1. बड़े नाम की महिमा
एक वन में चतुर्दन्त नाम का हाथी था। वह अपने दल का मुखिया था। कुछ साल सूखा पड़ने के कारण वहाँ के सारे झील, ताल-तलैया सूख गए। पानी के लिए बैचेन सभी हाथी मिलकर चतुर्दन्त के पास आकर बोले, “अब हम सब मरने के कगार पर हैं। हमें पानी से भरा कोई तालाब ढूंढना चाहिए। “
चतुर्दन्त ने कहा, “मुझे एक तालाब का पता है जहाँ सदा पानी रहता है। चलो, वहीं चलें।” सारे हाथी चल पड़े। पाँच दिन की लंबी यात्रा के बाद हाथी दल वहाँ पहुँचा। तालाब के चारों और खरगोशों के अनगिनत बिल थे। बहुत सारे खरगोश इन बिलों में रहा करते थे बिलों से जमीन पोली हो गई थी। जब हाथी दस जमीन पर चले तो हाथियों के पैरों से सब बिल टूट गए। बहुत से खरगोश कुचल गए। किसी की गरदन टूटी तो किसी का पैर और बहुत से मर भी गए।
हाथियों के वापस जाने के बाद खरगोशों ने मिलकर बैठक की। बहुत विचार के बाद उन्होंने विजयदत्त नामक खरगोश को अपना दूत बनाकर चतुर्दन्त के पास भेजा। उसने कहा, “महाराज, चन्द्रमा ने मुझे आपके पास भेजा है। कल आपने खरगोशों के बिलों का नाश कर दिया था। वे खरगोशों के रक्षक हैं और उनकी विनती सुनकर आए हैं। आप तालाब में न आया करें। “
चतुर्दन्त ने कहा, “ऐसा है, तो मुझे उनके दर्शन करा दो। मैं भी उन्हें प्रणाम करना चाहता हूँ उनसे माफी माँगना चाहता हूँ।”
चतुर्दन्त को विजयदत्त तालाब के किनारे ले आया और तालाब में पड़ रही चांद की छाया दिखलाई। चतुर्दन्त ने चांद को प्रणाम किया और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया। सारे खरगोश आराम से रहने लगे।
शिक्षा
सदा बुद्धिमान को ही नेता चुनना चाहिए।
2. धूर्त मध्यस्थ
एक पेड़ पर एक कौआ रहता था। उसी पेड़ के कोटर में कपिंजल नाम का तीतर रहता था। दोनों में गाढ़ी मित्रता थी। एक दिन तीतर पके हुए धान खाने खेत में गया पर वापस नहीं लौटा। कौवा चिंतित रहने लगा। एक खरगोश वहाँ आया और पेड़ का कोटर खाली देखकर उसमें रहने लगा।
कुछ दिनों बाद तीतर अपने कोटर में लौटा। वहाँ खरगोश को देखकर उसे बहुत क्रोध आया। उसने कहा, “यह मेरा घर है, तुम कैसे यहाँ रह सकते हो? खरगोश ने उत्तर दिया. “यह जगह खाली थी तो मैं रहने लगा। अब यह मेरा घर है।”
तीतर ने कहा, “चलो, किसी और से पता कर लो।” दोनों इस बात के लिए राजी हो गए। दधीकर्ण नाम के एक धूर्त बिल्ले ने जब यह सुना तो साधु के वेश में मार्ग में बैठ गया। तीतर ने उसे देखकर खरगोश से कहा, “यह दधीकर्ण है और बहुत ही बुद्धिमान हैं।”
खरगोश ने कहा, “यह बहुत ही धूर्त है। इसने साधु का रूप धारण कर रखा है। यह खरगोश का शत्रु है, मैं उसके पास नहीं जाऊंगा।”
उन्हें देखकर दधीकर्ण जोर से बोला, “ओह! ओह! केवल प्रेम और दयालुता ही सत्य है। शेष सब झूठ है । “
तीतर ने खरगोश से कहा, “यह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का प्रतीत होता है। चलो इसके पास चलें। “
खरगोश ने तीतर को फिर से मना किया और कहा, “नहीं, यह केवल धार्मिक बातें कर हमें बहला रहा है, हमें इससे दूर रहना चाहिए।”
फिर दधीकर्ण से कहा, “कृपया, आप हमारा मतभेद दूर करें। जो गलत होगा वह आपका भोजन बनेगा।”
