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10+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023
बच्चों को इन बेहतरीन 10+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023 से रूबरू कराने के लिए ही आज मैंने आप लोगों के लिए यह लेख “Short Stories in Hindi with Moral” प्रस्तुत किया है ये कहानियां सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए हैं, लेकिन ख़ासकर इन्हें बच्चों के लिए लिखा गया है।
फूंक-फूंक कर पग धरो
एक जंगल में मदोत्कट नाम का शेर रहता था। उसके तीन सहयोगी और सलाहकार थे- चीता, गीदड़ और कौआ । एक दिन वे सभी जंगल में घूम रहे थे तभी उन्होंने क्रथनक नाम के एक भटके हुए ऊँट को देखा। शेर ने कहा, “यह कौन-सा पशु है और मेरे राज्य में क्या कर रहा है?”
गीदड़ बोला, “महाराज ! यह ऊँट है जो आसानी मारा जा सकता है।”
“नहीं, नहीं, यह हमारा अतिथि है” यह कहकर शेर ने ऊँट का परिचय पूछा। ऊँट ने कहा, “मैं काफिले में जा रहा था, भटक गया हूँ। कृपया, मेरी मदद कीजिए।”
शेर ने कहा, “मैं इस जंगल का राजा हूँ। अब तुम आजाद हो, आराम से यहां रह सकते हो। ” ऊँट जंगल में रहने लगा।
एक दिन जंगली हाथी और शेर के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें शेर घायल हो गया। वह काफी कमजोर हो गया था। अपने सहायकों को भोजन लाने भेजा पर सब असफल रहे।
गीदड़ ने सुझाया कि अगर ऊँट मारा जाए तो हम सब कई दिनों तक आराम से खा सकते हैं। पर शेर उसे नहीं मारेगा इसलिए उन्होंने युक्ति लगाई। तीनों ने शेर के पास जाकर विनयपूर्वक कहा, “महाराज! हमें कोई शिकार नहीं मिला। ऊँट को क्यों नहीं मार सकते?” शेर ने क्रोधित होकर उत्तर दिया, “मूर्खो! जो हमारी शरण में आया है उसे भला कैसे मार सकते हैं?” तीनों ने फिर कहा, “महाराज! आपकी अवस्था के बारे में जानकर वह स्वयं आपकी सेवा में प्राणों की भेंट देना चाहता है। अब यह आप पर निर्भर है कि आप उसे स्वीकारें या नहीं। ” पल भर सोचकर शेर ने उत्तर दिया, “यदि ऐसा है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं।”
युक्ति के अनुरूप गीदड़, चीता, कौआ ऊँट को लेकर शेर के पास गए। तीनों धूर्त सहायकों ने शेर से कहा, “महाराज! आपको हम भूख से बेहाल नहीं देख सकते, कृपया हमें भोजन के रूप में ग्रहण कीजिए।” पर शेर ने मना कर दिया।
यह देख आश्वस्त ऊँट ने सोचा कि शेर उसे नहीं मारेगा, उसने भी स्वयं को शेर को अर्पित किया। उसका कहना था कि सब के सब उस पर टूट पड़े और उसे मार डाला।
शिक्षा
धूर्त और कपटी से सदा सावधान रहना चाहिए।
तीतर और समुद्र
समुद्र तट पर तीतर का एक जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले तीतरी ने तीतर को एक सुरक्षित स्थान ढूंढने के लिए कहा। उसे भय था कि समुद्र उसके अंडों को बहा लेगा। तीतर ने कहा, “प्रिये! हम लोग यहां बहुत समय से रहते हैं। तुम निर्भय होकर अंडे दो, चिंता नहीं करो, सब ठीक होगा।” तीतरी संतुष्ट नहीं हुई। उसने तर्क दिया, “चांदनी रात में जब ज्वार आता है तो सब बह जाता है।” तीतर ने समझाया, “यह सही है पर समुद्र हमारी संतान को हानि नहीं पहुँचाएगा। तुम निश्चिंत होकर अंडे दे दो।”
