

भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अनेक सम्प्रदाय तथा अनेक जातियों के लोग निवास करते हैं। अल्पसंख्यक में इसाई, जैन, बौद्ध, सिक्ख तथा मुस्लिम धर्म के अनुयायियों को सम्मिलित किया जाता है। भारत में होने वाले साम्प्रदायिक झगड़ों से सामाजिक समरसता और आर्थिक विकास को बहुत हानि पहुँचती है। सामाजिक विज्ञान के माध्यम से ही बालकों को प्रत्येक धर्म का सम्मान करने का पाठ सिखाना चाहिये तथा साम्प्रदायिक तनाव के दुष्परिणामों से छात्रों को अवगत कराने का प्रयास करना चाहिये।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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