दधीकर्ण ने कहा, “मुझे गलत मत समझो । अब मैं दुष्ट नहीं रहा। बूढ़ा हो गया हूँ। मेरे पास आकर अपनी बात कहो, मैं निपटारा कर दूंगा।” उस पर विश्वास कर तीतर और खरगोश उसके पास गए। पलक झपकते दधीकर्ण ने दोनों को मार डाला।
शिक्षा
धूर्त पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
3. चुहिया का स्वयंवर
गंगा नदी के किनारे तपस्वियों का एक आश्रम था। वहाँ याज्ञवलक्य नाम के मुनि रहते थे। मुनिवर एक दिन नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि उनकी अंजुली में, बाज के चोंच से छूटकर, एक चुहिया गिर पड़ी। मुनि ने अपने प्रताप से उसे एक सुंदर कन्या में बदल दिया और अपने आश्रम ले आए। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, “इसे प्रेम से अपनी बच्ची की तरह पालो।”
मुनि पत्नी उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुई और बड़े प्यार से उसका लालन-पालन किया। जब वह विवाह योग्य हो गई तब उन्होंने मुनि से योग्य वर ढूंढकर उसके हाथ पीले करने के लिए कहा।
मुनि ने तुरंत सूर्य देव को बुलाकर अपनी कन्या से पूछा, “पुत्री! त्रिलोक को प्रकाशित करने वाला सूर्य क्या तुम्हें पतिरूप में स्वीकार है?”
पुत्री ने मना करते हुए कहा, “नहीं, इनके तेज के कारण मैं इनसे आंख नहीं मिला सकती।”
मुनि ने सूर्य देव से पूछा, “आप अपने से अच्छा कोई वर सुझाएं।” सूर्यदेव ने कहा, “मुझसे अच्छे मेघ हैं वह मेरे प्रकाश को भी ढक देते हैं। “
मुनि ने मेघ को बुलाकर पुत्री से पूछा कि क्या वह उसे पसंद हैं? कन्या ने उसे काला कहकर मना कर दिया। मुनि ने मेघ से कहा, “कृपया अपने से शक्तिशाली वर बताएं।’ मेघ ने कहा कि पवन उनसे अधिक ताकतवर है। ‘यह तो बड़ा चंचल है’ यह कहकर कन्या ने मना कर दिया।
मुनि ने पवन से उत्तम वर के लिए पूछा तो उन्होंने कहा पर्वत मुझसे अधिक अच्छा है। मुनि ने पर्वत को बुलाकर कन्या की राय जानी तो उसने कहा, “यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है।” मुनि ने पर्वत से अधिक योग्य कौन है जब पूछा तो उसने उत्तर दिया, ” श्रीमान! मुझसे अच्छा चूहा है जो मुझे खोदकर बिल बना लेता है।
मुनि ने मूषकराज को बुलाया। उसे देखकर कन्या बहुत प्रसन्न हुई और बोली, “पिताजी! मुझे चुहिया बनाकर मूषकराज को सौंप दीजिए।” मुनि ने पुनः उसे चुहिया बना दिया और चूहे के साथ विवाह कर दिया।
शिक्षा
जो जैसा है वैसा ही रहता है।
4. बोलने वाली गुफा
एक जंगल में खरनख नाम का शेर रहता था। एक बार बहुत दौड़-धूप करने के बाद भी उसे कोई शिकार न मिला। उसे एक बहुत बड़ी गुफा दिखाई दी।
शेर गुफा के भीतर चला गया, गुफा के भीतर जाकर उसने सोचा कि रात बिताने के लिए कोई जानवर गुफा में अवश्य आएगा, उसे मारकर भूख मिटाऊंगा। तब तक इस गुफा में ही छिपकर बैठता हूँ।
थोड़ी देर में गुफा में रहने वाला दधिपुच्छ नाम का गीदड़ वहाँ आ गया। उसने गुफा के बाहर शेर के पद चिह्न देखे। पद चिह्न भीतर तो गए थे पर बाहर नहीं आए थे। गीदड़ ने सोचा कि अवश्य ही कोई शेर भीतर है। अपनी शंका की सत्यता जानने के लिए उसने एक युक्ति लगाई।
उसने बाहर से ही गुफा को पुकारा, “गुफा, ओ गुफा ! देखो तुम्हारा मित्र अपने वादे के अनुसार तुमसे मिलने आया है। तुम कैसी हो?”