समुद्र ने तीतर की बातें सुन लीं और सोचा, “इतना छोटा पक्षी और इतना गर्व, अभी मैं इसे अपनी शक्ति दिखाता हूँ।”
तीतरी ने अंडे दिए। जब दोनों भोजन की खोज में गए थे तब जोर की लहरें आईं और अंडे बहा ले गई। लौटने पर अंडे न पाकर तीतरी विलाप करने लगी, “मैंने पहले ही कहा था कि समुद्र बहुत शक्तिशाली है। देखो, मेरे अंडे नहीं हैं। “
तीतर चिल्लाया, “चिंता मत करो प्रिये! मैं समुद्र को पी जाऊंगा। उसे बता दूंगा कि मैं कौन हूँ। उसे सीख देकर रहूँगा । “
तीतरी ने उसे समझाते हुए कहा, “प्रिये! तुम ऐसा कह भी कैसे सकते हो? तुम इतने विशाल समुद्र से युद्ध नहीं कर सकते हो। चलो, हम लोग राजा के पास अपनी समस्या लेकर चलें।”
सभी पक्षी मिलकर पक्षीराज गरुड़ के पास गए। गरुड़ सभी के साथ अपने स्वामी भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, “प्रभु! मेरे साथियों की मदद कीजिए। निर्दयी समुद्र ने इसके अंडे ले लिए हैं।’
भगवान विष्णु पक्षियों के साथ समुद्र के पास गए और समुद्र को पुकारा, “ओ निर्दयी समुद्र, पक्षियों को उनके अंडे वापस दे दो अन्यथा मैं अग्नेयास्त्र से तुम्हें सोख डालूंगा।”
साक्षात् भगवान विष्णु को आया देखकर समुद्र ने हाथ जोड़कर कहा, “मुझे क्षमा करें प्रभु मुझे सुखाएं मत। मैं अंडे वापस कर दूंगा” और उसने तीतरी के अंडे वापस कर दिए।
शिक्षा
शत्रु की शक्ति को समझकर ही युद्ध करना चाहिए।
हंस और उल्लू
ढेर सारे वृक्षों से घिरा हुआ एक तालाब था। उसमें आराम से एक हंस रहता था। एक दिन एक उल्लू उस तालाब के पास आया और प्रसन्न होकर बोला, “आहा! कितनी सुंदर जगह है। मैंने इतनी सुंदर जगह कभी नहीं देखी।”
वहाँ रहने वाले हंस ने पूछा, “तुम यहां क्या कर रहे हो?”
उल्लू हंस से मित्रता करने की इच्छा से बोला, “क्या तुम वही हंस हो जो यहां बहुत दिनों से रहता है? मैंने हर जगह तुम्हारी बहुत तारीफ सुनी है। मैं तुमसे यहाँ मित्रता करने आया हूँ। “
मीठी बातें सुनकर हंस प्रसन्न होता हुआ बोला, “मित्र तुम हमारे अतिथि हो । मेरा आतिथ्य स्वीकार करो। “
दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई। एक दिन उल्लू ने कहा, “मित्र! तुमसे आतिथ्य कराते बहुत दिन हो गए। मुझे अब जाना चाहिए। कृपया, मुझे अनुमति दो।”
हंस ने उसे धन्यवाद दिया और उल्लू चला गया।
कुछ दिनों के बाद हंस उल्लू से मिलने गया। जिस पेड़ पर उल्लू रहता था उसके नीचे से हंस ने आवाज दी। हंस को देखकर उल्लू बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, “इतने दिनों बाद मिले हो, तुम्हें देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। तुम यहीं रुको कुछ दिन।” हंस ने उल्लू की बात मान ली और वह वहीं रहने लगा।
एक दिन कुछ यात्री पेड़ के पास ही ठहरे हुए थे। ज्योंही वे जाने लगे उल्लू ने बोलना शुरू कर दिया। यात्रियों ने इसे अपशकुन माना। एक ने कहा, “तुरंत उस उल्लू को मार डालो। इसका बोलना हमारे लिए अशुभ है।”
दूसरे यात्री ने निशाना साधकर उल्लू पर तीर छोड़ दिया पर दुर्भाग्यवश निशाना चूक गया और तीर हंस को लग गया। बेचारा निरीह हंस जान से हाथ धो बैठा।
