श्रम की कार्यकुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting Efficiency of Labour)
श्रम की कार्यकुशलता की अनेक घटक प्रभावित करते हैं। इस सम्बन्ध में पेन्सन (Penson) ने लिखा है, “श्रम की कार्यकुशलता कुछ मालिक पर तथा कुछ श्रमिक पर, कुछ संगठन पर तथा कुछ व्यक्तिगत प्रयत्नों पर, कुछ कार्य करने के यन्त्रों तथा मशीनों पर, कुछ अंश तक श्रमिक की अपनी दक्षता तथा परिश्रम पर निर्भर करती है। “
अध्ययन की सुविधा के लिए बम की कार्यकुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों (कारकों) को पाँच वर्गों में विभक्त किया जा सकता है—(1) श्रमिक के व्यक्तिगत गुण, (2) कार्य करने की दशाएँ (3) देश की परिस्थितियां (4) प्रबन्ध की योग्यता, तथा (5) अन्य तत्व|
(I) श्रमिक के व्यक्तिगत गुण (Personal Qualities of Labourer) — श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उनके नि व्यक्तिगत गुणों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है-
(1) जातीय गुण (Racial Qualities) प्रायः श्रमिक की कार्यकुशलता पर उसकी जाति का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सामान्यतया प्रत्येक जाति की अपनी विशिष्ट संस्कृति, सभ्यता तथा परम्पराएँ होती हैं। कोई श्रमिक जिस जाति में जन्म लेता है वह उस जाति के गुणों को जन्म से ही ग्रहण कर लेता है। उदाहरणार्थ, बंगालियों तथा मद्रासियों की अपेक्षा पंजाबी, हरियाणवी तथा राजस्थानी अधिक स्वस्थ तथा बलवान होते हैं जिस कारण ये अच्छे सैनिक बनते हैं। इसके विपरीत, बंगाली तथा मद्रासी मानसिक श्रम में दक्ष होते हैं।
(2) पैतृक गुण (Hereditary Qualities) प्रायः व्यक्ति अपने पूर्वजों तथा माता-पिता के गुण-दीप ग्रहण कर लेते हैं। देखा गया है कि स्वस्थ, योग्य तथा शिक्षित माता-पिता के बच्चे भी प्रायः स्वस्थ, योग्य तथा शिक्षित होते हैं। वैश्य परिवार के बच्चे प्रायः व्यवसाय में दक्ष होते हैं। वे अपने पैतृक व्यवसाय को सहजता से सीखकर उसमें पारंगत हो जाते हैं। पैतृक गुणों को ग्रहण करने के कारण ही स्विट्जरलैण्ड में घड़ी बनाने तथा जापान में खिलौने बनाने वाले आज भी विश्वविख्यात हैं।
(3) नैतिक गुण (Moral Qualities) नैतिक गुणों के अन्तर्गत श्रमिकों की कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, आत्म-विश्वास, दृढ़ता सुचरित्रता आदि गुणों को शामिल किया जाता है। जिन श्रमिकों में इन गुणों की कमी होती है वे कम कार्यकुशल होते हैं, जैसे कामचोर, लापरवाह तथा बेईमान श्रमिक|
(4) सामान्य बुद्धि (General Intelligence) – श्रमिक की कार्यकुशलता पर उसकी सामान्य बुद्धि के स्तर का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिन श्रमिकों में अपेक्षाकृत अधिक बुद्धि होती है वे सामान्यतया अधिक कार्यकुशल होते हैं, क्योंकि वे अपने काम के सम्बन्ध में जल्दी से ठीक-ठीक निर्णय ले लेते हैं, अपने काम को कम समय में पूरा कर लेते हैं, कम से कम हानि करते हैं तथा मशीनों का ठीक प्रकार से संचालन करते हैं।
(5) सामान्य व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा (General Occupational and Technical Education) – (1) सामान्य शिक्षा से श्रमिक की मानसिक शक्तियों का विकास होता है जिससे वह उत्पादन विधियों को सरलता से समझ जाता है। एक शिक्षित श्रमिक अपेक्षाकृत योग्य व चतुर होता है तथा व्यवसाय की गुप्त व कठिन बातों को आसानी से समझ लेता है। (ii) तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर लेने पर श्रमिक जटिल उत्पादन विधियों को समझने योग्य तथा जटिल मशीनों का संचालन करने योग्य हो जाता है। (iii) व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा प्राप्त श्रमिक तो नई-नई उत्पादन विधियों तथा मशीनों के आविष्कार में सहायक सिद्ध होता है।