गुफा से कोई उत्तर न पाकर गीदड़ ने एक बार फिर गुफा को आवाज दी। “आज तुम चुप क्यों हो? मैं दूसरी गुफा में चला जाता हूँ।”
शेर ने सोचा कि यह गुफा शायद आज मुझसे डर से नहीं बोल रही है। मेरे चुप रहने से गीदड़ को संदेह हो जाएगा… और शेर गरज उठा।
शेर की गर्जना से गुफा गूंज उठी।
गीदड़ को शेर के होने का पता चल गया और वह सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा हुआ।
शिक्षा
संकट सामने पाकर बुद्धि से काम लेना चाहिए।
5. मित्रता
महिलारोप्य नाम का एक शहर था। वहाँ बरगद के एक पेड़ पर लघुपतनक नाम का एक कौआ रहता था। एक दिन वह भोजन की खोज में जा रहा था तभी जाल लेकर एक शिकारी को पेड़ की ओर आता देखा। शिकारी ने पेड़ के नीचे जाल फैलाकर अनाज के दाने बिखेर दिए ।
उसी समय चित्रग्रीव नाम का कबूतरों का राजा, अपने कबूतर दल के साथ, उड़ता हुआ वहाँ आया । बिखरे हुए अनाज के दानों को देखकर कबूतर अपना लोभ न रोक सके और दाने चुगने नीचे उतर आए। पेड़ के पीछे छुपे हुए शिकारी ने जाल को खींच लिया और सभी कबूतर जाल में फँस गए।
चित्रग्रीव बहुत ही चतुर था। उसने कबूतरों से कहा “मित्रों डरो मत! हमलोग एक साथ जाल लेकर उड़ जाएँगे और सुरक्षित स्थान पर चले जाएँगे। तैयार हो जाओ, एक…दो… तीन। ‘ ” सभी कबूतर एकसाथ जाल लेकर उड़ गए। शिकारी ने काफी दूर तक उनका पीछा किया पर वे आँखों से ओझल हो गए।
शिकारी के लौट जाने पर चित्रग्रीव ने कबूतरों से कहा, “चलो हम सब शहर चलें जहाँ मेरा मित्र हिरण्यक चूहा रहता है। इस जाल से बाहर निकलने में वह हमारी सहायता करेगा।” वहाँ पहुँचकर चित्रग्रीव ने आवाज़ दी “मित्र हिरण्यक, कृपया बाहर आओ। मैं तुम्हारा मित्र चित्रग्रीव कठिनाई में हूँ, हमारी सहायता करो। “
हिरण्यक अपने मित्र को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, “ठीक है, तुम राजा हो इसलिए मैं पहले तुम्हें बाहर निकलने में सहायता करूँगा फिर शेष कबूतरों को। चित्रग्रीव ने हिरण्यक को मना करते हुए कहा, “कृपया, पहले मेरे मित्रों के बन्धन काटो। अपने लोगों का ख्याल रखना राजा का प्रथम कर्तव्य है।” चित्रग्रीव का प्रेम देखकर हिरण्यक बहुत प्रसन्न हुआ और बोला “मैं राजा का धर्म और कर्तव्य जानता हूँ। मैं सभी के बन्धन काट दूंगा।”
हिरण्यक ने अपने साथी चूहों के साथ मिलकर, अपने तीखे दाँतों से पूरे जाल को काट डाला और सभी कबूतरों को आजाद कर दिया। चित्रग्रीव ने हिरण्यक और उसके साथियों का धन्यवाद किया और अपने दल के साथ उड़ गया।