शिक्षा
गलत लोगों से मित्रता करना भयंकर मूर्खता है।
खटमल और कीड़ा
एक राजा एक सुंदर महल में रहता था। उसका शयनकक्ष भी बहुत सुंदर था। राजा की शय्या पर मंडविसर्प नाम का खटमल छुप कर रहता था ।
एक दिन खिड़की से एक कीड़े को भीतर आते हुए खटमल ने देखा और कहा, “अरे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई भीतर आने की? भाग जाओ वरना राजसिपाही मार डालेंगे।’ अग्निमुख नामक कीड़े ने कहा, “कृपया मुझे बाहर मत निकालिए। मैं आपका अतिथि हूँ। मैंने राजसी खून का स्वाद नहीं लिया है। यदि आपकी अनुमति हो तो अपनी इच्छा पूरी कर लूं।”
खटमल ने पल भर सोचकर कहा, “ओ कीड़े! मेरे अतिथि हो इसलिए सद्व्यवहार कर रहा हूँ। तुम राजसी खून का स्वाद ले लेना पर इस कार्य में जल्दबाजी मत करना। जब राजा गहरी नींद में सो जाए तभी चखना।”
भूखे कीड़े ने खटमल की बात अनसुनी करके राजा के कमरे में प्रवेश करते ही उसे काटना और खून पीना शुरू कर दिया। क्रोधित राजा ने सेवकों को बुलाकर डांटा, “मूखों, दिन भर क्या करते हो? खटमल नहीं देख सकते हो? पूरा बिस्तर छान मारो और तुरंत खटमल को मार दो।”
यह सुनकर खटमल एक कोने में दुबक गया। कीड़ा उड़कर खिड़की से बाहर निकल गया। काफी देर ढूंढने के बाद सिपाहियों को छुपा हुआ खटमल मिला। सिपाहियों ने तुरंत उसे मार डाला।
अनजान को अपना मित्र बनाने के कारण खटमल को जान से हाथ धोना पड़ा।
शिक्षा
अनजान से मित्रता नहीं करनी चाहिए।
सारस और नेवला
एक जंगल में बरगद के पेड़ पर बहुत सारे सारस रहते थे। पेड़ के कोटर में एक नाग भी रहता था। प्रतिदिन वह सारस के बच्चों को उनके पंख उगने से पहले ही खा लिया करता था। एक दिन एक मां सारस ने नाग को बच्चों को खाते देख लिया। दुःखी होकर वह विलाप करने लगी। एक केकड़े ने उसे रोते देखकर पूछा, “बहन क्यों रो रही हो? क्या हुआ है? यदि बताओगी तो संभवत: कुछ मदद कर पाऊं।”
मां सारस ने केकड़े से कहा, “मित्र! इस पेड़ के कोटर में रहने वाले नाग ने मेरे सभी बच्चों को खा लिया है। मैं नाग से अपने बच्चों को किस प्रकार बचाऊं कुछ समझ नहीं आ रहा है।”
यह सुनकर केकड़े ने सोचा, “ये सारस तो हमारे शत्रु हैं। मैं इनकी सहायता क्यों करू? इनसे बदला लेने का यह सुअवसर है।’
उसने सारस से कहा, “मित्र ! मेरे पास एक युक्ति है। पास में ही एक नेवला रहता है। मछली के टुकड़े नाग के कोटर से लेकर नेवले के बिल तक डाल दो। नेवला मछली के पीछे-पीछे पेड़ से कोटर तक आएगा और नाग को देखकर मार डालेगा।”
सारस ने केकड़े की सलाह मान ली। युक्ति के अनसार नेवला मछली उठाते-उठाते कोटर तक आया और भीतर जाकर सांप को मार डाला। धीरे-धीरे एक-एक कर पेड़ पर रहने वाले सभी सारसों को भी मार डाला।
शिक्षा
समस्या का समाधान मित्र द्वारा होता है, शत्रु के द्वारा नहीं ।
स्वार्थसिद्धि परम लक्ष्यम
एक जंगल में मन्दविष नाम का बूढ़ा साँप रहता था। उसने एक युक्ति सोची जिससे बिना बहुत भाग-दौड़ किए उसे खाना मिल सके। वह मेढकों से भरे तालाब के पास चला गया। और किनारे पर बैठ गया।
एक मेढक ने पूछा, “चाचा, आप इतने उदास क्यों हैं?”