(6) स्वास्थ्य तथा रहन-सहन का स्तर (Health and Standard of Living) श्रमिक की कार्यकुशलता पर उसके स्वास्थ्य का गहरा प्रभाव पड़ता है। स्वस्य श्रमिक अपेक्षाकृत अधिक कार्यकुशल होते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त पौष्टिक भोजन, स्वच्छ व हवादार मकान तथा पर्याप्त मात्रा में वस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है। पीष्टिक भोजन के अभाव में वह दुर्बल तथा रोगग्रस्त होगा जिस कारण उसकी कार्यक्षमता कम होगी। भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता के कम होने का एक प्रमुख कारण उनके रहन-सहन के स्तर का निम्न होना है। अधिकांश भारतीय श्रमिकों को पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है।
(II) कार्य करने की दशाएँ (Working Conditions) श्रमिकों की कार्यक्षमता कार्य करने की दशाओं से भी बहुत अधिक प्रभावित होती है। कार्य-दशाओं में मुख्य निम्न बातें आती है.
(1) कार्य करने की दशाएँ (Working Conditions)- जिस स्थान पर श्रमिक कार्य करता है यदि वह स्वच्छ, साफ-सुथरा तथा हवादार है तो इससे श्रमिक में काम के प्रति रुचि बढ़ जायेंगी जिससे उसकी कार्यकुशलता में वृद्धि हो जायेगी। इसके विपरीत, यदि कार्य करने का स्थान गन्दा तथा अन्धकारपूर्ण है तो श्रमिक ऐसे स्थान पर घुटन अनुभव करेगा तथा अपने कार्य को वह मन लगाकर नहीं कर पायेगा जिससे उसकी कार्यक्षमता कम हो जायेगी।
(2) कार्य स्थान पर सुरक्षा व्यवस्था (Safety Measures at Work Place) जिन कारखानों में खतरनाक मशीनों तथा दुर्घटनाओं से श्रमिकों के बचाव तथा चिकित्सा की समुचित व्यवस्था कर ली जाती है वहाँ श्रमिक निःसंकोच कार्य करते हैं जिस कारण उनकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
(3) कार्य का स्वभाव (Nature of Work) कुछ कार्य नीरस होते हैं जिन्हें बार-बार करके श्रमिक ऊब जाता है। परिणामतः ऐसे कार्य में श्रमिक की कार्यकुशलता घट जाती है। इसके विपरीत, रुचिकर कार्य को श्रमिक मन लगाकर करता है जिससे उसको कार्यक्षमता बढ़ जाती है। कार्य की नीरसता को दूर करने के लिए आजकल कारखानों में खेल-कूद तथा मनोरंजन की व्यवस्था की जाने लगी है।
(4) कार्य के घण्टे तथा उनका वितरण (Working Hours and their Distribution)-जब श्रमिकों से निरन्तर तथा अधिक समय तक कार्य करवाया जाता है तो ये अधिक थक जाते हैं जिस कारण उनकी कार्यकुशलता घट जाती है। किन्तु जब काम के घण्टे कम होते हैं तथा कार्य अवधि के दौरान उन्हें कुछ विश्राम भी दिया जाता है तो उनकी थकावट दूर हो जाती है तथा वे नए उत्साह तथा शक्ति से पुनः अपने कार्य में लग जाते हैं जिससे उनकी कार्यकुशलता बनी रहती है।
(5) भविष्य में उन्नति की आशा (Better Future Prospects) यदि श्रमिक को इस बात की आशा होती है कि मात्रा में तथा अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन करने पर भविष्य में उसकी पदोन्नति हो जाएगी, तो फिर वह वर्तमान में परिश्रम से कार्य करेगा जिस कारण उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाएगी। इसके विपरीत, जब श्रमिकों को भविष्य में किसी प्रकार की उन्नति की कोई आशा नहीं होती तब अपने कार्य के प्रति उनमें कोई उत्साह नहीं रह जाता जिस कारण उनकी कार्यक्षमता घट जाती है।