शिक्षा
आवश्यकता पड़ने पर सहायता करने वाला मित्र ही सच्चा मित्र है।
6. एकता की शक्ति
एक दिन एक तालाब के किनारे मंथरक (कछुआ), लघुपतनक (कौआ) और हिरण्यक (चूहा) बैठे आपस में बातें कर रहे थे। तभी शिकारी से बचता बचाता चित्रांग (हिरण) वहाँ आया और उनका मित्र बनकर उनके साथ रहने लगा।
एक दिन हिरण अपना खाना ढूँढकर शाम को जब वापस नहीं आया तो सभी मित्र चिंतित हो गए। सबने सलाह की और हिरण को ढूँढने निकल पड़े। कौए ने आसमान में उड़कर उसे ढूँढना शुरू किया। हिरण ने कौए को देखा तो चिल्लाकर बोला, “शिकारी के आने से पहले कृपया जाल से मुझे निकालो।’
कौआ अपने दोस्तों के पास पहुँचा। कौआ ने उन्हें सारी बात बताई और चूहे को हिरण के पास ले गया। अपने पैने दाँतों से चूहे ने जाल काट दिया। इसी बीच रेंगता-रेंगता कछुआ भी वहाँ पहुँच गया था।
तभी शिकारी आया और जाल कटा तथा हिरण को गायब देखा तो वह बहुत सकते में आ गया। शिकारी को देखते ही सभी जान बचाकर भागे। कौआ उड़ गया, चूहा पत्थरों के पीछे छुप गया और हिरण ने जंगलों की ओर छलांग लगाई पर कछुआ पकड़ा गया। उसे थैले में बंद कर शिकारी चल पड़ा।
अब कछुए को बचाने की सलाह की गई। कौए ने उपाय बताया, “हिरण भाई, तुम तालाब के पास मृतप्राय लेट जाओ। मैं तुम्हारी आँख निकालने का नाटक करूँगा। शिकारी तुम्हें मृत समझकर, थैला छोड़कर, पकड़ने आएगा। तुम चौकड़ी भरकर भाग जाना। तभी चूहा थैला कुतरकर कछुए को बचा लेगा।”
कौए के बताए उपाए के अनुसार हिरण मृतप्राय लेट गया। शिकारी ने उसे मृत समझकर थैला रखा और हिरण को लेने दौड़ा। शिकारी को पास आता देखकर हिरण उठा और बिजली की गति से जंगलों में भाग गया। निराश शिकारी वापस अपने थैले के पास आया। थैला कुतरा हुआ था और कछुआ गायब… उसके दुःख की सीमा न रही।
इधर चारों मित्र हिरण्यक, मन्थरक, लघुपतनक और चित्रांग फिर से साथ होकर बहुत प्रसन्न थे।
शिक्षा
एकता में बहुत शक्ति होती है।
7. बंदर और मगरमच्छ
एक तालाब के किनारे एक बेर का पेड़ था। उस पर रक्तमुख नामक बंदर रहता था। एक दिन करतमुख नामक मगरमच्छ पेड़ के नीचे लेटा धूप सेंक रहा था।
बंदर ने मगर से कहा, “दोस्त! बड़े मीठे बेर हैं। लो, तुम भी खाओ!” मगर को बेर बहुत स्वादिष्ट लगा। वह थोड़े बेर अपनी पत्नी के लिए भी ले गया। बंदर और मगर रोज मिलने लगे। एक दिन मगर की पत्नी ने मगर से पूछा, “तुम्हें इतने मीठे बेर कहां मिलते हैं?” “मेरा मित्र बंदर मुझे ये फल देता है”- मगर कहा।