मेढक के फिर पूछने पर साँप ने बताया, “कल रात खाना ढूंढते समय एक मेढक को पकड़ते समय भूलवश मैंने ब्राह्मणपुत्र को काट लिया और वह मर गया। ब्राह्मण ने श्राप दिया कि तुझे मेढकों का वाहन बनकर उन्हें सैर करानी होगी। यदि वे कुछ देंगे तो वही तुम्हारा आहार होगा। इसलिए मैं तुम्हारा वाहन बनने आया हूँ।”
उस मूढ मेढक ने यह वृतान्त अपने राजा जलपाद को भी बताया।
राजा ने प्रसन्न होकर कहा, “बहुत खूब चलो सब चलकर साँप की सवारी करते हैं।” जलपाद के साथ सभी मेढक साँप की पीठ पर सवार हो गए और सवारी का आनन्द लिया।
साँप पहले तो तेजी से दौड़ा फिर उसकी चाल धीमी हो गई। जलपाद के पूछने पर उसने बताया कि पिछले दो दिनों से उसने कुछ नहीं खाया है।
यह सुनकर जलपाद ने उसे छोटे-छोटे मेढकों को खाने की अनुमति दे दी। इस प्रकार मेढक खाते-खाते, धीरे-धीरे साँप ताकतवर हो गया।
एक दिन दूसरा बड़ा साँप वहाँ आया और बोला, “मित्र ! जो हमारा भोजन है उसे तुम सवारी करा रहे हो?” मन्दविष ने उत्तर दिया, “मित्र! बस सही समय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”
जलपाद ने दोनों की बात सुनी और सच्चाई जाननी चाही । मन्दविष ने उसे बतलाया, “अरे! ऐसी कोई बात नहीं है मित्र।” फिर मन्दविष ने अनुकूल अवसर पाकर धीरे-धीरे सभी मेढकों को खा लिया।
शिक्षा
शत्रु पर विश्वास करने की मूर्खता कभी न करें।
कौवों की चालाकी
कौवों का राजा मेघवर्ण एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ पर सैंकड़ों कौवों के साथ रहता था। उलूकराज अपने पूरे वंश दल के साथ पास की पहाड़ी की गुफा में रहते थे। पुराने बैर के कारण अपने मार्ग में आने वाले प्रत्येक कौवे को मार दिया करते थे।
स्थिरजीवी मेघवर्ण का सबसे पुराना मंत्री था। उल्लुओं को अपने मार्ग से हटाने के लिए उसने एक युक्ति बनाई। उसने मेघवर्ण से कहा, “तुम मुझसे लड़कर, मुझे लहूलुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर स्वयं सपरिवार पर्वत पर चले जाओ। मैं उल्लुओं का विश्वासपात्र बनकर अवसर पाकर सबका नाश कर दूँगा।”
मेघवर्ण ने ऐसा ही किया। यह समाचार तुरंत उलूकराज के पास पहुँच गया। स्थिरजीवी को उलूकराज के सामने लाया गया। वह कांपते हुए बोला, “राजन्! मैं मेघवर्ण का मुख्यमंत्री स्थिरजीवी हूँ। मैंने आपकी थोड़ी तारीफ क्या कर दी, मुझे पीटकर राज्य से निष्कासित कर दिया।” उलूकराज का मंत्री रक्ताक्ष बीच में बात काटकर तुरंत बोला. “स्वामी! इसपर विश्वास मत कीजिए। यह हमारा शत्रु है इसे मारने में ही भलाई है।” शेष मंत्री इस बात से सहमत न हुए। एक उल्लू ने सलाह दी, “मुझे लगता है यह कौआ बड़े काम का साबित होगा। “
