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सहकारिता : अर्थ, लाभ तथा सिद्धान्त (Co-operation : Meaning, Advantages and Principles)
सहकारिता एक प्रकार का संगठन है जिसमें व्यक्ति मानवता की भावना से अपने आर्थिक हितों की वृद्धि के लिए समानता के आधार पर संगठित होते हैं।
– एप० कलवर्ट
सहकारिता का अर्थ (Meaning of Co-operation)
‘सहकारिता’ का अर्थ “किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलजुल कर कार्य करने से है।” किन्तु मिलकर कार्य करने की अनेक विधियों हैं जिनमें से कुछ तो समाज के लिए लाभदायक है जबकि कुछ हानिकारक भी हैं किन्तु अर्थशास्त्र के अन्तर्गत ‘सहकारिता’ का इतना व्यापक अर्थ नहीं लिया जाता साधारणतया आर्थिक संगठन का वह रूप जिसमें कुछ व्यक्ति अपनी आर्थिक उन्नति के उद्देश्य से अपने संसाधनों को स्वेच्छापूर्वक एकत्रित करते हैं, ‘सहकारिता’ कहलाता है।
जब कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की सामर्थ्य रखता है तब दूसरे व्यक्तियों की सहायता उसके लिए न तो उचित होती है तथा न ही अनिवार्य किन्तु जब वह आर्थिक दृष्टि से अपने को दुर्बल पाता है तो उसमें जन्य व्यक्तियों से सहायता प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न होती है, अर्थात् उसको आर्थिक दुर्बलता उसमें सहयोग प्राप्त करने की भावना को जन्म देती है। उसकी यह भावना उस अवस्था में और भी दृढ़ हो जाती है जबकि कुछ अन्य व्यक्ति मिलकर सहकारी संस्थाएं स्थापित करते हैं। अतः ‘सहकारिता’ आविक दृष्टि से दुर्बल व्यक्तियों का आर्थिक दृष्टि से सवत व्यक्तियों के अत्याचार से अपनी रक्षा करने के लिए संयुक्त प्रयासों का परिणाम है।
सहकारिता की परिभाषाएं (Definitions of Co-operation)
भिन्न-भिन्न विद्वानों ने ‘सहकारिता‘ के अर्थ को मित्र-मित्र शब्दों में स्पष्ट किया है-
(1) एम०टी० हैरिक के अनुसार, “सहकारिता उन व्यक्तियों का कार्य है जो स्वेच्छापूर्वक संयुक्त होकर अपनी शक्ति, प्रसाधनों या दोनों का उपयोग पारस्परिक प्रबन्ध के अन्तर्गत अपने सामूहिक लाभ या हानि के लिए करते हैं।
(2) जेम्स पीटर बारबेस (James P Warbasse) के शब्दों में, “सहकारिता जीवन का एक ढंग है जिसमें मनुष्य पारस्परिक सहायता की भावना से अपनी आवश्यकता की वस्तुओं तथा सेवाओं की प्राप्ति के लिए लोकतन्त्रीय ढंग से संगठित होते हैं।
(3) होरेस प्लंकेट (Horace Plunkett) के विचार में, “सहकारिता संगठन द्वारा बनाई गई प्रभावपूर्ण आत्म-सहायता है |
(4) 1946 की सहाकारी नियोजन समिति के अनुसार, “सहकारिता संगठन का एक रूप है जिसके अन्तर्गत मनुष्य स्वेच्छा से समानता के आधार पर अपने आर्थिक हितों की अभिवृद्धि के लिए संगठित होते हैं। जो व्यक्ति इस प्रकार परस्पर संयुक्त होते हैं उनका एक सामान्य आर्थिक ध्येय होता है जिसे वे अपने व्यक्तिगत तथा पृथक्-पृथक प्रयत्न द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि उनमें से अधिकांश व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति दुर्बल होती है।
सहकारिता के लाभ (Advantages of Co-operation)
सुविधा के लिए सहकारिता के लाभों (महत्त्व) को पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है- (1) आर्थिक लाभ, (2) सामाजिक लाभ, (3) राजनीतिक लाभ, (4) नैतिक लाभ, तथा (5) शिक्षात्मक लाभ।
(I) आर्थिक लाभ (Economic Advantages)- सहकारिता से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-
