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विस्तृत खेती तथा सघन खेती (Extensive Cultivation and Intensive Cultivation)
भारत जैसे प्राचीन देश में जहाँ एक ओर तो भूमि की मात्रा सीमित है तथा दूसरी और जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती जाती है वहाँ कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए गहन खेती को ही अपनाया जा सकता है।
– एस० के० मेहता
कृषि उत्पादन को मुख्यतया दो विधियों द्वारा बढ़ाया जा सकता है—(1) विस्तृत खेती द्वारा अथवा (2) गहन या सघन खेती द्वारा नीचे दोनों विधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
विस्तृत खेती (Extensive Cultivation)
अर्थ (Meaning)- ‘विस्तृत खेती से अभिप्राय खेती करने की उस विधि से है जिसके अन्तर्गत कृषि उपज को बढ़ाने के लिए श्रम तथा पूँजी की मात्रा में वृद्धि करने के बजाय अतिरिक्त भूमि पर खेती की जाती है, अर्थात् भूमि के क्षेत्र या आकार में वृद्धि कर दी जाती है। चूंकि खेती की इस विधि में श्रम तथा पूंजी की अपेक्षा भूमि का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है इसलिए इसे भू-प्रधान खेती भी कहते हैं। उदाहरणार्थ, 4 क्विटल गेहूं उत्पन्न करने के लिए किसान 2 एकड़ भूमि पर खेती करता है। 8 क्विंटल गेहूं उत्पन्न करने के लिए यदि वह 4 एकड़ भूमि पर खेती करता है तो इसे ‘विस्तृत खेती’ कहेंगे।
विशेषताएँ (Characteristics)–विस्तृत खेती के प्रमुख लक्षण निम्नांकित हैं-
(1) विस्तृत खेती में श्रम तथा पूंजी की अपेक्षा भूमि का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है।
(2) ऐसी खेती मुख्यतः नए बसे देशों में की जाती है जहाँ पर श्रम की कमी तथा भूमि की
अधिकता होती है।
(3) इस प्रकार की खेती अल्प-विकसित तथा निर्धन देशों में भी की जाती है, क्योंकि वहाँ पूँजी की कमी होती है।
(4) श्रम तथा पूँजी का कम उपयोग किए जाने के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है।
(5) भूमि का परिमाण सीमित होने के कारण विस्तृत खेती अवाघ गति से नहीं की जा सकती।
सघन या गहन खेती (Intensive Cultivation)
अर्थ (Meaning)-‘सघन या गहन खेती’ से तात्पर्य खेती करने की ऐसी विधि से है जिसमें कृषि उपज को बढ़ाने के लिये श्रम व पूंजी की मात्राओं में वृद्धि करके भूमि के निश्चित टुकड़े (भूखण्ड) से अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाता से है। दूसरे शब्दों में, जब किसान उपज बढ़ाने के लिए भूमि के आकार में वृद्धि नहीं करता बल्कि निश्चित भूखण्ड पर अधिकाधिक मात्रा में श्रम व पूंजी का प्रयोग करता है तो खेती के ऐसे ढंग को सघन खेती या श्रम प्रधान खेती कहते हैं। उपलब्ध भूमि पर अच्छी खाद, उन्नत बीज आदि का प्रयोग किया जाता है। बदल-बदल कर फसलें बोई जाती हैं तथा आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है।
गहन खेती के विभिन्न ढंग-गहन खेती करने के लिए निम्न उपायों में से किसी भी उपाय को अपनाया जा सकता है (1) श्रम का अधिक प्रयोग फसल बोने, जमीन जोतने, फसल काटने तथा अन्य कृषि कार्यों को करने के लिये अधिकाधिक मात्रा में श्रम का प्रयोग किया जा सकता है। (2) अधिक पूंजी का प्रयोग-कृषि कार्यों में अधिकाधिक पूँजी का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे अच्छे बीज, खाद, कृषि के आधुनिक यन्त्र आदि का प्रयोग इन सबके प्रयोग से प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ता है। (3) अच्छा संगठन–सघन खेती के अन्तर्गत अच्छा संगठन भी आता है, जैसे किसान द्वारा एक फसल के बजाय दो-तीन या इससे भी अधिक फसलों का उत्पादन।
खेती करते समय सघन खेती के प्रायः उक्त तीनों ही उपायों का प्रयोग किया जाता है। किन्तु किसी देश के किसान भूमि, श्रम तथा पूंजी में से किसका अधिक प्रयोग करेंगे यह उस देश में इन उपादानों की पूर्ति या सम्भरण (supply) पर निर्भर करता है।
विशेषताएँ (Characteristics)—सघन या गहन खेती की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं-
(1) इसमें भूमि के बजाय श्रम और पूंजी का अधिक प्रयोग किया जाता है।
(2) इस प्रकार की खेती से प्रति हेक्टेयर अधिक उपज प्राप्त होती है।
(3) ऐसी खेती पनी जनसंख्या वाले देशों के लिये उपयुक्त होती है।
(4) जिन देशों में भूमि कम तथा महँगी होती है वहाँ खेती की इस विधि का अधिक प्रयोग किया जाता है।
(5) इस प्रकार की खेती में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे फसलों का हेर-फेर, आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग आदि। इसलिए यह खेती विकसित देशों में अधिक पायी जाती है।
भारत में गहन खेती के प्रसार में बाधाएँ-हमारे देश में गहन खेती के अपनाने के मार्ग में निम्न कठिनाइयाँ अनुभव की जा रही हैं
(1) पूँजी की कमी- गहन खेती के लिए बड़ी मात्रा में पूजी की आवश्यकता पड़ती है किन्तु भारतीय किसानों के पास पूंजी की कमी है।
(2) सिंचाई के साधनों का अभाव- भारतीय कृषि सदैव वर्षा पर निर्भर रही है। वर्षा की अनिश्चितता के कारण गहन खेती को अपनाना सम्भव नहीं होता। फिर अभी तक हमारे देश में सिंचाई के साधनों का समुचित विकास नहीं किया जा सका है।
(3) खेतों का छोटा व दूर-दूर फैले होना- इस कारण भारतीय कृषि का यन्त्रीकरण नहीं किया जा सका है।
(4) अशिक्षा – भारतीय कृषक अशिक्षित तथा रूढ़िवादी हैं जो कृषि की नई-नई विधियों से अनभिज्ञ हैं।
क्या विस्तृत खेती बड़े खेतों तथा सघन खेती छोटे खेतों में की जाती है ?