इन तर्कों से सहमत होकर उलूकराज ने स्थिरजीवी को नहीं मारा।
थोड़ा ठीक होने पर स्थिरजीवी ने उलूकराज से कहा, “महाराज, मैं आत्मदाह करके उल्लू का जन्म लेना चाहता हूँ जिससे मेघवर्ण से बदला ले सकूँ। आप मुझे लकड़ियाँ इकट्ठी करने की अनुमति दीजिए।”
गुफा के मुंह पर स्थिरजीवी ने ढेर सारी लकड़ियाँ इकट्ठी करी और फिर मेघवर्ण के पास जाकर बोला, “मशाल लेकर दिन में आना। गुफा के द्वार पर इकट्ठी लकड़ियों पर डाल देना।” स्थिरजीवी ने जैसा कहा था कौवों ने वैसा ही किया। गुफा के दरवाजे पर लकड़ियाँ जल उठीं और सभी उल्लू भीतर ही फंस कर भस्म हो गए। मेघवर्ण अपने अनुयायियों के साथ वापस बरगद के पेड़ पर आ गया और सुखपूर्वक रहने लगा।
शिक्षा
बुद्धि से दुश्मन को परास्त किया जा सकता है।
मेढक – साँप की मित्रता
एक कुँए में गंगदत्त नाम का मेढक राजा रहता था। अपने बन्धुओं के व्यवहार से खिन्न होकर एक दिन वह कुँए से बाहर निकल आया और उनसे बदला लेने की सोचने लगा। तभी उसने एक नाग को बिल में जाते देखा और उसी के द्वारा अपनी बिरादरी का नाश करवाने का सोचा। बिल के पास खड़ा होकर उसने आवाज दी, “प्रियदर्शन, कृपया बाहर आओ।”
प्रियदर्शन ने सोचा, “यह कौन मुझे बुला रहा है? यह तो कोई अजनबी लगता है। कहीं कोई सपेरा तो नहीं? बिल के भीतर से बोला, “कौन हो तुम?”
गंगदत्त ने कहा, “मैं गंगदत्त मेढक हूँ। मैं तुम्हारी मदद मांगने आया हूँ।”
नाग ने कहा, “मैं तुम पर विश्वास कैसे करूँ? आग और घास में मैत्री नहीं हो सकती।”
गंगदत्त ने कहा, “मेरे साथ कुँए पर चलो जहां मैं रहता हूँ। भीतर जाकर मेरे परिवार को छोड़कर शेष सभी मेढकों को खा लो।”
नाग मेढक के पीछे रेंगता हुआ कुँए में गया और उसने सभी मेढकों को खा लिया। पर वह अभी भी भूखा था। गंगदत्त ने उसे वापस जाने के लिए कहा क्योंकि अब केवल उसका परिवार बचा था।
नाग ने कहा, “मैं अब वापस कहां जाऊँ? अब तक तो मेरा बिल भी दूसरे सर्प ने ले लिया होगा। मैं यहीं रहूँगा। मुझे प्रतिदिन एक मेढक दो वरना मैं तुम्हारा परिवार समाप्त कर दूँगा । “
गंगदत्त बहुत डर गया। उससे बड़ी भूल हो गई थी जो उसने दुश्मन को मित्र बना लिया था। वह नाग से बोला, “मित्र, चिंता मत करो। मैं दूसरे कुँए से तुम्हारे लिए मेढक लाने जाता हूँ।” यह कहकर वह कुँए से निकल आया।
नाग की लंबी प्रतीक्षा के बाद भी गंगदत्त जब नहीं आया तो नाग समझ गया शिकार हाथ से निकल गया। नाग ने गिरगिट से मदद मांगी, गिरगिट ने मेढक को ढूँढा और वापस चलने को कहा पर मेढक वापस नहीं आया।
शिक्षा
शत्रु के साथ कभी भी मित्रता नहीं फलती।
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