(1) राजनीतिक उद्देश्यों से रहित आर्थिक संगठन- सहकारी आन्दोलन का स्वरूप राजनीतिक न होकर आर्थिक तथा सामाजिक होता है। दूसरे शब्दों में, सहकारिता एक ऐसा आर्थिक संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य अपने सदस्यों की आर्थिक दशा को सुधारना है। यही कारण है कि सहकारिता पूंजीवादी, समाजवादी, साम्यवादी आदि विभिन्न विचारधाराओं के देशों में किसी न किसी रूप में प्रचलित है।
(2) आय तथा सम्पत्ति के वितरण में न्याय लाने का प्रयास- पूँजीवाद तथा समाजवाद दोनों में ही अन्याय की दुर्गन्ध आती है, क्योंकि पूंजीवाद में पूंजीपति लाभ हड़प जाना चाहते हैं जबकि समाजवाद पूंजीपति वर्ग को समाप्त ही कर देना चाहता है किन्तु सहकारी पद्धति उत्पादन कार्य में सहायता करने वाले सभी पक्षों के अपना-अपना भाग पाने के अधिकार को स्वीकार करती है।
(3) ग्रामीण जीवन का उत्थान- भारत में अविकसित ग्रामीण जीवन की प्रगति के लिए सहकारी प्रणाली का विशेष महत्त्व है। वास्तव में, भारतीय ग्राम्य जीवन के विकास के लिए कृषि सहकारी समितियों, कुटीर उद्योग सहकारी समितियों तथा उन्नत जीवन सहकारी समितियों का गठन आवश्यक है।
(4) कृषि का विकास– विविध सहकारी प्रयासों द्वारा कृषि व्यवसाय का पर्याप्त विकास किया जा सकता है- (i) बहुउद्देशीय समितियाँ कृषकों के लिए उत्तम बीज, यन्त्र, उर्वरक आदि की व्यवस्था करके उनकी कृषि-उपन में वृद्धि लाने में प्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध होती हैं। (ii) सहकारी विपणन समितियाँ (co-operative marketing societies) कृपकों एवं शिल्पियों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं की बिक्री में सहायता करके उन्हें उनकी वस्तुओं का उचित मूल्य दिलाती है। (iii) सहकारी चकबन्दी समितियों भूमि के छोटे तथा बिखरे हुए खेतों को एक चल में गठित करके प्रति एकड़ उपज में वृद्धि करने में सहायक सिद्ध होती है। (iv) सहकारी कृषि समितियाँ (co-operative agricultural societies) कृषकों में सहकारी खेती को लोकप्रिय बनाने का प्रयास करती हैं।
(5) मध्ययों का अन्त- सहकारी आन्दोलन ने कई राष्ट्रों में उत्पादन समितियों तथा उपभोक्ता समितियों को परस्पर सम्बद्ध करके विपणन प्रणाली से मध्यस्थ-वर्ग को हटा दिया है।
(6) कम ब्याज पर साख की पूर्ति- सहकारी साख समितियों कृषकों एवं शिल्पकारों को कम ब्याज पर ऋण प्रदान करके उनके व्यय में कमी कराती हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में साख समितियों से कृषकों एवं शिल्पियों को प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ रुपए की बचत होती है।
(7) आवास की समस्या का समाधान- सहकारी गृह- निर्माण समितियाँ अपने निर्धन तथा निस्सहाय सदस्यों के लिए निवास की व्यवस्था करती हैं।
(8) आर्थिक नियोजन की सफलता- आर्थिक योजनाओं की सफलता जनता के सहयोग तथा उनके सहकारी प्रयासों पर निर्भर करती है। इस प्रकार एक नियोजित अर्थव्यवस्था (Planned Economy) में सहकारिता महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
(II) सामाजिक लाभ (Social Advantages) सहकारिता के प्रमुख सामाजिक लाभ निम्नांकित हैं-
(1) सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में सहायक- सहकारिता सम्पूर्ण मनुष्य पर ध्यान देती है, अर्थात यह मानव जीवन के केवल आर्थिक पक्ष पर ही ध्यान नहीं देती वरन यह सामाजिक तथा नैतिक पक्ष को भी सम्मुख रखती है। इससे सामाजिक व्यवस्था की मुद्रुद्र बनाने में सहायता मिलती है। सहकारी संस्थाएं व्यापार-चक्रों (trade cycles) को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकती है तथा इस प्रकार वे सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ बना सकती हैं।
