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सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम का महत्त्व (Importance of the Law)
सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक दोनों दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) उपभोग के क्षेत्र में महत्त्व (Importance in the Field of Consumption)
उपभोग के कई महत्त्वपूर्ण नियम जैसे माँग का नियम, सम-सीमान्त तुष्टिगुण नियम आदि तथा उपभोक्ता की बचत की अवधारणा इस नियम पर आधारित है।
(1) माँग के नियम का आधार- माँग के नियम के लागू होने का एक प्रमुख कारण सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम का क्रियाशील होना है। जब कोई उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का उपभोग करता है तो वस्तु की प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता (तुष्टिगुण) घटती जाती है। निःसंदेह कोई उपभोक्ता किसी वस्तु की कीमत उसकी सीमान्त तुष्टिगुण से अधिक देने को तैयार नहीं होता। इसलिए वह वस्तु की अधिक इकाइयाँ तमी खरीदेगा जबकि उसकी कीमत कम हो जाएगी।
(2) सम-सीमान्त तुष्टिगुण नियम का आधार- सम-सीमान्त तुष्टिगुण नियम (Law of Equi-marginal Utility) के अनुसार एक उपभोक्ता को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने के लिए अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार व्यय करना चाहिए कि प्रत्येक वस्तु पर व्यय किए जाने वाले अन्तिम रुपए से मिलने वाला सीमान्त तुष्टिगुण बराबर हो। प्रो० सेम्युअल्सन के अनुसार, “कोई उपभोक्ता उस समय अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करता है जब सभी वस्तुओं का सीमान्त तुष्टिगुण तथा कीमत का अनुपात बराबर होता है।”
(3) उपभोक्ता की बचत की अवधारणा का आधार- जैसे जैसे कोई उपभोक्ता किसी वस्तु को इकाइयों को खरीदता है वैसे-वैसे वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण घटता जाता है। जब वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण उसकी कीमत के बराबर हो जाता है तो वह उस वस्तु का उपभोग (या खरीदारी) बन्द कर देता है। चूंकि वस्तु की सभी इकाइयों के लिए वह समान कीमत चुकाता है इसलिए वस्तु की सीमान्त इकाई से पूर्व की सभी इकाइयों के उपभोग से उसे अधिक तुष्टिगुण प्राप्त होता है। वस्तु की सीमान्त इकाई से पहले की इकाइयों से मिलने वाले अतिरिक्त तुष्टिगुण को ही ‘उपभोक्ता की बचत’ (consumer’s surplus) कहते हैं।
(4) विविध वस्तुओं की माँग का आधार- किसी एक वस्तु के निरन्तर उपभोग के कारण उसके सीमान्त तुष्टिगुण में निरन्तर कमी होती जाती है। वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण घटते घटते शून्य भी हो जाता है। इस कारण उपभोक्ता एक वस्तु के स्थान पर अन्य प्रकार की वस्तुओं की मांग करने लगते हैं। अतः इस नियम की क्रियाशीलता के कारण ही उपभोक्ताओं की मांग में विविधता पाई जाती है।
(II) उत्पादन के क्षेत्र में महत्त्व (Importance in the Field of Production)
(5) विविध वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन- इस नियम के क्रियाशील होने के कारण उत्पादन तथा उपभोग में विविधता (diversity) पाई जाती है। एक ही प्रकार की वस्तु का उपभोग करने से उपभोक्ता को उससे मिलने वाला सीमान्त तुष्टिगुण घटता जाता है। इसलिए उपभोक्ता एक सीमा के बाद उस वस्तु का न केवल उपभोग बन्द कर देगा बल्कि वह अन्य प्रकार की वस्तुओं की मांग भी करेगा। इसीलिए उत्पादक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
(III) विनिमय के क्षेत्र में महत्त्व (Importance in the Field of Exchange)
(6) कीमत निर्धारण में महत्त्व- प्रत्येक वस्तु की कीमत उसकी मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। किसी वस्तु की माँग उसके सीमान्त तुष्टिगुण पर निर्भर करती है। सामान्त तुष्टिगुण में कमी होने के कारण उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा जब उसको कीमत कम होगी। इसके अतिरिक्त, किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होने पर वस्तु की कीमत इसलिए कम ही जाती है क्योंकि पूर्ति के बढ़ने से वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण घट जाता है। इस प्रकार यह नियम वस्तुओं के कीमत-निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
