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स्मृति से आप क्या समझते हैं? स्मरण करने की विभिन्न विधियों में आप किसको सर्वोत्तम समझाते हैं और क्यों?
स्मृति एक मानसिक क्रिया है, स्मृति का आधार अर्जित अनुभव है। इनका पुनरुत्पादन परिस्थिति के अनुसार होता है। अर्थात् पूर्व अनुभवों को अचेतन मन में संचित रखने और आवश्यकता पड़ने पर चेतन मन में लाने की शक्ति को स्मृति कहते हैं।”
वुडवर्थ के शब्दों में, “ जो बात पहले सीखी जा चुकी है, उसे स्मरण रखना ही स्मृति हैं।”
स्मृति सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है। इससे अतीत में घटी घटनाओं की कल्पना द्वारा पहचान की जाती है। अतीत के अनुभवों को पुनः चेतना में लाया जाता है।
स्मृति की प्रक्रिया में तीन आवश्यक तत्वों का समावेश है –
1. सीखना 2. धारण करना 3. पुनः स्मरण कर पहचान करना।
स्मरण करने की विभिन्न विधियाँ :
(1) पूर्ण विधि – इस विधि के अनुसार किसी एक विषय को याद करने के लिए पूरे विषय को एक साथ याद करने का प्रयास करना चाहिए। यदि आप कोई कविता याद करना चाहते हैं। इस कविता को एक साथ याद करना चाहिए, खण्डों में विभाजित करके नहीं। खण्डों में विभाजित कर याद करने की विधि आंशिक विधि कहलाती है। विद्वानों ने अनेक प्रयोगों के आधार पर यह स्पष्ट किया है कि पूर्ण विधि से विषय अधिक योग्यता व आसानी से याद होता है। मनोवैज्ञानिक स्टीफैन्स ने इस विधि पर अपना प्रयोग किया और कुछ व्यक्तियों को कुछ सामग्री याद करने के लिए दी और उसने परिणाम निकाला कि इस विधि से याद करने पर उनको आंशिक विधि की तुलना में 15 प्रतिशत समय कम लगा। अतः उसका मानना है कि किसी भी विषय को याद करने के लिए पूर्ण विधि अधिक उपयोगी हैं।
( 2 ) आंशिक विधि- आंशिक विधि पूर्ण विधि के बिल्कुल विपरीत है। जहां पूर्ण विधि में समग्र विषयवस्तु को एक साथ स्मरण करने की बात कही गयी है वहीं आंशिक विधि में विषयवस्तु को विभिन्न भागों या खण्डों में विभक्त करके याद करने पर बल दिया है। विद्वानों ने आंशिक विधि के महत्व को दर्शाने के लिए कुछ प्रयोग एवं अध्ययन किये। पेचस्टाइन ने कुछ पदों को याद करने के लिए 12 व्यक्तियों को कहा। प्रथम 6 व्यक्तियों को आंशिक विधि द्वारा और 6 व्यक्तियों को पूर्ण विधि द्वारा इन्हें याद करने के लिए कहा गया। परिणामस्वरूप आंशिक विधि से इन्हें याद करने में कम समय लगा। आंशिक विधि का दोष यह है कि जब किसी कविता को भिन्न भागों में विभक्त कर याद किया जाता है तो एक खण्ड को याद कर लेने के बाद दूसरे खण्ड को याद करते समय पहले खण्ड के भूल जाने की संभावना बनी रहती हैं। वैसे दोनों ही विधियाँ अपने आप में महत्वपूर्ण हैं। व्यक्ति, प्रतियोगिता एवं विषयवस्तु के अनुसार दोनों ही विधियों को अपनाया जाना चाहिए।
(3) मिश्रित विधि – इस विधि में आंशिक एवं पूर्ण विधियों को एक साथ मिलाकर विषयवस्तु को याद किया जाता है। इस विधि का प्रयोग उस समय किया जाना अधिक उपयुक्त होता है जब याद किया जाने वाला विषय काफी लम्बा होता है। इस विधि में पहले पूरे विश्व को एक साथ याद करने का प्रयास किया जाता है और जो भाग आसानी से याद नहीं होते उन्हें खण्डों में विभक्त कर याद करने का प्रयास किया जाता है। दोनों विधियों को मिश्रित करके स्मरण करने की शक्ति में वृद्धि होती है।।
