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रौद्र रस – Raudra Ras – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

रौद्र रस - Raudra Ras in Hindi
रौद्र रस – Raudra Ras in Hindi

रौद्र रस – Raudra Ras in Hindi

जिस भाव में क्रोध नामक स्थायी भाव का होता है, वहाँ ‘रौद्र रस’ माना जाता है।

रौद्र रस के आलंबन क्रोधोत्तेजक अनुचित कर्म तथा अनुचित अन्यायपूर्ण कर्म करने वाले व्यक्ति होते हैं। असत्य, अन्याय, अत्याचार, दुष्टाचार, अनुचित, अपमान, शत्रुता, अनिष्टकर सामाजिक कुरीतियाँ आदि स्थायी भाव क्रोध की जनक बनती हैं। इन चेष्टाओं का अधिकाधिक अनिष्टकारी होना, शत्रु या दुष्ट व्यक्ति के कटु वचन, अपमान करना, दुष्टताभरी हरकत आदि उद्दीपन होती हैं।

आँखें तरेरना, आँखें लाल होना, भवै तनना, दाँत पीसना, पाँव पटकना, मारना, गालियाँ देना, होंठ चबाना, अस्त्र-शस्त्र चलाना, प्रचंड रूप बनाना, क्रोधसूचक वचन बोलना, संहारक प्रवृत्ति, ललकारना, प्रहार करना, धक्के देना, मुट्ठी भींचना, काँपना स्वेद, विश्वास, रोमांच, स्तंभन आदि अनेक अनुभाव हैं। घृणा, ग्लानि, गर्व, उन्माद, मद, श्रम, असूया, साहस, उत्साह, आवेग अमर्ष, उग्रता, मति, स्मृति, चपलता, आशा, उत्सुकता, हर्ष आदि अनेक संचारी भाव व्यक्त होते हैं।

रौद्र रस के अवयव:

  • स्थाई भाव – क्रोध ।
  • आलंबन (विभाव) – विपक्षी, अनुचित बात कहनेवाला व्यक्ति।
  • उद्दीपन (विभाव) – विपक्षियों के कार्य तथा उक्तियाँ।
  • अनुभाव –  मुख लाल होना, दांत पीसना, आत्म-प्रशंशा, शस्त्र चलाना, भौहे चढ़ना, कम्प, प्रस्वेद, गर्जन आदि।
  • संचारी भाव – आवेग, अमर्ष, उग्रता, उद्वेग, स्मृति,  असूया, मद, मोह आदि।

रौद्र रस के उदाहरण

1. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।

मानो हवा के ज़ोर से, सोता हुआ सागर जगा

मुख बाल रवि सम लाल होकर, ज्वाला सा बोधित हुआ।

प्रलयार्थ उसके मिस वहाँ, क्या काल भी क्रोधित हुआ।              मैथिलीशरण गुप्त

स्थायी भाव- क्रोध

विभाव- आश्रय- अर्जुन, आलंबन- जयद्रथ (अभिमन्यु को मारने वाला), उद्दीपन- चक्रव्यूह में अभिमन्यु का मरना

अनुभाव- शरीर काँपना, मुख लाल होना।

संचारी भाव- उग्रता, आवेग, उन्माद, मद, अमर्ष आदि।

रस- रौद्र रस

2. फिर दुष्ट दुःशासन समर में शीघ्र सम्मुख आ गया।

अभिमन्यु उसको देखते ही क्रोध से जलने लगा।

निश्वास बारम्बार उसका उष्णतर चलने लगा।                      – मैथिलीशरण गुप्त

स्थायी भाव – क्रोध

विभाव- आश्रय- अभिमन्यु, आलंबन दुःशासन, उद्दीपन- युद्ध का वातावरण

अनुभाव – क्रोध से जलना, साँस गर्म होना।

संचारी भाव- असूया, चपलता, श्रम, धृति, उग्रता आदि ।

रस- रौद्र रस

3. समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए।

सुनत बचन फिरि अनत निहारे देखे चाप खंड महि डारे।

असि रिस बोले बचन कठोर। कहु जड़ जनक धनुष के तोरा ।।       – तुलसीदास

स्थायी भाव – क्रोध

विभाव- आश्रय- परशुराम आलंबन खंडित शिवधनुष उद्दीपन- राजा जनक का कथन

अनुभाव- क्रोधित होकर बोलना, कोप की व्यंजना

संचारी भाव- भय, त्रास, चिंता, आवेग आदि।

रस- रौद्र रस

4. प्रभु हो या परात्पर हो

कुछ भी हो सारा तुम्हारा वंश

इसी भाँति पागल कुत्ते की तरह

एक-दूसरे को परस्पर फाड़ खाएगा

तुम खुद उनका विनाश करने के कई वर्षों बाद

किसी घने जंगल में

साधारण व्याध के हाथों मारे जाओगे

प्रभु हो पर मारे जाओगे पशुओं की तरह।                         – धर्मवीर भारती

स्थायी भाव – क्रोध

विभाव- आश्रय- गांधारी, आलंबन श्री कृष्ण उद्दीपन युद्ध में कौरव वंश की बरबादी

संचारी भाव –  आवेग, अमर्ष घृणा, आक्रोश, श्रम आदि।

अनुभाव- शाप देना

रस- रौद्र रस

5. शत घूर्णावर्त, तरंग-भंग, उठते पहाड़,

जल- राशि, राशि-जल पर चढ़ता खाता पछाड़,

तोड़ता बंध प्रतिसंध धरा, हो स्फीत-वक्ष,

दिग्विजय- अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष           – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

स्थायी भाव – क्रोध

विभाव- आश्रय- हनुमान, आलंबन श्री राम उद्दीपन- श्री राम का दुखी होना।

अनुभाव- हनुमान के मन में विध्वंसकारी विचार उत्पन्न होना, मर्यादाओं को तोड़ने के लिए उद्यत होना, वक्ष फुलाना, उत्साहित होना।

संचारी भाव- उग्रता, आवेग उन्माद, मद, अमर्ष, गर्व आदि।

रस – रौद्र रस

6. जब तैं कुमति जियं ठयऊ। खंड-खंड होइ हृदउ न गयऊ।

बर मागत मन भइ नहिं पीरा। गरि न जीह मुँह परेउ न कीरा।।          – तुलसीदास

स्थायी भाव – क्रोध

विभाव- आश्रय- भरत आलंबन कैकेयी, उद्दीपन- कैकेयी द्वारा राम को वनवास दिए जाने की बात

अनुभाव- भरत के क्रोधपूर्ण वचन ।

संचारी भाव- उग्रता, आवेग, उन्माद, मद, अमर्ष आदि ।

रस- रौद्र रस

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Anjali Yadav

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