यह सोचना गलत है कि विस्तृत खेती बड़े खेतों में की जाती है तथा सघन खेती को केवल छोटे खेतों में अपनाया जाता है। विस्तृत खेती तथा सघन खेती में अन्तर का आधार खेतों का आकार नहीं बल्कि खेती करने की विधि है। सघन खेती में तो प्रति हेक्टेयर श्रम तथा पूंजी का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है और खेती आधुनिक यन्त्रों तथा वैज्ञानिक विधियों द्वारा की जाती है। इसके विपरीत, विस्तृत खेती में श्रम तथा पूंजी के स्थान पर भूमि का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
सघन खेती बड़े खेतों पर भी की जा सकती है और छोटे खेतों पर भी संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस आदि देशों में गहन खेती की जाती है। इन देशों में खेत बहुत लम्बे-लम्बे होते हैं, यहाँ तक कि कई बार तो स्खेत मीलों में फैले हुए होते हैं। इन खेतों पर आधुनिक मशीनों, वैज्ञानिक ढंगों, अच्छे बीजों तथा खाद द्वारा खेती की जाती है। इसके विपरीत, भारत में खेतों का आकार प्रायः छोटा होता है तथा उन पर पुराने कृषि यन्त्रों तथा डंगों से खेती की जाती है। उत्तम बीजों तथा रासायनिक खाद का प्रयोग कम किया जाता है। ट्रैक्टर के स्थान पर पशुओं को काम में लाया जाता है। इस प्रकार भारत में सामान्यतः सघन खेती के बजाय विस्तृत खेती की जाती है।
भारत के लिए खेती की कौन-सी विधि उपयुक्त है?
प्रश्न उठता है विस्तृत खेती तथा गहन खेती में से भारत की खेती की कौन-सी विधि को अपनाना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर किसी देश में उपलब्ध कृषि-साधनों पर निर्भर करता है। यदि किसी देश में भूमि की बहुतायत हो तथा भूमि खाली पड़ी हुई हो तो वहाँ विस्तृत खेती उपयुक्त होती है। इसके विपरीत, यदि यहाँ भूमि कम मात्रा में तथा श्रम व पूंजी अधिक मात्रा में उपलब्ध है तो फिर गहन खेती को अपनाना उचित होता है।
भारत में भूमि के अधिकांश क्षेत्रफल पर विस्तृत खेटी की जा रही है। किन्तु निम्न कारणों से देश की वर्तमान परिस्थितियों में सघन खेती को अपनाना कहीं अधिक उपयुक्त होगा-
(1) भूमि की सीमित पूर्ति- भारत में भूमि की अधिकता नहीं है। भूमि की बहुतायत तो प्रायः नए-नए बसे देशों में होती है। भारत तो एक प्राचीन देश है जिसकी संस्कृति अति प्राचीन है। फिर देश में जनाधिक्य की स्थिति के विद्यमान होने के कारण गत वर्षों में खेतों का आकार छोटा होता गया है।
(2) खाद्यान्न की मांग में निरन्तर वृद्धि- देश को जनसंख्या में पिछले वर्षों में तीव्र गति से वृद्धि होते रहने के कारण खाद्यान्न की माँग निरन्तर बढ़ती गई है। परिणामतः देश के कृषि उत्पादन को बढ़ाने की बड़ी आवश्यकता है। विस्तृत खेती का क्षेत्र सीमित होने के कारण हमें कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सघन खेती का सहारा लेना चाहिए। भारत में प्रति हेक्टेयर निवेश (investment) बहुत कम है जिस कारण कृषि उत्पादन भी बहुत कम है। खेतों में श्रम तथा पूँजी का अधिकाधिक मात्रा में निवेश करके हम कृषि उत्पादन में यथोचित मात्रा में वृद्धि कर सकते हैं।
(3) बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिये आवश्यक- भारत में श्रम की अधिकता के कारण बेरोजगारी को गम्भीर समस्या विद्यमान है जिसके समाधान के लिए विस्तृत खेती के बजाय गहन खेती को अपनाना चाहिए।
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