व्यावसायिक पत्र प्रमुख अंग बताइये तथा व्यावसायिक पत्रों के प्रकार बताइये।
व्यावसायिक- व्यावहारिक पत्र का प्रारूप- व्यावसायिक व्यावहारिक पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं-
(अ) शीर्षक – इसमें पत्रलेखक अथवा प्रतिष्ठान का नाम, व्यवसाय की प्रकृति, पत्राचार का पता, तार का पता, दूरभाष नम्बर, पत्र संख्या आदि की सूचना रहती है। प्रायः लोग बहुत ही सुन्दर ढंग से इन सारे तथ्यों को पत्र लेखन हेत प्रयोजनीय कागजों पर मुद्रित करा लेते हैं, जिससे पत्र काफी सजीव एवं आकर्षक हो उठता है।
(ब) पत्र लेखन की तिथि – यद्यपि यह शीर्षक का ही अभिन्न अंग है तथापि आजकल इसे स्वतन्त्र अस्तित्व प्रदान कर दिया गया है। तिथि अवश्य लिखना चाहिए। पत्र में तिथि लिखने का सही ढंग है- 5 सितम्बर, 1995 सितम्बर 5, 1995 1
(स) पत्र प्राप्तांक का अभ्यन्तरिक पता- पत्र के भीतर प्राप्तांक का नाम एवं पता देने पर किसी भी समय यह ज्ञात हो जाता है कि पत्र किसने लिखा था ? वैधानिक कार्यवाही की आवश्यकता पड़ने पर यह अकाट्य साक्षी का कार्य सम्पादन करता है। पत्र प्राप्तांक के नाम के पूर्व यदि पत्र प्राप्तांक व्यक्ति हो तो श्री/श्रीमती/कुमारी सुश्री लिखे, यदि पत्र प्रतिष्ठान के नाम हो तो केवल नाम लिखें। सरकारी गैरसरकारी पद को प्रेषित पत्र में मात्र पदनाम लिखिए, पद धारण के नाम नहीं लिखे जाते।
(द) अभिवादनयुक्त सम्बोधन- प्राप्तक के प्रति शिष्टाचार की दृष्टि से सम्मान तथा स्नेह सूचक सम्बोधन से पत्र का आरम्भ करना आवश्यक होता है। अभिवादनयुक्त शब्द का चयन प्राप्तक के पद, वय अथवा सम्बन्ध पर करना चाहिए। सामान्यतः व्यक्तियों के प्रति प्रिय महोदय, प्रिय महोदया, महाशय, प्रिय महाशया, महोदय, महोदया आदि का प्रयोग किया जाता है। आत्मजन के लिए ‘मेरे प्रिय जी’ की तथा प्रतिष्ठानों के लिए महोदय/महोदया, महाशय/महाशया आदि शब्दों का चयन (प्रयोग) किया जाता है।
(य) विषय संकेत- अभिवादन के पश्चात् विषय की ओर संकेत करते हुए शीर्षक देना चाहिए। आवश्यकता हो तो उसके ठीक नीचे संदर्भ संकेत भी दिया जाना चाहिए। क विशेषकर पत्रोत्तर में संदर्भ संकेत अवश्य देना चाहिए जिसमें प्राप्तक के पूर्व पत्र की संख्या एवं तिथि का उल्लेख होता है।
(र) विषय सामग्री- यह पत्र का प्रधान अंग है। इसमें पत्र लेखक अपनी बात स्पष्ट करता है। विषय सामग्री की रचना पूर्व उल्लेखित गुणों, जैसे – प्रभावशीलता, विनम्रता, संक्षिप्तता, पूर्णता, स्पष्टता, शुद्धता, सम्बद्धता, सरलता, मौलिकता और स्वच्छता से युक्त हो तो पत्र प्रभावी एवं सफल बन जाता है।
(ल) अभिवादानात्मक – समाप्ति पत्र की समाप्ति पर पत्र पाठक से विदा माँगते समय एक बार धन्यवाद देकर उसके प्रति शिष्टाचार प्रदर्शित करना चाहिए। इसके लिए अन्त में भवदीय, आपका ही, आपका विश्वस्त, आपका शुभचिन्तक, कृपाकांक्षी आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
( व ) हस्ताक्षर – यह एक वैधानिक महत्व की क्रिया है। अन्तिम अभिवादानात्मक शब्दों के नीचे पत्र लेखक के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षरकर्ता के पद के अनुसार ही पत्र के दायित्व का मूल्यांकन होता है।
(स) संलग्निका- पत्र के साथ विषय से सम्बन्धित पत्र की संख्या पत्र के नीचे बाई ओर लिखी जाती है।
(घ) पुनश्च – पत्र पूर्ण हो जाने के बाद कोई नई सूचना देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है, परन्तु सफल पत्र में इसका प्रयोग कम ही होता है। सूचना के बाद हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं।
(श) लिपिक के हस्ताक्षर- टंकक या लिपिक के हस्ताक्षर अथवा संक्षिप्त नामांकन की परिपाटी इधर चल पनी है। इससे पता चल पाता है कि पत्र किसने टंकित किया है? ये हस्ताक्षर बाई ओर हाशिए के निकट अंकित होते हैं।
ऊपर व्यापारिक पत्र के जो प्रकार गिनाये गये हैं उनमें से कुछ के उदाहरण पत्र के रूप में दिये जा रहे हैं-
Contents
(1) व्यापार परिपत्र
लक्ष्मी पुस्तक भण्डार, राजापुर इलाहाबाद
प्रिय महोदय/महोदया
मैंने नवोदय पुस्तक भण्डार नाम से एक पुस्तक विक्रय केन्द्र की स्थापना की है। जहाँ से आप विविध विषयों पर हिन्दी और अंग्रेजी की नवीनतम पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं। केन्द्र पर काउण्टर सेल की व्यवस्था है और आर्डर प्राप्त होने पर थोक की आपूर्ति भी प्राथमिकता के आधार पर की जाती है।
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भवदीय कृपाकांक्षी
भगवानदास।
(2) साख परिपत्र
मेसर्स राजकुमार महेश्वरी
मुगल कार्पेट्स, संत रविदास नगर (भदोही)
महोदय,
हमारे एजेन्ट श्री शिवबालक हमारे कारबार के सिलसिले में निकल रहे हैं। यदि इन्हें धन की जरूरत हो तो कृपया पाँच हजार की सीमा तक इनकी सहायता कर दीजिए और इनसे रसीद (दो प्रतियों में) प्राप्त कर लीजिए। रसीद की प्राप्ति पर यह राशि खर्च सहित हम आप को तुरन्त भेज देंगे। श्री शिवबालक को अन्य कोई सहायता चाहिए तो उनकी मदद के लिए हम आपके आभारी होंगे। उनका हस्ताक्षर नीचे प्रमाणित है ।
भवदीय,
रामकुमार पार्टनर
शिवबालक
(फर्म की मोहर)
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