( 4 ) प्रपाठन विधि – प्रपाठन विधि वह विधि हैं जिसमें विषय वस्तु को उच्च स्वर में बोलकर याद किया जाता हैं। इस विधि के भी दो स्वरूप हैं प्रथम विषय वस्तु को उच्च स्वर में याद करना और दूसरा विषयवस्तु को निम्न स्वर में यानी मन ही मन में बोल कर याद करना । जोर-जोर से बोलकर याद करने को सक्रिय प्रपाठन और मन ही मन में बोलकर याद करने को निष्क्रिय प्रपाठन विधि कहा जाता है। इस विधि से भी बच्चों को स्मरण करने में बहुत सहायता मिलती है।
(5) अन्तरहीन विधि – यह विधि बिना किसी विश्राम के निरन्तर याद करने की विधि है। इस विधि द्वारा सम्पूर्ण विषय को एक ही समय में याद करने का प्रयास किया जाता है। याद करने की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की रूकावट नहीं डाली जाती जब कोई विषय याद नहीं होता तो निरन्तर बार-बार उसे याद करने का प्रयास किया जाता है। विद्वानों का मानना है कि छोटी विषय वस्तु इस विधि द्वारा आसानी से स्मरण हो जाती है, लेकिन बड़ी विषय वस्तुओं को याद करने में इस विधि द्वारा कठिनाई होती है।
( 6 ) अन्तर सहित विधि – स्मरण की यह विधि अन्तरहीन विधि के बिल्कुल विपरीत है। इस विधि में विषयवस्तु को याद करने के दौरान विश्राम करने की बात कही गयी है। स्मरण की प्रक्रिया में थकान और आराम का विशेष महत्व है। थकान स्मरण की प्रक्रिया की गति को कम करती है जबकि विश्राम गति को तीव्र करती है। इस विधि द्वारा लम्बी विषय वस्तुओं को याद करने में बहुत सहायता मिलती है। विश्राम के दौरान जहां तक एक तरफ मस्तिष्क को आराम मिल जाता है। वहीं इस आराम के दौरान मस्तिष्क में बने स्मृति चिन्ह स्थायी हो जाते हैं। कठिन से कठिन विषय वस्तु इस विधि द्वारा सरलता से याद की जा सकती है।
(7) बोधपूर्ण विधि – इस विधि द्वारा याद किये जाने वाले विषय को सोच समझकर प्रयास के साथ याद किया जाता है। इस विधि से याद किया गया विषय अधिक समय तक स्थायी रहता है और विषय का भी पूर्ण ज्ञान हो जाता है। इस विधि द्वारा जो स्मृति चिन्ह मस्तिष्क में बनते हैं उनका स्वरूप स्थायी होता है और वह बहुत लम्बे समय तक अचेतन मन में बने रहते हैं और समय आने पर तुरंत ही अचेतन से चेतन में लाये जा सकते हैं।
( 8 ) बोध रहित विधि – यह विधि पूर्णतः बोधपूर्ण विधि के विपरीत है। इस विधि में याद करते समय विषय वस्तु को समझने का प्रयास नहीं किया जाता। बस बार-बार दोहराकर विषय को रटने पर जोर दिया जाता है। यह विधि अच्छी नहीं मानी गयी है क्योंकि इस विधि द्वारा विषय वस्तु बच्चों को याद तो हो जाती है लेकिन वह इस याद की गयी विषय वस्तु का विभिन्न परिस्थितियों में इस्तेमाल नहीं कर पाते, न ही वे विषय वस्तु को पूर्ण रूप से समझ ही पाते हैं।
ऊपर हमने स्मरण की जिन विधियों का उल्लेख किया है उनमें से किसी भी एक विधि को सर्वोत्तम विधि कहना सरल नहीं है और न ही यह उचित है। स्मरण एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है अतः किस व्यक्ति को किस विधि से अधिक स्मरण हो पायेगा यह निश्चित करना संभव नहीं और न ही इसके लिए कोई सामान्य नियम ही बनाया जा सकता है। अपनी अपनी क्षमता, योग्यता एवं बुद्धि के अनुसार स्मरण की विधियों का चुनाव किया जा सकता है। अतः यही कहा जा सकता है कि स्मरण की विधियों का पृथक-पृथक व्यक्तियों के लिए पृथक-पृथक महत्व है।
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