(6) कार्य में स्वतन्त्रता (Freedom of Work) जब श्रमिक की अपने कार्य में स्वतन्त्रता होती है, मालिक का उसमें विश्वास होता है तथा श्रमिक को अकारण टोका नहीं जाता तब श्रमिक अपना कार्य मन लगाकर मेहनत, आत्मविश्वास तथा जिम्मेदारी के साथ करता है जिससे उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। किन्तु जब श्रमिक के कार्य पर अनावश्यक अंकुश लगाया जाता है तथा उसके कार्य में जब-तब दोष निकाले जाते हैं तो इससे श्रमिक का आत्मविश्वास घटता है जिसका उसकी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(7) पर्याप्त तथा नियमित मजदूरी (Sufficient and Regular Wages)-जिन श्रमिकों को निश्चित समय पर पर्याप्त मजदूरी मिल जाती है ये अधिक कार्यकुशल होते हैं क्योंकि-(1) वे अपना कार्य मन लगाकर करते हैं, तथा (ii) उनका रहन-सहन का स्तर उन्नत हो जाता है। जिन श्रमिकों को समय पर मजदूरी नहीं मिलती तथा उनकी मजदूरी में से अनुचित कटीतियाँ (deductions) काट ली जाती हैं वे असन्तुष्ट रहते हैं जिस कारण उनकी कुशलता कम होती है।
(8) श्रम विभाजन (Division of Labour) – श्रम विभाजन से श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है क्योंकि एक ही कार्य को बार-बार करने से श्रमिक उसमें निपुण हो जाते हैं। यदि कोई श्रमिक किसी उत्पादन प्रक्रिया के सभी कार्यों को स्वयं करता है तो उसकी कार्यकुशलता अपेक्षाकृत कम होगी।
(9) मालिकों का व्यवहार (Behaviour of Employers) – यदि मालिक श्रमिकों से अच्छा व्यवहार करते हैं, उनकी कठिनाइयों को समझने का प्रयास करते हैं तथा उनके कल्याण में दिलचस्पी लेते हैं तो इससे श्रमिक अपने कार्य को लगन तथा परिश्रम से करते हैं जिससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
(10) श्रमिक का प्रवासी स्वभाव (Migratory Character) यदि श्रमिक, जल्दी-जल्दी एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय को तथा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते जाते रहते हैं तो इससे उनकी कार्यक्षमता घट जाती है। जल्दी-जल्दी व्यवसाय बदलने के कारण वे किसी भी कार्य में निपुण नहीं हो पाते भारत में श्रमिक अपनो प्रवासी प्रवृत्ति के कारण कुछ समय कारखानों में कार्य करने के बाद पुनः अपने गाँवों को चले जाते हैं। इसका उनकी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(III) देश की परिस्थितियाँ (Circumstances of the Country)-किसी देश की परिस्थितियाँ भी श्रमिक की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। किसी देश की परिस्थितियों में निम्न तत्त्वों को शामिल किया जाता है—
(1) जलवायु (Climate)– देश की जलवायु का यहाँ के श्रमिकों की कार्यक्षमता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक गर्म वा अत्यधिक ठण्डी जलवायु का कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक गर्म जलवायु आलस्य तथा जल्दी से थकावट से जाती है जिस कारण गर्म देशों के लोगों की कार्यक्षमता कम होती है। इसी प्रकार अत्यधिक सर्द जलवायु में शरीर के ठिठुरने के कारण कार्य करना कठिन होता है। अतः श्रम की कार्यक्षमता के लिए समशीतोष्ण जलवायु (semi-tropical climate) सर्वोत्तम होती है। इसी कारण इंग्लैण्ड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के श्रमिक अधिक कार्यकुशल होते हैं।
(2) सामाजिक दशाएं (Social conditions) सामाजिक दशाओं में जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा आदि को सम्मिलित किया जाता है। जाति-प्रथा के कारण मनुष्य अपने व्यवसाय का चुनाव अपनी रुचि तथा योग्यता के अनुसार नहीं कर पाता बल्कि वह अपनी जाति के व्यवसाय को ही अपना लेता है। इसका उसकी कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार संयुक्त परिवार-प्रथा भी कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। संयुक्त परिवार के कुछ सदस्य कमाते हैं जबकि दूसरे खाते हैं, अर्थात् कुछ सदस्य आलसी तथा निकम्मे हो जाते हैं। दहेज प्रथा के कारण श्रमिक निर्धनता तथा ऋणग्रस्तता का शिकार हो जाते हैं।