” जब फल इतने मीठे हैं तो इसे खाने वाले बंदर का दिल कितना मीठा होगा ! यदि तुम मुझसे प्यार करते हो तो बंदर का दिल लेकर आओ,” पत्नी ने कहा। मगर ने कहा “मैं अपने मित्र को भला कैसे मार सकता हूँ पर उसकी पत्नी अपनी जिद पर अड़ी रही।
अगले दिन मगर थोड़ी देर से पेड़ के नीचे आया। बंदर ने पूछा, “इतनी देर क्यों लगा दी?” मगर ने कहा, “मेरी पत्नी ने कहा कि मैं कैसा मित्र हूँ जो तुम्हें अपने घर नहीं बुलाता हूँ। आज तुम मेरी पीठ पर बैठो मैं तुम्हें घर ले चलता हूँ।’
बंदर ने थोड़ी देर सोचा और फिर मगर की पीठ पर बैठ गया। तैरते हुए मगर गहरे पानी की ओर जाने लगा।
बंदर को देखकर मगर ने मुस्कराकर कहा, “प्रिय मित्र! मुझे क्षमा करना। मैंने तुमसे झूठ कहा था। मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती थी इसलिए मेरे पास दूसरा कोई चारा न था।”
बंदर पहले डरा पर कुछ सोचकर बोला, “अरे, मित्र! तुम्हें पहले बताना चाहिए था। मैंने अपना दिल तो पेड़ पर ही छोड़ दिया है।” चलो, वापस चलकर ले आते हैं। ” बंदर की बात पर विश्वास करके मगर वापस किनारे आ गया। किनारा आते ही बंदर कूदकर पेड़ पर चढ़ गया। काफी देर हो गई तो मगर ने पूछा, “मित्र ! जल्दी आओ। मेरी पत्नी हमारी प्रतीक्षा कर रही होगी।”
बंदर ने ठहाका लगाया और कहा, “अरे मूर्ख ! क्या तुमने कभी किसी का दिल शरीर से अलग देखा है? ईश्वर की कृपा से मुझे जीवनदान मिला है। जाओ और वापस मत आना। हमारी तुम्हारी कैसी मित्रता….
शिक्षा
बिना सोचे समझे विश्वास मत करो।
8. नटखट बंदर
एक गांव में एक आम के वृक्ष पर ढेर सारे बंदर रहते थे। उनमें से एक बंदर बड़ा नटखट था। उसे लोगों को परेशान करने में बड़ा मजा आता था। लोगों की चीजों से वह खेला करता था। शेष सभी बंदर खाते और मस्त रहते थे।
एक बार कम वर्षा के कारण गांव में सूखा पड़ा। गांववालों ने मंदिर बनवाने का विचार किया और सभी निर्माण कार्य में लग गए।
एक दिन दोपहर में बढ़ई लोग काम छोड़कर खाना खाने गए थे। तभी नटखट बंदर अपने मित्रों के साथ वहाँ आ गया। उसने लकड़ी का एक लट्ठा देखा जिसे गुटके के सहारे खड़ा किया हुआ था। नटखट बंदर को कुछ समझ नहीं आया। उसने मन ही मन सोचा, “यह है क्या? एक गुटके के साथ इसे फंसाकर इन्होंने क्यों रखा हुआ है। अगर मैं इसे निकालूं तो क्या होगा?’
