कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

लगान का अर्थ (Meaning of Rent)

लगान का अर्थ (Meaning of Rent)
लगान का अर्थ (Meaning of Rent)

लगान (Rent)

“आर्थिक लगान यह भुगतान है जो सन्तुलन की स्थिति में किसी उद्योग में लगे उत्पत्ति के उपादान की एक इकाई को दिया जाता है और वह उस न्यूनतम रकम से अधिक होता है जो किसी उपादान विशेष को उसके वर्तमान व्यवसाय में बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।

-श्रीमती जॉन रॉबिन्सन

लगान का अर्थ (Meaning of Rent)

आम बोलचाल की भाषा में ‘लगान’ या ‘किराया’ शब्द का प्रयोग उस भुगतान के लिए किया जाता है जो मकान, दुकान, मशीन, फर्नीचर, काकरी आदि भौतिक वस्तुओं के उपयोग के बदले उनके मालिकों को किया जाता है किन्तु अर्थशास्त्र में ‘लगान’ की अवधारणा (concept) का प्रयोग उत्पादन के उन साधनों को दिए जाने वाले भुगतान के लिए किया जाता है जिनकी पूर्ति अपूर्ण लोचदार (imperfectly elastic supply) होती है।

लगान की परिभाषाएँ (Definitions of Rent)-सुविधा के लिए लगान की परिभाषाओं को निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

(i) प्राचीन अर्वशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषाएँ- रिकार्डो, थॉमस आदि विद्वानों का विचार था कि लगान केवल भूमि से प्राप्त होता है।

(1) रिकार्डों के शब्दों में, “लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमिपति को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है।

(2) थॉमस के विचार में लगान को भूमि तथा अन्य प्रकृतिदत्त निःशुल्क उपहारों के स्वामित्व से मिलने वाली आय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

(3) कार्बर के अनुसार, “भूमि के प्रयोग के बदले में चुकाई गई कीमत ही लगान है।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने ‘लगान’ शब्द का प्रयोग संकुचित अर्थ में किया था क्योंकि उनका विचार था कि लगान केवल भूमि से प्राप्त होता है।

(ii) आधुनिक अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषाएँ- आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचार में लगान केवल भूमि से ही प्राप्त नहीं होता बल्कि यह ऐसे किसी भी उपादान से प्राप्त हो सकता है जिसका सम्भरण (पूर्ति) मूल्य-सापेक्ष (elastic) नहीं होता। आधुनिक विद्वानों के अनुसार आर्थिक लगान किसी भी उपादान को किया गया वह अतिरिक्त भुगतान है जो उसे उस उद्योग या व्यवसाय में लगाए रखने के लिए आवश्यक न्यूनतम राशि से अधिक प्राप्त होता है।

(1) बोल्डिंग के शब्दों में, “आर्थिक लगान वह भुगतान है जो सन्तुलन की स्थिति में किसी उद्योग में लगे उत्पादन के किसी उपादान की इकाई को किया जाता है और यह उस न्यूनतम राशि से अधिक होता है जो किसी उपादान-विशेष को उसके वर्तमान व्यवसाय में बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।

(2) स्टोनियर तथा हेग के विचार में, “लगान वह भुगतान है जो हस्तान्तरण आय से अधिक होता है।”

लगान के भेद (Types of Rent)

‘लगान’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित तीन रूपों में किया गया है-

(1) कुल लगान (Gross Rent) दैनिक जीवन में ‘लगान’ शब्द का प्रयोग जिस अर्थ में किया जाता है वह कुल लगान है। ‘कुल लगान’ वह भुगतान है जिसे कोई किसान भूमि के स्वामी को करता है अथवा कुल किराया वह भुगतान है। जिसे कोई किराएदार अपने मकान मालिक को करता है। इस प्रकार कुल लगान में ये तत्त्व शामिल होते हैं–(i) केवल भूमि के प्रयोग के बदले किया गया भुगतान जिसे आर्थिक लगान’ कहा जाता है, (ii) भूमि के सुधार में लगाई गई पूंजी का व्यय, (iii) भूमि के उचित प्रबन्ध का व्यय, (iv) भूस्वामी द्वारा उठाई गई जोखिम का पुरस्कार।

लगान के उदय होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि भूमि या मकान का मालिक अपनी भूमि या मकान को किसी किसान या किराएदार को दे। बल्कि अर्थशास्त्र में लगान उस समय भी उत्पन्न होता है जबकि भूमि या मकान का मालिक अपनी भूमि या मकान का प्रयोग स्वयं करता है।

(2) आर्थिक लगान (Economic Rent)— ‘आर्थिक लगान’ कुल लगान का एक अंग होता है जो भूस्वामी को भूमि के उपयोग के बदले में दिया जाता है। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री रिकार्डों के मतानुसार अधि-सीमान्त भूमि (Super-Marginal Land) तथा सीमान्त भूमि (Marginal Land) की उपज का अन्तर ही लगान है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचार में केवल भूमि को ही नहीं बल्कि उत्पादन के उन उपादानों को भी लगान प्राप्त हो सकता है जिनका सम्भरण पूर्णतया मूल्य सापेक्ष (perfectly elastic supply) नहीं होता।

आर्थिक लगान का अनुमान कुल लगान में से भूमि के सुधार के लिए लगाई गई पूंजी का व्याज, भूमि के प्रबन्ध की मजदूरी तथा जोखिम के पुरस्कार को घटाकर लगाया जाता है। समीकरण (Equation) के रूप में इसे निम्न प्रकार लिखा जा सकता है-

आर्थिक लगान = कुल लगान (भूमि के सुधार हेतु लगाई गई पूजी का ब्याज) + भूमि के प्रबन्ध की मजदूरी + जोखिम का पुरस्कार)

(3) प्रसंविदा या ठेके का लगान (Contract Rent)— ‘ठेके का लगान’ वह लगान है जो भूस्वामी तथा काश्तकार के पारस्परिक समझौते के द्वारा निश्चित होता है। चूँकि ठेका लगान दोनों पक्षों की सौदा करने की शक्ति पर निर्भर करता है, इसलिए यह आर्थिक लगान से कम, अधिक या उसके बराबर हो सकता है।

ठेके का लगान भूमि की माँग तथा पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों (relative forces) द्वारा निर्धारित होता है–(i) जब भूमि का सम्मरण कम किन्तु उसकी माँग बहुत अधिक होती है तथा भूमि प्राप्त करने के लिए, काश्तकारों में अत्यधिक प्रतियोगिता होती है तब भूस्वामी काश्तकारों से आर्थिक लगान से कहीं अधिक लगान वसूल कर लेता है जिसे ‘अत्यधिक लगान’ (rack renting) कहते हैं। (ii) जब भूमि की माँग तो कम किन्तु उसका सम्भरण अधिक होता है तो ऐसी स्थिति में काश्तकार भूस्वामियों से ऐसा लगान तय करवाने में सफल हो सकते हैं जो आर्थिक लगान से कम हो। (iii) जब भूमि की माँग तथा सम्भरण एक-दूसरे के बराबर होते हैं तथा काश्तकारों और भूस्वामियों में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होती है तब ठेके का लगान प्रायः आर्थिक लगान के बराबर होता है।

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Anjali Yadav

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