(3) राजनीतिक दशाएँ (Political Conditions)– (i) देश में शान्ति व सुरक्षा—जिस देश में राजनीतिक स्थिरता तथा शान्ति की दशाएँ होती हैं यहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसके विपरीत, जिन देशों में राजनैतिक अस्थिरता, विदेशी आक्रमणों से असुरक्षा, औद्योगिक झगड़े आदि की स्थिति पाई जाती है वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता कम होती है। (ii) राजनीतिक स्वतन्त्रता-एक गुलाम देश के श्रमिकों की क्षमता भी कम होती है क्योंकि उनका नैतिक पतन हो जाता है तथा उनमें उत्साह तथा आत्म-विश्वास की कमी के कारण उनकी कार्यक्षमता कम होती है।
(4) धार्मिक दृष्टिकोण (Religious Attitude)—श्रमिकों में व्याप्त रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास तथा भाग्यवादिता का उनकी कार्यक्षमता पर प्रतिकृत प्रभाव पड़ता है। कुछ व्यक्ति अपने कार्य का चुनाव अपनी रुचि तथा योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि अपनी धार्मिक भावनाओं से प्रभावित होकर कर लेते हैं। धार्मिक विचार श्रमिकों को भाग्यवादी बना देते हैं जिस कारण वे परिश्रम से काम नहीं करते तथा मान्य के भरोसे रहते हैं। इससे उनकी कार्यक्षमता घट जाती है।
(5) श्रम कानून तथा सामाजिक सुरक्षा (Labour Legislation and Social Security)–श्रमिकों के कार्य के घण्टे छुट्टियाँ मजदूरी का निर्धारण तथा उसका भुगतान, श्रम कल्याण, सामाजिक सुरक्षा आदि के सम्बन्ध में सरकार द्वारा जो कानून बनाए जाते हैं उनके पालन से श्रमिकों की कार्यक्षमता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। जिन देशों में सरकारें इस प्रकार के कानून नहीं बनाती यहाँ श्रमिकों का शोषण किया जाता है। श्रमिकों से काम तो अधिक घण्टे लिया जाता है किन्तु उन्हें उचित मजदूरी नहीं दी जाती। परिणामतः श्रमिकों की कार्यकुशलता घट जाती है।
जिस देश में श्रमिकों के लिए बेकारी, बीमारी दुर्घटना, वृद्धावस्था आदि की स्थिति में सुरक्षा की समुचित व्यवस्था होती है यहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है।
(6) श्रम संघ (Trade Union) श्रम संघों की स्थापना से श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। श्रम संघ (1) मजदूरों को शोषण से बचाते हैं, (ii) मजदूरी में वृद्धि कराने में सहायक होते हैं, (iii) श्रमिकों की काम करने तथा रहने की दशाओं में सुधार करवाते हैं, (iv) श्रम कल्याण सम्बन्धी सुविधाओं की व्यवस्था करते हैं इत्यादि। इन सभी बातों से श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
(IV) प्रबन्ध की योग्यता (Capability of Organisation)–श्रमिकों की कार्यक्षमता को प्रबन्ध की योग्यता तथा कुशलता भी प्रभावित करती है। योग्य प्रबन्धक काम को अमिकों के मध्य उनकी रुचि तथा योग्यता के अनुसार बॉटेगा, उत्पादन के उपादानों को अनुकूलतम अनुपात में लगाएगा, अमिकों की कठिनाइयों को समझेगा तथा उन्हें दूर करने का प्रयास करेगा और श्रमिकों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्रदान करेगा। दूसरे शब्दों में, एक कुशल, समझदार तथा दूरदर्शी प्रबन्धक श्रमिकों के साथ उदार, निष्पक्ष, सहयोगपूर्ण तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करके तथा उन्हें विभिन्न सुविधाएँ प्रदान करके उनमें कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, आत्म-विश्वास, लगन आदि गुण उत्पन्न करके उनकी कार्यक्षमता को बढ़ा सकता है। भारत में योग्य तथा अनुभवी प्रबन्धकों का अभाव रहा है।
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