नटखट बंदर लट्ठे पर बैठकर उसे हिलाने लगा और गुटका निकालने की चेष्टा करने लगा। हिलते-हिलते गुटका निकल आया। लट्ठा भारी था, खड़ा नहीं रह पाया। गिर गया और बंदर का पैर फंस गया। दर्द से बंदर कराहने लगा। उसकी शरारत का फल उसे मिल गया था।
शिक्षा
हर जगह अपनी नाक नहीं डालनी चाहिए।
9. शेर और खरगोश
एक जंगल में भासुरक नाम का शेर रहता था। वह प्रतिदिन कई जानवरों को मारा करता था। एक दिन सभी जानवर एक साथ शेर के पास गए और बोले, “महाराज! आपके भोजन के लिए प्रतिदिन एक पशु आ जाया करेगा। आपको शिकार के लिए जाना नहीं पड़ेगा।”
यह सुनकर शेर ने कहा, “प्रस्ताव तो अच्छा है। पर यदि एक दिन भी जानवर न आया तो मैं तुम सबको मार डालूँगा।”
पशु निर्भय होकर घूमने लगे, प्रतिदिन एक पशु आ जाया करता था। एक दिन खरगोश की बारी आई। जाते हुए खरगोश ने सोचा, “हूँऽऽ, कोई तो युक्ति सोचनी पड़ेगी जिससे मैं भी बचूँ और शेष जानवर भी…।”
मार्ग में उसने एक गहरा कुआं देखा। झांका तो परछाई दिखाई दी। पहले तो वह भयभीत हुआ फिर उसे एक युक्ति सूझी। धीरे-धीरे चलता हुआ वह गुफा में पहुँचा। शाम ढलने वाली थी। भूखे शेर ने छोटे से खरगोश को देखकर कहा, “नीच खरगोश, एक तो तू इतना छोटा है ऊपर से इतनी देर से आ रहा है। तुझे खाकर सुबह मैं सारे जानवरों को मार डालूंगा।”
खरगोश ने विनय से सिर झुकाकर कहा, “स्वामी! इसमें न मेरी गलती है और न ही अन्य जानवरों की। छोटे होने के कारण उन लोगों ने पांच खरगोश भेजे थे। पर… उस बड़े शेर ने चार को खा लिया और मैं किसी तरह बचते हुए आया हूँ.. आपको बताने…”
अधीर होकर भासुरक गुर्राया ” गर्र र र क्या, दूसरा शेर… ?” खरगोश ने कहा, “उस शेर ने कहा – मैं हूँ जंगल का राजा यदि किसी और में शक्ति है तो सामने आए।” भासुरक ने क्रोध से उबलते हुए कहा, “चलो, मुझे उसके पास ले चलो। देखूं तो जरा कौन है यह राजा….”
आगे-आगे खरगोश, पीछे-पीछे भासुरक, दोनों कुएं के पास पहुँचे। खरगोश ने कहा, ” आपको देखते ही वह कपटी अपने दुर्ग में छिप गया है। आइए महाराज मैं आपको दिखाता हूँ।” भासुरक ने कुएं पर चढ़कर भीतर देखा तो उसे पानी में अपनी परछाई दिखाई दी। वह जोर से गरजा तो प्रतिध्वनि हुई। क्रोध में वह दूसरे शेर के ऊपर कूद पड़ा। इस प्रकार मूर्ख शेर का अंत हो गया और जंगल में सभी जानवर प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।
शिक्षा
बुद्धि बड़ी बलवान ।
10. हंस और कछुआ
एक तालाब में कंबुग्रीव नाम का कछुआ रहता था। दो हंस संकट एवं विकट उसके बहुत अच्छे मित्र थे। प्रतिदिन तालाब के किनारे वे स्नेहपूर्वक मिलते थे।
एक वर्ष वर्षा के अभाव में तालाब सूखने लगा। परिस्थिति की गम्भीरता को समझते हुए संकट और विकट ने से कहा, कछुए “ तालाब का पानी सूख रहा है, हमें दूसरे तालाब में जाना चाहिए। पर्वत के दूसरी ओर एक बड़ा तालाब है। हम उधर जाने का विचार कर रहे हैं। तुम भी हमारे साथ चलोगे?”
