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संगठन के महत्वपूर्ण सिद्धान्त | Important Principles of Organization in Hindi

संगठन के महत्वपूर्ण सिद्धान्त | Important Principles of Organization in Hindi
संगठन के महत्वपूर्ण सिद्धान्त | Important Principles of Organization in Hindi

संगठन के महत्वपूर्ण सिद्धान्त (Important Principles of Organization)

किसी भी संगठन की सफलता तथा असफलता इसके द्वारा परिणामों से ही ज्ञात की जा सकती है। यदि निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य प्राप्त होते हैं, तो संगठन मजबूत एवं सक्षम है और यदि वे प्राप्त नहीं होते, तो इसका अर्थ है कि संगठन में कहीं त्रुटि एवं कमी है। संगठन पर ही प्रबन्ध की प्रभावशीलता निर्भर करती है। संगठन की सफलता के लिए आवश्यक है कि उसकी रचना कुछ सिद्धान्तों के आधार पर की जाए।

अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से संगठन के सिद्धान्त को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) संगठन के परम्परागत सिद्धान्त (Traditional Principles of Organization)

संगठन के परम्परागत सिद्धान्तों से आशय उन सार्वभौमिक या आधारभूत सिद्धान्तों से है, जो लगभग प्रत्येक संगठन में सामान्य रूप से लागू होते हैं। इन सिद्धान्तों का प्रतिपादन टेलर, कर्नल लिण्डॉल उर्विक आदि ने किया है-

(1) व्याख्या का सिद्धान्त- प्रत्येक कर्मचारी के अधिकार, कर्त्तव्य तथा दायित्व की स्पष्ट रूप से व्याख्या होनी चाहिए ताकि वह कर्मचारी अधिक सुचारू रूप से कार्य कर सके।

(2) नियन्त्रण के क्षेत्र का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार किसी वरिष्ठ अधिकारी के आधीन, अधीनस्थों की संख्या केवल उतनी ही होनी चाहिए, जिनके कार्यों पर वह उचित नियन्त्रण स्थापित कर सके ।

(3) उद्देश्य का सिद्धान्त- संगठन के उद्देश्य का स्पष्ट निर्माण होना बहुत आवश्यक है तथा संगठन की समस्त क्रियाओं द्वारा निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति में योगदान दिया जाना चाहिए। कार्यों को करने में निश्चितता होनी चाहिए, न कि संदेह । प्रत्येक संगठन के वहीं उद्देश्य होना चाहिए, जो संस्था के हों।

(4) विशिष्टीकरण का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार, “संगठन में प्रत्येक व्यक्ति का कार्य किसी एकाकी प्रमुख कार्य के निष्पादन तक ही सीमित रहना चाहिए। “जो व्यक्ति जिस कार्य के लिए योग्य हो, उसे वही कार्य दिया जाना चाहिए, ताकि वह उसका विशेषज्ञ बन जाए।

(5) निरन्तरता का सिद्धान्त- संगठन एवं पुनर्संगठन की विधि निरन्तर चालू रहती है। अतः इसके लिए प्रत्येक इकाई में विशिष्ट व्यवस्थाओं का निर्माण होना चाहिए।

(6) अधिकार का सिद्धान्त- सम्बन्धित व्यक्ति को अपना उत्तरदायित्व निभाने के लिए आवश्यक अधिकार भी प्राप्त होने चाहिएँ, तभी वह अपना कार्य सम्पन्न करने में समर्थ होगा ।

(7) समन्वय का सिद्धान्त- संगठन का उद्देश्य किसी औद्योगिक एवं व्यावसायिक इकाई के विभिन्न कार्यों, साधनों तथा व्यक्तियों की क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना है।

(8) लोच का सिद्धान्त – संगठन का लोचपूर्ण होना आवश्यक है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसमें आवश्यक समायोजन करना सम्भव हो।

(II) संगठन के आधुनिक सिद्धान्त (Modern Principles of Organization)

आधुनिक प्रबन्ध विशेषज्ञों ने कुछ आधुनिक संगठन के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है, जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) कुशलता का सिद्धान्त- कूण्ट्ज एवं ओ डोनेल के अनुसार, “एक संगठन उस समय कुशल माना जाएगा, जबकि वह निर्धारित उद्देश्यों को न्यूनतम लागत पर प्राप्त करने में समर्थ हो।” एक कर्मचारी की दृष्टि से कुशल संगठन वह है, जो कि (i) कार्य के प्रति संतोष प्रदान करता है; (ii) स्पष्ट अधिकार रेखा निर्धारित करता हो; (iii) सुरक्षा की व्यवस्था करता हो तथा (iv) समस्याओं के समाधान में भाग लेता हो ।

(2) औपचारिकता का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार उपक्रम के संगठन के कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि (i) उसका क्या कार्य है; (ii) वह किसके प्रति उत्तरदायी है; (iii) अन्य कर्मचारियों के साथ उसके क्या सम्बन्ध हैं ?

(3) उद्देश्यों की एकता का सिद्धान्त- कुण्ट्ज एवं ओ ‘डोनेल के अनुसार, “संगठन कैसा है, इसका पता उसके द्वारा उपक्रम के प्रति किए गए योगदान से लगता है। इसके लिए आवश्यक है कि उद्देश्यों में एकता हो ।

(4) सत्ता के हस्तान्तरण का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व के वितरण के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि सम्बन्धित व्यक्ति को आवश्यक अधिकार प्रदान किए जाएँ, ताकि वह अपने कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व का निष्पादन कर सके ।

(5) अपवाद का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार उच्च प्रबन्धक को चाहिए कि वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा दिन-प्रतिदिन किए जाने वाले कार्यों में न्यूनतम हस्तक्षेप करे।

(6) निश्चितता का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त की प्रत्येक आवश्यक क्रिया संस्था के मुख्य लक्ष्य की पूर्ति में कम से कम प्रयास तथा अधिक से अधिक परिणाम दिखाने वाली होनी चाहिए।

(7) सह-भागिता के सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार प्रबन्धकों को आमने-सामने बैठकर संगठन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने हेतु विचार-विमर्श करना चाहिए।

(8) अनुरूपता का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार एक समान कार्य करने वाले कर्मचारियों के अधिकारों तथा उत्तरदायित्व में एकरूपता होनी चाहिए। ऐसा होने पर न तो टकराहट होगी और न अनावश्यक मतभेद पनपेगा।

(9) जाँच एवं सन्तुलन का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक व्यक्ति, समूह, शाखा या विभाग द्वारा निष्पादित कार्यों को किसी दूसरे व्यक्ति, शाखा या विभाग द्वारा जाँच एवं सन्तुलित रखने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि संगठन को उपक्रम की सफलता के लिए उक्त सिद्धान्तों का परिपालन करके चलाया जाना चाहिए, ताकि सम्बन्धित सभी पक्षों को वांछित सन्तोष मिले तथा उपक्रम की लाभार्जन क्षमता में अभिवृद्धि की जा सके।

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Anjali Yadav

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