(7) प्रयोग-मूल्य तथा विनिमय-मूल्य में अन्तर का स्पष्टीकरण- इस नियम के द्वारा मूल्य के विरोधाभास’ (Paradox of Value) की व्याख्या की जा सकती है। ‘मूल्य का विरोधाभास’ यह है कि जिन वस्तुओं (जैसे पानी) का प्रयोग मूल्य (value in-use) अधिक होता है उनकी कीमत कम होती है तथा जिनका (जैसे हीरा) प्रयोग-मूल्य (तुष्टिगुण) कम होता है उनकी कीमत अधिक होती है। (i) जब किसी वस्तु की पूर्ति अधिक होती है तो उसका प्रयोग-मूल्य अधिक होने पर भी उसका विनिमय-मूल्य (value-in-exchange) कम या शून्य होता है क्योंकि उसका सीमान्त तुष्टिगुण तीव्रता से कम होता है, जैसे हया, पानी आदि । (II) हीरा, सोना, चाँदी आदि वस्तुओं का प्रयोग मूल्य कम होने पर भी इनका विनिमय-मूल्य (कीमत) अधिक होता है क्योंकि ऐसी वस्तुएँ कम मात्रा में पाई जाती हैं तथा इनके सीमान्त तुष्टिगुण में कमी धीरे-धीरे होती है।
यह ध्यान रहे कि ‘विनिमय-मूल्य’ का सम्बन्ध सीमान्त तुष्टिगुण से होता है जबकि ‘प्रयोग-मूल्य’ का सम्बन्ध कुल तुष्टिगुण से होता है।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्व— यह नियम विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भी हमारा मार्गदर्शन करता है। जिस वस्तु का उत्पादन घरेलू माँग से अधिक होता है उसका निर्यात किया जाना चाहिए (सीमान्त तुष्टिगुण कम होने के कारण)। इसके विपरीत, जिस वस्तु का उत्पादन उसकी माँग से कम होता है उसका आयात किया जाना चाहिए। इससे समाज का कुल तुष्टिगुण बढ़ेगा।
(IV) वितरण के क्षेत्र में महत्त्व (Importance in the Field of Distribution)
(9) उत्पादन के साधनों के पुरस्कार का निर्धारण- जिस प्रकार मांग की दृष्टि से किसी वस्तु की कीमत उसके सीमान्त तुष्टिगुण पर निर्भर करती है उसी प्रकार उत्पादन के किसी साधन के उपादान (factor) का पारिश्रमिक (कीमत) उसकी सीमान्त उत्पादकता (marginal productivity) पर निर्भर करता है। कोई उद्यमी (सेवायोजक) किसी साधन को पारिश्रमिक अधिक से अधिक उसकी सीमान्त उत्पादकता के बराबर दे सकता है।
(10) समाजवाद का आधार- समाजवाद (socialism) एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसके अन्तर्गत लोगों में धन का यथासम्भव समान बंटवारा करने का प्रयास किया जाता है। यह नियम बताता है कि निर्धन व्यक्तियों की अपेक्षा धनी व्यक्तियों के लिए मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण कम होता है। अतः समाज में निर्धनों के पक्ष में धन का पुनर्वितरण (redistribution) होना चाहिए।
(V) राजस्व के क्षेत्र में महत्त्व (Importance in the Field of Public Finance)
(11) प्रगतिशील करों का आधार- एक वित्त मन्त्री प्रगतिशील करो (progressive taxes) को लगाते समय इस नियम को ध्यान में रखता है। लोगों की आय में वृद्धि होने पर प्रगतिशीत कर की दर बढ़ती है क्योंकि आप के बढ़ने पर मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण कम होता जाता है। मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण पनी व्यक्तियों के लिए कम तथा निर्दन व्यक्तियों के लिए अधिक होता है। इसलिए यदि अधिक आय वाले व्यक्तियों से अधिक दर से कर लिया जाएगा तो उन्हें उतना ही त्याग करना पड़ेगा जितना कम आय वाले व्यक्तियों को कर की कम दर पर करना पड़ेगा। इस प्रकार सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम प्रगतिशील कर प्रणाली’ का आधार है।
(12) सार्वजनिक व्यय प्रणाली का आधार- डा० मार्शल ने सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम को करारोपण (taxation) तथा सार्वजनिक व्यय प्रणाली का आधार माना है। सरकार अपनी आय का अधिकांश भाग गरीबों के कल्याण पर व्यय करती है क्योंकि सार्वजनिक व्यय की सीमान्त उपयोगिता अमीरों की तुलना में गरीबों के लिए अधिक होती है। आधुनिक सरकारें आर्थिक अनुदानों (grants) के निर्धारण में भी इस नियम का सहारा लेती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion) उपयोगिता हास नियम के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यह अर्थशास्त्र का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नियम है। इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है तथा अर्थशास्त्र के पाँचों विभागों से सम्बन्धित क्रियाओं के अध्ययन में यह अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है।
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