कछुए ने कहा, “मित्र! मैं उड़ तो नहीं सकता पर एक उपाय है, तुम लोग जंगल से एक छड़ी ले आओ। मैं बीच से उसे कसकर पकडूंगा और तुम दोनों उसे दोनों किनारों से पकड़ लेना। इस प्रकार हम लोग उड़कर चले जाएंगे।”
हंसों ने कहा, “उपाय तो उत्तम है। पर तुम हर हाल में अपना मुंह बंद रखना। यदि मुंह खोला तो गिर पड़ोगे।”
उपाय के अनुसार हंस छड़ी ले आए और कछुए से छड़ी कस के पकड़ने को बोला। कछुए से छड़ी पकड़ी और तीनों उड़कर चल दिए। किसी शहर के ऊपर से गुजरते समय नीचे से लोगों ने यह दृश्य देखा और कौतूहलवश शोर मचाने लगे। शोर सुनकर कंबुग्रीव चुप नहीं रह पाया। कुछ बोलने के लिए ज्योंही उसने अपना मुंह खोला, जमीन पर गिर पड़ा और उसका अंत हो गया।
शिक्षा
हितैषी की सीख मानो।
11. तीन मछलियां
एक तालाब में तीन मछलियां रहती थीं : अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य । अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति बहुत ही मेहनती और व्यावहारिक थीं जबकि यद्भविष्य भाग्यवादी थी।
एक दिन उधर से जाते हुए मछुआरों ने देखा कि तालाब में बहुत सारी मछलियां हैं। उन्होंने आपस में सलाह की कि कल इसमें जाल डालेंगे।
अनागतविधाता ने मछुआरों की बात सुनकर सभी मछलियों को बुलाकर सारी बात बताई और कहा कि हम सबको तुरंत तालाब को छोड़कर चले जाना चाहिए। प्रत्युत्पन्नमति ने अपनी सहमति दी पर यद्भविष्य ने हंसते हुए कहा, “अरे डरपोकों! हम क्यों अपना तालाब छोड़ें? हम यहां बहुत समय से रह रही हैं। अभी तक एक भी मछली नहीं पकड़ी गई। दैव अनुकूल होगा तो कुछ नहीं होगा और प्रतिकूल हुआ तो वहाँ जाकर भी मारे जाएंगे। इसलिए मैं तो नहीं जाती। “
अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति ने यद्भविष्य की बात नहीं मानी और सपरिवार तुरंत दूसरे तालाब में चली गई। अगले दिन सुबह मछुआरे आए, जाल डाला और यद्भविष्य तथा बहुत सारी दूसरी मछलियों को पकड़ ले गए।
शिक्षा
मात्र भाग्य भरोसे नहीं बैठकर दूरदर्शी बनना चाहिए।
12. जैसे को तैसा
एक बार जीर्णधन नाम के बनिए को व्यापार में भारी नुकसान हो गया। धन कमाने के लिए उसने परदेश जाने का निश्चय किया। उसके पास एक पुराना, भारी लोहे का तराजू था। एक महाजन के पास जाकर उसने कहा, “कृपया आप मेरा यह तराजू गिरवी रखकर मुझे कुछ पैसे दे दें। “
धन कमाकर वापस आने के बाद वह महाजन के पास गया और उधार का पैसा लौटाकर अपना तराजू मांगा। महाजन बहुत ही लालची था। वह तराजू वापस नहीं करना चाहता था इसलिए उसने कहा कि तराजू को चूहों ने खा लिया है। जीर्णधन समझ गया कि महाजन उसे तराजू नहीं देना चाहता है।
कुछ सोचकर उसने कहा, “कोई चिंता नहीं। चूहों ने खा लिया तो यह उनका दोष तुम्हारा नहीं। मैं नदी पार स्नान के लिए जा रहा हूँ। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा आएगा।”
महाजन ने अपने पुत्र को जीर्णधन के साथ नदी में स्नान करने भेज दिया। नदी के पास की एक गुफा में जीर्णधन ने महाजन के पुत्र को बंद कर दिया। वापस जब महाजन के घर पहुँचा तो महाजन ने अपने पुत्र के विषय में पूछा कि वह कहां है?”