(2) समाज सेवी कार्य- सेवा भाव सहकारिता की एक प्रमुख विशेषता है। सहकारी संगठन के अन्तर्गत ‘सामूहिक कार्य द्वारा सामूहिक कल्याण (common welfare through common action) के सिद्धान्त को अपनाया जाता है। सहकारी समितियों अपने शुद्ध वार्षिक लाभ का एक निश्चित भाग सामाजिक कार्यों पर व्यय करती हैं जिनमें शिक्षा, सफाई, चिकित्सा, मार्ग निर्माण, कुओं की मरम्मत आदि जन कल्याण के कार्य आते हैं।
(3) सामाजिक गुणों का विकास- सहकारिता मनुष्यों में सद्भावना, सहयोग, त्याग, बन्धुत्व एवं मैत्री-भाव उत्पन्न करके उन्हें सच्चे अर्थ में सामाजिक प्राणी बनाती है। ग्लेडन ने सहकारिता के सामाजिक महत्त्व को इन सुन्दर शब्दों में स्पष्ट किया है, मानव समाज ज्यों-ज्यों असभ्यता से सभ्यता की ओर अग्रसर होता जाता है, त्यों-त्यों प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहकारिता का महत्त्व बढ़ता जाता है। सभ्य समाज के सर्वोच्च नियम सद्भाव एवं परस्पर सहायता है, प्रतिस्पर्धा नहीं।”
(4) सामाजिक न्याय दिलाने में सहायक- सहकारी संस्थाएं निर्दल तथा निर्धन व्यक्तियों की कठिनाइयों को दूर करके संरक्षण प्रदान करती हैं जिससे ऐसे व्यक्ति स्वावलम्बी होने लगते हैं। इस प्रकार सहकारिताएं निर्बल तथा निर्धन व्यक्तियों को सामाजिक न्याय दिलाने में सहायक होती हैं।
(III) राजनीतिक लाभ (Political Advantages) सहकारी प्रणाली के प्रमुख राजनीतिक लाभ निम्नांकित है-
(1) पूँजीवाद, समाजबाद तथा साम्यवाद का संश्लेषण- सहकारिता’ वस्तुतः पूंजीवाद तथा साम्यवाद के बीच का मार्ग है। पूँजीबाद से पूंजी पर ‘निजी स्वामित्य’ एवं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को लेकर समाजबाद में ‘सामूहिक क्रिया’ तथा समाज में धन के समान वितरण के सिद्धान्तों को लेकर सहकारी आन्दोलन एक तीसरा मार्ग प्रस्तुत करता है जिसमें एक और मानव समाज के अधिकतम कल्याण पर तथा दूसरी ओर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है।
(2) वर्ग संघर्ष की समाप्ति- सहकारी संस्थाओं के सदस्य एक ही स्तर के होते हैं जिनमें वर्ग संघर्ष का प्रश्न ही नहीं होता। फिर सहकारी संस्थाएँ प्रत्येक सबके लिए तथा सब प्रत्येक के लिए के आदर्श पर चलती है जिससे मनुष्यों के मध्य वर्ग संघर्ष समाप्त होने लगते हैं।
(3) राजनीतिक जागरण में सहायक- यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से सहकारी आन्दोलन राजनीतिक प्रभाव से अछूता रहा है तथापि यह सदस्यों में समान अधिकार तथा स्वातन्त्र्य के भावों को जागृत करके राजनीतिक जागरण में महत्त्वपूर्ण योग प्रदान करता है।
(IV) नैतिक लाभ (Ethical Advantages)— सहकारिता मनुष्य को न्याय और मानवता के नाम पर त्याग करना सिखाती है। सहकारिता की भावना के अभाव में समाज में धर्म की स्थिति अत्यन्त अस्थिर हो जाती है। डालिंग (Darling) के शब्दों में, एक उत्तम सहकारी समिति में मुकदमेबाजी, अपव्यय, शराबखोरी और जुआखोरी कम होती है और इनके स्थान पर परिश्रम, आत्म-विश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्म-सहायता, ईमानदारी, शिक्षा एवं पारस्परिक सहायता पाई जाती है।”
(V) शिक्षात्मक लाभ (Educational Advantages)- सहकारी आन्दोलन अपने सदस्यों को शिक्षित तथा प्रशिक्षित करता है। सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों के मानस को झकझोर कर उनमें नवीन-चेतना एवं स्फूर्ति पैदा करती हैं।
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