समाजशास्त्र एवं निर्देशन / SOCIOLOGY & GUIDANCE TOPICS

व्यवसाय चयन के सिद्धान्त | Principles of Vocational Choice in Hindi

व्यवसाय चयन के सिद्धान्त | Principles of Vocational Choice in Hindi
व्यवसाय चयन के सिद्धान्त | Principles of Vocational Choice in Hindi

व्यवसाय चयन के सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।

व्यवसाय चयन के सिद्धान्त (Principles of Vocational Choice)

किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में किसी एक विशिष्ट प्रकार के व्यवसाय के प्रति लगाव क्यों उत्पन्न होता है ? व्यक्ति एक विशिष्ट प्रकार का व्यवसाय अपने जीवन के लिए क्यों चुनता है ? व्यक्ति का व्यावसायिक विकास किस प्रकार होता है ? व्यवसाय-चयन के पीछे किन-किन तत्वों का प्रमुख योगदान रहता है ? आदि प्रश्नों का उत्तर जानना प्रत्येक निर्देशदाता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इन प्रश्नों के अभाव में वह सफल व्यावसायिक निर्देशन प्रदान नहीं कर सकता है। अतः निर्देशन कार्य से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति को व्यवसाय चयन के सिद्धान्तों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।

व्यवसाय चयन के सिद्धान्त के क्षेत्र में सर्वप्रथम एली जिन्जबर्ग (Eli Ginzberg) ने सन् 1951 में एक अध्ययन किया। जिन्जबर्ग के अनुसार, “व्यवसाय चयन एक प्रक्रिया होती है” EII Ginzberg-“Occupational choice is a process; the process is largely irreversible; compromise is an essential aspect of every choice” तथा यह तीन स्तरों में विभक्त होता है-कल्पनायें (Fantasy), सम्भाव्य-चयन (Tentative choices) तथा वास्तविक चयन (Realistic choice) । जिन्जबर्ग के इस शिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक निर्देशन कार्यकर्ता को व्यावसायिक निर्देशन देते समय देखना चाहिए कि व्यक्ति व्यावसायिक विकास के किस स्तर पर है। जिन्जबर्ग के अनुसार, व्यावसायिक विकास की प्रक्रिया ठीक बालक के जन्म से ही प्रारम्भ हो जाती है तथा जीवन पर्यन्त चलती है। व्यावसायिक विकास का अध्ययन बालक की सात वर्ष की आयु से ही किया जा सकता है। व्यवसाय-चयन के बारे में ग्यारह वर्ष से पूर्व की आयु काल्पनिक (Fantasy) कही जा सकती है। ग्यारह से सतरह वर्ष की आयु सम्भाव्य-चयन (Tentative choice) की आयु है तथा सतरह वर्ष से ऊपर की आयु व्यवसाय के वास्तविक चयन की आयु कहलाती है। जिन्जबर्ग के अनुसार, व्यवसाय का सम्भाव्य चयन स्तर पुनः तीन उप-स्तरों में विभक्त किया जा सकता है। इस स्तर पर प्रथम चरण में किशोर बालक अपनी रुचियों का विकास करता है। अतः इसे रुचि-स्तर कहा जा सकता है। रुचियों को ध्यान में रखने के पश्चात् बालक अपनी क्षमताओं को देखता है। अतः दूसरा स्तर क्षमताओं (Capacity stage) का है और अन्त में बालक अपने मूल्यों (Values) का अध्ययन करता है। अतः सम्भाव्य-चयन का तीसरा उप-स्तर मूल्य स्तर (Value stage) है।

सम्भाव्य-चयन आयु की भाँति ही वास्तविक चयन आयु को जिन्जबर्ग ने तीन उप-स्तरों में विभक्त किया है। इस आयु के प्रथम स्तर में वह सर्वप्रथम व्यवसायों की खोज करता है। इसे खोज स्तर (Exploration stage) के नाम से पुकारा जा सकता है। द्वितीय स्तर पर वह अपनी पसन्द का निश्चयीकरण करता है, इसे जिन्जबर्ग ने Crystallisation Stage का नाम दिया है। अन्त में, वह व्यवसायों के एक विशिष्ट समूह को ग्रहण करता है। यह आयु विशिष्टीकरण-स्तर ( Specification stage) के नाम से पुकारी जा सकती है।

सुपर (Super) ने जिन्जबर्ग के उपर्युक्त वर्णित सिद्धान्त की कड़ी आलोचना की और कहा कि व्यवसाय-चयन तथा व्यावसायिक विकास के लिए निम्न बातें अधिक महत्वपूर्ण हैं-

1. प्रत्येक व्यक्ति योग्यता, रुचि तथा व्यक्तित्व में एक-दूसरे से भिन्न होता है।

2. इस व्यक्तिगत भिन्नता के कारण ही व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न व्यवसायों के लिए पसन्द का विकास होता है।

3. समय तथा अनुभव के साथ-साथ हमारी व्यावसायिक रुझानें, पसन्द तथा रुचियाँ बदलती रहती हैं।

4. प्रत्येक व्यवसाय के लिए पृथक्-पृथक् योग्यताओं, दक्षताओं तथा व्यक्तित्व गुणों की आवश्यकता होती है।

5. सुपर इस स्थिति को निम्न जीवन चक्र के रूप में प्रस्तुत करता है

  • (i) कल्पनायें, सम्भाव्य पसन्द तथा व्यवसायों की वास्तविक खोज तथा
  • (ii) बार-बार के प्रयास (Trials) तथा व्यावसायिक चयन का स्थायी स्तर।