जीर्णधन ने कहा उसे चील उठाकर ले गई।
महाजन ने कहा, “क्या? कहीं चील भी इतने बड़े बच्चे को उठाकर ले जाती है? पुत्र मेरा दो अन्यथा मैं धर्माधिकारी के पास तुम्हें ले जाऊंगा।”
“ठीक है चलो धर्माधिकारी के पास” जीर्णधन ने कहा “मैं उन्हें बताऊंगा कि चूहे अगर लोहे का तराजू खा सकते हैं तो चील बच्चे को क्यों नहीं ले जा सकती है?” महाजन को अपनी भूल का अहसास हो गया। उसने कहा, “मित्र, क्षमा करना। मैंने झूठ कहा था। मैं तराजू देता हूँ तुम मेरा पुत्र लौटा दो।”
जीर्णधन ने पुत्र लौटा दिया और महाजन ने तराजू ।
शिक्षा
जो जैसा करता है उसे वैसा ही भोगना पड़ता है।
13. कुत्ते का वैरी कुत्ता
एक गाँव में चित्रांग नाम का कुत्ता रहता था। वहाँ दुर्भिक्ष (अकाल) पड़ गया। अन्न के अभाव में कई कुत्तों का वंशनाश हो गया। चित्रांग ने दुर्भिक्ष से बचने के लिए दूसरे गाँव की राह ली।
नये शहर में उसने एक अमीर आदमी का घर देखा। जिसकी मालकिन बहुत सुस्त और आलसी थी। वह घर का दरवाजा बंद नहीं करती थी। चित्रांग उस खुले घर में जाकर, खाना चुराकर, जी भर खाया करता था।
एक दिन जब वह खाना खाकर घर से बाहर निकला तो आसपास के कुत्तों ने उसे घेर लिया। भयंकर लड़ाई हुई और चित्रांग घायल हो गया। उसने सोचा, “ओह! मैंने यहां आकर गलती करी। इससे तो अपना गाँव ही अच्छा था। दुर्भिक्ष था पर जान के दुश्मन कुत्ते तो नहीं थे।”
यह सोचकर वह वापस अपने घर आ गया। उसे वापस घर आया देखकर उसके परिजन और मित्र बहुत प्रसन्न हुए।
शिक्षा
अपनों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
14. एक और एक ग्यारह
एक जंगल में एक बहुत बड़ा वृक्ष का पेड़ था पेड़ की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का जोड़ा रहता था। चिड़ी ने शाखा पर बने अपने घोंसले में अंडे दिए थे। एक दिन एक मतवाला हाथी आया और उसी वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा। जाने से पहले पत्तियां खाने के लिए उसने अपनी सूंड से वह शाखा तोड़ दी जिस पर चिड़ा-चिड़ी का घोंसला था। अंडे जमीन पर गिरकर टूट गए।
चिड़िया टूटे अंडे देखकर बहुत दु:खी हुई। उनका विलाप देखकर उनका मित्र कठफोड़वा वहाँ आकर उन्हें समझाने लगा। चिड़िया ने कहा, “ यदि तू हमारा सच्चा मित्र है तो हाथी को सबक सिखाने में हमारी सहायता कर। “
कठफोड़वे ने कहा, “यह इतना आसान नहीं है। एक चालाक मक्खी मेरी मित्र है। चलो उसके पास चलें। “
उन्होंने मक्खी के पास जाकर अपनी पूरी कहानी सुनाई और उससे मदद मांगी।
मक्खी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और अपने मित्र मेढक के पास ले गई। उसे भी पूरी कहानी सुनाई गई।
सारी बात सुनकर मेढक ने एक युक्ति बताई। उसने कहा – मैं जैसा बताता हूँ तुम वैसा ही करो। पहले मक्खी हाथी के कान में वीणा सदृश मीठे स्वर में आलाप करे। हाथी मस्त होकर अपनी आंख बंद कर लेगा। उसी समय कठफोड़वा चोंच मारकर हाथी की आंखें फोड़ देगा। हाथी अंधा होकर पानी की खोज में भागेगा। मैं दलदल के पास बैठकर आवाज करूंगा। मेरी आवाज सुनकर हाथी पानी पीने आएगा और दलदल में फंस जाएगा। यह उसकी हार होगी।
सभी इस युक्ति पर सहमत हो गए। मक्खी ने आलाप किया, कठफोड़वे ने आंख फोड़ी, मेढक ने पानी की ओर बुलाया और हाथी दलदल में फंसकर और फंसता चला गया। चिड़िया का बदला पूरा हो गया था। उन्होंने अपने मित्रों का धन्यवाद किया और नया घोंसला बनाने में जुट गईं।
शिक्षा
साथ में बहुत शक्ति होती है। बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है।
IMPORTANT LINK
- 10+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023
- 8 Best Moral Stories In Hindi for kids | नैतिक कहानियाँ
- Top 10 Story For Moral In Hindi [2023] | हिंदी में नैतिक 10 कहानी
- Top 5 Best short stories in Hindi for Class 1 to 5th
- Best Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023
Disclaimer