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हास्य रस – Hasya Ras in Hindi
जिस भाव में हास नामक स्थायी भाव उद्बुद्ध होता है वहाँ ‘हास्य रस माना जाता है। हास्य का स्थायी भाव हास माना गया है।
हास्य का मनोवैज्ञानिक आधार है-अप्रत्याशित असंगति या विकृति। यह असंगति या विकृति जितनी अधिक उचित और विचित्र होगी, उतना ही हास्य का वेग अधिक होगा। परंतु हास्य के वेग और हास्य के उदात्त होने में गहरा अंतर है। हँसी का वेग तो किसी प्रकार भी अचानक बेढ़ंगी बात से फूट सकता है। उदात्त हास्य में केवल हँसी नहीं आती, वह हमारी उदात्त भावनाओं को भी जगाती है। नैतिकता को पुष्ट करने वाला व्यंग्यपूर्ण हास्य उदात्त होता है। हास्य में जितनी मूल्यवान उदात्त भावना सम्मिलित होगी, वह हास्य उतना ही उदात्त और श्रेष्ठ होगा।
हास्य के आलंबनों की कोई सीमा नहीं। कोई भी विचित्र व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति या घटना जब अचानक विपरीत, असंगत या विकृत रूप में हमारे सामने प्रस्तुत की जाती है तो हँसी का विषय बनती है। उसकी अन्य हास्यपूर्ण परिस्थितियों, चेष्टाओं में वृद्धि ही उद्दीपन विभाव बनती है। हास्य में अनुभावों के रूप में नैन-संकेत, मुँह बनाना, आँखें मूँदना, आँखें खिल उठना, हँसना, हास्यापद परिस्थितियाँ पैदा करना अट्टाहास, हँसते-हँसते लोटपोट हो जाना, व्यंग्य कसना, हँसी दबाना, ताली पीटना, हाथ मारना आदि होते हैं तथा हँसी के कारण अश्रु, नाक-गाल – स्पंदन, रोमांच आदि सात्विक अनुभाव प्रकट होते हैं। संचारी भावों के रूप में व्यंग्य में घृणा, हास-परिहास में स्नेह, अर्थ-गोपन में मति, स्मृति, विस्मय, उत्साह, अमर्ष, उत्सुकता, गर्व, जड़ता, आवेग, चपलता, हर्ष तथा शंका प्रकट होते हैं।
केशवदास ने चार प्रकार के हास का उल्लेख किया है –
- मन्दहास,
- कलहास,
- अतिहास एवं
- परिहास
अन्य साहित्यशास्त्रियों ने छ: प्रकार का हास बताये है –
- स्मित
- हसित,
- विहसित
- उपहसित,
- अपहसित
- अतिहसित।
हास्य रस के उदाहरण
1. इस दौड़-धूप में क्या रक्खा आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की कुँजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूँद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में राम छिपा, जो भव बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसीलिए तुम्हें समझाता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
स्थायी भाव- हास
विभाव- आश्रय पाठक/श्रोता आलंबन आलसी व्यक्ति, उद्दीपन- व्यंग्य उक्तियाँ
अनुभाव- अखिलखिलाकर हँसना
संचारी भाव- हर्ष, चपलता, निर्लज्जता आदि।
रस- हास्य रस
2. मानुष हौं तो वही कवि चोंच बसौं सिटि लंदन के केहि द्वारे।
जो पशु हौं तो बनौं बुलडौग फिरौं नित कार में पूछ निकारे। – कवि चोंच
स्थायी भाव – हास
विभाव- आश्रय- पाठक/श्रोता, आलंबन- अमीरी का ढोंग रचने वाले व्यक्ति, उद्दीपन- व्यंग्य उक्तियाँ
अनुभाव- हँसना
संचारी भाव – घृणा, अमर्ष, उत्सुकता, मति आदि ।
रस – हास्य रस
3. जब सुख का नींद कढ़ा तकिया, इस सिर के नीचे आता है।
तो सच कहता हूँ इस सिर में इंजन जैसे लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
सपनों के स्टेशन लाँघ लाँघ मस्ती की मंजिल दिखती है।
स्थायी भाव- हास
विभाव- आश्रय- पाठक/श्रोता, आलंबन- हास्य से भरी उक्तियाँ उद्दीपन- कवि के
अनुभाव- हाव-भाव श्रोता / पाठक का खिलखिलाना, झूमना।
संचारी भाव- हर्ष, आवेग, चपलता, उत्सुकता आदि।
रस- हास्य रस
4. पिल्ला बैठा कार में मानुष ढोवें बोझ,
भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज।
रस बहुत लगाई खोज रोज साबुन से नहाता,
देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता।
कह काका कवि, माँगता हूँ वर चिल्ला-चिल्ला,
पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला । – काका हाथरसी
स्थायी भाव- हास
विभाव- आश्रय- काका, आलंबन पिल्ला, उद्दीपन- अमीरों का पिल्ला प्रेम
अनुभाव- खोज करना, सोचना, वर माँगना, चिल्लाना, पुनर्जन्म की आस करना।
संचारी भाव- हर्ष, चपलता, आशा, उत्सुकता, मति आदि।
रस – हास्य रस
5. दूर युद्ध से भागते, नाम रखा रणधीर
भागचंद की आज तक सोई है तकदीर
सोई है तकदीर, बहुत-से देखे-भाले
निकले प्रिय सुखदेव सभी दुख देने वाले
कहँ ‘काका’ कविराय, आँकड़े बिलकुल सच्चे
बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे। – काका हाथरसी
स्थायी भाव- हास
विभाव- आश्रय – काका, आलंबन विविध नाम, उद्दीपन नामों का विरोधाभास,
अनुभाव- नामों पर सोच-विचार, बहुत लोगों को देखना, आँकड़े देखना।
संचारी भाव- हर्ष, चपलता, उत्सुकता, विस्मय आदि ।
रस- हास्य रस
6. अट्टालिका पर एक रमणी, अनमनी सी है अहो ।
किस वेदना के भार से, संतप्त तुम देवी कहो ?
धीरज धरो संसार में, किसके नहीं दुर्दिन फिरे,
हे राम रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे। – ओमप्रकाश आदित्य
स्थायी भाव- हास
विभाव- आश्रय – कवि, आलंबन- छत पर उदास बैठी युवती, उद्दीपन- युवती के हाव-भाव
अनुभाव- देवी से कथन, भगवान श्री राम से प्रार्थना करना ।
संचारी भाव- आवेग, उन्माद, चपलता, मति आदि।
रस- हास्य रस
7. कर्जा देता मित्र को, वो मूरख कहलाय।
महामूर्ख वो यार है, जो पैसे लौटाय। – हुल्लड़ मुरादाबादी
स्थायी भाव- हास
विभाव- आश्रय- कवि, आलंबन- मित्र उद्दीपन- मित्रों का परस्पर व्यवहार।
अनुभाव- मित्र द्वारा कर्जा देना, कर्जा लौटाना।
संचारी भाव – हर्ष, चपलता, मति, उत्सुकता, आवेग आदि।
रस – हास्य रस
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