6. व्यावसायिक विकास का समुचित निर्देशन किया जा सकता है। इस विकास में व्यक्ति की योग्यताओं, रुचियों तथा दक्षताओं की परिपक्वता तथा ‘आत्मानुभूति’ का बोध करा देना काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसमें ‘आत्मानुभूति’ का बोध करा देना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

7. व्यावसायिक जीवन की दिशा निर्धारित करने में परिवार की सामाजिक, आर्थिक स्थिति, व्यक्ति की मानसिक योग्यतायें, व्यक्तित्व-विशेषतायें, परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवसाय तथा अवसर आदि तत्वों का प्रमुख योगदान रहता है।

8. कार्य-सन्तोष तथा जीवन-सन्तोष इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति उस व्यवसाय में अपनी योग्यताओं, रुचियों, व्यक्तित्व-शीलगुण, मूल्यों तथा मान्यताओं का पूरा-पूरा उपयोग कर पाता है अथवा नहीं।

जॉन हालैण्ड (Holland) ने उपर्युक्त वर्णित जिन्जवर्ग तथा सुपर के व्यावसायिक चयन-सिद्धान्तों की तीव्र आलोचना करते हुए कहा है कि ये दोनों ही सिद्धान्त इतने सामान्य हैं कि इनके आधार पर कोई विशिष्ट निर्णय नहीं लिए जा सकते हैं। साथ ही साथ इनके आधार पर आगामी शोध के लिए कोई कदम नहीं उठाये जा सकते हैं। इन आलोचनाओं के साथ ही साथ हालैण्ड महोदय ने सन् 1959 में व्यावसायिक चयन के सम्बन्ध में अपना सिद्धान्त प्रतिपादित किया।

हॉलैण्ड के अनुसार, व्यावसायिक चयन व्यक्ति के वंशानुक्रम तथा संस्कृति व सभ्यता तथा व्यक्तिगत दबाव जैसे साथी-संगी, अभिभावक, प्रभावक, प्रौढ़ व्यक्ति, सामाजिक स्तर तथा भौतिक वातावरण की पारस्परिक क्रिया का परिणाम होता है। अनुभवों के आधार पर व्यक्ति वातावरण के साथ एक विशिष्ट प्रकार से व्यवहार करना सीख जाता है। इन व्यवहारों के कारण वह ऐसे व्यवसाय का चुनाव करने की सोचता है, जो उसको सर्वाधिक सन्तोष प्रदान कर सके। इस दिशा में सर्वप्रथम वह विभिन्न व्यवसायों को कुछ समूहों में विभक्त करता है। इन व्यवसाय के इन समूहों को हालैण्ड व्यावसायिक वातावरण के नाम से पुकारते हैं। हालैण्ड ने इस प्रकार के कुल छह व्यावसायिक वातावरणों (समूहों) का उल्लेख किया है, जैसे बौद्धिक वातावरण। इसमें चिकित्सक, गणितज्ञ, रसायनशास्त्री, शरीरशास्त्री आदि को सम्मिलित किया है। सौन्दर्यात्मक वातावरण में कलाकार, कवि, लेखक, मूर्तिकार आदि को सम्मिलित किया है। हॉलैण्ड का कहना है कि प्रत्येक प्रकार के व्यवसाय वातावरण के लिए एक निश्चित प्रकार की जीवन-शैली आवश्यक है। व्यवसाय के लिए आवश्यक गुणों के अनुसार यदि जीवन-शैली होगी तो व्यक्ति को कार्य-सन्तोष मिलेगा और उसका व्यक्तित्व सन्तुलित होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन-शैली के अनुसार और उसी के सन्दर्भ में अपने लिए व्यवसाय का चयन करता है। उपर्युक्त सैद्धान्तिक चिन्तन के आधार पर हालैण्ड व्यावसायिक चयन के लिए निम्न प्रक्रिया का उल्लेख करते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति किसी व्यवसाय का चयन करता है-

1. सर्वप्रथम व्यक्ति अपनी जीवन शैली के अनुसार मुख्य व्यावसायिक वातावरण का चयन करता है।

2. अपनी योग्यताओं (विशेष रूप से बौद्धिक) के आधार पर व्यक्ति मुख्य व्यवसाय वातावरण (समूह) से एक व्यवसाय चुन लेता है।

3. उक्त दोनों प्रक्रियाओं पर व्यक्ति के ज्ञान, व्यावसायिक सूचनाओं, परिवार तथा मित्रों के परामर्श एवं सामाजिक- आर्थिक स्थिति आदि बातों का प्रभाव पड़ता है। उपर्युक्त तीन प्रमुख उपकल्पनाओं के अतिरिक्त हालैण्ड ने निम्न उपकलपनायें और दी है-

  1. यदि व्यक्ति की जीवन शैली का विकास एक ही दिशा में होता है तो वह व्यवसायों का चयन शीघ्र कर लेता है।
  2. यदि जीवन-शैली का विकास कई दिशाओं में हो अथवा अनिश्चित हो तो व्यवसाय चयन में कठिनाई होती है।
  3. जिन व्यक्तियों का आत्म-ज्ञान सुनिश्चित तथा सही होता है, वे निश्चित ही व्यवसाय का चयन कर लेते हैं।
  4. यदि व्यक्ति की रुचियों में समन्वय अच्छा होता है तो व्यवसाय का चयन शीघ्र कर लेता है।
  5. आत्म-ज्ञान के अभाव में व्यक्ति अपने व्यवसाय की दिशा तथा स्तर का निर्धारण नहीं कर पाते हैं।
  6. व्यवसाय चयन पर आयु का प्रभाव पड़ता है।
  7. जिन्हें व्यवसाय वातावरण का ठीक ज्ञान होता है, वे सुगमता से व्यवसाय-चयन कर लेते हैं।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment