समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान (Sociology and Psychology)
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान दोनों सामाजिक विज्ञान हैं। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं से सम्बन्धित है, जबकि मनोविज्ञान मानसिक दशाओं से सम्बन्धित है। दुर्खीम ने समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान को अपने अध्ययनों में एक-दूसरे से अलग करने का निरन्तर प्रयास किया तथा समाजशास्त्र को सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करने वाला विज्ञान माना। सामाजिक तथ्यों की व्याख्या अन्य सामाजिक तथ्यों के सन्दर्भ में ही हो सकती है, मनोवैज्ञानिक तथ्यों से नहीं। मनोविज्ञान का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य की मानसिक क्रियाओं तथा व्यवहार से सम्बन्धित नियमों का पता लगाना है। अतः यह वैयक्तिक है। समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान परस्पर इतने घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं कि इनमें सम्बन्ध तथा अन्तर बताना बड़ी कठिन समस्या है।
बॉटोमोर ने समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के परस्पर सम्बन्धों को निरूपण करने वाली दो चरम विचारधाराओं का उल्लेख किया है। एक तरफ जे० एस० मिल (J. S. Mill) हैं, जिनका विचार है कि समाज में व्यक्तियों में उन विशेषताओं के अतिरिक्त कुछ नहीं है, जोकि वैयक्तिक मनुष्य की प्रकृति के नियमों से उसने प्राप्त की है और उन्हीं में उनका समावेश हो सकता है। अन्य शब्दों में, मस्तिष्क की विधियों के बिना सामान्य सामाजिक विज्ञान स्थापित ही नहीं हो सकता अर्थात समाजशास्त्र को आधार प्रदान करने वाला विज्ञान मनोविज्ञान है। दूसरी तरफ, दुर्खीम (Durkheim) जैसे विद्वान हैं, जिन्होंने समाजशास्त्र को सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करने वाला विज्ञान बताया है और इस बात पर बल दिया है कि सामाजिक तथ्य व्यक्तियों के मस्तिष्क से बाह्य हैं तथा जो उन पर दमनकारी प्रभाव रखते हैं। सामाजिक तथ्यों की व्याख्या अन्य सामाजिक तथ्यों के सन्दर्भ में ही हो सकती है, मनोवैज्ञानिक तथ्यों से नहीं अर्थात् मस्तिष्क की दशाएँ सामाजिक घटनाओं की व्याख्या नहीं दे सकतीं।
समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान के परस्पर सम्बन्ध की समस्या बड़ी कठिन तथा अनिश्चित है। जिन्सवर्ग (Ginsberg) तथा कुछ अन्य समाजशास्त्रियों का यह मत है कि समाजशास्त्रीय सामान्यीकरण मनोवैज्ञानिक नियमों से सम्बन्धित किए जाने पर अधिक दृढ़ता से स्थापित किए जा सकते हैं। वास्तव में, यह मिल तथा दुर्खीम के मतों में मध्य स्थिति को प्रकट करने वाला दृष्टिकोण है। नैडल (Nadel) का भी यही विचार है कि मनोविज्ञान की सहायता से सामाजिक जाँच अच्छी तरह से की जा सकती है।
सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) वह शाखा है, जो समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान को अधिक नजदीक लाती है तथा सामाजिक जीवन के मनोवैज्ञानिक पक्ष से सम्बन्धित हैं। गर्थ एवं मिल्स (Gerth and Mills) का कहना है कि, “सामाजिक मनोवैज्ञानिक विभिन्न प्रकार के समाजों में स्त्रियों और पुरुषों के आचरण तथा प्रेरणाओं की व्याख्या और वर्णन करने का प्रयत्न करता है। वह यह जानने का प्रयत्न करता है कि किस प्रकार एक व्यक्ति बाह्य आचरण तथा आन्तरिक जीवन के साथ सम्बन्ध बनाए रखता है। वह विभिन्न समाजों में पाए जाने वाले भिन्न प्रकार के लोगों का वर्णन करता है। एवं फिर उनके समाजों में अन्तःसम्बन्धों की खोज कर उनकी व्याख्या करता है।” इस प्रकार, सामाजिक मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र मानवीय चरित्र व सामाजिक संरचना का परस्पर आदान-प्रदान है।
वास्तव में, सम्पूर्ण मनोविज्ञान कुछ अर्थों में सामाजिक है, क्योंकि सभी मनोवैज्ञानिक घटनाएँ किसी न किसी सामाजिक सन्दर्भ में ही घटित होती हैं और उसे कुछ सीमा तक प्रभावित करती हैं। दूसरी तरफ, समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त करने में मनोविज्ञान की सहायता लेनी पड़ती है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि दोनों परस्पर सम्बन्धित हैं। मानव व्यवहार को समझने के लिए हमें उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना जरूरी है, जबकि सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के लिए मानव की प्रकृति और उसके व्यवहार का ज्ञान होना जरूरी है। समाजशास्त्र जैसे मनोविज्ञान को सहायता देता है, ठीक उसी प्रकार मनोविज्ञान समाजशास्त्र को विशेष सहायता प्रदान करता है।
समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में काफी अन्तर है। रैडक्लिफ-ब्राउन (Radcliffe Brown) का कहना है कि समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान दो पूर्णतः भिन्न व्यवस्थाओं का अध्ययन करने वाले विज्ञान हैं। एक सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करता है, जबकि दूसरा मानसिक व्यवस्था का तथा इन्होंने यह दावा किया कि स्पष्टीकरण के इन दोनों स्तरों को मिश्रित नहीं किया जा सकता। मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
समाजशास्त्र | मनोविज्ञान |
1. समाजशास्त्र में सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। | 1. इसमें मानसिक तथा वैयक्तिक व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। |
2. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण विस्तृत है, क्योंकि इसमें मानव का समस्त जीवन सम्मिलित है, जोकि वह समूहों तथा समाज का सदस्य होने के नाते व्यतीत करता है। | 2. मनोविज्ञान का क्षेत्र सीमित है, क्योंकि इसका सम्बन्ध केवल मानसिक क्षेत्र से है। |
3. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है तथा इसमें प्रमुख रूप से समूहों का अध्ययन किया जाता है। जिसबर्ट के अनुसार समाजशास्त्र समाज का अध्ययन सामुदायिक तत्व की दृष्टि से करता है। | 3. मनोविज्ञान मानसिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है तथा इसमें व्यक्ति की आन्तरिक अवस्थाओं पर अधिक बल दिया जाता है। मनोविज्ञान समाज तथा व्यक्तियों का अध्ययन मनोवैज्ञानिक कारकों की दृष्टि से करता है। |
4. समाजशास्त्र में प्रयोगात्मक विधि द्वारा अध्ययन करना सम्भव नहीं है तथा इसलिए अप्रत्यक्ष प्रयोग विधि (तुलनात्मक विधि) और ऐतिहासिक, संरचनात्मक, प्रकार्यात्मक, संघर्षात्मक व व्यवहारात्मक विधियों द्वारा अध्ययन किया जाता है। | 4. आज मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक अध्ययन काफी प्रचलित हो गए हैं तथा इसमें कोई सन्देह नहीं रहा है कि इस दिशा में मनोविज्ञान समाजशास्त्र से आगे निकल गया है। |
टी० बी० बॉटोमोर ने इन दोनों विषयों के सम्बन्ध की चर्चा करते हुए कहा है कि, “समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के परस्पर सम्बन्ध तथा इन दोनों के मध्य सामाजिक मनोविज्ञान के स्तर की समस्या कठिन एवं अनिश्चित है।”