शैक्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया चरणों पर प्रकाश डालिए।
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मूल्यांकन प्रक्रिया (EVALUATION PROCESS)
मूल्यांकन प्रक्रिया में तीन मुख्य चरण सन्निहित है- उद्देश्य, अधिगम अनुभव तथा मूल्यांकन के उपकरण। कुछ लोग व्यवहार परिवर्तन को ही मूल्यांकन का तृतीय चरण मानते हैं। ये तीनों चरण एक-दूसरे पर पारस्परिक रूप से निर्भर करते हैं।
मूल्यांकन प्रक्रिया के चरण (STEPS OFEVALUATION PROCESS)
उपर्युक्त तीनों बिन्दु मूल्यांकन के अलग-अलग चरणों को इंगित करते हैं-
(i) उद्देश्य का निर्धारण एवं परिभाषीकरण (Identifying and defining objectives) बालक की सामाजिक स्थिति, विषय-वस्तु (Contents) की प्रकृति तथा शैक्षिक स्तर को ध्यान में रखकर उद्देश्य को निर्धारित करना चाहिये। व्यवहार परिवर्तन के रूप में उद्देश्य को सफल रूप से तभी निर्धारित किया जा सकता है जब उपर्युक्त तथ्यों को भली प्रकार समझ लिया जाये। मूल्यांकनकर्ता को यह स्पष्ट रूप में ज्ञात होना चाहिये कि व्यवहार परिवर्तन किस रूप में और किस सीमा तक लाना है। इससे यह जानने में सरलता होगी कि व्यवहार में वांछित परिवर्तन आया है या नहीं। अतः उद्देश्यों के भली प्रकार पहचान लेने और निर्धारित कर लेने पर ही मूल्यांकन की ओर अग्रसर होना चाहिये। उद्देश्यों को परिभाषित करने में विषय वस्तु और व्यवहार परिवर्तन दोनों को ही समान रूप से महत्वपूर्ण मानना आवश्यक है।
(ii) अधिगम- अनुभव की योजना बनाना (Planning the learning experiences) एक बार उद्देश्यों को पहचान लेने और उनका निर्धारण कर लेने के पश्चात् अधिगम-अनुभव की ओर ध्यान देना चाहिये। अधिगम- अनुभव से तात्पर्य एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण करना है जिसमें बालक वांछित किया कर सके, अर्थात् वह उद्देश्यों के अनुरूप प्रतिक्रियाएँ व्यक्त कर सके।
एक उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनेक अनुभवों की योजना तैयार करनी पड़ती है। योजना निर्माण के समय बालक की आयु, लिंग, परिवेश, सामाजिक पृष्ठभूमि आदि प्रासंगिक चरों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये। इन्हीं के आधार पर शिक्षण सामग्री, शिक्षण विधि, साधन व माध्यम की व्यवस्था की जानी चाहिये।
(iii) विभिन्न उपकरणों के माध्यम से साक्षियाँ प्रदान करना (Providing evidence through various tools of evaluation) उद्देश्य एवं अधिगम- अनुभव की योजना तैयार हो जाने पर मूल्यांकनकर्ता को उपयुक्त उपकरण के चयन अथवा विकास की ओर प्रयत्न करना चाहिये । इन उपकरणों को प्रयोग कर साक्षियाँ एकत्रित करें। इन साक्षियों के आधार पर व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन करना चाहिये।
(iv) व्यवहार परिवर्तन के क्षेत्र (Areas of change in behaviour)- बालक के जीवन में आने वाले व्यवहार परिवर्तन, मूल्यांकन के फलस्वरूप ही होते हैं। मूल्यांकन इन व्यवहार परिवर्तनों के लिये एक माध्यम का कार्य करता है। व्यवहार परिवर्तन को मुख्यत: तीन पक्षों में विभाजित किया जाता है
(a) ज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive aspect)
यह पक्ष ज्ञान के उद्देश्य पर महत्व देता है। Bloom ने ज्ञानात्मक पक्ष की विवेचना करते हुए निम्न प्रकार के ज्ञान को इस पक्ष में सन्निहित किया है
- विशेष तथ्यों का ज्ञान,
- विशिष्ट तथ्यों को प्राप्त करने की विधियों का ज्ञान,
- मान्यताओं एवं परम्पराओं का ज्ञान,
- मापदण्डों का ज्ञान,
- सिद्धान्तों और सामान्यीकरण का ज्ञान,
- घटनाओं का ज्ञान,
- विधियों और प्रणालियों का ज्ञान, इस पक्ष के छः स्तर होते हैं- प्रत्यावाहन तथा अभिज्ञान, बोध, प्रयोग-विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन ।
(b) भावात्मक पक्ष (Affective aspect)
- ग्रहण करना
- प्रतिक्रिया करना
- अनुमूल्यन
- विचारण
- व्यवस्थापन
- चरित्रीकरण।
(c) कियात्मक पक्ष (Creative aspect)
यह पक्ष मुख्यतः माँसपेशियों एवं आंगिक गतियों की आवश्यकता से सम्बन्धित होता है। इसे शिक्षण प्रक्रिया की दृष्टि से छः स्तरों में बाँटा जा सकता है-
- उत्तेजना
- क्रियान्वयन
- नियन्त्रण
- समायोजन
- स्वभावीकरण
- कौशल।
व्यवहार के इन तीनों पक्षों में परस्पर समन्वय रहता है। बालक के व्यवहार का मूल्यांकन इन तीनों पक्षों के समन्वित रूप में या अलग-अलग किया जाता है।
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